इतिहास का एक पन्ना !
“थम ! कौन आता है …?” जोमदार आवाज में मुझे अचानक किसी ने ललकारा था।
मैं अपने पैरों पर उचक कर आ खड़ा हुआ था। मेरे सामने अचानक आ खड़ी हुई मौत मुझ पर भागने के जुर्म में हंस रही थी। मैं सुध-बुध खो बैठा था। मैं जानता था कि गोली मेरे ठीक सीने के सामने थी। बस, घोडा दबने तक की देर थी।
“पास वर्ड ….?” उसी आवाज ने फिर से प्रश्न दागा था।
मौत से भी बड़ी एक और मुशीबत ने मुझे आ घेरा था। ‘पास वर्ड ‘ तो मुझे याद ही नहीं था। आज का ‘पास वर्ड ‘ विजई होने की ख़ुशी में न जाने कहाँ खो गया था। थोड़ा बहुत जो होश लौटा था – वह भी अब निराशा के अथाह सागर में गरूव हो गया था। अब प्राण बचने नहीं थे, मैं समझ गया था।
क्या करता ..? बिल्ली के सामने बैठे कबूतर-सा मैं हिल-डुल भी नहीं सकता था। तनिक-सी चूक पर जान जानी थी। गोली और मुझ में ज्यादा फासला था कहाँ …?
“म …म …मैं …ओ – पी …!” हिम्मत कर मैंने चंद शब्द अपने रुंध गए गले के पार ठेले थे। उन पलों में एक दीनता उभर आई थी …! रोष था …भय था ! कारण – मैं मरना नहीं चाहता था। ख़ास कर आज ….अब – जब दुश्मन का प्रत्याक्रमण आ रहा था। हमारी हुई जीत – हार में बदलने वाली थी। हमारी जाने जानेवाली थीं …और हम जुए के उल्टे पड़े पासे पर सब हार जाने वाले थे।
“ओ …पी , साव …?” उस दनदनाती आवाज़ ने पूछा था।
“हाँ …,हाँ ! हाँ। ..!! ओ …पी …, वर्मा …!!” मैंने प्रतिउत्तर में कहा था।
एक आशा किरण ने अचानक मेरे पैर चूमे थे। उस आती आवाज़ में एक आदर था …अपनापन था …एक स्वीकार था ….और था – अभय-दान ! शायद उस ललकारते सैनिक ने ताड़ लिया था कि भाग कर पोस्ट पर आया वो ‘मैं ‘ ही था।
“काउंटर अटैक ….!” मैं फिर से बड़बड़ाया था। “दुश्मन का हमला आ रहा है …., हम पर …!” मैंने उसे बताया था।
“आओ, दोस्त ! सब ठीक है !!” उस ने रिवाज़ के अनुसार मेरा स्वागत किया था।
“सब ठीक नहीं है, दोस्त ! सब गड़बड़ है !! मुझे टॉवर पर जाना है …..फायर खोलना है …! जल्द से जल्द …मुझे ….”
“जाओ,साव !”
“कैसे ? मुझे तो रास्ता ही पता नहीं है !”
“गाईड भेजता है, साव !” उस का उत्तर तुरंत आया था।
और तुरंत ही एक सैनिक मुझे दौड़ाता हुआ मेरे ओ पी टॉवर की और लिए जा रहा था।
हुआ यों था कि पिछली समूची रात लगा कर हमने ‘पंछी ‘ पोस्ट को हासिल किया था। खूब दम -ख़म लगा था ….जाने गईं थीं …मुठभेड़ की लड़ाई में दुश्मन ने जान की बाज़ी लगाईं थी ….और जान दे बैठा था ! हमारी बेजोड़ इस जीत का गुणगान हुआ था …और आज सुबह नौ बजे जनरल सुहाग ‘पंछी ‘ पोस्ट पर हाज़िर थे। हुज्जूम लगा था – उच्च अधिकारियों का। मैं भी उन की अगवानी में जुटा – उन्हें अपने युद्ध के कारनामे बता रहा था। और तभी दुश्मन के तोपखाने का जोमदार फायर पोस्ट पर आया था। हतप्रभ हम सभी जान बचाने भागे थे।
साथ के बंकर में गद्द-पद्द कूदते जनरल सुहाग ,कमांडर कोमल …कर्नल भट्ट और मेरा ऑपरेटर नसीम – सब थे ! मैं खड़ा रहा था। मुझे लगा था कि – न तो उस बंकर में स्थान शेष था …और न ही मेरे कूदने से कोई हल निकलना था। मज़बूरी ये थी कि मेरा ऑपरेटर नसीम वायरलेस सेट समेत ..बंकर के सब से नीचे जा दबा था। मैं क्या करता – बिना वायरलेस सेट के …?
तब मैं भागा था …!! लइयन-पइयन मैं अब टॉवर की सीध में भागा जा रहा था। पोस्ट के संतरी ने तब ललकारा था , मुझे !
अब आगे चलते है !!
