ग्वालियर नरेश महाराजा मान सिंह की मृत्यु की खबर एक खुश खबरी की तरह फिजा पर फैल गई थी और कयास लगाए जा रहे थे कि इस्लाम शाही का परचम अब पूरे हिन्दुस्तान पर फहराएगा!
सिकंदर लोधी एक खुश नसीब बादशाह था – ये मान लिया गया था! हिन्दुओं के साथ हुए जोर-जुल्म पर अब मिट्टी डाली जा रही थी और दिल्ली से बख्शी जाने वाली नियामतों पर हिन्दुओं का भी हक था – ये फरमान जारी किये जा रहे थे!
कहा जा रहा था कि बादशाह सिकंदर लोधी ने खजानों के मुंह खोल दिये हैं और ग्वालियर पर फतह होने के बाद मुंह मांगे इनाम इकरार अता होंगे, जागीरें मिलेंगी और सल्तनत में साझेदारी का भी उल्लेख था।
अचानक ही एक मोहक सपना लोगों के सामने आ कर खड़ा हो गया था!
“हेमू हैं आप?” हेमू ड्योढ़ी के अंदर पहुँचा था तो उसे पीर मुरीद – बख्शी-ए-मलिक ने बुला भेजा था। पीर मुरीद के जिम्मे पूरी लड़ाई का साज-सामान जुटाना था।
“जी, जनाब!” हेमू ने जुहार बजाते हुए उत्तर दिया था। “आप ने याद फरमाया था!” उसने कहा था।
“हॉं-हॉं!” पीर मुरीद ने निगाहें उठा कर हेमू को देखा था। वह दंग रह गये थे। इतना आकर्षक जवान जैसे वो पहली बार देख रहे थे। “आप ने मेरे साथ आना है।” पीर मुरीद बता रहे थे। “बादशाह चाहते हैं कि आप मेरे साथ रह कर पूरा काम समझ लें!” वो बता रहे थे। “मुश्किल कुछ नहीं है!” वो हंस रहे थे।
हेमू तनिक आश्वस्त हुआ था। उसे लगा था कि अभी तक तो सब शुभ-शुभ था। अब्दुल शायद कोई जासूस नहीं था – वह सोच रहा था।
“मढ़ी का काम खत्म करके फिर गोशाल के लिए निकलेंगे!” पीर मुरीद बता रहे थे। “पेशावर, लाहौर और कलकत्ता तक के लोग आये हैं!” उन्होंने सूचना दी थी। “शाही रकमें हैं! अता करके इन्हें जाना है!” उन्होंने सबब बताया था।
लोगों की गहमागहमी से ही हेमू ने अनुमान लगा लिया था कि सिकंदर लोधी के खजाने में खूब माल असबाब आ रहा था!
मढ़ी गोशाल जाने के लिए ड्योढ़ी से बाहर निकले थे तो मर्दाना सजा बजा उन्हें ले जाने के लिए खड़ा था। पीर मुरीद को देखते ही मर्दाना ने उन्हें सलाम किया था। हेमू के असमंजस का ठिकाना न था। फिर मर्दाना ने अपनी सूंड़ पर बिठा कर उन्हें ऊपर ओहदे में बिठा दिया था। और जब उसी तरह हेमू को उसने उठाया था तो हेमू आल्हादित हो उठा था। और जब मर्दाना ने सफर तय करना आरम्भ किया था तो हेमू को जन्नत जाते लगे थे वो लोग!
घोड़े और हाथी की सवारी का अंतर हेमू की समझ में आ गया था!
हेमू ने यों तो हाथियों को देखा था, उनपर सवारी भी की थी पर ये मर्दाना तो हाथी कम एक प्रशिक्षित सैनिक ज्यादा था। इसे तो पूरे अदब कायदे याद थे और ये शाही मेहमानों का आगत स्वागत करना भी जानता था! सवारियों की बात सुनता मर्दाना अच्छा बुरा, शुभ अशुभ और खुशी गम सब समझता था!
“आपको हाथियों के दल का संचालन सीखना है!” पीर मुरीद बताने लगे थे। “चूंकि आप सिकंदर शाह की खिदमत में हैं और वो हाथियों के दल बल के बिना नहीं निकलते अतः आपको ..” उसने हेमू को आंखों में देखा था।
“जी मैं .. मुझे तो ..!” हेमू ने घबराहट के साथ कहा था।
“सहज है, सब!” हंसते हुए कहा था पीर मुरीद ने। “सीख लोगे!” उसका कहना था। “पेट से सीखकर कौन आता है!” उनका मानना था। “मानोगे – जब मैं खिदमत में आया था तो कोरा घड़ा था! लेकिन जैसे-जैसे संकट आये समझ भी आती चली गई!” उन्होंने हेमू को फिर से देखा था। “काम ही सिखाता है आदमी को!”
“आप से ही सीखूंगा – सब!” हेमू विनम्रता पूर्वक बोला था। “आप तो ज्ञाता हैं .. सर्वज्ञ हैं .. और ..”
“वैसा कुछ नहीं है भाई!” पीर मुरीद भी पानी-पानी हो गये थे। हेमू की विनम्रता उन्हें बेहद पसंद आई थी। “मेरे पास जो भी इल्म है – तुम्हें दे दूंगा!” उन्होंने वायदा किया था। “आगे बढ़ते जाओगे तो सीखते भी चले जाओगे!” उन्होंने अंतिम वाक्य कहे थे जैसे!
गढ़ी गोशाल पहुँचते-पहुँचते शाम घिर आई थी!
