हेमू ने जो कारनामा कर दिखाया था – इब्राहिम लोधी को बहुत भा गया था।

यूं सहज में शहजादे की बंद छुड़ाकर और मामूली हरजाना दे कर राणा को मना लेना एक महत्वपूर्ण घटना थी। इब्राहिम समझ रहा था कि हठीला राणा बातों से शायद ही मानेगा। पर हेमू बडी ही चतुराई से पत्थर के नीचे दबी उंगली को सहज निकाल लाया था।

“कादिर को कब बुला रहे हो?” इब्राहिम लोधी ने प्रसन्न होते हुए अगला सवाल किया था।

“हरकारा भेज दें! मैंने बुलाया है – कहने पर वह फौरन हाजिर हो जाएगा!” हेमू ने बयान दिया था।

इब्राहिम लोधी जलाल के कांटे को निकालने की जल्दी में था। वह जानता था कि राजपूतों के साथ अगला संग्राम ज्यादा दूर न था और इस दौरान अगर जलाल ..

“कैसा मन है – राणा का?” इब्राहिम ने यूं ही सवाल पूछा था।

“इरादे बुलंद हैं!” हेमू ने भी सीधा बता दिया था। “उनके साम्राज्य की सीमाएं ..”

“हूँ ..!” विचार मग्न इब्राहिम ने हेमू के चेहरे को पढ़ा था। वह सच कह रहा था। राणा अभी रुकने वाला न था। “हमें रोकना पड़ेगा राणा को!” इब्राहिम कह रहा था। “इस बार फिर से तुम्हें हमारा हाथ पकड़ना होगा हेमू!” इब्राहिम का स्वर भारी था। “हम चाहते हैं कि पूरी तैयारी के साथ मुकाबले में उतरें! सेना का जुगाड़, धन और जनमत सब तुम्हें जुटाना होगा!”

एक चुप्पी लौटी थी। हेमू कहीं प्रसन्न था। उसे यही उम्मीद थी। वह समझता था कि सुलतान उसे मोर्चे न सौंपेगा! वह स्वयं को एक सफल सेनापति घोषित करना चाहता था। अपने बेटों को भी वह मोर्चे संभालना सिखाना चाहता था। हेमू को तो वह ..

“जागीरदारों को मनाना पड़ेगा!” हेमू ने सोच समझ कर बात कही थी।

“आदेश दो!” इब्राहिम कह रहा था। “जो हुक्म न माने उसे ..” वह तनिक हंसा था। “मैं किसी को भी बख्शने के हक में नहीं हूँ, हेमू! इस लड़ाई में भी सब को हाजिर करो!” उसने स्पष्ट कहा था। “जलाल तो ..?”

“कादिर को छोड़ देते हैं – जलाल के पीछे!” हेमू ने सलाह दी थी। “आपके दोनों काम फतह हो जाएंगे!” वह हंसा था।

इब्राहिम को हेमू का सुझाव बेहद पसंद आया था।

कादिर आगरा पहुंचा था तो हेमू ही दिल्ली से लौट आया था। दोनों दोस्त बाहें पसार पसार कर मिले थे। कादिर जानता था कि उसे जलाल को हलाल करने को कहा जाएगा। वह प्रसन्न था।

“केसर क्यों नहीं आई?” नीलोफर का प्रश्न था। “मैं तो भागी चली आ रही हूँ कि उससे मुलाकात होगी! और आप हैं कि जनाब अकेले अकेले ..?”

“तबीयत थोड़ी नासाज थी!” हेमू ने कहा था। “चित्तौड़गढ़ की थकान ..”

“अरे हॉं! सुना है – खूब माल लाई है!” नीलोफर ने उलाहना दिया था। “मैं अपना हिस्सा न छोड़ूंगी – देवर जी!” वह कह रही थी। “कुछ इन्हें भी तो दिलवाओ?” धीमे से नीलोफर ने हेमू से कहा था। “अब तो आप ..”

हेमू ने आंख उठा कर कादिर को देखा था।

“यार! जलाल के बाद – मुझे दिला दे कालपी और ..?” कादिर ने सीधी मांग की थी। “तुम भी आ जाना ..!” उसने सुझाव दिया था। “फिर हम दोनों मिलकर बिहार बंगाल को समेट लेंगे!” वह हंस रहा था।

बड़ी ही पेचीदा बात थी। हेमू अभी कुछ बोलना न चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसकी कोई सांस भी बाहर निकले और उसके इरादे बयान कर दे!

“है तो मुश्किल .. पर ..!” हेमू ने बात को अधर में टांग कर छोड़ दिया था।

इब्राहिम लोधी के साथ कादिर की गुप्त मुलाकात हुई थी!

“कादिर को कम मत आंकिये – सुलतान!” हेमू बीच में आ गया था जब इब्राहिम कादिर पर शक करने लगा था। “कादिर जैसा तीरंदाज मेरी निगाह में नहीं है!” हेमू बता रहा था। “आप कभी शिकार पर जाएं तो कादिर को साथ ले जाएं!” हेमू ने इब्राहिम की आंखों को पढ़ा था। “शेर की आंख में दूसरा तीर बिठाने का हुनर केवल कादिर के पास है!” हेमू ने बताया था।

“मुझे तो जलाल का सर चाहिये?” इब्राहिम बीच में ही बोल पड़ा था।

“मिलेगा जनाब!” कादिर ने चतुराई से उत्तर दिया था। “मुझ पर भी एक बार भरोसा कर के देख लें हुजूर!” उसका आग्रह था।

कादिर ने जब हेमू को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा था तो हेमू ने उसे चुप रहने की सलाह दी थी।

फिर तो बिना शर्तों के ही सौदा तय हो गया था।

लेकिन कादिर फिर भी ज्यादा प्रसन्न न था। वह जानता था कि केसर जान बूझ कर आगरा नहीं आई थी। उसका उल्लास उड़ सा गया था।

महाराणा सांगा गुजरात और मालवा में लड़ रहा था – मुजाहिदों ने खबर दी थी। किसी भी सूरत में वहां के मोर्चे बंद नहीं किये जा सकते थे – उनका अनुमान था। एक बड़ी सेना उन दोनों मोर्चों पर जूझ रही थी।

“यही मौका है – मोर्चा मार लेते हैं!” इब्राहिम ने प्रसन्न होकर निर्णय लिया था। “थोड़ी बहुत सेना लेकर भागेगा – राणा!” उसका अनुमान था। “एक जंगी सेना के सामने ..?” वह हंसा था। “और फिर धौलपुर .. और चंबल के उन खारों में ..?”

हेमू ने इब्राहिम लोधी को किसी प्रकार से भी निराश न किया था।

तीस हजार घुड़ सवार, दस हजार पैदल सैनिक और तीन सौ हाथियों की सेना धौलपुर के लिए रवाना हो चुकी थी। सेना नायक वही सब थे जिन्हें हेमू ने सुझाया था और लड़ाई की योजना भी वही थी! लेकिन इस बार इब्राहिम लोधी अपने बेटे इस्लाम शाह के साथ स्वयं युद्ध संचालन करने के लिए लालायित थे। वह इस विजय को हर कीमत पर अपने नाम लिख लेना चाहते थे।

खबर पाते ही राणा सांगा ने बिना विलंब के एक छोटी सेना का गठन किया था। कुल दस हजार घुड़ सवार और पांच हजार पैदल सैनिक लेकर वह धौलपुर की ओर निकल पड़े थे। उन्हें इब्राहिम लोधी के इरादों पर शक न था।

धौलपुर का रण क्षेत्र इब्राहिम लोधी का जाना पहचाना था। वह प्रसन्न था कि यहां महाराणा की वह आंधी न उठेगी और न चलेगी। अबकी आर तो आमने सामने का युद्ध होगा। अबकी बार तो राणा शायद अपनी दूसरी टांग से भी हाथ धो बैठे ..?

“दाहिने का मोर्चा आप दोनों अपने सैनिकों के साथ संभालेंगे!” इब्राहिम लोधी ने सामने खड़े सेनापतियों को संबोधित किया था। “खान फुरत हमें भरोसा हैं कि तुम गाजी खान के साथ मिलकर राणा को रोक लोगे! और दौलत खान आप सेना के बीच में रहकर इलाहाबाद खान और युसुफ खान के साथ बाएं से मिलकर हमला करेंगे ताकि चंगुल में आया राणा भाग न निकले।” इब्राहिम लोधी ने अपने जांबाजों को प्रसन्न निगाहों से निहारा था। “और मैं स्वयं हाथी पर इस्लाम शाह के घुड़सवारों सहित पैदल सेना के तीरंदाजों को लिए उस मुबारक मौके के लिए तैयार रहूंगा जब राणा की फौजें दुम दबा कर भागेंगी और हम ..”

एक बेहतर सामरिक योजना को अंजाम देने जा रहा था – सुलतान इब्राहिम लोधी!

राणा सांगा का तो सीधा सादा हिसाब था। वह जानता था कि चंबल के खारों में सामूहिक हमला तो कामयाब होना न था और संभव भी न था! अतः उसने अपनी नपी तुली ताकत को नपे तुले सूरमाओं के हाथों में सौंपा था और उन्हें आदेश दिये थे कि सीधा कत्लेआम आरंभ कर दें!

मानिक चंद्र चौहान और चंद्रभान चौहान को चालाकी से पीछे आकर अफगानों पर हमला बोलना था तो रतन सिंह चंद्रावत और राजा राणा अज्जा ने दुश्मन के सामने आकर उन्हें ललकारना था और तभी राजा राम दास और गोकुल दास परमार ने बाएं से जानलेवा हमला बोलना था!

चूंकि राणा सांगा की सेना अफगानों के मुकाबले बहुत थोड़ी थी अतः राणा ने मेदनी राय से मदद ले ली थी। मेदनी राए की सेना गुप्त रूप से राजपूतों और अफगानों के बीच आकर अपना कमाल कर अफगानों पर टूट पड़ी थी!

इब्राहिम लोधी ने इस बार सेना नायक की बागडोर मियां मक्खन के हाथों सौंप दी थी। लोधी साम्राज्य में हिस्सा मांगने वाले सभी अमीर और उलेमा युद्ध में शामिल थे!

हुआ वही था! राजपूतों ने अफगानों को जैसे चारों ओर से पंजों में जकड़ लिया था और गाजर मूलियों की तरह काटा था। सबसे पहले इस्लाम शाह लोधी भागा था और उसके बाद तो ऐसी भगदड़ मची कि किसी ने पीछे मुड़ कर ही न देखा था। इब्राहिम लोधी भी जान बचा कर भाग निकला था।

बयाना तक खदेड़ा था राजपूतों ने अफगान सेना को!

महाराणा ने जंग जीतने की खुशी में और वक्त पर सहायता करने के एहसान पर मेदनी राय को चंदेरी दे दी थी। इब्राहिम लोधी को पहली बार मेदनी राय एक नए दुश्मन के रूप में नजर आया था। मेदनी राय के जुझारू सैनिकों का कमाल उसने पहली बार देखा था। तब उसे फिर से हेमू याद हो आया था!

“अगर आज हेमू होता तो?” उसके मन में प्रश्न तो उठा था लेकिन उसने जानकर उत्तर न दिया था।

इस हार पर इब्राहिम लोधी की खूब थू थू हुई थी!

दिल्ली में बैठे अफगानों के सरगना और संगठन कर्ता हुसैन खान ने खुले शब्दों में कहा था – तीस हजार रिसाला लेकर भी नंगे भूखे राजपूतों से हार गये! ये क्या चलाएंगे सल्तनत? सबके हिस्से कित्ते कर दो भाई! हम भी जाएं अपने घर!

कादिर खान ने कालपी जीत ली थी। वह जलाल का सर लेकर हाजिर हुआ था। इब्राहिम लोधी की खुशी का ठिकाना न था। उसने हेमू के इशारे पर इस नए सूरमा को कालपी का तोहफा दे दिया था।

अब इब्राहिम लोधी को धौलपुर में हुई हार का गम न था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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