धारावाहिक – 8

‘नई फसल’ ने बॉक्स ऑफिस पर हंगामा मचा दिया था । पिक्चर इंस्टेंट हिट हुई थी । दर्शकों ने खूब सराहा था । कहानी से लेकर गीत, संगीत और संवाद सब के सब धाँसूँ थे । और खास कर मेरा बोला वो गुंडइ का संवाद , ‘तू अपुन को नहीं जानता ?’ बड़ा ही मशहूर हुआ था । नेहा और विक्रांत का जोड़ा छा गया था – फिजा पर । अखबारों , टीवी और पत्रिकाओं ने खूब प्रशंसा की थी ।

खुड़ैल की तो किस्मत ही खुल गई थी । रातों-रात रमेश दत्त फिल्म प्रोड्यूसर बन गये थे और उन का नाम इन्टैलैक्च्वलों में गिना जाने लगा था ।

‘चलते हैं , नेहा । अपुन भी मिली सफलता को सैलीब्रेट करते हैं , यार ?’ तुमने कहा था , बाबू और मैं तुम्हारे इस आग्रह पर रीझ गई थी । ये मेरी भी तमन्ना थी कि मैं तुम्हारे साथ मन-प्राण से जुड़ जाऊं । तुम्हें मैं अपना बना लूं – हमेशा -हमेशा के लिये । तुम मेरे मन-मीत थे …तुम मेरे सुन्दर स्वप्न थे । और तुम्हीं तो मेरे प्रेम-देवता थे , बाबू । लेकिन जानते हो , हुआ क्या ?

‘बैठो ।’ अचानक ही शाम को खुड़ैल घर आया था । और मुझे कपड़े बदल ने का समय तक न दे , गाड़ी में बिठा कर रवाना हो गया था । ‘एक के बाद दूसरी फिल्म नहीं बनानी ?’ रमेश दत्त ने पूछा था । मैं तो समझ ही न पाई थी । ‘तुम्हें नहीं …पर मुझे तो तुम्हारी चिंता है …।’ वह कह रहा था । ‘इस बार कहानी का हीरो प्रवासी होगा ।’ वह हँसा था । ‘तुम्हारा हीरो धनी होगा। शादी होगी और वो तुम्हें हनी-मून मना कर छोड़ जायेगा । फिर होगा विरह का गीत …तुम्हारी तलाश ….यूरोप , अमरीका और ….’ उस ने मुझे छू लिया था । वह देखना चाहता था कि मेरा मन बदला था कि नहीं ? वह जान गया था कि हम दोनों प्रेमी बन चुके थे । लेकिन वह मुझे किसी भी कीमत पर खोना न चाहता था। ‘लोकेशन देखने चलना है ।’ उस ने सूचना दी थी । ‘पूरे यूरोप का टूर करते हैं ….। जहां -जहां …तुमने तलाश करना है ….वहां -वहां …चलते हैं ?’ वह हंस रहा था । ‘देखना इस पिक्चर का मिजाज ही अलग होगा । थीम है ….’

‘नई फसल की तरह – बोगस …?’ मैं अभी भी नाराज थी । मैंने जान कर ताना मारा था ।

‘अरे, नहीं नेहा । इस बार का थीम है – विश्व बंधुत्व । भाईचारा …इन्टरनेशनल । इसी की तो जरूरत है – पूरी दुनिया को ? वरना तो बारूद के ढेर पर बैठा है -जमाना ।’ अब वह मुझे समझा रहा था । ‘तुमने वो प्रेम-संदेश देना है …जिसे सुन कर सारी दुनिया द्रवित हो जाये ।’ अब उस ने मुझे बांहों में ले लिया था । ‘फिर देखना अपनी इमेज , डार्लिंग ?’ उस ने मुझे चूम लिया था । ‘मैं चाहता हूँ …तुम्हें प्रेम की देवी बना कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत करूं…हुस्न की देवी नहीं ।’ अपना दर्शन बघार रहा था, वह । ‘प्रेम में ज्यादा दम है …..हुस्न तो आंखों का धोखा है ।’

‘फिर तुम ये धोखा क्यों खा रहे हो , रमेश दत्त ?’ मैं पूछ लेना चाहती थी । लेकिन मैं विवश थी । मुझे तो यह भी पता नहीं था कि वो मुझे ले कहां जा रहा था ?

‘तुम्हारे लिये कपड़े खरीदते हैं ।’ उस का प्रस्ताव था । ‘मैंने तुम्हें इनाम भी तो देना है ?’ अब वह एक बेशर्म हँसी हँसा था। ‘अब होश है तो …सारा जोश आजमाते हैं ?’ उस ने मुझे जता दिया था कि अब वह मुझे भोगेगा । वह मोद मनायेगा …. । वह मुझे चूंसेगा …चाटेगा ….सतायेगा ….और वही सारी हरकतें करेगा ….जिस का कि वह आदी था।

‘और सच मानो , बाबू । उस ने मेरे साथ …..’ द्रवित हो आई थी , नेहा । ‘पिक्चर तो फ्लॉप हो गई । बुरी तरह से पिटी थी -तुम तो जानते ही हो ? लेकिन इस ने मुझे फिर भी नहीं छोड़ा ।’ रुकी थी नेहा । ‘तुम तो उस के बाद से चढ़ते ही चले गये थे । आसमान की बुलंदियां छूने लगे थे …और मैं लाचारी की आंखों से ….तुम्हें हर पल …हर क्षण …देखती रहती थी ।’ नेहा ने अब विक्रांत की जलती-बुझती आंखों का सामना किया था ।

‘बस, गलती हो गई , बाबू । क्षमा कीजिये , बाबू …..।।’ नेहा की हिलकियाँ बंध गईं थीं ।

क्रमशः …….

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