गतांक से आगे :-

भाग -६०

कैंनवरा की तीसरी मंजिल पर कौने के कैबिन में आ बैठे थे , दोनों !

कैबिन में व्हिस्की की भीनी सुगंध भरी थी . चन्दन बोस ने कैनबरा के चिकिन -टिक्का खा लिए थे ! लेकिन क्षुधा-शान्ति हुई कब थी …? न जाने आज क्यों उसे …भिन्न प्रकार की भूख लगी थी . न जाने क्यों आज पारुल का विचार अकेला नहीं छोड़ रहा था ! पारुल के साथ लिया शाही इककीस -कोर्स का डिनर उसे बार-बार याद आ रहा था ! और उसे याद आ रहा था कि …पारुल ने किस तरह समर्पण किया था …किस तरह बे-हिचक …उसे वर लिया था ….लम्हों में ….

“पहले भोजन करते हैं !” चन्दन बोस ने गोलू के सामने प्रस्ताव रखा था. वह भोजन करते करते सारी स्कीम तैयार कर लेना चाहता था.

“जैसा मुनासिब समझें !” गोलू का उत्तर था. “लेकिन .. मै तो तड़ाक-फडाक सौदा करने के मूड में आया था, हुजुर !”

“बात इतनी आसान है नहीं, गोलू !” चन्दन बोस का स्वर गंभीर था. “काम ज्यादा है. काम बहुत पेचीदा है .. और काम ..”

“ऐसा क्या काम आन पड़ा ..!” गोलू ने मुड कर चन्दन बोस के चेहरे को गौर से देखा था.

उसे लगा था कि चन्दन बोस में एक बदलाव तो आया था. आज के चन्दन बोस का चेहरा ही अलग था. उसकी आँखों की चमक बता रही थी कि कोई बेजोड़ सफलता उसके हात लगी है ! गोलू भी संभल गया था.

“पहली बात – तुम्हारा सौदा ..!” चन्दन बोस बड़े इत्मिनान से बोला था. “पता दो ..! बोलो ..?” उसने मांग की थी.

“जनाब .. वो मोरिस वाला ऑफिस है ! आपके लिए .. ठिकाने का है. सारी न्यूज़ एजेंसियां आसपास हैं ! कुल .. तीन करोड़ का ! लेकिन पैसा कैश ..!”

“जास्ती है ..!” चन्दन बोस ने तुरुप लगाई थी. “ठीक ठीक बोलो तो हाँ कहूँ ..!”

“चलो – आपके लिए – ढाई हो गया !” गोलू ने तोड़ किया था. “खली पड़ा है. कोई लफड़ा नहीं. चाबी मेरे पास है ! पैसा .. कब ..?”

“दो दिन की मोहलत तो दोगे ..?”

“दी ..!” गोलू हंसा था. “आगे ..?”

“घर दो ..!” चन्दन बोस उसी आत्मविश्वास के साथ बोला था. “उधर जुहू के आस पास .. ठीक सा कोई बंगला हो ..!”

“है .. ! है…. बंगला, है ! तैयार है !” उछला था गोलू. “करूँ .. सौदा ..?” उसने पूछा था. “उसी पोपट लाल का है ! मर गया ..! खल्लास…..!! लड़कों में छिड़ी है – जंग ! कोई नहीं ! मै सब को झाड लूँगा .” गोलू खुश था. उसने तुरंत ही फ़ोन मिलाया था. “सोनू ..?” गोलू ने नाम लेकर पोपट के बड़े बेटे को बुलाया था. “बोल कित्ता लेगा ..?” उसने मांग की थी. “पार्टी कैश की है ..! ठीक बोलेगा तो .. काम बनेगा….! वर्ना .. लेगा कोई नहीं .. तेरे इस खंडहर को …!”

“क्यों ..?” बिगड़ा था सोनू.

“अबे ..! पोपट लाल की दुर्गन्ध को निकालने में मनो चूना और मिटटी लगेगा ..” गोलू दिलचस्प लहजे में बोल रहा था. “जमींन के सिवा और है क्या …..? जो लेगा .. उसे तो पहले सफाई करनी होगी .. पूरा टूटेगा .. तभी तो ..”

“चल, चल ….! बोल कित्ता दिलाएगा ….?” सोनू अब सहज था.

