गतांक से आगे :-
भाग – ७९
संभव आज हारी बाज़ी फिरसे खेलना चाहता था….!!
एक लम्बे अन्तराल के बाद आज पारुल उसके पास लौटी थी. न जाने कितने प्रयत्न उसने पारुल को पाने के लिए किये थे – पर हर बार बाजी किसी और ने ही जीत ली थी. ठगा सा वह अपनी किस्मत को कोसता रह गया था !
लेकिन संभव ने हार आज तक नहीं मानी थी !!
हर पल .. हर क्षण .. उसने पारुल के लौट आने की आस में अपने साम्राज्य को सींचा था. बढाया था .. और वैभव समेटा था ! ख्याति प्राप्त की थी .. ताकि जब पारुल अंततः आये तो .. तो कम से कम वह काम-कोटि से कई गुना आगे हो .. कई गुना ..
“भनक नहीं लगने दी .. और इतना विशाल वैभव ..?” चकित थी पारुल. “मै .. मै बहुत आल्हादित हूँ .. आज .. संभव कि तुम .. इतने समर्थ हो कि ..”
“तुम्हारे अजस्र प्रेम से ये सब संभव हुआ है !”
“क्या ..?” तनिक चौंकी थी पारुल “म ..मै .. तो ..”
“नहीं ! मै ही तुम्हारा .. अमर प्रेमी हूँ .. था और रहूँगा….!” संभव का स्वर बेहद सयंत था. “सच मानना, पारो ! मै नहीं भूला तुम्हे ! एक पल के लिए भी .. तुम मेरे मन से .. उतरी नहीं ! न जाने क्यों मै ..
“ओह .. स म्भव !!” पारुल द्रवित थी. “कितनी – अभागी हूँ .. मै ..”
“अभी. नहीं …!” हंसा था संभव. “पहले तुम्हे .. लिपट गए .. इन साँपों से तो मुक्त करा लूँ ..?” उसने चाहत पूर्ण निगाहों से पारुल को देखा था. “चलो ! मीटिंग है. देखते हैं – क्या रंग आता है !” संभव ने पारुल से आग्रह किया था.
कांफ्रेंस रूम में राजन और रोबी पहले से बैठे थे. पारुल और संभव के आगमन पर दोनो ने उठकर उनका स्वागत किया था. बैठने के फ़ौरन बाद ही सामने दीवार पर लगी विशाल स्क्रीन उद्भाषित हो उठी थी. हिन्द महासागर – उस स्क्रीन पर हिलोरें लेता नजर आया था. एक अत्यंत विशाल जलराशि हिल-हिल कर उन सबका स्वागत कर रही थी.
“ये है .. सेंट लुइ !” रोबी ने प्वाइंटर घुमा कर बताया था. “एरिया छह किलोमीटर का है पर हमने अगला बारह किलोमीटर और मांग लिया है. तभी हमारा ‘प्यार घर आबे’ समां सकेगा ! हमारी ये योजना .. विश्व की पहली योजना होगी .. जहाँ ..”
“विश्व का हर स्वर्ग .. हर स्त्री पुरुष के लिए उसकी शर्तों पर मोहिया होगा !” संभव ने बात पूरी की थी.
“और आदमी चाहे जैसे भटक सकेगा .. भूल सकेगा .. खो जायेगा .. पा जायेगा .. और एक पूर्ण तृप्ति पी कर घर जायेगा !” हँसते हुए राजन ने अपने मूल सिद्धांत की पुष्टि की थी. “संभव, भाई ! मेरी तमन्ना ..”
“पूरी होगी, मित्र …!” संभव ने आश्वासन दिया था.
“यहाँ का इलाका बड़ा ही शांत .. खूबसूरत .. और आलिशान है ..! विश्व भर की चिड़ियाँ यहाँ आकर आशियाना बनती हैं .. अंडे देती हैं .. और ..
“फिर तो देखना पड़ेगा ..?” पारुल ने विहंस कर कहा था.
संभव ने पारुल को देखा था. कुछ अनुमान लगाते हुए उसने फिर राजन की ओर निगाह घुमाई थी.
“अभी तो राजन साहब .. रोबी के साथ इंस्पेक्शन पर जायेंगे !” संभव बता रहा था. “मै चाहता हूँ .. एक बार प्रोजेक्ट फाइनल करने से पहले इनकी मुंडी हिल जाये !” हंसा था संभव. “छह विश्व के बड़े बेंकों से पैसा ले रहे हैं !” यह राजन के लिए चेतावनी थी. “हमे देख लेना होगा कि पूंजी लौटेगी कैसे ..?”
“ये मेरे ऊपर छोड़ दो .. संभव, सर !” राजन ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था.
