आजकल तो सोशल मीडिया पर रेसिपीस की भरमार लगी रहती है.. हर सब्ज़ी को बढ़िया अंदाज़ में पेश किया जाता है। अब आजकल चल रहे.. आलू-मैथी को ही देख लो!

म्यूजिक की धुन पर टमाटर और आलू-मैथी को सुंदर अंदाज़ में बनाते हुए दिखाते हैं.. खाने वाले का मन ख़ुद ही ललचा उठता है।

रेसिपी को देख हमारा भी मन ललचा गया था.. बस! सही उसी हिसाब से बना डाले थे.. मैथी-आलू। पर वो बात नहीं आई थी, बो स्वाद नहीं था..

बचपन में जब माँ आलू-मैथी की सूखी भुजिया बनाया करतीं थीं.. उसकी बात ही अलग हुआ करती थी.. 

हमारी सबकी यह भुजिया मन-पसन्द थी।

सर्दियों की सब्ज़ियों में.. ढ़ेर सारी मैथी की गड्डियाँ आया करतीं थीं.. और सभी गोला बना.. गप्पें हाँकते हुए.. मैथी के पत्ते थोड़ा करते थे.. माँ साथ-साथ बोलती चलतीं थीं..

” अरे! भई! पत्ते-पत्ते तोड़ने हैं.. डंठल मत तोड़ देना.. नहीं तो भुजिया अच्छी नहीं बनेगी!”।

पत्ते तोड़ने के बाद.. छिलके वाले आलू.. जो सर्दियों की नई वैराईटी होती है..  

अच्छे से धो.. उसे माइयाँ बारीक़.. काट.. बड़ी कढ़ाई में सरसों का तेल डालकर.. तेल गर्म होने पर.. जीरे, लहसुन लाल-मिर्च , नमक में कटे आलू और बारीक मैथी छोड़ दिया करतीं थीं.. तेज़ आँच पर लगातार चलाते हुए.. आलू और मैथी की टेस्टी भुजिया तैयार हो जाया करती थी..

ऐसी रेसिपी और स्वाद आज किसी भी खाने के वीडियो में मिलनी मुश्किल है।

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