टीस

स्वतंत्र भारत में हुई भोर उग आई थी. आँखें झिपझिपा कर विगत की अनुभूतियों को टटोला तो पाया – शरीर पर गुलामी के दिए कोड़ों के घाव अभी तक सूखे न थे ! फिर निगाहें पसार कर मातृ -भूमि को निहारा। आहात थी -अभी तक ! शरीर पर कोढ़ भी उग आया था. गरीब थी.

हे, इस्वर ये सब कैसे हुआ  …?

हम कायर तो कभी से न थे  …!!

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