बिजली चमकी

गरजे बादल

बिजली की

चमक में

कहीं कुटुम्ब

था मेरा

बिजली चमकी

गरजे बादल

उस चमक

में कहीं

बचपन था

मेरा

बिजली चमकी

गरजे बादल

उस चमक में

कहीं चेहरा

था

तुम्हारा

बिजली चमकी

गरजे बादल

उस चमक

में कहीं

तुम मुस्कुरा

रहीं

थीं

बिजली चमकी

गरजे बादल

उस चमक

में मैं

चल पड़ी

थी

न बिजली

चमकी

न गरजे

बादल

अँधेरे में 

मैं आ खड़ी

थी

थम गया

सबकुछ

हुआ सवेरा

नील गगन

में नज़र

पड़ी थी

मैं बचपन 

लिए तुम

संग वहाँ 

खड़ी थी

माँ!

अब नील

गगन में

तुम संग

कुटुम्ब था

मेरा।

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