“यही कोई दो के आस-पास ….!” हंसा था गोलू.

“नहीं, नहीं ! छोड़ …..!! तेरे बस का नहीं गोलू ……!”

“क्या ..? मेरे बस का नहीं …? बे, पार्टी इंडिया लेवल की है ! वो तो मान नहीं रहा था .. मेने ही किसी तरह मनाया है ! बोल – तीन दिला दूँ .. कैश……!”

“पांच करा दे, यार !” सोनू ने मांग की थी.

चन्दन बोस ने हरी झंडी दे दी थी !

“चल पांच ! सौदा .. सोमवार को सुबह ! चाबी मेरे पास सुबह ही भेज देना !” उसने बात साफ़ कर दी थी. “और बोलो सर ..?” गोलू विजयी हुए पहलवान की तरह बोला था.

“और ..!” चन्दन बोस संभला था. “जरा संभल कर बैठना ! बात भी दूसरे लहजे में होगी !” चन्दन बोस ने उसे चेतावनी दी थी.

फिर एक बार गोलू ने चन्दन बोस को घूरा था. उसे शक हुआ था कि कहीं चन्दन बोस मजाक तो नहीं कर रहा था ..?

“देख, गोलू !” चन्दन बोस ने बात सामने कर दी थी. “त्रिभुवन पैलेस की बात है ! काम-कोटि रियासत का बेशकीमती महल है !” चन्दन ने गोलू को देखा था. गोलू के होश उड़े थे. “खरीदने वाला .. स्पेन का है .. मेरा यार है ! पैसे वाला है ..! पांच सितारा होटल बनाएगा पेलेस का ! हिन्दुस्तान आ रहा है – स्पेन छोड़ कर ! अब बोल ..? सौदा कैसे होगा ..? कैश .. या…. लीज ?”

“लीज ..!!” गोलू तुरंत बोला था. “पैसा एश क्रो मनी पहले .. कित्ता बोलू ..?”

“कित्ता ..?” चन्दन बोस ने प्रतिप्रश्न किया था. वह भी अनुमान न लगा पा रहा था कि क्या मांगता….?

“एक सौ …..करोड़ बोल दूँ ..?” गोलू ने पूछा था. “एक सौ …..करोड़ बाद में .. रेंट…. और ..”

“जास्ती तो नहीं है ..?” चन्दन बोस तनिक सकपका गया था.

“अरे ..! जास्ती ..? कौड़ी के भाव दे रहे हैं ..! छोड़ो मेरे ऊपर…..!! मिला पार्टी से…….!!!” गोलू अब जंग के लिए तैयार था.

चन्दन ने हिम्मत के साथ भोग भगवानी को फ़ोन मिला लिया था. वह जानता था कि भोग अपने ऑफिस में ही होगा !

“तुम्हारा ही इन्तजार था ! लॉग .. लाइफ ….!!” भोग भगवानी चहका था! “हाँ तो ….. ! हुआ कुछ काम ..?” उसने सीधा ही प्रश्न पूछ लिया था.

“लो बात करो !” चन्दन बोस ने सहजता से कहा था. “महारानी जी का स्टेट का आदमी है. भरोसे का है ..!” चन्दन बोस ने गोलू को फ़ोन पकड़ा दिया था.

“भगवानी साहब – सौदा लीज़ का ही होगा ….! क्यों कि बिल्डिंग स्टेट की है .. और इसकी मोंन्युमेंटल वैल्यू तो अकूत है ….! लीज़ पर हम आप को अरेंजमेंट कर लेंगे ….!” गोलू ने बड़े ही मज़े स्टाइल में कहा था.

“क्या कुछ शर्तें होंगी ..?” भगवानी सीधा मुद्दे पर आ गया था.

“सिंपल….! आपको एक सौ करोड़- एश क्रो मनी, स्टेट के बैंक में भेजना होगा. फिर एग्रीमेंट हो जायेगा. लीज़ नाइंटी नाइन इयर्स की होगी. एक सौ करोड़ और आपको पेमेंट करना होगा ! और सालाना रेंट पांच लाख होगा !” गोलू ने पूरा सौदा खोल दिया था. “ये .. जो रु-रियायत हो रही है, भगवानी साहब .. इसमें चन्दन सर की वजह मानिए !” हंस गया था, गोलू.

