सिकंदर लोधी का सूरज उदय होने वाला था!

ग्वालियर का सूरज अस्त हो चुका था! हेमू खड़ा खड़ा एक धूप छाव को आते जाते देख रहा था। एक क्रम था – जो अपने आप को दोहराता चला जा रहा था! जीत हार का क्रम, गमों और खुशियों का क्रम, वैभव और पराभव का क्रम, और ये क्रम ही न जाने किसकी मर्जी से आता जाता रहता था?

“आएगा तुम्हारा भी इच्छित अभीष्ट, हेमू!” न जाने कौन था जो उसके कान में कह गया था।

भोर की बेला शांत थी। चंबल भी शांत थी और एक अपूर्व भव्यता के साथ आपने वनांतर के बीचो-बीच अपने प्रिय पर्वतों की गोद में बैठ प्रवाहित होती चंबल अवश्य ही कोई वरदानी वस्तु थी! शायद हॉं हॉं शायद ये द्रौपदी की हथेली से ही बह कर बाहर आई हो? और कौन जाने कि ..

चंबल के इन मोहक विस्तारों को हेमू ने ऑंखें भर कर देखा था!

उसे लगा था – हिन्दुओं के सभी देवी देवता वहीं कहीं आस पास इस चंबल की स्तुति कर रहे थे! और न जाने किस प्रेरणा के तहत हेमू ने भी हाथ जोड़कर उन सब को प्रणाम किया था और हिन्दू संस्कृति का ऋण अदा कर दिया था!

“सिकंदर लोधी को पंडित ज्ञानेश्वर ने अभयदान दे दिया है!” कोई हेमू को बताने लग रहा था। “अब कोई खतरा नहीं! पार जाओ – बेधड़क!”

अब सिकंदर लोधी की विजय अवश्यंभावी थी!

हेमू को अब ज्यादा कुछ नहीं करना था। कादिर जलालुद्दीन के पास चला गया था। उसे तो अब जीत के डंके बजाते हुए ग्वालियर में सिकंदर लोधी के सुरक्षित पते का ही प्रबंध करना था!

लेकिन हेमू ने अपनी व्यूह रचना को भंग नहीं किया था!

सूचना आ रही थी – ग्यासुद्दीन ने ग्वालियर पर बाएं से घेरा डाल दिया था और हमला करने को तैयार था। उसी तरह इब्राहिम लोधी का रिसाला ग्वालियर के दाएं घात में था और हुक्म मिलते ही उन्होंने ग्वालियर को मिट्टी में मिला देना था! फिर हेमू के हाथियों के जत्थों ने सामने से सरे आम ग्वालियर पर धावा बोलना था और टूटे फूटे ग्वालियर को अंततः रौंदते हुए उसके वजूद को अपनी पनाह प्रदान करनी थी और कब्जे में ले लेना था!

हेमू देख रहा था कि किस तरह वह अपनी गजराजों पर सवार सेना को ध्वस्त, ग्रस्त, दलित और टूटे फूटे ग्वालियर पर एक शाही भव्यता के साथ शान से रौंदता चला जाएगा और ‘सलामी’ पर विराजमान सिकंदर लोधी ग्वालियर की रियासत को पराजित करते हुए राज्य को अपने हक में ले लेगा!

तब शायद सूर्यास्त हो रहा होगा!

और जब अगली सुबह का सूरज उदय होगा तब सिकंदर लोधी दरबार ले रहे होंगे ओर ऐलान कर रहे होंगे! न जाने वो क्या क्या ऐलान करेंगे – अभी तक कुछ पता नहीं था!

शाम ढली थी तो सूरज सिकंदर लोधी को सलाम बजा कर चला गया था! कल फिर आने तक का वायदा भी वह कर गया था!

आसमान तारों से झिलमिल हुआ झूम रहा था! अंधेरी रात थी। भयंकर काली रात! अभी तक शीतल पवन छूटा न था। एक व्याकुलता भरी थी – वायुमंडल में। लगा था – कहीं कुछ अशुभ घट रहा था। फिर अचानक आसमान पर मेघों का आगमन हुआ लगा था। काली रात और भी काली हो गई थी। ओर फिर तूफान आने लगा था – जबरदस्त तूफान!

