व्यापारी की बेटी
गम था राजन को , पारुल के चले जाने का !
खाली-खली दिन ,खाली हुई शराब की बोतल की तरह उसे बुला रहा था. कह रहा था – रुक मत,राजन ! पी पी कर जी !! पीता ही रह …पीता चला जा …! सडकों पर पी कर नांच …नंगा नांच ….! पारुल का नाम ले ले कर नांच …पारुल को पुकार …उसे आवाज़ दे कर देख ! बुला उसे ….आग्रह कर आने के ….लौट कर आने को कह, उस से ….! कहता ही रह ….जब तक कि पारुल ….
“ब्लडी ….वूमन …!!” आज राजन ने पहली बार किसी औरत को गाली दी है ! गाली भी कर्नल जेम्स के स्टाइल में दी है . कर्नल जेम्स औरतों की इस तरह की अदाओं से चिढ़ता था…..औरतों को मक्कार कहता था. ‘पारुल …’ राजन कुछ अपशब्द कहने को होता है पर रुक जाता है .
“नहीं …नहीं ….! पारुल ….इज …ए ग्रेट ग्रेस ….!!” वह प्रतक्ष में स्वीकारता है. “आज तक …इतनी हसीन औरत …उस ने नहीं देखी ….! आज तक …इतनी गरम ….इतनी नरम ….इतनी सौम्य ….इतनी सभ्य ….और इतनी चतुर औरत उस ने कहीं नहीं देखी … ” राजन महसूसता है.
“चली क्यों गई ….?” राजन स्वयं से प्रश्न पूछता है.
अचानक राजन का दिमाग गरम होने लगता है. उसे पारुल पर रोष हो आता है. वह पारुल से नाराज़ हो जाना चाहता है. वह पारुल को धमकाना चाहता है …सज़ा देना चाहता है …अपना हक़ जताना चाहता है ! लेकिन असहाय-सा इधर-उधर खाली हो गए वक्त को निहारता है.
“कुछ नहीं …माँगा …! कुछ भी लेकर नहीं गई ….!! फिर ….?” राजन पारुल को समझने का प्रयत्न करता है. “उसे दिया क्या , मैंने ….?” वह पूछ बैठा है.
“तुम्हारे पास है क्या देने के लिए , राजन…?” पारुल की निगाहें पूछ रही है. “सब सावित्री का दिया है ….” वह हंसती है. “कोरे कंगाल हो ….!” पारुल की हंसी उस के कान फोड़ने लगाती है.
सच में …वह तो नंगे पैर …पैदल चल कर …कलकत्ता आया था…….!!
था तो सब सावित्री का ही दिया – राजन महसूसता है. सावित्री ने उसे सब दिया. बिना किसी शर्त के एक साम्राज्य सौंप दिया …और अपने आप को भी सावित्री ने राजन के लिए खर्चा, दिन-रात ! राजन के लिए मन-प्राण से जीती – सावित्री, सती -नारी थी ! राजन बहका. कर्नल जेम्स के सहज सहारे ने उसे शराब पीना और पत्ते खेलना सिखाया. उसे अजीव-सा आनंद आने लगा. धन-माया तो उस से लिपटे ही ….पर ये शराब और पत्ते भी चिपक गए …!!
रात गारत कर लौटता तो पाता कि ….सावित्री उस के इंतज़ार में जाग रही थी…! उसे पता चलता कि …सावित्री ने खाना तक नहीं खाया था …! सावित्री की निगाहें मात्र मूंक आग्रह करतीं – लौट आओ , राजन ! पर वह न सुनता. कर्नल जेम्स की दलीलें सावित्री के आग्रहों को खारिज कर देतीं. ‘मक्कार होती हैं, औरतें …’ कर्नल जेम्स कहते और तब राजन सावित्री के उन अचल आग्रहों को नज़रंदाज़ कर देता …भूल ही जाता …और फिर से महफिल में चला जाता !
जम कर जुआ खेलता था , राजन ! उसे पैसे हारने का कभी गम होता ही न था ….! वह स्वयं कभी हारना न चाहता था …! वह स्वयं कभी ….
“आज …हार गए , तुम …..राजन !!” वह अपनी ही आवाज़ सुनता है. “जूता मार कर …गई है …., पारुल !!”
और शराब की बोतल अचानक पारुल का रूप धर …राजन के सामने आ खड़ी होती है !
“पी-ओ…!” ये आग्रह पारुल की ओर से आता है.
“पेग बना कर …स्वयं दो , न ….” राजन मांग करता है. “तब पीऊंगा ….तब …तुम्हें ….जीऊंगा …तब ….में ….तुम्हें …..”
न उत्तर लौटा ….और न आग्रह ! एक खामोशी -सी चारों ओर से आ ..राजन को घेर लेती है ….!!
पारुल के लौट जाने का गम ….राजन पर नए सिरे से तारी होने लगा था ….!!
राजन का मन होता है कि वह अभी गाडी उठाए ….और काम-कोटि का रास्ता गह ले …! पारुल के साथ-साथ वह भी काम-कोटि पहुँच जाए. पर उस की हिम्मत ज़बाब दे जाती है. पारुल को वह क्या देकर भूला है ….जो इतना अधिकार जता रहा है …? पारुल उसे क्यों जानेगी ….क्यों पहचानेगी ….? पारुल …….
क्रोध , हाँ ….क्रोध ! पहली बार राजन को क्रोध आने लगा है. उस का तन-मन आग की तरह सुलगने लगता है. वह चाहता है कि …अपने क्रोध की अग्नि में समूंचे संसार को भष्म कर दे ….जला डाले …..सब कुछ ! अगर उसे पारुल नहीं मिलती तो ….वह और कुछ लेगा भी नहीं….! सब लौटा देगा , सावित्री को. उतार देगा – उस के सारे अहसान…! सौंप देगा उसे ….उसे …स्टड-फार्म , ट्रेनिंग स्कूल …और …अपूर्व गेस्ट हाउस…! क्या करेगा , वह ….? लौट जाएगा …अपने गाँव …..नंगे पैर …पैदल ….!!
“लोग तुम्हें …पागल कहेंगे, राजन !” फिर से वह अपनी ही आवाज़ सुनता है. “गाँव के लोग इतने भी पागल नहीं ….जो ….?”
“मैं – पागल हूँ ….!” राजन ऊँची आवाज़ में कहता है. “पारुल ने मुझे …पागल बना दिया है …., मैं मानता हूँ ….! मैं ….मानता हूँ ….मैं जानता हूँ …कि मैं …पारुल के बिना जी नहीं पाऊंगा ….! मैं …कहता हूँ …कि …”
“पारुल ने इंतज़ार क्यों नहीं किया ….., उस का …… ?” वह फिर से प्रश्न करता है. “क्या …..कहीं ….सावित्री ने उसे ….पढ़ा तो नहीं दिया ….? क्या …कहीं सावित्री ने ……बता तो नहीं दिया पारुल को ….कि …….?” राजन को अचानक आज सावित्री पर शक होता है.
राजन का दिमाग घूमता है. वह सावित्री की ओर मुड़ता है. उसे बेहद क्रोध चढ़ा है. वह गाडी उठा कर घर की ओर मुड़ता है. वह सावित्री से मिलने के लिए बे-ताब है. उस से झगडा करने पर आमादा है . अगर सावित्री ने आज उस का अनादर किया तो ….वह हमेशा-हमेशा के लिए ….रूठ जाएगा ….!
चला जाएगा …वह ….कहीं भी …..किधर भी …..!!
कार में ब्रेक लगाने के अंदाज़ से ही दरबान ने जान लिया था कि ….आज मालिक का मूड ठीक नहीं था.
“सलाम…, साव …!” उस ने उछल कर एक जोर का सैलूट दागा था. फुर्ती से कार का दरबाजा खोल उस ने स्वागत में कहा था, “पा-धा-रे.!”
“चालाक है …!” राजन ने सोचा. “चोट बचा गया ….!!” वह मन में मुस्कराया था. “चतुर नौकर …बेहूदा मालिक से ….मार नहीं खाता !” उस के विवेक ने बताया था.
वह दंनाता-फन्नाता …अब हवेली की सीढियां चढ़ रहा था. न जाने कहाँ से …और कैसे …गज़ब का क्रोध उस पर तारी था. वह विध्वंश पर उतर आना चाहता था. वह चाहता था कि आज सब कुछ ….जलाता ….खपाता ….और खात्मा करता चले …और कुछ भी शेष …न रहने दे ….!
“उच्च-च …..!!” राजन उछल पड़ा था. दीवार के साथ सजे फूल-दान से उस का पैर टकरा गया था. जोर की ठोकर लगी थी- पीड़ा के पारावार …उस के समूचे शरीर को …एंठ कर धर गए थे. उस ने पलट कर ज़मीन पर लेटे फूल-दान को घूरा था. “डैम- …यू ….!” राजन कर्नल जेम्स की तरह गरजा था. फिर उस ने फूल-दान में दूसरे पैर की ठोकर मारी थी. फूल-दान चोट खाए सैनिक की तरह आँगन में बिखर गया था.
सावित्री चौंकी थी. न जाने कैसे उसे आभास था कि आज ….कुछ उल्टा-पुल्टा होने वाला था.
“क्या हुआ ….?” सावित्री के मधुर स्वर खनके थे.
“तुम्हारी ….ये ….ये …बेबकूफी….!” राजन कहते-कहते रुक गया था.
“रास्ता देख कर चला करो …….!” सावित्री ने कहा था.
“अँधा हो गया हूँ ….!” राजन का उत्तर था. “पागल हो गया हूँ …..!” वह गरजा था. “अभी तो ….और भी टक्करें होंगी …..देखती जाओ …!!” उस ने चेतावनी दी थी.
“हुआ क्या ….?” सावित्री ने राजन की आँखों में देखा था. “क्या हुआ , राजन ….?” उस ने फिर से स्नेह-सिक्त आवाज़ में पूछा था.
क्यों बौखलाए हो ….?”
“तुमने …उसे निकाल दिया …..न ….?” राजन ने शिकायत की थी.
“किसे ….?”
“पारुल ….को ….!!” राजन सावित्री के सामने तन कर खड़ा था. “मैं नहीं मानता कि …..बिना तुम्हारे ………” वह रुका था.
सावित्री की समझ में सब समा गया था.
एक विचित्र ख़ुशी का उदगार सावित्री के मन-प्राण में उगा था ! एक प्रसन्नता थी – जिस की कि उसे शादियों से दरकार थी. एक प्रतिकार था – जिसे किसी ने चुकाना था . सावित्य्री को इंतज़ार था – और आज वह घट गया था …! राजन के मुंह पर जूता मार कर जाती पारुल को …सावित्री ने नमस्कार किया था. ‘पारुल जैसी ही कामयाब …होती है ….!’, सावित्री ने सोचा था.’स्वार्थी पुरुष …..पतिब्रता स्त्री का आदर नहीं करते ….!’ उस ने अंतिम निष्कर्ष निकाला था.
“तुमने क्यों नहीं रोका ….?” सावित्री ने प्रश्न किया था. “तुम तो …….”
राजन चुप था. राजन निरुत्तर था. राजन नाराज़ था. वह तो जानता तक न था कि …पारुल चली क्यों गई ….? एक संवाद तक नहीं …बोली थी ….कोई शिकायत नहीं की …..कोई मांग भी सामने नहीं रखी …..! बस, चली गई ……
“तुम थे , कहाँ …..?” सावित्री ने फिर से प्रश्न दागा था.
क्या करत राजन, अब …! कैसे बताता सावित्री को कि ……वह समूची रात पत्ते खेलता रहा था …..पीता रहा था …..पारुल का ही नाम ले-लेकर चाल पर चाल चली …और …..
“कोई बात नहीं !” सावित्री तनिक मुस्कराई थी. “संभव को बुलाती हूँ …!” उस ने उपाय सामने रखा था. “कहीं …नहीं जाएगी ….!” सावित्री का वायदा था.
राजन पर चढ़ा बुखार तनिक उतरा था. वह थोडा-सा ढीला हुआ था. एक आभार की किरण उस की आँखों में लौटी थी. सावित्री के प्रति वह सहज होने लगा था. वह जानता था …कि …उस का जो भी अस्तित्व था – वह सावित्री की ही नज़र से था ! और …अगर वह …आज जिन्दा भी था ….तो ….
“भूख लगी होगी …..?” सावित्री ने पूछा था.
“हाँ ….!” राजन ने स्वीकार था. “कुच्छ …नहीं ….खाया ….!!” उस ने शिकायत की थी.
“कचौड़ियाँ हैं …….!” सावित्री हंसी थी. “तुम्हें पसंद हैं, न ….? इस लिए मैं …..ने …..”
राजन ने भर-पेट कचौड़ियाँ खाईं …थीं ! अब उसे नीद आने लगी थी.
“कंचन ….!” सावित्री ने आवाज़ दी थी. “बेड रूम …खोल दे ……!” उस ने आदेश दिया था.
बहुत दिनों के बाद आज राजन ….अपने बेड -रूम में सोया था – गहरी नीद …!!
हालांकि राजन बेड-रूम में सोया था ….पर सावित्री आज निपट अकेली थी ….!! राजन आज अपना अस्तित्व खो बैठा था….! शराबी- ज्वारी पुरुष …..बे -पैंदी का लोटा जैसा लगता है …..जिसे लुढ़कते देर नहीं लगती ! लेकिन सावित्री जैसी संस्कारी नारी के लिए ….पुरुष ….पति-पुरुष का परित्याग करना भी तो आसान काम नहीं होता ……! अब न राजन को छोड़ते बन रहा था …..न संभाल ने की समझ आ रही थी !
“व्यापारी की बेटी हो …..!” सावित्री बाबू जी के कहे वचन सुन रही थी. “घाटे में से मुनाफा ढूंढ लेना ही तो व्यापार है, बेटी !!” वह सावित्री को समझा रहे थे.
“पति-प्रेम के बाद …..इश्वर -प्रेम ही श्रेष्ठ होता है, सावित्री !” माँ के बोल थे. “साधना सच्ची हो तो ….सब कुछ हासिल होता है ….!”
सावित्री की समझ में जीवन का तोड़-निचोड़ आ गया था ….लेकिन राजन इस के माया-जाल में …..बुरी तरह से फँस गया था !! ख़ास कर ….पारुल को लेकर तो …..शायद पागल ही हो गया था …..!!!