एक छोटी चुप्पी के बाद भोग भगवानी ने सौदा डन कर दिया था !

“चन्दन ..! तुम मुझे स्टेट का अकाउंट नम्बर दे देना ! सुबह ग्यारह बजे तक……!!” उसने मांग की थी. “बाकी .. आई ऍम ग्रेटफुल…..!” उसने आभार व्यक्त किया था और फ़ोन काट दिया था.

“साला ..! अपुन भी हुआ .. करोडपति ..!!” गोलू कूदा- कूदा डोल रहा था. “ओह ! मेरे जिगरी .. चन्दन बोस !” उसने चन्दन को बाँहों में भर लिया था. “मै जानता था कि ये आदमी काम का है .. कभी जरुर काम आएगा ….!”

दोनों ने एक दूसरे को आभार पूर्वक देखा था.

रात के दो बजे थे. चन्दन ने वेटर को बुलाया था. ‘कमरा है’ उसने सीधा प्रश्न पूछा था. “खोल दो ..!” चन्दन ने आदेश दिया था.

“जी साब ! हाँ साब ..! सुबह ६ बजे तक का है !” वेटर गड़बड़ा कर बोला था.

“खोल दो ..!” चन्दन का आदेश था. “फिर कब ..?” उसने पूछा था.

“११ बजे ..!”

“चलेगा ..!!” वह हंसा था. “११ बजे के बाद .. परमानेंट कर देना ….?” उसने मांग बताते हुए कहा था.

चन्दन बोस को आज नीद का नाम न था. अकेला कमरे में वह हुए सौदे के बारे सोच रहा था. न जाने कैसे .. उसे यह सब करने की प्रेरणा मिली थी. और वो जैसे कोई गेम खेल रहा था – सब कर गया था. वेटर ने ६ बजे के बजाय उसे पौने ६ बजे ही उठा दिया था. चन्दन बोस केतकी की गाड़ी लेकर जुहू बीच पर चला आया था.

आसमान और समुन्दर – उसके दोनों मित्रों ने मिल कर उसका स्वागत किया था …..!

“पहली बार जंग जीत कर आ रहे हो ..?” दोनों ने मुस्कुरा कर एक साथ पूछा था.

“अभी बाकी है जंग, मित्रों …..!” चन्दन संभल कर बोला था. “थोडा और ठहरो …..! तब पूछना ..” उसने ऑंखें नचाते हुए पारुल को फ़ोन मिलाया था – बेधड़क……!!

“सो रही थीं ..?” चन्दन ने पूछा था.

“नहीं …! तुम्हारे ही बारे सोच रही थी.” पारुल ने मधुर स्वर में कहा था. “नीद तो .. तुम ले उड़े ..!” उसने उलाहना दिया था.

“तुम्हारा संसार .. बसा दिया है, पारुल ….!” प्रसन्नता पूर्वक बोल रहा था – चन्दन ! “प्रेम-नगर की रचना अभी-अभी करके लौटा हूँ …! अनिकेत हूँ .. ! पर अब .. घर बस जायेगा तुम्हारे साथ ..!” उसने लाढ से कहा था. “सपने से भी ज्यादा सुन्दर मेरी पारुल ..”

“काम की बात तो भूल ही गए..?” पारुल ने टोका था.

“अरे हाँ ….! पहले काम की बात …!! स्टेट अकाउंट का नम्बर दो मुझे ! पैलेस का सौदा हो गया ….!!”

“सच्च ..?”

“सच्च …!! एक सौ करोड़ एश क्रो .. एक सौ करोड़ लीज़ पर .. और पांच लाख माहवारी रेंट…..!”

“ग्रेट ..!!” पारुल उछल पड़ी थी. “यू आर … ग्रेट ..!!”

“और भी तो सुनो ! नई दुनिया का ऑफिस खरीद लिया .. और घर भी खरीद लिया ..!”

“ओह, नो !!”

“यस, डार्लिंग ..! तुम्हारे साथ मिल कर ‘नई दुनिया’ भी बसा ली …!! अब – मै और तुम ..!!” चन्दन बोस कहता ही जा रहा था.

ग्यारह बज गए थे – लेकिन अभी तक वो दोनों बातों में उलझे थे …..!!

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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