दिन के नौ बजे यों …प्रत्याक्रमण आना – एक असंभव घटना थी। ये युद्ध के नियमों के सर्वथा विपरीत था। हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि …दुश्मन अब – इस कु -समय में हम पर हमला बोल देगा ! मोद मनाते हम …अचानक सकते में आ गए थे। दुश्मन ने हमें गर्दन से आ पकड़ा था। ..सरेआम …इन ब्रॉड डे …लाइट …!!
हांफता -काँपता मैं ….अपनी ओ पी टॉवर पर आ टंगा था। मेरी समझ में दुश्मन की पूरी -की-पूरी योजना समा गई थी। तोपखाने के उन के जबर्दस्त फायर के बाद हम पर हमला होना था। भारी तादात में दुश्मन के सैनिक हम पर हावी हो जाने थे। और …अब हमारी हार निश्चित ही थी।
मैंने अपने इष्ट का स्मरण किया था तो मुझे उसी ने बताया था ,”बहत्तर तोपों के तुम संचालक हो, मिस्टर ! तुम ऑथोराइज़्ड ओ पी हो ,मिस्टर वर्मा !! इतना बल तो कभी बजरंगबलि के पास ही था ! वक्त आ गया है, वत्स। दिखाओ अपने करतब …?
हाँ , वक्त कम था। मैंने एक ही साँस में पूरे डिवीज़न की बहत्तर तोपों का फायर एक साथ दुश्मन के कहर ढाते तोपखाने के ऊपर पेल दिया ! फायर आया। तोपें गरजीं ..! धरती हिली !! दुश्मन दहलाया …दशों दिशाएं एक साथ जाग्रत हो गईं …! एक शंख-नांद गूंजा था ….एक घोषणा जैसी हुई थी …, “हम बे-खबर नहीं हैं, प्यारे ! आ , अब हो जा -हलाक !!”
मैं देख रहा था – दुश्मन का हौसला टूटा था। लेकिन आक्रमण तो वह कर चुका था। ये हज़ारों में हुई एक भूल थी ! मैंने हिम्मत बटोरी थी। बिना किसी परिणाम की परवाह किए मैंने अपनी बहत्तर तोपों का फायर अब ‘पंछी ‘ पोस्ट के ऊपर गिराया था। दुश्मन चौड़े में था। हमारे सैनिक बंकरों में थे। कित्ता बड़ा सुयोग था …? मैं टॉवर पर बैठा इस विहंगम दृश्य को बड़ी ही बारीकी से निहार रहा था।
हमलावर अचानक ही हमारे आते तोपखाने के फायर के नीचे दब गया था …टूट गया था …! अब वह मर रहा था …भाग रहा था …बे-दम था …भ्रमित था …और हौसला गवां बैठा था।
सच मानिए , मित्रो ! ये दृश्य मैं आज तक भूला नहीं हूँ !!
न जाने कैसे इतिहास का एक पन्ना मेरी आँखों के सामने आ कर बिछ गया था ..? भारत पर हमला करता गौरी …ग़ज़नवी , तैमूर, चंगेज़खाँ, बाबर और दिल्ली में कत्त्लेआम कराता – नादिरशाह , सब एक साथ मुझे याद आ गए थे ! और जैसे मैं औरंगजेब से आ भिड़ा था और उस का उन्मादी आक्रमण रोक कर खड़ा हो गया था ! लहू-लुहान हुई ‘पंछी ‘ पोस्ट मुझे भारत की पवित्र हो गई धरती लगी थी और दुश्मनों से प्रतिकार चुकाता मैं – अपना ही कोई पूर्वज था – जिस ने आज मौका पाते ही दुश्मनों को बर्बाद कर दिया था …!
मौका माकूल पा मैंने अपनी तोपों का फायर बंद कर दिया था।
शेष बचे दुश्मन पर हमारे जां -बाज़ सैनिक बाज़ों की तरह टूटे थे। लपक-लपक कर संगीनों से दुश्मन का पेट फाड़ते …कुंदा मार-मार कर मुंह तोड़ते …पटका-पछाडी में दुश्मन को हलाक करते – और ….और …हाँ, गाली-गलौज का दौर भी आरंभ था। ‘तेरी तो ….!’
खूब ठनी थी -उस दिन …इन ..ब्रांड ..डे …लाइट …!!
और मैं अब टॉवर पर ऊपर बैठा-बैठ मज़े ले रहा था – तालियां बज़ा रहा था …कह रहा था …, ‘मार,मार …, दे साले में …! छोड़ना मत इसे , मंजीत ! कूट दे …छेत दे ….! माँ-म्मा ! ‘पंछी ‘ पोस्ट लेने आये थे …!
“कमाल कर दिया , आपने तो साव ….!” वही संतरी , मंगल था जिस ने मुझे ललकारा था !
“कमाल तो तुम्हारा ही रहा , मंगल !” मैंने हंस कर कहा था। “हम सब को तुम्हारी तरह ही ललकारना सीखना होगा। सीमा-रेखा पार करनेवाले ….हर जर्रे को , ‘थम ! कौन आता है .?’ का प्रश्न पूछना होगा ! ‘पास वर्ड ..?’ भी हमें विदेशियों से मांगना होगा !
घुसपैठ नहीं रोकेंगे तो ….देश हार जाएंगे , मंगल !!
श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!