सच! कॉपी में से चार पर्चियाँ फाड़, उन पर.. राजा, मंत्री, चोर, सिपाही, लिखकर खेलने में बड़ा मज़ा आता था। 

राजा के 1000 अंक हुआ करते थे, मंत्री के 800, सिपाही के 500 और चोर वाली पर्ची में बढ़िया गोल अंडा बना…  नाक और आँख बना ज़ीरो लिख दिया करते थे

पर्चियाँ बीच में फेंक कर, उठाने के बाद, राजा वाली पर्ची जिसकी होती बोला करता..

” मेरा मंत्री कौन..?”

” मैं!”।

मंत्रीजी ऊँची आवाज़ में बोला करते थे।

अब राजा का हुक्म होता..

” चोर , सिपाही का पता लगाओ!”।

तरह-तरह के मुहँ बनाकर मंत्रीजी को कंफ्यूज़ किया जाता था.. सही बता दिया तो ठीक, नहीं! तो.. गलती पर मंत्रीजी को चोर की पर्ची मिल जाया करती थी।

मस्त खेल था.. पूरी दोपहरी हम बच्चों की कट जाया करती थी।

फ़िर नम्बर काउंट करते.. ज़्यादा नम्बर वाला.. जीतकर औरों की खिंचाई में बाकियों का टाइम पास करा देता था।

Lockdown के चलते.. आज फ़िर से यही खेल, खेला.. ज़्यादा बार पर्ची तो चोर की ही मिली.. पर फ़िर भी मंत्रीजी को कंफ्यूज़ कर पर्ची बदल कर खेल का आनंद ख़ूब उठाया।

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