मर्दाना पर बैठा हेमू अचानक गढ़ी गोशाल की रचना देखने लगा था। यमुना का विशाल विस्तार था – मीलों लम्बा, हरियाली से भरा और जहां-तहां हाथियों के झुंड मौज मस्ती करते दिखाई दे रहे थे। यमुना की जल धारा में डुबता सूरज जैसे उन्हें जाने से पहले सलाम कर रहा था – ऐसा लग रहा था! कहीं कहीं कुछ छोटी मोटी इमारतें बनी थीं। शायद ये माल असबाब रखने के स्थान थे। लोगों की चहल-पहल भी दिखाई दी थी। उन्हें उनके आगत-स्वागत में कर्मचारी इकट्ठे हुए दिखाई दिये थे। सब को पूर्व सूचना थी उनके आने की।
शाही मेहमानों की तरह उनका आदर सत्कार हुआ था। हेमू को पुराने लोगों ने नई निगाहों से देखा था। सब को खबर थी कि वो हिन्दू था और उसे बादशाह ने अपनी खिदमत में ले लिया था। वह एक अजूबा जैसा था उन सब के लिए!
उनके ठहरने के लिए भी शाही बंदोबस्त था!
हेमू से रहा न गया था। वह गढ़ी गोशाल को घूम-फिर कर देखना चाहता था। उसने जब पीर मुरीद से अर्ज की थी तो उन्होंने उसके साथ एक पुराने कर्मचारी मालू को भेज दिया था। मालू प्रसन्न था। मालू को भी पता था कि हेमू कौन था!
“अरे भाई!” हेमू अचानक चौंका था। “ये गढ़ .. ये किला सा कुछ .. क्या है?” उसने मालू से पूछा था।
यमुना के किनारे-किनारे कच्ची मिट्टी से बना एक ऊंचा, लम्बा विस्तार था – जो बहुत पुराना था और अवश्य ही कोई अर्थ रखता था – हेमू का अनुमान था!
“अरे साहब! यही तो गढ़ी है!” मालू बता रहा था। “भीमसेन यहीं तो हाथियों को आसमान में फेंकने का अभ्यास करते थे!” मालू खुश-खुश बता रहा था। “आपको नहीं पता?”
“नहीं! सुना तो है .. पर ..” हेमू लड़खड़ा रहा था।
“सब सच है, साहब!” मालू हंस रहा था। “यह पांडवों की जगह ही तो है!” उसने बताया था। “यह गढ़ी गोशाल, गोशाल गुरु ने स्थापित की थी और वही भीमसेन के गुरु थे!” मालू ने हेमू को सूचित किया था।
अचानक ही हेमू अपने इतिहास से जा मिला था!
हाथियों को आसमान में फेंकता भीमसेन हेमू को देख कर हंस रहा था। कह रहा था – हेमू! असंभव कुछ नहीं होता बेटे। ये तो तुम्हारा इरादा होता है – कि तुम क्या हासिल करना चाहते हो! करो अपना काम! मिलेगी तुम्हें कामयाबी – अवश्य मिलेगी!
“उधर यमुना तट पर चलें?” हेमू ने मालू से पूछा था।
“क्यों नहीं साहब!” मालू ने हॉं भरी थी। “नौकाएं भी हैं! कहेंगे तो विहार के लिए भी ले जाएगा कोई!” उसने सलाह दी थी।
और फिर हेमू नाव पर सवार हुआ कल्लू मल्लाह के साथ यमुना विहार के लिए निकल पड़ा था।
चांद आसमान पर उग आया था और अब यमुना के जल में डूबा-डूबा हेमू के साथ ठिठोलियां कर रहा था। हेमू को केसर याद हो आई थी। और जब केसर उसके पास चली आई थी तो उसे लगा था कि उनका हिन्दू राष्ट्र का पूरा हुआ स्वप्न भी उनके पास आ बैठा था!
“प्रसन्न है – सारी प्रजा!” केसर बता रही थी। “लोग अपने सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य के गुण गा रहे हैं!” वह हंस रही थी। “तुमने जो किया है वो .. सर्वोत्तम है साजन!” केसर ने उसे स्नेह सिक्त निगाहों से निहारा था।
“ये सब तुम्हारे सहयोग से संपन्न हुआ है, केसर!” हेमू ने प्यार से केसर को बांहों में सहेज लिया था। “वो देखो! पाजी चांद, तुम्हें निहारता ही जा रहा है .. अपलक!”
“क्यों ..?” केसर ने मुग्ध भाव से पूछा था।
“चुराएगा तुम्हें – ये पाजी – चोर है .. चतुर चोर और चालाकी से तुम्हें ..”
केसर ने अंजुरी में यमुना का जल भरकर चांद के मुंह पर उलीच दिया था! चांद का प्रतिबिंब यमुना की हिलोरों ने खा लिया था। लग रहा था जल तरंगें उस चित्त चोर की मिन्नतें कर रही थीं!
“अब ..?” केसर ने हेमू से प्रसन्न होकर प्रश्न पूछा था।
“खूब मिटा बदमाश!” हेमू ने केसर को आगोश में कसा था।
“लौट चलें साहब ..?” अचानक कल्लू मल्लाह ने हेमू को जगा सा दिया था। “बहुत रात ढल गई है!” उसने सूचना दी थी।
“हूँ-हूँ-हूँ!” हेमू कहां चाहता था कि अपने साम्राज्य को छोड़ वह लौटे?
लेकिन कल्लू मल्लाह ने नाव मोड़ दी थी!
मेजर कृपाल वर्मा