“ही हैज पेंटिड अमेरिका रैड!” सर रॉजर्स टैड को सूचना दे रहे थे। “डाउन विद डॉलर – उसका अकाट्य नारा है और अरबपतियों खरबपतियों के मुकाबले दरिद्र नारायणों को जंग में उतारने का उसका इरादा है।”
“मैं कुछ समझ नहीं पाया सर।” टैड आश्चर्य चकित था। “ये दरिद्र नारायण कौन सी बला है मैं जान नहीं पाया।”
“गरीबी की अमीरी से लड़ाई।” सर रॉजर्स ने खुलासा किया था। “अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा धनी देश है। अमेरिका के डॉलर का दुनिया पर राज है और जालिम ..”
“जालिम अपना राज चाहता है?”
“जी हां! अपने परिवार का राज।”
“कैसे?”
“अपने सोने के सिक्कों से हमारे कागज के बने डॉलर को पीटेगा। गरीबों को अमीर बनाने का झांसा देगा। एक जागरूक समाज का निर्माण करेगा जहां धर्म, जाति और प्रांत का कोई प्रपंच नहीं होगा। एंड ए बॉडर लैस वर्ल्ड!”
“पागल है क्या?” टैड तनिक झुंझलाया था। “होते तो हैं कुछ ऐसे पागल।” उसने माना था। “लेकिन ये थोड़ा ज्यादा ही सनकी लगता है।”
“है भी। खबर है कि ये महा मानव है .. या कि कोई दानव है। ही इज एक्सट्रा स्मार्ट।”
“शूट हिम डाउन।” टैड सीधा ट्रिगर दबाने की बात कर गया था।
“नहीं। इसे इस तरह नहीं मारेंगे टैड।” सर रॉजर्स ने बहुत दूर देखा था। “ये आदमी नहीं एक विचार धारा है। ये एक कल्ट बन गया है और इसे खत्म करने के लिए हमें एक नई विचार धारा और उसका प्रतीक खड़ा करना होगा।”
“वो कैसे।”
“पहले उसे उसके ग्यारह राजा रानियों के साथ बंदी बनाना होगा। इसके बाद इंफ्रास्ट्रक्चर को खत्म करना होगा और फिर दरिद्र नारायणों को ..”
“बहुत कॉम्प्लीकेटिड है सर।” टैड बीच में बोला था। “ये तो नहीं चलेगा।” उसने सर हिलाया था। “लैट्स वाइप आउट ऑल ऑफ दैम?” अपना सुझाव सामने रक्खा था टैड ने।
“क्या हम वियतनाम में ये सब कर पाए थे?” सर रॉजर्स ने सीधा सवाल पूछा था। “याद है न वो जान लेवा जंगल और वो आसमान पर जा बैठा दुश्मन?”
टैड चुप हो गया था। सर रॉजर्स भी अपना गणित ठीक करने में जुट गए थे। कोई स्पष्ट विचार जहन में आ कर न दे रहा था। जालिम का जाल उलझता ही जा रहा था।
“खबर के मुताबिक कुल आठ महीने का वक्त हमारे पास है।” सर रॉजर्स ने आंकडे फैलाए थे। “और आठ महीने के छह महीने मान कर चलते हैं तो ..” उन्होंने टैड को गौर से देखा था। “छह महीनों में हमारा मिशन समाप्त हो जाना चाहिए वरना तो ..”
“वरना तो?”
“वी विल बी डूम्ड।” साफ-साफ चेतावनी दी थी सर रॉजर्स ने। “जालिम का प्लान झूठा नहीं वर्केबल है। और बहुत दूर तक आगे आ चुका है ..”
टैड गंभीर था। उसकी समझ में न आ रहा था कि ये समर कहां से शुरू होगा और कहां खत्म होगा। उसके लिए तो जालिम अभी भी एक परछाई था। लेकिन जो सर रॉजर्स बता रहे थे ये तो एक गंभीर स्थिति थी। दुनिया का श्रेष्ठ सैन्य बल पा कर भी अमेरिका असहाय कैसे था – टैड समझ न पा रहा था। ग्लोब के चप्पे-चप्पे पर अमेरिका का राज था। अगर एक क्रिकिट की बॉल भी हिलती थी तो अमेरिका जाग जाता था, जान जाता था और उस हिलती बॉल पर अपना हाथ रख देता था। लेकिन ये जालिम – न जाने कौन सी मुसीबत थी कि ..
“फिर मिलते हैं टैड।” सर रॉजर्स अपनी बात को अधूरा छोड़ उठ गए थे।
टैड का मन तो हुआ था कि अभी-अभी खतरे का सायरन बजवाए और आदेश जारी कर दे और अमेरिका को खुले शब्दों में कह दे – खबरदार। आप की जान का एक दुश्मन पैदा हो गया है। आओ-आओ। उठो-उठो। लड़ते हैं जालिम से एक साथ।
लेकिन मजबूरी किसी भी हुजूरी से हल्की नहीं होती।
टैड चुप था। उसे सर रॉजर्स के फिर लौटने का इंतजार था।
भूली याद की तरह रघुनाथन अचानक ही मूडी के सामने आ खड़ा हुआ था।
मर्दन हल्ली में खूब चहल-पहल थी। मूडी के आने के बाद वहाँ नए-नए सपनाें का संचार हाेने लगा था। आवाजाही बढ़ गई थी। हर किसी काे 36 हजार टन माल के गाेआ पहुँचने का इंतजार था। ड्रग्स में माेटी कमाई थी। लाेग मूडी के आने से बहुत खुश थे।
लेकिन मूडी के सामने खड़ा रघुनाथन गमगीन था। उसका हुलिया उड़ा हुआ था। जिस रघुनाथन काे मूडी ने मिशन पर भेजा था – वाे नहीं काेई और आदमी लाैटा था जैसे।
“क्या हुआ?” मूडी ने संभलते हुए प्रश्न पूछा था।
“काेड चाहिए।” रघुनाथन की मांग थी।
“किस लिए?” मूडी ने डरते-डरते पूछा था।
रघुनाथन चुप ही खड़ा रहा था। उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ था पर वाे समझ नहीं पा रहा था कि बयान कैसे करे?
“समर काेट में प्रवेश पाने के लिए।” रघुनाथन ने सीधे-सीधे मांग की थी। “असंभव है समर काेट में बिना काेड के प्रवेश पाना।” रघुनाथन ने कठिनाई बताई थी।
मूडी और भी ज्यादा सकते में आ गया था। रघुनाथन बहकी-बहकी बातें कर रहा था।
“मामला क्या है?” मूडी ने संभल कर पूछा था। “हुआ क्या?” वह जान लेना चाहता था।
“मैं समर काेट की सीमा पर पहुँच गया था। समर काेट एक पहाड़ी सुरम्य प्रदेश मेरी आँखाें के सामने था। छाेटे-छाेटे पहाड़ दिख रहे थे। नदियां थीं और जंगलाें से प्रदेश भरा पड़ा था। मैं पूरी तैयारी और अपनी संपूर्ण हिम्मत के साथ समर काेट में घुस गया था।” कह कर रघुनाथन चुप हाे गया था।
“फिर क्या हुआ?” मूडी ने उसे टाेका था।
“फिर .. फिर तीन दिन लगातार चलने के बाद मैं जहाँ से चला था वहीं लाैट आया था।”
“क्या ..? ये कैसे हुआ?”
“पता नहीं कैसे हुआ, और एक बार नहीं तीन बार यही हुआ।” रघुनाथन खुलने लगा था। “मैं भी यही साेचता रहा था कि यहाँ सब है – पहाड़ हैं, नदियां हैं, झरने हैं और जंगल हैं लेकिन आदमी, जानवर या शहर गाँव की काेई हलचल नहीं दिखती है। सब कुछ है – पर कुछ भी नहीं है।” रघुनाथन पागलाें जैसा बयान दे रहा था।
“ये तुम क्या कह रहे हाे रघुनाथन?”
“जाे कुछ देख कर आया हूँ और जाे – जाे महसूस करके लाैटा हूँ ..”
“क्या? क्या बताना चाहते हाे।”
“यही सर कि लगता है काेई चुंबकीय प्रभाव है उन पहाड़ाें का। ये किसी भी बाहर से आने वाले आदमी काे अंधा कर देता है। उसे जंगल, पहाड़ और नदी, झरने ताे दिखते हैं .. लेकिन ..”
“शहर, गाँव और आदमी, पशु पक्षी .. तथा ..”
“जी हाँ। कुछ भी दिखाई नहीं देता सर।” रघुनाथन ने अपनी आपत्तियाँ बयान कर दी थी।
समर काेट नहीं यह ताे काेई स्वप्न काेट था – मूडी साेचने लगा था। फिर सहसा ही उसे याद आया था कि बतासाे और कालिया ताे कब के समर काेट पहुँच गए थे। लेकिन अचानक ही उसे कालिया के ऊंट याद आ गए थे। वाे कालिया के राजू गाजू थे जिन्हें दिशा भ्रम नहीं हाेता था और शायद उन पर समर काेट के चुंबकीय क्षेत्र का भी असर नहीं हाेता था। लेकिन रघुनाथन ..?
“कुछ दिन आराम कराे।” मूडी ने रघुनाथन काे आदेश दिए थे। “मैं खाेजता हूँ काेई रास्ता।” मूडी ने वायदा किया था।
मूडी ने महसूस किया था कि रघुनाथन झूठ नहीं बाेल रहा था। जाे हकीकत वाे बयान कर रहा था उससे ताे जंच रहा था कि समर काेट काे फतह करना काेई आसान काम नहीं था।
और जालिम ..? अमेरिका काे भारी पड़ सकता था – अकेला जालिम, मूडी अब मान रहा था। लड़ेगा भी अमेरिका ताे किससे? हथियाराें के सामने जब लक्ष्य ही नहीं हाेंगे ताे आप मारेंगे भी ताे किसे?
मूडी चाहता था कि सर राॅजर्स के सामने वाे स्वयं जा कर ये सूचना दे।
अमेरिका के सर पर भारी संकट गहरा रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड