शेख शामी जैसे एक युग खुले आसमान के नीचे जीने के बाद दिल्ली लौट रहे थे।

भक्क से सिकंदर लोधी का दप-दप जलता चेहरा उन्हें याद हो आया था। उसकी ऑंखें प्रश्नों से लबालब भरी थीं1 तलाश थी उसे और एक चाहत थी उसके दिमाग में। पूछ रहा था – क्या लाए? कित्ता लाए? क्यों नहीं लाए? क्या दोगे? कैसे नहीं दोगे? और फिर जानलेवा उसके आदेश!

थोड़ी सी ऊक-चूक पर सब जाता रहता है – शेख शामी जानते थे!

“सब कुछ छिपाना होगा!” विदा करने जुटे हिन्दुओं के हुजूम को देखकर शेख शामी ने एक लम्बी उसांस ली थी। “जो मिला है – इसे तो गुप्त ही रखना होगा!” उनका निर्णय था। “हिन्दुओं का सौहार्द, हिन्दुओं का वैभव, हिन्दुओं का गौरव और उनका पराक्रम बेजोड़ थे! लुटेरा था सिकंदर लोधी। लूटना होगा इसे ..” उनके दिमाग में एक मरोड़ उठी थी।

शेख शामी की फिटन मिले माल-असबाव से नाक तक भरी थी। दिल्ली जाने वाले उन तीन प्राणियों के लिए बैठने तक का स्थान शेष न बचा था।

अशरफ बेगम का चेहरा गुलाबों सा खिला था!

उन्हें लगा था जैसे आज वो पहली बार अपने पीहर से विदा हो रही थीं। एक लम्बा अंतराल था जब शेख शामी उन्हें उठा लाए थे और उन्होंने अपनी मर्जी के खिलाफ इस्लाम कबूला था तथा उनसे निकाह किया था। उन्हें याद है कि किस तरह उनकी सावन-भादों बनी ऑंखें एक इंतजार में रोती रही थीं कि जरूर कोई आएगा .. कोई हिन्दू वीर आएगा और उन्हें उठा ले जाएगा फिर हिन्दू रीति रिवाज के साथ उन्हें वरेगा, अपनी प्राण प्रिया बनाएगा और रातों के उस उनींदा में उन्होंने न जाने कैसी-कैसी कल्पनाएं की थीं, न जाने कितनी बार उन्होंने प्रार्थनाएं की थीं, प्रभु को पुकारा था, हिन्दुओं को जगाने के प्रयत्न भी किये थे लेकिन एक अदद खामोशी के सिवा कुछ न लौटा था!

अन्नू से वो अशरफ बेगम बनीं और ..

“क्यों नहीं विरोध हुआ था?” आज भी अशरफ बेगम उसी प्रश्न को लेकर बैठी हैं। “क्यों जंग नहीं हुई?” वह स्वयं से पूछ रही हैं। “हिन्दू नपुंसक कब हुए?” वो भभक आई हैं। “हिन्दू औरतें इस्लाम के दिए घावों से लहू-लोहान हैं और हिन्दू ..?”

“बूआ!” अचानक अशरफ बेगम ने हेमू की आवाज सुनी है। उसने अपनी दृष्टि दौड़ाई है। खड़े हेमू को उसने देखा है। “मैं तुम्हें निराश न करूंगा!” कह रहा है हेमू, हंस रहा है वह। कैसा पवित्र नूर बैठा है उसके मूंह-माथे पर!

हेमू की मंत्र-पूत वाणी न जाने क्यों आज फिर अशरफ बेगम के मन-प्राण में घनघनाने लगती है। एक आशा के सूरज का जैसे उदय हो गया है .. जैसे हिन्दू नींद त्याग कर अब उठेंगे और ..

अचानक ही अशरफ बेगम को केसर याद हो आई थी!

“निरी महारानी है!” वह प्रसन्नता से भर आई हैं। “सिंहासन पर बैठी केसर हेमू के भी कंधे नाप देगी! वीरांगना है। उसकी ऑंखों में जैसे समुंदर समाए हैं!” अशरफ बेगम एक अनूठे उल्लास से भरती चली जा रही है। “दोनों दिल्ली के सम्राट-साम्राज्ञी ..?” एक अनोखी कल्पना कर बैठती हैं – अशरफ बेगम!

“आते जाते रहिए!” हेमू के पिता शेख शामी को फिर लौटने का निमंत्रण दे रहे हैं। “धन्य भाग जो आप पधारे!” उनके स्वर विनम्र हैं। “हम सब आपके आभारी हैं!” उनका कहना है।

न जाने क्यों शेख शामी की आवाजें सजल हो आती हैं!

हिन्दू मुसलमानों की दो अलग-अलग मानसिकताएं शेख शामी के सामने मुआयने के लिए आ खड़ी होती हैं। एक जमीन है तो दूसरी आसमान! तभी दोनों मिल नहीं पातीं? जहॉं हिन्दू संतोषी है वहीं मुसलमान भूखा है! सिकंदर लोधी का लूट-लूट कर भी पेट कहॉं भरा है? ना जाने और कितने जुल्म ढाएगा, और न जाने अभी क्या-क्या गुल खिलाएगा? हिन्दुस्तान का वैभव देख कर तो उसकी भूख और भी भड़क उठी है। अब वो चाहता है कि देश में लम्बे पैर फैलाए! वह चाहता है कि हिन्दुओं का सब कुछ लूटकर अपने नाम लिख ले!

लेकिन .. लेकिन क्या-क्या ले जाएगा – एक अकेला आदमी?

फिटन पर मौन बैठी नीलोफर के भीतर ज्वालामुखी जल रहे थे।

वह जो विदा में लेकर जा रही थी – उसकी खुशी उसे न थी पर जो पीछे छोड़कर जा रही थी उसका गम उसे खाए जा रहा था। एक रण उठ बैठा था उसके जहन में। पीछे छूट गया कादिर उसे बड़ी बेरहमी से काटता-बॉंटता चला जा रहा था। नीलोफर अब कादिर को समझने लगी थी। उसके इरादों और इशारों को समझती थी। वह जानती थी कि क्यों कादिर उन सबके साथ दिल्ली नहीं लौट रहा था।

“जरूर-जरूर कादिर केसर से मिलेगा!” नीलोफर का अंतःकरण उसे बता रहा था। “और केसर को देखने के बाद कादिर पागल कुत्ते की तरह आचरण करेगा!” एक टीस उठकर नीलोफर का कलेजा चीर गई थी। “मैं तो कहीं की न रहूँगी?” नीलोफर ने स्वीकारा था। “कादिर दिल्ली लौटने के बाद शायद अपना नहीं बेगाना बन जाएगा!” नीलोफर अब मरने-मरने को थी। “कित्ता बुरा है ये इस्लाम और कित्ते पागल हैं ये मुसलमान? इनका औरतों से पेट ही नहीं भरता!” उसकी ऑंखों में आंसू लटक आए थे। “क्या कदर रह जाएगी उसकी?” प्रश्न था नीलोफर के सामने। “एक बांदी .. नौकर लौंडी या वैसा ही कुछ मिलेगा उसे जहॉं वह ..” भयानक विचार थे।

“कादिर केसर को देखने के बाद तो कुछ भी कर सकता है!” नीलोफर को पूर्ण विश्वास था।

अचानक ही नीलोफर के जहन में हेमू का चेहरा कौंध गया था। एक बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व था हेमू का। कितना सुघड़, सौम्य और चरित्रवान नौजवान था – वह। केसर के साथ खड़ा कितना फबता था! लगता था – दोनों राजा रानी हों! बेहद ही आकर्षक लगते थे दोनों साथ-साथ खड़े। हो सकते हैं दिल्ली के शासक दोनों, एक विचार था जो नीलोफर के दिमाग में कौंध गया था।

“केसर बुरी कहॉं है?” उसका मन बता रहा था। “उसके साथ संबंध रक्खे जा सकते हैं!” नीलोफर का निर्णय था। “कितने धनवान हैं उसके पीहर वाले!” एक विचार था जो नीलोफर के लिए नया था। “और उसका पीहर ..?” पहली बार नीलोफर ने प्रश्न चिन्ह लगाया था – अपनों पर। “लूट खसोट कर ही धन दौलत इकट्ठी कर ली है। वैसे तो हैं ..” न जाने क्यों नीलोफर आज मुसलमानों के प्रति एक हिकारत से भर आई थी।

दिल्ली पहुँचने तक भी लम्बी यात्रा के दौरान शेख शामी एक नई जोड़-तोड़ से लबालब भरे थे। उनकी ऑंखों के सामने भी हिन्दुओं का वैभव, हिन्दुओं का रहन-सहन, आचार-विचार और उनके युवक, जांबाज लोग उन्हें याद आ रहे थे। उनका मन था कि वो भी हिन्दुओं को अपनाएं उनसे सहायता और सहारे से सल्तनत कायम करें – अपनी सल्तनत!

शेख शामी की ऑंखों के सामने कादिर और हेमू की जोड़ी बार-बार उदय होकर भारत विजय के लिए निकल पड़ी थी!

हेमू होनहार था – यह शेख शामी जानते थे। कादिर और हेमू को लेकर उन्होंने कई बार एक संभावना को सच होते देखा था। उनकी ऑंखों में सत्ता हथियाने का विचार कई बार कौंधा था। कई बार उन्होंने नाप-तौल कर देखा था – लेकिन विचार आया-गया हो गया था। उनका नया विचार था कि सिकंदर लोधी को हेमू और कादिर की जोड़ी तोहफे के तौर पर दे दें! लेकिन आज उनका अंतर बेईमान हो उठा था!

“हेमू की ससुराल वाले भी तो गिनती में आते हैं?” शेख शामी के दिमाग ने उन्हें एक नई सूचना दी थी। “धन-जन का खजाना है!” उन्होंने कूता था। “बात बनी तो बनती ही चली जाएगी!” उन्हें विश्वास होने लगा था।

कादिर की ससुराल वालों से भी शेख शामी को उम्मीद थी। बिहार में जाकर हेमू और कादिर उन के देखे स्वप्न को साकार करने के लिए प्रयत्न कर सकते थे। सिकंदर लोधी की ऑंखों से ओझल रहकर ही ..

विचार लम्बा होता ही चला गया था ..

लेकिन दिल्ली आ गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading