सन 1526 के पानीपत के युद्ध के बाद हेमू को आज भी यह पता न था कि कौन तारीख चल रही थी और आज दिन क्या था?

उस दिन तो अचानक ही, उस होते घमासान के बीचों बीच से महावत अनिकेत ने अपने हाथी अश्वस्थामा को दौड़ाया था और उसे साफ बचा कर भाग आया था! तब से वो तीन प्राणी थे और तीन अलौकिक रूहों की तरह अलोप हो गये थे। जान सलामती के सिवा आज तक उनका कोई और मुद्दा ही न था!

भूख प्यास, रहन सहन और आगत स्वागत की व्यवस्था अनिकेत ने ही की थी। अश्वस्थामा उनके साथ था और हेमू उनका सम्राट था!

आज तक वही व्यवस्था कायम थी!

सम्राट हेमू हर जिम्मेदारी से मुक्त थे, स्वस्थ थे और स्वतंत्र थे! सुखद चलता पुरवइया उनका मित्र था तो चांदनी रातें उनकी प्रिय सखी थी! अब केसर का आगमन, उनका मिलन, उनकी मुलाकातें, प्रेमालाप और उनके आत्मीय पल ही हेमू का संताप हर लेते थे! पानीपत में हुई हार का जहर हेमू की नस नस में व्याप्त हो गया था। वह अब न चाहता था कि अपने इस गुप्तवास से बाहर भाग कर किसी नए साम्राज्य के स्वप्न से टकराए!

“स्वागत नहीं करेंगे सुलतान?” अचानक सामने आ खड़ा हुआ अब्दुल पूछ रहा था।

“बड़ी उम्मीदों के साथ आये हैं!” माहिल ने पीछे से हाथ जोड़कर कहा था।

हेमू हैरान था। वह परेशान भी था। उसे आश्चर्य हुआ था कि ये दोनों कैसे बेरोक टोक उसके पास पहुंच गये थे? महान सिंह कहां था और अनिकेत ..

“पधारिए!” हेमू ने संभल कर कहा था। उसने उन दोनों को फिर से शकिया निगाहों से घूरा था। उन दोनों की बांहों में फल और मिठाइयां भरी थीं। “स्वागत है – हेमू के साम्राज्य में!” हेमू ने अपने आस पास के बियाबान की ओर इशारा किया था। “बैठिये!” उसने आस पास पड़े पत्थरों की ओर इशारा किया था।

और फिर न जाने कैसे सारे शक और शंकाओं को चीर कर एक अजीब सी गहमागहमी ने उन तीनों को गह लिया था। बांहें पसार पसार कर तीनों मिले थे और उन तीनों ने अपने इस मिलन को एक जश्न मान कर मनाया था!

“आ रहे हैं न .. राणा सांगा के साथ ..?” अब्दुल ने अचानक प्रश्न किया था। “बाबर ने खानवा – भरतपुर को चुना है!” उसने साथ में सूचना भी दी थी। “भारी जंग होगी – सुना है!” कह कर वह चुप हो गया था!

अब उन दोनों को उम्मीद थी कि हेमू कुछ कहेगा। जंग के बारे कुछ तो कहेगा जरूर! लेकिन हेमू चुप था, शांत था!

“अब आ कर आंख खुली हैं राणा सांगा की!” माहिल ने उलाहना दिया था। “पहले तो बुला लिया बाबर को! मिल गये उसके साथ और हरा दिया लोधियों को! अब नहीं जाता बाबर – काबुल!”

“क्यों जाये?” अब्दुल ने ही बात संभाली थी। “धरा क्या है काबुल में? हिन्दुस्तान जैसे मुल्क को कौन छोड़ेगा भाई?”

हेमू की समझ में एक साथ सारी स्थिति समा गई थी। लेकिन उसका मन शांत था। उसे अपना इरादा याद था। वह अपनी बात को लेकर ही यहां आ बैठा था।

“अफगान और राजपूत मिल कर लड़ेंगे!” अब्दुल ने एक ओर सूचना दी थी। “महमूद लोधी को दिल्ली का सुलतान बना दिया है। अब सब बाबर के खिलाफ लाम बद्ध हैं और अगर आप भी राणा की ओर से आयें तो ..?”

“मैं नहीं आ रहा हूँ!” हेमू ने साफ शब्दों में कहा था। “मैं अब किसी के लिए भी इस तरह जंग नहीं लड़ूंगा!” हेमू का स्वर शांत था। “और मैं – बिना तोपों के तो मैदान में उतरूंगा ही नहीं! मैं अपने इस साम्राज्य में बैठा सुखी हूँ!” हंस गया था हेमू।

अब्दुल कई लमहों तक हेमू को ताकता ही रहा था।

“मैंने तो तभी कहा था आपसे! याद है – मैं कितना कितना चाहता था कि आप ..?”

