” तो फ़िर क्या रहा! देख लो! तुम लोग डिसाइड कर के बता दो मुझे.. कि कौन सी सोसाइटी में फ्लैट लेना है!”।

दिल्ली शिफ्टिंग के बाद हम किराए के ही घर में थे.. काफ़ी सालों से। ईश्वर ने पिताजी का हाथ पकड़ा.. और अब अपना ख़ुद का फ्लैट किसी अच्छी सोसाइटी में लेने का पारिवारिक डिसिशन हुआ था।

हम सभी बहुत ख़ुश थे.. कई सारे फ्लैटों के नक्शे पिताजी ने समझा दिए थे.. पर माँ को और हम बहन- भाईओं को एक नक्शा और सोसाइटी बेहद पसंद आयी थी.. जो हमारे पुराने वाले घर के पीछे ही थी.. और हमनें सलाह कर अपना निर्णय पिताजी को सुना डाला था.. 

” पिताजी! वो डुप्लेक्स फ्लैट ठीक रहेगा!”।

” ok..done”।

सब ख़ुश थे.. सर्व सम्मति से पिताजी ने ईश्वर की कृपा से फ्लैट खरीदा.. और हम सब उसमें जल्द ही शिफट हो गए थे।

अब नए घर को सजाना भी था.. हमारा सारा परिवार शुरू से ही क्रिएटिव क़िस्म का रहा है.. ख़ासकर पिताजी को घर की दिवारों पर सुन्दर और बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स हों.. ऐसा शौक शुरू से ही रहा है।

तो बस! अब नए घर को हमनें सबनें मिलकर पेंटिंग्स से सजाना शुरू कर दिया था..

पिताजी के आईडिया हुआ करते.. और हमारी मेहनत हुआ करती..

गिने दिनों के भीतर पिताजी के इक्स्क्लूसिव आइडियास ने और हमारी बहन-भाई की मेहनत ने घर की दीवारों को प्यार भरी पेंटिंग्स से सजा डाला था।

घर की हर एक पेंटिंग की खूबसूरती के पीछे.. हमारे परिवार की कोई न कोई प्यारी सी कहानी छिपी थी.. 

आज भी जब कभी घर जाना होता है.. और उन पैंटिंगस पर नज़र पड़ती है.. तो यादों के क़िस्से आँखों के आगे घूम जाते हैं.. और मन एक बार फ़िर अपने अतीत में जाकर परिवार संग बैठ जाता है।

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