बिंदा बेगम आज रजिया सुल्तान के साथ अपनी बग्गी पर सवार हुई लखनऊ शहर की सैर पर निकली थी।
बिंदा बड़े ही मनोयोग से रजिया सुल्तान को लखनऊ शहर का मिजाज और अंदाज बयां कर रही थी। लंबे चौड़े इमाम बाड़े, महल चौबारे और रेजीडेंसी लखनऊ शहर का इतिहास बता रहे थे। लखनऊ आज भी अपनी गरिमा बनाए था। तमीज और तहजीब के साथ-साथ लखनऊ का पहनावा भी अलहदा ही था।
“कभी नवाबों का शहर था लखनऊ।” बिंदा बेगम बता रही थीं। “लेकिन अंग्रेजों के आने पर सब उड़ गया।”
“क्यों? ऐसा क्या हुआ जो ..” रजिया सुल्तान ने पूछा था।
“एक म्यान में दो तलवारें नहीं रहतीं बेगम।” बिंदा ने विहंस कर बताया था। “अंग्रेजों ने मुगलों से सत्ता छीन ली। उसके बाद तो ..”
“फिर नवाब कहां गए?” रजिया सुल्तान ने पूछा था।
“अंग्रेज कहां गए?” बिंदा ने हंस कर बयान किया था। “हर शय का वक्त होता है रजिया।” उसने आंखों के इशारों से जताया था।
“लेकिन अमेरिका के जाने का वक्त अभी नहीं आया।” रजिया सुल्तान ने अपने मन में कहा था। वह मानती थी कि वो सोफी और अमेरिका के पक्ष में लड़ रही थी। “अब तो जालिम जाएगा, अमेरिका नहीं।” उसने अपने इरादे को स्पष्ट किया था।
लंबी सैर के बाद बग्गी परी लोक में आ कर रुकी थी।
शाम ढल चुकी थी। अंधेरा आ गया था। परी लोक में अखंड शांति थी। दोनों बेगमें बग्गी से उतरी थीं तो परी लोक के कर्मियों ने कुर्सियां बिछाई थीं। परी लोक का स्टाफ एक दौड़ भाग से भर गया था। खुले में दोनों बेगमों के लिए बैठने के लिए बंदोबस्त किया गया था। आवभगत आरंभ हो गई थी। बिंदा ने रजिया सुल्तान से खाने की फरमाइश पूछी थी।
“वेटर को बुला कर पूछते हैं आज क्या मीनू बना है।” रजिया सुल्तान का सुझाव था।
खाना खाते-खाते दोनों बेगमों ने महसूसा था कि खाने का जायका लाजवाब था। कुछ अलग ही था जो उन्हें बहुत अच्छा लगा था।
“खाना किसने बनाया है?” बिंदा बेगम ने वेटर से पूछा था।
“नएला ने।” वेटर ने तुरंत उत्तर दिया था।
“कौन नएला?” बिंदा बेगम तनिक तड़की थी। “बुलाओ उसे।” उन्होंने हुक्म दिया था।
और दोनों बेगमों के सामने चैफ की पोषाक में सजा वजा राहुल आ खड़ा हुआ था। सोफी ने उसे देखते ही पहचान लिया था। सोफी की हंसी छूटने वाली थी लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया था। राहुल चुपचाप खड़ा था। उसकी आंखों में शरारत डोल रही थी। वह पुलकित था। वह रजिया के चेहरे को नजरें भर-भर कर देख रहा था। रजिया सुल्तान बनी सोफी उसे बेजोड़ लग रही थी।
“पहले कहां काम करते थे?” बिंदा ने नएला को पूछा था।
“दुबई। हमीर सात सितारा में। उन्होंने निकाल दिया। मां बीमार थी। भाग आया था। फिर नहीं रक्खा।” राहुल बयान करता रहा था। सोफी को कहानी पता थी। वह मुसकुराई थी।
“क्या-क्या बनाते हो?” बिंदा ने फिर से पूछा था।
“वो सब जो बादशाह जहांगीर के किचन में पकता था।” नएला का उत्तर था।
“क्या-क्या पकता था, बताओ?” बिंदा ने जानना चाहा था।
“ऑल इंटरकॉन्टीनैंटल कूजीन्स।” नएला का उत्तर था। “बारह तरह की बिरयानी और पुलाव, ऐरोमैटिक लैम्ब पुलाव, गुजराती बैंगन का भुरता, कढ़ी, शान्डवी और बाजरे की खिचड़ी।”
“खिचड़ी .. बाजरे की खिचड़ी ..?”
“जी हां। बादशाह जहांगीर को बाजरे की खिचड़ी बेहद पसंद थी।” नएला ने उत्तर दिया था।
“ओह नो।” दोनों बेगमें एक साथ हंस पड़ी थीं। “बादशाह जहांगीर और .. बाजरे की खिचड़ी?”
नएला भी उन के साथ मिल कर खूब हंसा था। जाते वक्त उसने प्लेट के नीचे से सोफी की नरम उंगलियों को हल्के से स्पर्श किया था।
सोफी एक अजान से भूचाल से भर गई थी।
मूडी के मर्दन हल्ली में आने के बाद धूम मच गई थी।
रघुनाथन निराश हुआ बैठा था। कुछ लोगों का कहना था कि एडीसी रॉलेंडो तो हवा था – सो उड़ गया। अब नहीं लौटेगा। समर कोट जाना खतरों से खेलना था। जान भी जा सकती थी। लेकिन जैसे ही खबर आई कि एडीसी रॉलेंडो लौट आया है – रघुनाथन हरा हो गया था।
“लेकिन कोड ..?” प्रश्न था जो अभी भी रघुनाथन के गले में अटका था।
एडीसी रॉलेंडो ने रघुनाथन को बुलाया था।
हालांकि जाल में फंसा दुखी सुखी रघुनाथन हिम्मत बटोर कर एडीसी रॉलेंडो के सामने जा खड़ा हुआ था। उसका चेहरा भयभीत था।
“चेयर अप मैन।” मूडी ने रघुनाथन की दशा पहचान कर कहा था। “तुम्हारा कोड मिल गया।” उसने सूचना दी थी।
अभिभूत हुआ रघुनाथन समझ नहीं पा रहा था कि परमेश्वर को किन शब्दों में धन्यवाद दे और एडीसी रॉलेंडो के पैर छू ले।
“रास्ते में डूंगरी पर तुम्हें मिशन के साथ मुलाकात करनी है रघुनाथन।” एडीसी रॉलेंडो रघुनाथन रॉलेंडो को अगली योजना समझा रहा था। “मिशन के साथ तुम समर कोट में प्रवेश करोगे और कोड पर कालिया को संदेश भेजोगे। कालिया तुम्हें निशान देगा जहां तुम्हें पहुंचना होगा। उसके बाद कालिया तुम्हें ले जाएगा और जालिम से मुलाकात करा देगा। सौदा तुमने करना है – 36 हजार टन माल का और पेमेंट मांगना है – कैश और काइंड।” एडीसी रॉलेंडो ने रघुनाथन की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। वह प्रसन्न था।
“नौ दिसंबर को हैदराबाद में – हैदराबाद हाउस में मुलाकात होगी।” एडीसी रॉलेंडो ने रघुनाथन को फिर से समझाया था। “तब सारी योजना बनेगी।” उसने अंतिम आदेश दिया था। “तुम पैसा जितना चाहो ले लो।” एडीसी रॉलेंडो हंस रहा था।
रघुनाथन बेहद प्रसन्न था। उसका मन था कि अभी उड़े और समर कोट पहुंच जाए।
मिशन का शेष भाग बरनी मखीजा को समझा रहा था।
“ये मिशन है मिस्टर मखीजा।” बरनी ने खबरदार किया था मखीजा को। “तैयारी सूझबूझ और पूरी होशियारी के साथ करनी है। वो सब देख लेना जिसकी तुम्हें जरूरत हो। अपने साथ अपनी हर जरूरत का सामान ले लेना। ये अमेरिका की इज्जत का सवाल है।” बरनी ने मखीजा को आंखों में देखा था। “तनिक सी भी असावधानी देश को तबाह कर देगी।” गंभीर था बरनी। इस बार वह स्वयं भी सतर्क था। वह नहीं चाहता था कि कोई चूक हो जाए।
“डूंगरी पर पहुंचोगे तो तुम्हें रघुनाथन मिलेगा – अकेला।” बरनी बताने लगा था। “वह मिशन को समर कोट की सीमा तक ले जाएगा। उसके बाद वो अपने टास्क पर चला जाएगा और आप अपने मिशन पर।” बरनी चुप हो गया था। वह अपनी योजना के बारे सोच रहा था।
“इलाका पहाड़ी है – रघुनाथन के मुताबिक।” बरनी ने अगली सूचना दी थी। “किसी ऊंची पहाड़ी के शिखर पर तुम अपना कैंप लगाना। अब तुम दिखाई नहीं दे रहे होगे और न ही तुम किसी और को देख रहे होगे।” बरनी खुलासा कर रहा था। “यही खोज तुम्हें करनी है – मखीजा। पता लगाना है कि क्यों ऐसा है? और क्या सबब है जो ..?” बरनी ने अपनी बात कह दी थी।
मखीजा को अभी तक आइडिया हो गया था कि उसने खोज क्या करनी थी।
“जब तक मूडी नहीं मिलता तुमने यहीं रहना है।” बरनी ने अगली नसीहत दी थी। “इसलिए तुम अपना बंदोबस्त ठीक-ठाक रखना।” बरनी हंसा था। “इट्स ए वैरी चैलेंजिंग जॉब।”
मखीजा चुप था। उसे सामने खड़ी मुसीबत दिखाई दे रही थी। अब प्रश्न देश का था और हो सकता था कि कोई अशुभ भी हो। हो सकता था कि लड़ना पड़े और मुकाबला हो जाए? उसने उचित समझा था कि बरनी सर को अपना संदेह कह सुनाए।
“इन केस सर, अगर कोई मुठभेड़ हुई तो?”
“अरे हां। मैं ये पॉइंट तो भूल ही गया था मखीजा।” बरनी ने स्वीकार किया था। “अरे भाई ये तो अनर्थ हो जाता।” बरनी ने मखीजा को घूरा था। “आर्मस अम्यूनीशन्स भी ले लेना – फर्स्ट एड के लिए। बाकी जहां भी अमेरिका का आस पास बेस हो वहां से कोड पर कॉन्टैक्ट रख लेना।” बरनी ने पूरी योजना समझाई थी। “तुम अकेले नहीं हो मखीजा। अमेरिका दुनिया के हर कोने पर हर नुक्कड़ पर हथियार ले कर बैठा है।” हाहाहा .. हम तो दुनिया के राजा हैं मेरे यार।”
मखीजा अब सहज था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड