हैदराबाद की चारमीनार के चारों ओर भरी चहल पहल में लैरी किसी गुलाम अली की तलाश में पागल हुआ घूम रहा था। गुलाम अली को नाम से तो सब जानते थे पर उसका पता किसी के पास न था। और न कोई लैरी की मदद ही करना चाहता था। यहां अमरीकनों का नहीं अरबों का बाजार था – लैरी की समझ में आ गया था। तभी उसे किसी ने वहां भाव नहीं दिया था।
“अमरीकनों को लोग यहां लाइक नहीं करते।” लैरी को राहगीर ने बताया था। “अरबों और शेखों का भाव है यहां।” उसने सूचना दी थी।
निराश हुआ लैरी होटल में लौटना ही चाहता था कि उसकी निगाह सड़क के नुक्कड़ पर बैठे एक ब्राह्मण पर पड़ी थी। यह कोई पंडित परमब्रह्म ज्योतिषि था। उसके माथे पर लगा चंदन का तिलक लैरी को भा गया था। वह आहिस्ता से चल कर पंड़ित परमब्रह्म के पास पहुंचा था। उसने पंड़ित परमब्रह्म को बड़े ही आदर से देखा था। निजाम हैदराबाद के फैले अपार वैभव के बीच ये कमल के फूल जैसा खिलता पंड़ित लैरी को हैरान करता रहा था।
“कुछ बताएंगे?” लैरी ने सीधा सवाल किया था।
“पहले हथेली पर कुछ रखिए।” पंडित परम ब्रह्म ने आग्रह किया था।
“क्या रक्खूँ?”
“कुछ भी – फूल, पत्ता या पैसा!” परम ब्रह्म ने उत्तर दिया था।
लैरी ने एक मोटा डॉलर का नोट निकाल कर पंडित परम ब्रह्म की हथेली पर रख दिया था।
“प्रश्न कीजिए!”
“गुलाम अली कहां रहता है?”
“गली नम्बर 7, मकान नम्बर 13, मोहल्ला गली कुरान।” पंडित परम ब्रह्म ने सीधा उत्तर दिया था। “जाओ, मनोरथ सिद्ध होगा।” कहकर उसने लोटे से जल उंगलियों में लेकर लैरी के ऊपर छींटे दिए थे और होंठों में कुछ कहा था।
लैरी अपलक उस अधनंगे ब्राह्मण परमब्रह्म को देखता ही रहा था। एक ओर उसे अमेरिका का अपार वैभव दिखा था तो दूसरी ओर इस्लाम का विशाल विस्तार था। उन दोनों के बीचों बीच बैठा ये सनातनी एक अधनंगा संन्यासी लैरी के लिए एक अजूबा था। उसने आज तक कोई इस प्रकार का करिश्मा नहीं देखा था।
“आप कैसे जानते हैं उसे?” लैरी माना नहीं था तो उसने प्रश्न पूछ लिया था।
“वो मेरा शिष्य है।” उत्तर आया था।
अब दंग हुआ खड़ा था लैरी। हिन्दू मुसलमान दुश्मन कहां थे – लैरी सोच में पड़ गया था।
“जालिम के बारे में आप क्या जानते हैं?” लैरी गुलाम अली के घर पहुंच कर पूछ रहा था।
गुलाम अली हैदराबाद की मानी हुई हस्तियों में से एक था। उसके रसूक हर जगह थे। वह बहुत पैसे वाला आदमी था। बड़े से बड़ा अफसर, नेता या समाज सेवी गुलाम अली से परिचित था। हैदराबाद में उसकी तूती बोलती थी। सामने खड़े एक अजनबी अमेरिकन को यों प्रश्न पूछते देख गुलाम अली चिढ़ गया था।
“कौन जालिम?” गुर्रा कर बोला था गुलाम अली। “मैं तो नहीं जानता!” वह साफ नाट गया था। “और तुम हो कौन?” उसने उसी नाराजगी के अंदाज में पूछा था।
“बाद में बताऊंगा। पहले यह फोटो देख लो! ये आदमी तुम्हारे से कनैक्ट है। अगर तुमने कुछ नहीं बका तो यू विल बी ऐनीमी ऑफ स्टेट।” अब लैरी भी नाराज था। “मीन्स ऐनीमी ऑफ अमेरिका।” उसने दोहराया था। “आप समझते हैं ना?”
गुलाम अली के पसीने छूट गए थे। उसे लगा था कि आज उस पर शनि देव चढ़ बैठे थे।
“आता जाता है मेरे पास।” गुलाम अली बोल पड़ा था।
“कहां रुकता है?”
“पता नहीं।”
“सब कुछ पता करो, हमें पूरी जानकारी चाहिए। हमारा आदमी आएगा, तुमने उसकी हर संभव मदद करनी है, मिस्टर गुलाम अली।”
“लेकिन .. लेकिन मैं ..”
