“ब्रिटेन से बरनी ने एक दिल दहलाने वाली खबर भेजी है सर।” चुपके से ऑफिस में घुस आए माइक ने एक जरूरी बात बताई थी।

सर रॉजर्स का सोच टूटा था। वो सोफी के बारे में ही सोच रहे थे। यूं इकलौती बेटी को जासूसी के जंजाल में फसा कर वो अपना चैन खो बैठे थे। एक सोफी ही थी जिसे वो अगाध प्रेम करते थे और जब कभी सोफी के खतरों से खेलने की आदत को ले कर बैठते थे तो उन्हें अपना ही चरित्र याद हो आता था।

“अब कौन सा गजब हुआ?” सर रॉजर्स ने तनिक विहंस कर पूछा था।

“19 अप्रैल।” माइक ने संक्षेप में कहा था।

“19 अप्रैल मीन्स वॉट?”

“ब्रिटेन में अपना वतन पार्टी महा रैली करेगी।” माइक बताने लगा था।

“सो वॉट?” सर रॉजर्स ने कड़क आवाज में पूछा था।

“महा रैली गोल्डी की देखरेख में होगी एंड गोल्डी मीन्स – उजबैक – मीन्स – जालिम का बेटा।” माइक ने सूचना का खुलासा किया था।

जालिम का नाम सुनते ही सर रॉजर्स को एक आग का दहकता दरिया दिख गया था।

“ब्रिटेन वाले क्या कर रहे हैं?” सर रॉजर्स ने तनिक नाराज होते हुए पूछा था।

“क्या करें?” माइक ने उनकी विवशता बताई थी। “अपना वतन पार्टी पावर में है। शरणार्थियों ने पूरे देश को अपने हाथ में ले लिया है। गोल्डी पूरे राजनैतिक परिदृश्य पर छाया हुआ है। वह सारे विदेशियों का हितैषी बना हुआ है।”

“निकाल बाहर क्यों नहीं करते इन शरणार्थियों को?” उनका मन हुआ था कि अपना वतन पार्टी वालों को मोटी-मोटी गालियां दे। “किक दैम आउट फ्रॉम द कंन्ट्री यार!”

“वो जमाना तो कब का चला गया सर।” माइक ने अर्ज की थी। “ये मर्ज ही कुछ ऐसी है कि – लाइलाज होती ही चली जा रही है।”

अचानक सर रॉजर्स को अमेरिका में बसे विदेशियों का ज्ञान हुआ था। वो डर गए थे। “धक्के मार बाहर करें – इन लुटेरों को?” सर रॉजर्स रोष में थे।

“वो कहते हैं – हम मालिक हैं परदेशी नहीं। देश नहीं छोड़ेंगे। हमने पूरी उम्र कमाया है। काम किया है मेहनत की है और देश को समृद्ध बनाया है। अब इसे छोड़ कर हम कहां जाएंगे? कौन देगा हमें …”

“जाएं जहन्नुम में।” गरजे थे सर रॉजर्स। “अबे यार। ब्रिटेन वो देश है जो कभी दुनिया का सिरमौर था। और अमेरिका भी ..”

“रात गई बात गई।” माइक जोरों से हंस पड़ा था। “बात अब 19 अप्रैल की महा रैली की है। कुल चार महीने बचे हैं। अगर जालिम ने जंग छेड़ दी तो …?” माइक ने पूरी बात उलट दी थी।

“क्यों …? चार महीने ही क्यों?” सर रॉजर्स पूछ बैठे थे।

“हमने जालिम को 9 दिसंबर का वक्त दिल्ली आने का दिया है। उन्होंने भी महा रैली का समय 19 अप्रैल रक्खा है। साफ जाहिर है कि ये जंग 19 अप्रैल के बाद कभी भी हो सकती है।”

“तो …?”

“फिनिश जालिम बिफोर 19 अप्रैल।”

“फिनिश नहीं करना इस दानव को।” याद आ गया था सर रॉजर्स को। “अरैस्ट करना है। दुनिया को दिखाना है, ताकि हमारे दुश्मन समझ जाएं की अमेरिका को कभी भी हराना असंभव है।”

कभी ब्रिटेन को हराना भी असंभव था – माइक और सर रॉजर्स को एक साथ समझ आया था। उनके राज में सूरज कभी गुरब नहीं होता था। नाम था ब्रिटेन का। जगत विख्यात थे ब्रिटिश। लेकिन आज खाली हाथ लड़ने के लिए मजबूर थे। क्या करें? किसे पुकारें?

“गलत नीतियों का परिणाम है।” सर रॉजर्स ने आहिस्ता से कहा था। “दुश्मन को दोस्त समझ कर घर में घुसा लेना घातक होता है। मिल गया फल ब्रिटेन को। अब …?”