“अब की बात करो!” हेमू चहक आया था।

“आपके हुक्म की देर है!” अब्दुल बहुत प्रसन्न था। “सब तैयार है!” उसने घोषणा की थी।

“तैयार है का मतलब ..?” अब हेमू की भी नींद खुली थी। वह सतर्क हो आया था।

“मेरे पास उस्मानिया के वो लोग हैं जो हिन्दुस्तान में आ कर धंधा जमाना चाहते हैं!” अब्दुल बता रहा था। “तोपों का व्यापार वो भारत में लाना चाहते हैं!” अब्दुल ने हेमू की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।

“लेकिन क्यों?” हेमू ने पूछ लिया था।

“इसलिए कि .. अब अगली जंगे जो भारत में लड़ी जाएंगी उनमें तोपों की मांग बढ़ेगी। चूंकि इतनी तोपें बाहर से लाना कठिन काम है वो चाहते हैं कि ..”

“धन कौन देगा?” हेमू ने भी अहम प्रश्न पूछ लिया था। उसे तो अनुभव था कि बिना धन के कुछ नहीं चलता! “इस के लिए तो ..”

“धन भी आप ही देंगे!” अब्दुल हंसा था।

“लेकिन कैसे अब्दुल? मैं तो पाई पाई के लिए कंगाल हूँ!”

“बाबर भी तो कल तक पाई पाई के लिए कंगाल था?” अब्दुल ने तर्क किया था। “क्या था उसके पास? पिट कर भागा था और आज”

हेमू लंबे पलों तक सोचता ही रहा था। उसकी समझ में कुछ भी न आ रहा था। अब्दुल बातें तो कांटे की कर रहा था लेकिन हेमू की समझ उसे पकड़ नहीं पा रही थी। फिर भी वह पास आ बैठे इस विचार का अनादर न करना चाहता था!

“तोपों की बातें ही करें तो ..?” हेमू ने यूं ही एक बात का सूत्र पकड़ा था। उसे अब हर समस्या का हल केवल तोपों में ही दिखाई दे रहा था।

अब्दुल ने भांप लिया था कि हेमू का मन अगर बन गया तो उसका इरादा सहज में ही संपूर्ण हो जाएगा!

“यूं समझिये सम्राट!” अब अब्दुल संभल कर बोला था। “तोपों की मांग तो बढ़ेगी? ओर अगर तोपों की मांग बढ़ी तो बारूद की मांग भी बढ़ेगी! और अगर बारूद की मांग बढ़ती है तो शोरे की मांग भी अवश्य बढ़ेगी!”

“तो ..!”

“तो हम शोरा खरीद लेंगे!” अब्दुल हंसा था।

“लेकिन धन कौन देगा?”

“आप!” अब्दुल फिर से चहका था। “अरे जनाब! राय पूरन दास को शोरे वाले के नाम से दिल्ली से लेकर कुस्तूनतूनिया तक लोग जानते हैं! एक पूरन दास के नाम पर हम जितना चाहें माल उठा लें – बाजार में ..”

“फिर ..?”

“गोदामों में चिन चिन कर रख लें! और फिर इसे चिरोंजियों के भाव बेचें!” उसने हेमू की आंखों में घूरा था। “शेख शामी ने कितना धन कमाया, जानते हैं आप? और तब की हवा में और आज की हवा में तो अंतर ही इतना हैं कि ..”

“लेकिन इसे करेगा कौन?”

“मैं करूंगा हुजूर! मैं – राय पूरन दास के नाम पर शोरा खरीदूंगा और ..”

“तोपें कैसे बनेंगी?”

“हम किसी गुप्त स्थान पर – जिसे आप चुनेंगे, तोपों का कारखाना खोलेंगे, तोपें बनाएंगे और लोगों को बेचेंगे!” अब्दुल तनिक ठहरा था। उसने हेमू को सहमत होते देखा था। “ये बारूद का खेल यहीं तक नहीं रुकेगा जनाब! न जाने कौन कौन से हथियार बनने लगे हैं! अगर ये हुनर हमारे पास आ गया तो हमें दुनिया में कोई फतह न कर पाएगा! क्या बेचेगा ये बाबर आपके मुकाबले में?”

माहिल ने तालियां बजाई थीं। उन तीनों ने एक उद्देश्य को पा लिया था। राय पूरन दास के नाम पर तुरंत व्यवसाय खोलने की सहमति हेमू से ले ली थी। और माहिल ने जरूरत के लिए पैसा मोहिया कराने का पक्का वायदा किया था!

दोनों आगंतुक चुपचाप अंधेरे में विलय हो गये थे!

लेकिन हेमू अब अकेला न था। एक संपूर्ण विचार इस वीराने में यूं अचानक आ कर उसके पास बैठ जाएगा – उसे कहां उम्मीद थी? जैसे उसके मन की मांग मूर्त होकर सामने तोपों के कारखाने के रूप में आ खड़ी हुई थी, उसी तरह वह देख रहा था कि हाथियों की सेना, घुड़ सवार और बाबर जैसे धनुष धारी एक साथ उसके पास आते ही चले जा रहे थे!

“क्या बेचेगा बाबर आपके मुकाबले?” अब्दुल की आवाजें भी आती जा रही थीं!

और फिर केसर एक सौभाग्य की तरह उसके सामने खड़ी खड़ी हंस रही थी!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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