शाम ढलते न ढलते फतेहाबाद का किला शाही सजावट के साथ-साथ प्रकृति की छटा से निहाल हुआ खड़ा था। किले का आस-पास बहुत ही रमणीक था और कभी किलों के मालिकों के वक्त बेजोड़ रहा होगा!

सैनिकों की आवा-जाही से झलक रहा था कि उनका मनोबल ऊंचा था और उनकी ऑंखों में ग्वालियर की जीत दर्ज थी। उन सबके होंसले बुलंद थे क्योंकि हर कोई जानता था कि ग्वालियर पर फतह पाने के बाद खिल्लतें बंटेंगी, जागीरें अता होंगी और ओहदे असबाब ..

लोधियों का उत्कर्ष भी चरम पर था! खासकर अब जब राजा मान सिंह नहीं रहे थे तो उन्हें अब रोकने वाला कोई माई का लाल मैदान में न था! दिल्ली-कलकत्ता की फतह के बाद अब तो दिल्ली-कन्याकुमारी की फतह का सपना संपूर्ण होना था। सिकंदर लोधी का अपने दोनों बेटों में देश को बांटकर एक साझी सल्तनत कायम करने का बेजोड़ सपना अब पूरा होने को था!

जश्न शुरू होने में केवल शहजादे जलालुद्दीन को ही आना था। उनका ही इंतजार था। अन्य सभी सैनिक और आगंतुक अपने अपने स्थान ग्रहण कर चुके थे!

“शहजादे .. जलालुद्दीन ..!” घोषणा हुई थी। तमाम लोग उनके स्वागत में उठ खड़े हुए थे। शहजादे ने एक नजर में पूरे दृश्य का जायजा लिया था। सब निज का तिज देख वो तनिक मुसकुराए थे। “अरे, हेमू आप ..!” अचानक उन्होंने हेमू से मुखातिब होते हुए जैसे उसका स्वागत किया था। “अच्छा है चले आये!” जलालुद्दीन ने सहज भाव से कहा था। “पता तो चलेगा कि जंग के क्या मायने होते हैं?”

“जी, जनाब!” हेमू ने उनका परामर्श सराहा था। “मैं चाहता भी था कि आप से मिलूं!” हेमू ने आज पहली बार शहजादे जलालुद्दीन से संवाद कहा था।

“क्यों ..?” हंस रहे थे – शहजादे जलालुद्दीन।

“आप के नेक नामे के किस्से सुने थे!” हेमू ने भी मुसकुराते हुए उत्तर दिया था।

“भाई वाह!” जलालुद्दीन ने गहक कर हेमू को बांहों में भर कर अपनापन जताया था।

कई लोगों की त्योरियां तनी थीं और कई लोग उत्साहित हो उठे थे!

“शहजादे साहब और हाजरीन!” शेरवानी की आवाज गूंजी थी। “सैनिकों की होंसला अफजाई के लिए आ रही हैं – झिलमिल जान!” उसने ऐलान किया था।

झिलमिल जान का नाम सुनते ही बवाल खड़ा हो गया था!

और अब झिलमिल जान तरंगों की तरह लहरा लहरा कर गा रही थीं .. नाच रही थीं और साजिंदे सारंगी चिकारों और जल तरंगें बजा बजा कर जंगी संगीत से आस पास को हिलाए दे रहे थे!

“लड़इया मोरे संइया!” झिलमिल जान लौट लौट कर गुहार लगा रही थीं। “परूं तेरे पइयां .. लड़इया मोरे संइया ..” आग्रह कर रही थीं। ग्वालियर का गजरा .. कंधार का काजल और न जाने क्या क्या मांग रही थीं अपने लड़इया से और उसके संइया ने जैसे पूरा हिंदुस्तान ही गारत कर देना था .. और ..

इसके बाद शेरवानी के कलाकारों ने भी शिरकत की थी। जम कर बादशाह सिकंदर लोधी का गुणगान किया था और राजा मान सिंह को हारते भागते बताया था!

हेमू का जायका बिगड़ा हुआ लगा था। उसे लगा था कि वह गलत जगह आ बैठा था। लेकिन मजबूरी थी। सांपों के बीच बैठकर ही तो जहर मोरा प्राप्त करना था!

“मेरे लिए क्या लूट कर लाओगे संइया?” न जाने कैसे हेमू केसर की आवाजें सुनने लगा था। केसर हंस रही थी। केसर विनोद कर रही थी। केसर का अनुपम सौंदर्य फतेहाबाद के किले को आलोकित करता लगा था। केसर सर्वश्रेष्ठ सुंदरी ही थी – हेमू ने आज गंभीरता पूर्वक सोचा था। और इन सांपों के बीच केसर का आना ..? चिंता रेखाओं ने हेमू के ललाट को भर दिया था!

“तुम्हारे लिए ..?” हेमू ने केसर को पास लेते हुए बड़े दुलार से पूछा था। “तुम्हारे लिए .. मैं लाऊंगा केसर तोप और तलवार और हाथियों की अजेय सेना! और एक जांबाजों की सेना!” हेमू गिनता ही जा रहा था। “बिना इसके बात न बनेगी, केसर!” उसने स्पष्ट कहा था। “लूट का माल मैं न लाऊंगा!” वह साफ नाट गया था।

बहुत रात ढल गई थी। हेमू का शाही उत्सव मनाने का यह पहला ही मौका था। उसे कहीं कोई कमी नजर न आई थी। खाने से लेकर सोने तक का बंदोबस्त मुकम्मल था। एक शान थी – लोधियों की .. एक शान जो शाही होने से भी बहुत आगे थी! हेमू का मन तनिक जागा था। सोने से पहले हेमू को शहजादे जलालुद्दीन का सौहार्द याद हो आया था!

सुबह का तो माहोल ही अलग था!

पीर मुनीर के आस-पास भीड़ लगी थी। यहॉं भी प्रांत प्रदेशों से आये अमीर-उमरा अपना हिसाब-किताब कर रहे थे। किसने क्या देना था और क्या लेना था – तय होना था। हर किसी को जल्दी थी क्योंकि ग्वालियर पर चढ़ाई करने की घड़ी नजदीक आ पहुँची थी!

शहजादे जलालुद्दीन पीर मुनीर के पास घंटों से बैठे थे!

न जाने क्या झंझट चल रहा था। कुछ मांगो को लेकर ही शायद कोई अड़चन थी। शहजादे जलालुद्दीन ने कई बार पीर मुनीर को संकेत दिया था कि उनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा था जबकि लड़ाई में उनके बिना फतह होना असंभव ही था।

“अरे भाई! अगर हमने किलों को नहीं पकड़ा, दुश्मन को हलाक न किया और तबाही और लूट-पाट को अंजाम न दिया तो होगा क्या?” जलालुद्दीन का प्रश्न था।

“जायज है, साहबजादे!” पीर मुनीर भी मान रहे थे। “कुछ मजबूरियां तो हैं .. पर मैं आपसे वायदा खिलाफी न करूंगा! मैं जानता हूँ कि सारा का सारा दारोमदार ही आखिर में आप के ऊपर है!”

“मैं आप से वायदा कर सकता हूँ मुनीर साहब कि मैं आपको फतह लाकर दूंगा! लेकिन मेरी मांगें ..?”

“पूरी होंगी!” पीर मुनीर ने वायदा किया था।

हेमू को कोई काम न था। वह होते सौदे के बारे में मात्र सुनता रहा था!

“नमस्कार हेमू साहब!” अचानक ही एक व्यक्ति ने आकर हेमू के पैर छूए थे। हेमू चौंका था। इस बियाबान में .., सिकंदर लोधी के राज्य में यह कौन अजूबा था – वह सोच भी न पा रहा था। वह आदमी जो हेमू के सामने खड़ा था – वह सैनिक तो था ही नहीं!

“अ..आप ..?” हेमू ने फिर एक बार चौंक कर पूछा था।

“मैं – माहिल!” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया था। “बनजारा – माहिल!” उसने तनिक सा खुलासा किया था।

“मैं समझा नहीं, भाई!” हेमू ने विनम्रता पूर्वक कहा था। “माफ करना मैं ..”

“मैं जानता हूँ, हेमू साहब!” अब माहिल हंसा था। “आप नए खिदमत में आये हैं। हिंदू हैं .. और ..” उसने सीधा ऑंखों में घूरा था।

“और आप ..?” हेमू ने फिर से प्रश्न पूछा था।

“हम लोग बंजारे हैं!” माहिल बताने लगा था। “मैं बंजारों का सरदार हूँ। हम लोग ज्यादातर हिन्दू हैं। और हमारा काम है – यही सब जो आपने देखा है! फतेहाबाद का पूरा का पूरा बंदोबस्त हम ने ही किया है! तम्बू से लेकर तहखानों तक हम ही सब संभालते हैं! सारे खान-पान से लेकर आवागमन तक की सरदर्दी हमारी होती है। हमें पहले से ही हुक्म मिल जाते हैं और हम सारा का सारा इंतजाम मुकम्मल कर के देते हैं!”

“क्यों ..? किस लिए ..?” अब हेमू प्रश्न पूछने लगा था।

“हमें मेहनताना मिलता है! दो पैसे हम भी कमा लेते हैं!” माहिल ने बड़ी ही विनम्रता से कहा था।

हेमू चकित दृष्टि से माहिल को बहुत लम्बे पलों तक देखता रहा था!

“और क्या क्या करते हो?” हेमू ने फिर पूछा था।

“हाथी घोड़ों की टहल खोरी के लिए हम ही आदमी भेजते हैं!” माहिल बता रहा था। “और इतनी सारी सेवाओं से लेकर सफाई तक का काम हमारा ही होता है!” उसने पूरा बयान दिया था।

“काम के आदमी हो भाई!” हेमू ने गहक कर माहिल से हाथ मिलाया था। “यहॉं कहॉं रहते हो? क्या क्या जानते हो – मसलन कि फतेहाबाद के किले के बारे ..?” हेमू पूछने लगा था।

“रहते तो हम चंबल में हैं। लेकिन काम तो कहीं का भी ले लेते हैं!” माहिल बताने लगा था। “हम लोग भी कभी सैनिक ही थे साहब!” माहिल हंसा था। “ये किला राजा जन्मेजय ने बनवाया था। यहीं पर नाग यज्ञ किया था और नाग वंश को खत्म किया था।”

“क्यों ..? नाग वंश ..?”

“इन्हीं की तरह तो था!” माहिल ने लोधियों की पूरी फौज को देखा था। “वो लोग भी किसी की बहन बेटियों को नहीं छोड़ते थे और लूट-पाट, आगजनी और सारे ऐसे ही कुकर्म करते थे! तब राजा जन्मेजय ने यहॉं आकर उन्हें ..” माहिल ने हेमू की ऑंखों में झांका था। “अब हमारी सेनाएं नहीं रहीं .. हमारे राजे रजवाड़े नहीं रहे तो हम ने यह काम पकड़ लिया है!” माहिल ने बात का तोड़ कर दिया था।

“काम के आदमी निकले भाई!” हेमू ने फिर से प्रसन्न होकर कहा था। “मिलते रहना माहिल!” उसने आग्रह किया था।

“आप को कौन भूल सकता है साहब!” माहिल ने गर्म जोशी के साथ कहा था। “आप से तो ..?” माहिल चुप था। वह अपने मनो भाव व्यक्त न कर पा रहा था।

मर्दाना चलने के लिए तैयार खड़ा था!

कुछ लोग अभी भी पीर मुनीर से चिपके हुए थे। लेना देना ही था जो अभी भी उनके गले में अटका हुआ था। लेकिन पीर मुनीर ने हाथ उठा कर हर किसी से अलविदा लेते हुए एक मुक्त मुस्कान बखेर दी थी। पीर मुनीर एक सुलझे हुए औहदेदार थे – बादशाह के, जो पूरे युद्ध संचालन से वाकिफ थे और युद्ध की सारी बारीकियां जानते थे!

चलने से पहले हेमू ने ऑंख उठा कर देखा था!

उसे कादिर कहीं नजर नहीं आया था!

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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