“मिल कर जंग लड़े ब्रिटेन और अमेरिका …?” माइक ने अपना सोच जाहिर किया था।

“जंग ही तो नहीं लड़ी जाएगी, माइक।” सर रॉजर्स रोने-रोने को थे। “यू कांट फेस दि फ्रन्टल ऑनस्लौट। भारत में भी तो यही हुआ था इनके साथ।” सर रॉजर्स बताते रहे थे।

सर रॉजर्स और माइक ने एक साथ ब्रिटेन के जहाज को हिन्द महासागर में डूबते हुए देख लिया था।

“औरत कोमल डाली पर खिला सुंदर फूल है।” बिंदा बेगम रजिया को बता रही थीं। “पुरुष भंवरा है। रस-सुगंध लेता है, उड़ जाता है।” हंसी थीं बिंदा बेगम। “प्रेमी मात्र एक कल्पना है। किसी को मिलता कब है।”

“क्यों? मंसूर अली …?” रजिया सुल्तान ने प्रश्न किया था।

“सेक्स का सौदागर है।” बिंदा बेगम ने तनिक मुसकुराते हुए बताया था। “जानोगी तो गश खा जाओगी – रजिया सुल्तान। जो घर नहीं देखा वही ताजमहल है। मंटो क्या तुम्हारा प्रेमी होगा?”

“पता नहीं।” रजिया सुल्तान ने सीधे-सीधे कहा था। “मैंने तो उसे अभी देखा भी नहीं है। कहानी तो अभी सामने आएगी। हां! कुछ प्रेम प्रसंग तो होंगे जरूर।”

“जरूर होते हैं। संवाद भी होते हैं। वायदे भी होते हैं। लेकिन सब झूठे होते हैं।” बिंदा ने अपने अनुभव बताए थे।

“लेकिन … लेकिन मैंने सुना था कि इंडिया में पति व्रता स्त्री होती हैं, सती नारी होती हैं और …” सोफी को एकाएक मां सा की याद हो आई थी।

“अब नहीं होतीं।” बिंदा ने बात घुमाई थी। “कभी होती थीं लेकिन अब नहीं।” पलट गई थी बिंदा। “औरत का किरदार अब यहां भी बदल गया है मेरी बहन।”

“क्यों?”

“इसलिए कि मर्द ईमानदार नहीं रहा। अड्डे मारता है। औरत कहां जाए?”

“तो क्या … तो क्या …?” रजिया फिर से मंसूर अली के बारे पूछना चाहती थी पर रुक गई थी।

“देखो रजिया। मंटो एक नहीं दो होगा। प्यार भी होगा और बेवफाई भी। दोनों से निपटने के लिए तुम्हें तैयार रहना होगा। प्यार में मल्हार गाना तो बेवफाई में आंसू बहाना। हाहाहा। यही तो होता है सिनेमा में।”

लेकिन रजिया सुल्तान की मुसीबत तो अलग थी। उसका मंटो तो जाना माना राक्षस था – जालिम था। कैसे और कौन सी प्रेम की डिबिया में बंद करे उसे, इतना भर सीखना था।

“कहते हैं औरत पागल बना देती है आदमी को?” रजिया सुल्तान का अगला प्रश्न था।

“हां, बिलकुल बना देती है।” बिंदा ने माना था। “उसमें औरत कपट करती है। हावभाव से प्रेम का प्रदर्शन करती है, संकेतों से गुमराह करती है, वायदे करती है पर पूरे नहीं करती। मिलती है और रूठ जाने पर मनाती है, खुशामद करती है। कहीं तक जाने देती है पुरुष को फिर रोक लेती है। कुछ दिखाती है तो कुछ छिपाती है। हंसती है तो रो कर भी दिखाती है। आदमी का मोम बना कर फिर उसे मक्खी बनाती है और अपने जूड़े में खोंस लेती है। हाहाहा। सच मानो सुल्तान तब आदमी बावला हो जाता है। उसकी आंखों में नशा भर जाता है। वह सब कुछ देने पर उतर आता है। सही मायनों में पतंगा होता है तब आदमी।”

रजिया बेगम को बिंदा बेगम की ये तकरीर बेहद अच्छी लगी थी।

“पागल बनाने के बाद …?” रजिया सुल्तान का अगला प्रश्न था।

“जो चाहे सो करो।” बिंदा बेगम बताती रही थीं। “चाहो तो – चाहो तो खंजर पार कर दो सीने में।” तनिक हंसी थी बिंदा बेगम। “और मैं एक दिन यही करूंगी।”

रजिया सुल्तान चौंक गई थी। उसने बिंदा की आंखों को पढ़ा था। कुछ था वहां जो सच जैसा था। लेकिन वो उसे मानने को तैयार न थी। बिंदा बेगम को कमी क्या थी? मंसूर अली ने तो उसे जन्नत बख्श रक्खी थी। मंसूर अली सा शौहर होना जन्नत का ख्वाब जैसा था।

“क्यों? क्या कमी है जो …?”

“तुमने किसी पुरुष को भोगा है?” बिंदा ने अगला प्रश्न पूछा था।

“नहीं।”

“फिर तुम नहीं समझ पाओगी रजिया सुल्तान।” बिंदा बेगम मुसकुराई थी। “तैयारी करो अपने किरदार की। तैयार रहना भले बुरे के लिए।” बिंदा बेगम ने आज का पाठ बंद कर दिया था।

सोफी एक बारगी राहुल के बारे ही सोचती रही थी। अगर राहुल ने कभी उसे धोखा दिया तो क्या वह उसके सीने में खंजर आरपार करेगी?

“पुरुष को भोगने के बाद ही भले बुरे की समझ आती है, रजिया सुल्तान।” बिंदा बेगम ने कहा था और हंस गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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