“जेल चले जाओगे गुलाम अली।” लैरी ने धमकाया था उसे। “हलके में मत लेना।” लैरी की आवाज बुलंद थी।
लैरी शिकार को अधमरा छोड़ होटल लौट आया था।
पंडित परम ब्रह्म का लैरी को कहा मनोरथ सिद्ध हो गया था।
“फरजंद को कत्ल कर दिया सर।” माइक ने सर रॉजर्स को सूचित किया था। “और कमाल ये कि कातिल का कोई सुराग नहीं। सर, सात तालों के भीतर उसे कत्ल किया है। फरजंद को आभास था कि जालिम उसे किसी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ेगा। और वही हुआ।”
“कत्ल दिन में हुआ कि रात में?” सर रॉजर्स ने पूछा था।
“दिन दहाड़े मारा है उसे। बड़ी ही बेरहमी से टुकड़ों में काटा है। कातिल ने बड़ी ही तसल्ली से काम किया है जैसे उसे किसी का डर ही न हो।” माइक बताता रहा था।
फरजंद के कत्ल से जैसे एक प्रकाश पैदा हुआ था जिसने जालिम के सारे राज उजागर कर दिए थे। बेवकूफ है जालिम – सर रॉजर्स ने अनुमान लगाया था। उन्हें बेहद प्रसन्नता हुई थी फरजंद की मौत पर। शेर ने बकरे को खा कर अपनी मौत बुला ली थी। आज नहीं तो कल अमेरिका में बैठा जालिम पकड़ा जाएगा। कोई ठौर ठिकाना तो होगा ही और कोई न कोई तो अमेरिका में होगा ही जो ..
“खटका।” सायरन की तरह ये शब्द सर रॉजर्स के कानों में बजा था। अमेरिका के ऊपर मंडराता ये खतरा सर रॉजर्स को साफ-साफ दिखाई दे गया था।
“टैड!” सर रॉजर्स ने फौरन ही टैड को फोन मिलाया था। “बी केयरफुल!” उन्होंने सचेत किया था टैड को। “जालिम की प्रेजेंस इज कंफर्मड।” वह बता रहे थे। “वह अमेरिका में ही बैठा है कहीं।”
“कहां?” टैड ने चौंक कर पूछा था।
“है यहीं कहीं।” सर रॉजर्स ने प्रश्न बचाया था। “लेकिन आगाह कर दो अपनी सभी ऐजेंसियों को कि अपनी आंखें खुली रक्खें।”
“आइ विल डू दैट सर।” टैड ने बात मान ली थी।
अब माइक भी परेशान था। उसे एक बार तो लगा था जैसे फरजंद की मौत का सबब शायद कुछ और ही हो। रात दिन की खोज बीन के बाद भी कोई क्लू न मिला था। लगा था जैसे कहीं से हवा आई हो और फरजंद को मार कर भाग गई हो।
“सर, अपराधी ने कोई नामोनिशान छोड़ा ही नहीं।” माइक सर रॉजर्स को बताने लग रहा था। “ए केस ऑफ ..”
“नहीं माइक! जहां धुआं है वहां आग है।” सर रॉजर्स ने अपने अनुभव से बताया था। “जालिम का कोई राजा या रानी अमेरिका में बैठा जरूर है। उसकी यहां के चप्पे-चप्पे पर निगाह है। तभी तो फरजंद को देखते ही दबोच लिया।”
“लेकिन सर, हमने भी माफिया के हर गिरोह को खंगाल लिया है। लेकिन ..”
“गैट इनटू दि नर्व्स ऑफ सिविल सोसाइटी ऑफ अमेरिका।” सर रॉजर्स ने उपाय सुझाया था। “जालिम का वो राजा या रानी कहीं बहुत ऊंचे पर बैठा है।” सर रॉजर्स ने पते की बात बताई थी।
माइक के दिमाग की भी दिशा घूम गई थी।
बिना किसी आहट के माइक ने अमेरिका के व्यापारियों, पॉलिटीशियनों और समाज सेवियों की तलाशी लेना आरंभ कर दिया था। बड़े ही सिस्टमैटिक तरीके से माइक चुपचाप उनके पीछे आ कर जालिम के हर सुराग की तह तक पहुंच रहा था। लेकिन सफलता अभी भी बहुत दूर थी।
“अपराधी जो भी है – किराए का है।” माइक के दिमाग ने कहा था। “मोटा पैसा ले कर मारा है फरजंद को।” वह मान रहा था। “हम भी सुपारी देते हैं – मोटी सुपारी।” माइक का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। “कोई न कोई तो जरूर सामने आएगा।” माइक को विश्वास था। “उसके बाद तो डगर खुलेगी और ठिकाना मिलेगा।” वह तनिक हंसा था।
“सैवन मिलियन डॉलर्स!” माइक ने क्राइम जगत में मोटी डील भेजी थी। “सिर्फ और सिर्फ खबर लानी है।” माइक ने काम का खुलासा किया था।
गुड पर मक्खियां दौड़-दौड़ कर आ बैठी थीं। दावा था उनका कि चाहे पाताल में ही क्यों न हो खबर आएगी।
“सैवन मिलियन डॉलर्स ..?” आश्चर्य चकित सर रॉजर्स ने सवाल पूछ लिया था माइक को।
“देना कहां है सर।” माइक हंसा था। “एक बार समुंदर का पानी हिल जाए, फिर तो मैं खुद खोज लूंगा डूबा जहाज।” माइक की गारंटी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड