“बिन बुलाए ही चला आया!” अब्दुल कह रहा था। वह शोरे का व्यापारी था। “माफी चाहता हूँ शहजादे सुलतान!” उसके चेहरे पर एक चुहल धरी थी।

हेमू ने अचानक महसूसा था कि जब से बादशाह सिकंदर लोधी ने उसे अपनी खिदमत के लिए चुना है – तभी से उसके खिदमतगार बिन पूछे खड़े हो गये हैं! और ये अब्दुल भी उसी तरह की किसी खिदमत ..

“रहा न गया, मुझसे ..” अब्दुल फिर बोलने लगा था। “घोड़ी सराय में मैंने जब आपको पहली बार देखा था – तो लगा था कि मुझे मेरी मंजिल मिल गई है! लेकिन मैंने तब इस बात पर यकीन नहीं किया था। लेकिन आज ..”

“कौन सी मंजिल पा गये हो, भाई?” हेमू ने बड़े ही सहज स्वभाव में पूछा था।

लगता था – जैसे हेमू अनजाने में ही बहुत सारे लोगों की मंजिल बन गया था! अचानक ही जैसे उसमें अनजान सी शक्तियों का प्रवेश हो गया हो – ऐसा लग रहा था उसे।

“बैठ कर बात करते हैं!” अब्दुल का आग्रह था। “भूख भी लगी है। मैं खाना भी खाकर निकलूंगा!” अब्दुल बड़े ही सौहार्द के साथ कहता जा रहा था।

“मुझे जाना भी है, अब्दुल!” हेमू ने अपनी मजबूरी जताई थी। वैसे भी वह अब्दुल को ज्यादा मुंह न लगाना चाहता था। वह जानता था कि अब्दुल शेख शामी का आदमी था और कादिर भी उसके बहुत समीप था।

अब्दुल लम्बे लमहों तक हेमू को देखता ही रहा था!

“बारूद बन चुका है!” अब्दुल कुछ सोच कर बोला था। “और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि ..”

“बारूद ..?” हेमू सोच में पड़ गया था। “हॉं-हॉं! इसका एक बार जिक्र तो आया था – जब एक बारगी शोरे की मांग बढ़ी थी .. और ..”

“आपने खूब कमाई की थी ..?” हंस रहा था अब्दुल। “मुझे तो याद है!” अब वह बता रहा था। “और वो इस बारूद के बनने का सबब ही था!” अब्दुल सीधा मुद्दे पर आ गया था। “बारूद – आपके उस सपने का उत्तर है शहजादे सुलतान जिसे आपकी आंखें लिए-लिए डोलती हैं!” अब्दुल तनिक ठहरा था। “घोड़ी सराय में आपको देखने के बाद न जाने क्यों मुझे लगा था कि आप कल के बादशाह हैं!”

“बहक क्यों रहे हो अब्दुल भाई?” हेमू बीच में बोल पड़ा था। “सिकंदर लोधी सुन लेंगे तो – हम दोनों के शीश धड़ से उड़ा दिये जाएंगे!” हेमू जोरों से हंसा था। “चोरी करने का भी कोई वक्त होता है भाई!”

अब्दुल चुप था। अब्दुल आहत था। हेमू उसकी बात पर गौर नहीं करना चाहता था। उसे अफसोस हो रहा था लेकिन अब्दुल अपनी बात पर अड़ा था! वह तो तय करके आया था कि – हेमू को अपनी महत्वाकांक्षा के बारे बता देगा और समझाएगा कि वक्त किधर जाने वाला था!

“नया सवेरा होने वाला है – साहबज़ादे सुलतान!” अब्दुल फिर से बोला था। “और ये बारूद वक्त आते ही उड़ा देगी पुराने किलों को और पुरानी कलाबाजियों को! लड़ाइयां होंगी लेकिन ..”

“कहना क्या चाहते हो?” हेमू तनिक चौंका था।

“सुनो तो बताऊं!” अब्दुल ने उलाहना दिया था। “आप सोच रहे हैं कि मैं यों ही आपका वक्त जाया करने चला आया हूँ। लेकिन ..”

“कहो-कहो!” हेमू अब्दुल को लेकर बैठ गया था। “कहो बारूद की कहानी। सुनते हैं आपसे!” वह मुस्करा रहा था। “शोरे का व्यापार तो मैं अब नहीं करता! और न ही मेरा इरादा है कि मैं ..”

“साम्राज्य तो खड़ा करोगे ..?” अब्दुल ने अचानक ही एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लिया था।

हेमू के कान खड़े हो गये थे। उसे लगा – जैसे अब्दुल सिकंदर लोधी का जासूस हो! कहीं ऐसा तो नहीं था कि सिकंदर लोधी को उसके गुप्त इरादों की भनक पड़ गई थी? कहीं ये आदमी ये तो नहीं चाहता था कि ..?

“खिलौने बेचते हैं आप?” मजाक किया था हेमू ने।

“नहीं! मैं तो सपने बेचता हूँ, साहबजादे सुलतान!” अब्दुल अपनी बात पर अब भी अड़ा था। “खैर! मैं आपको बारूद की ही बात बता रहा था!”

“क्यों?” हेमू तुनका था।

“इसलिए कि – बारूद से आपका सामना होगा! और उससे पहले अगर आप बारूद बना लें .. तोप बना लें .. तो ..” अब्दुल अपलक हेमू को देख रहा था। “मैं जानता हूँ कि आज ये मुमकिन नहीं .. लेकिन कल ..?”

“क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो अब्दुल भाई?” हेमू हंस रहा था। “क्या बला है ये तोप?” उसने पूछा था।

“बला ही तो है! बला की वस्तु है, साहबजादे सुलतान! मैं देख कर आया हूँ। मैं तो अरब जाता रहता हूँ। शोरे के बाजार से ही इसका पता मिला था। मैंने एक आदमी को पकड़ा है। वह इस बारूद .. तोप और इसके योग-प्रयोग का ज्ञाता है। वह हिन्दुस्तान आना चाहता है! इससे पहले कि तैमूर के वंशज तोपें ले कर हिन्दुस्तान पर चढ़ाई करें मैं चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान भी अपनी तोपें बना ले!”

“ये बात सिकंदर लोधी के मतलब की है!” हेमू ने सुझाया था। “आप उनसे मिलें!”

“अब तो आप ही सिकंदर लोधी हैं, हमारे लिये!” अब्दुल अडिग था अपनी बात पर। “एक दिन का खेल नहीं है ये .. खेल ..” वह कहीं दूर – बहुत दूर देख रहा था। “वक्त लगेगा .. और अब वक्त है सो लगा लेते हैं चुपचाप!”

“चुपचाप कहां ..? लड़ाई तो सामने है!” हेमू ने प्रतिवाद किया था।

“कहां की लड़ाई?” अब्दुल के मुंह का जैसे जायका ही बदल गया था। “जानते नहीं – दोनों भाई एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं! जलालुद्दीन का बस चले तो – इब्राहिम का गला चाक कर दे। और अगर इब्राहिम का बस चले तो ..”

“क्या कह रहे हैं, आप?” हेमू चौंका था। “बादशाह ने अभी तो दोनों को काम सौंपे हैं ..”

“लेकिन जलालुद्दीन का तो मुंह सूजा हुआ है!” अब्दुल बता रहा था। “वह बड़ा है – और उसे पैदल सेना पकड़ा दी है। इब्राहिम को रिसाला सौंप दिया है! इसका मतलब तो लोगों ने भी लगा लिया है। अगला बादशाह इब्राहिम होगा!” अब्दुल ने बात का तोड़ किया था।

हेमू अब भी कुछ समझ न पा रहा था। हॉं, उसे भी कादिर का सूजा हुआ मुंह याद हो आया था। सिकंदर लोधी का उसे अपनी खिदमत में लेना कादिर को अच्छा न लगा था। वह भी तो जलालुद्दीन लोधी के साथ पैदल सेना में ..

“वक्त बदलेगा, साहबजादे सुलतान!” अब्दुल ने हेमू का सोच तोड़ा था। “मैंने देखा है कि ये तोपें किलों को ढा देती हैं .. हाथियों की सेनाएं चिंघाड़ कर भाग खड़ी होती हैं .. और ..”

“होता क्या है असल में ..?” हेमू तनिक गंभीर हुआ था। “बताओ तो! मुझे समझाओ कि ..”

“क्या बला है ये तोप ..?” अब्दुल अब की बार खुलकर हंसा था। “बारूद जो बना है – वह गंधक और पोटाश से मिलकर ऐसा बवाल बन जाता है कि चोट खाते ही भड़क जाता है और शोला दिखाने पर फट जाता है। धमाका होता है .. आग निकलती है .. और हवा ..”

“फिर ..?”

“फिर क्या ..? बड़े बड़े पत्थर तोपों में भरकर उड़ाते हैं! मीलों तक मार करते हैं। किलों के दरवाजे तोड़ डालते हैं। हाथियों के दलों को दहला देते हैं ..”

“क्या कह रहे हो भाई!” हेमू अकुला गया था। उसकी समझ में कुछ न आ रहा था। उसे अब्दुल कोई परी कथा सुनाता जादूगर लग रहा था। “फुरसत में आना कभी!” हेमू उठा था और चला गया था।

“जासूस है सिकंदर लोधी का या हो सकता है कि कादिर का कोई काम लेकर वह ..” हेमू सोचे जा रहा था।

कादिर कई दिनों से उसे नजर नहीं आ रहा था। हेमू तनिक बेचैन हो उठा था। उसे कादिर से खतरा ही बना रहता था। आजकल वह बहुत बिगड़ा सा नजर आने लगा था। कुछ था कादिर के मन में जो उसे बेचैन किये था!

और .. और था – आज का आया अब्दुल भाई .. जो स्वयं चलकर आया था और उसे बे भाव एक अद्भुत सपना बेच कर चला गया था!

जासूस है सिकंदर लोधी का – अब गुरु जी भी उसे सचेत कर रहे थे। दिमाग के दरवाजे किसी के लिए मत खोल देना हेमू – उनका आदेश था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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