हेमू देख रहा था – इन हिन्दुओं के देवी देवताओं के आगमन को! क्यों चले आ रहे थे ये अपने कौल करार तोड़ कर? क्या रही होंगी वो अनाम शर्तें जा पंडित ज्ञानेश्वर ने शहंशाह सिकंदर लोधी के साथ मिलकर तय की होंगी? फिर ये बवाल क्यों उठ खड़ा हुआ था?

हवा का वेग प्रचंड था। साथ में बहा कर लाई धूल धक्कड़ को सैनिकों की ऑंखों में मार मार कर प्रहार कर रही थी। बूंदा-बांदी भी होने लगी थी। काली रात ओर भी भयावह हो उठी थी। बिजली कड़कने लगी थी। मेघों ने भी गरजना तरजना आरम्भ कर दिया था। सैनिक सर झुकाए सब कुछ सहन कर रहे थे और इंतजार कर रहे थे कि किसी तरह से तूफान उतर जाये!

तभी – हॉं हॉं तभी किसी ने आकर हेमू को जोरों से झकझोर डाला था!

“क्या हुआ?” हेमू ने कड़क आवाज में पूछा था। लेकिन वह भी डर तो गया था!

“बादशाह ..!” अंधेरे में और काला हुआ वह आदमी घबराया हुआ था। “बादशाह सिकंदर लोधी बेहोश पड़े हैं!” हकलाते हुए उसने सूचना दी थी।

हेमू का खड़े खड़े ही दम सूख गया था!

समर भूमि में दुश्मन खड़ा खड़ा कांप रहा हैं कि भूचाल सरीखा हमला ही उसपर आयेगा लेकिन हमलावर बादशाह तो बेहोश पड़ा है! ये कैसा मजाक है भाई? हेमू स्वयं से कह रहा था। वह अभी भी स्थिति को ठीक से समझ न पा रहा था।

“क्या कहते हैं आप?” हेमू ने बादशाह की हाजिरी में तैनात हकीम जुनैद से पूछा था।

“कहने को रहा क्या है?” जुनैद की ऑंखें जमीन कुरेद रहीं थीं।

कांप उठा था हेमू। क्या जुनैद कह रहा था कि ..? क्या उसका कहना था कि – बादशाह सिकंदर लोधी की मौत मुंह बाएं खड़ी थी? क्या .. वह ..?

“हुआ क्या ..?” हेमू ने प्रश्न पूछा था। चूंकि हेमू ही वहॉं मुख्य अभिभावक था जिसकी जिम्मेदारी थी कि आगे होना क्या है!

“लाइलाज रोग है!” जुनैद ने स्पष्ट कहा था। “किसी के बस का नहीं ये रोग रोकना। राज रोग है ..”

जुनैद ने जो कहना था कह दिया था। अब तो आगे हेमू ने ही सब कहना था! उसी ने अब बिगड़ी स्थिति को संभालना था और उसी ने तो ..

काली अंधियारी रात थी। चारों ओर सन्नाटा था। तूफान रुका खड़ा था। आसमान अभी भी साफ नहीं था। हेमू को अभी भी आशंका थी कि कोई भी कहर टूट सकता था। हेमू को लग रहा था कि बादशाह की जान के हत्यारे थे ये घिरे खड़े बादल और इस हवा ने आज उनके प्राण लेकर उड़ जाना था!

“हरकारे रवाना करो!” हेमू ने आदेश देना आरम्भ किया था। “शहजादे इब्राहिम लोधी और जलाल दोनों को सूचना भेज दो कि बादशाह बीमार हैं ओर बेहोश हैं!” उसका ऐलान था। “चारों ओर चौकसी बढ़ा दो। कोई भी आयेगा जायेगा नहीं जब तक कि मैं हुक्म न दूं!” उसने मुनादी जैसी कराई थी।

चुपचाप ही चारों ओर एक खलबली उठ खड़ी हुई थी। कानों कान बादशाह की बेहोशी की खबर हवा में उड़ गई थी!

सन्नाटे को तोड़ती सरसराहट ने आगाह किया था! हेमू को लगा था कि कोई आ रहा था। और पल छिन में इब्राहिम लोधी के घुड़सवारों ने ठहर गई शांति को रौंद डाला था। शहजादे ने सीधा बादशाह सलामत के पास पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया था। बादशाह अभी भी बेहोश थे। जुनैद के मुंह में जबान न थी। हेमू ने ही बताया था कि बीमारी लाइलाज थी। कर्क रोग था। और इसका कोई इलाज न था।

“जुनैद ..!” इब्राहिम लोधी की आवाज तड़की थी। “ऐसा कैसे हुआ कि ..?”

“जनाब! ये बीमारी ही ऐसी है! नहीं पता लगता पहले से। लेकिन ..”

“अब हाल क्या है ?”

“सर से पैर तक फैल चुकी है .. पूरी तरह से ..! अब तो अल्लाह ही मालिक है!” रो पड़ा था जुनैद!

जलालुद्दीन आ पहुंचा था। इब्राहिम जा चुका था!

“अब्बा हुजूर ..!” जलाल बादशाह सिकंदर लोधी के सर पर स्नेह का हाथ फिरा रहा था। “अब्बा हुजूर ..!” इस बार उसका गला रुंध गया था। “हमें .. हमें .. छोड़ कर ..?” वह रोने लगा था। फिर उसने मुड़ कर हेमू को देखा था। “क्या ग्वालियर से कोई मदद मिल सकती है?” वह पूछ रहा था। “अगर कोई उनका वैद्य ..?”

“इस रोग का आयुर्वेद में भी कोई इलाज नहीं, जनाब!” जुनैद ही बताने लगा था। “दवा नहीं दुआ काम आ सकती है! अल्लाह अगर रहम करें तो ..?”

जलालुद्दीन भी उठा था और चला गया था!

अचानक ही आसमान साफ हो गया था। भोर के धुंधलके में हेमू ने देखा था कि बादशाह सिकंदर लोधी की ऑंखें खुली थीं। उन ऑंखों में अनेकानेक प्रश्न तैर रहे थे। वो ऑंखें सजल थीं। वो ऑंखें जैसे अनंत को देख रही थीं और वही ऑंखें अपने प्रश्नों के उत्तर मांग रही थीं। फिर एक वेदना का पारावार उनके शरीर पर तारी हो गया था। शरीर मरोड़ें खाने लगा था। अचानक ही बादशाह डकराने लगे थे!

जुनैद की नींद उड़ गई थी। उसने कुछ इलाज उपचार करने की कोशिश की थी लेकिन सब बेकार गया था!

“बोल बादशाह!” हेमू के कान बजने लगे थे। “बोल ..! क्यों ढाए तूने मंदिर .. क्यों मारे बेगुनाह? बता – क्यों जलाया आग में जिंदा बोधन? बता क्यों लूटी अबलाओं की लाज? क्यों .. क्यों ..?”

“परवर दिगार!” सिकंदर लोधी की आवाज अल्लाह की इबादत में कांप कांप उठी थी। “मेरे गुनाह ..” वह कुछ कह नहीं पा रहा था और फिर से बेहोश हो गया था!

सूरज समय पर उग आया था। इब्राहिम और जलालुद्दीन भी लौट आये थे।

कादिर भी जलालुद्दीन के साथ लौट आया था। उसकी ऑंखों में प्रश्न थे। मुड़ कर हेमू ने देख लिया था कि इब्राहिम की ऑंखों में भी प्रश्न थे ओर हेमू ने उन सब प्रश्नों के उत्तर दे दिये थे। कई मंसूबे थे वहॉं जो जन्म ले चुके थे और कई मान्यताएं थीं जो मर चुकी थीं। हवा का रुख ही बदल गया था।

जैसे बादशाह की लाश को बीच में रख कर अब बटवारा होगा – ऐसा जान पड़ रहा था। जैसे अब युद्ध नहीं – ग्रह युद्ध का आरम्भ होगा – मूक सूचनाएं सन्नाने लगी थीं। एक भेद भरी चुप्पी चारों ओर डोल रही थी!

और फिर इब्राहिम की ऑंख हेमू पर आ टिकी थी।

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