“सब आपके ऊपर ही चलेगा राजन, भाई !” संभव भी खुश था. “सेंट लुइ वैसे एक तरह से यूरोप – अमेरिका – ऑस्ट्रेलिया और यहाँ तक कि रूस .. और भारत के लिए बड़ा ही सुविधाजनक स्थान है ! लोग पहुंचेंगे .. मेरा अनुमान है …!”
“खूब भीड़ भरेगी .. आप चिंता न करें !” राजन का अडिग निर्णय था.
रोबी अपनी सीट से उठा था. उसने तीन मोटी-मोटी फइलें उठाकर राजन के सामने रख दीं थीं. राजन ने प्रश्नवाचक निगाहों से रोबी को घूरा था.
“आप पार्टनर हैं ! कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कर दीजिये !” रोबी ने आग्रह किया था.
राजन ने मुड कर संभव को घूरा था तो संभव ने प्रसन्न होकर कहा था – भाई, मालिक हो ! पैसे ले रहे हो तो हस्ताक्षर तो करने ही होंगे….!
“आज दुनिया में ‘प्यार घर आबे’ से अगर कोई टक्कर ले रहा है .. तो वो है .. टक्कर !” रोबी ने हंस कर बताया था. “लक्षद्वीप मै शूटिंग होने वाली है.” उसने मुड कर स्क्रीन पर लक्ष्यद्वीप के चित्र उजागर किये थे. “कहते हैं .. लाखों द्वीपों का समूह है .. लक्ष्यद्वीप ! बहुत ही खुबसूरत जगह है !” वह मुस्कुराया था. “हमारी कंपनी को ही कॉन्ट्रैक्ट मिला है .. टक्कर की शूटिंग के लिए ! अंडर वाटर फाइट्स अरेंज करनी हैं – और आइलैंड वार-सीनस संयोजित करने हैं !” वह बता रहा था. “टू प्रिंसेस ..” उसने आँखें चौड़ाते हुए सूचना दी थी. “यस, यस …! टू प्रिंसेस .. शूटिंग के लिए ..”
“मेरी बेटियां हैं ..!!” पारुल से रुका न गया था – तो बोली थी. “चौबीस को जा रही हैं, लेकिन .. अकेली ..!” पारुल ने चिंता व्यक्त की थी. “बोट पर कुल छह आदमी होंगे .. और .. वो दोनों ..!” पारुल ने मुड कर राजन को देखा था.
“मै .. साथ चला जाऊंगा !” राजन ने तपाक से कहा था. “यहाँ अभी कुछ नहीं हो रहा .. मै .. ”
“वही ठहर जाना ! मै भी पहुँच जाउंगी …!” पारुल ने बताया था. “अगर हो सका तो रुकुंगी .. और .. अगर मिला तो एक द्वीप ले लूँगी ..”
राजन का मन बल्लियों कूद रहा था….!!
“विचार बुरा नहीं है !” संभव ने समर्थन किया था. “भारत सरकार चाह रही है कि वहां लोग जाकर बसें ! अभी तो सब सस्ता पट जायेगा …!”
राजन ने झटपट तीनो फाइलों पर हस्ताक्षर किये थे और रोबी के साथ सेंट लुइ के दौरे पर निकल गया था. आज उसके पैरों में पंख लग गए थे. आज बड़े दिनों के बाद उसकी पुराणी प्रसन्नता लौटी थी. पारुल के साथ .. लक्षद्वीप मै .. सहवास .. उसका मन बार-बार दुहरा रहा था और .. और ..
“हाँ, हाँ ..! बिट्टा .. मै बोल रही हूँ.” पारुल शब्बो से फोन पर बातें कर रही थी. “हाँ, हाँ ! मुझे पता है. तुम लोग जा रही हो ! और सुनो ! मेरा आदमी आ रहा है. साथ जायेगा. मै भी शायद आऊ…! वह मेरा बंदोबस्त करेगा .. तुम लोग बोदर मत करना, अच्छा…!”
“ओह, माँ…! यू आर सिम्पली ग्रेट…!” शब्बो ख़ुशी से उछल रही थी. “डू कम .. माँ …!!” लब्बो बीच में बोली थी.
संभव बड़े ही शांत भाव से पारुल को देख रहा था !
“कुछ सौगातें तो भेजनी होंगी ..?” पारुल ने संभव से पूछा था. “चलो ! राजन के आने से पहले बाजार भी हो आते है !”
“विचार ठीक है !” संभव ने हामी भरी थी और दोनों बाजार के लिए रवाना हो गए थे.
राजन ‘प्यार-घर आबे’ के दौरे से लौटा था. वह बेहद प्रसन्न था. उसे पूरी प्रोजेक्ट एक साकार हुआ स्वप्न जैसा लगी थी. उसे लगा था जैसे – उसकी किस्मत उसे फिर से उसका खोया सौभाग्य लौटा रही थी. मन ही मन उसने फिर कभी ताश के पत्तों को न छूने तक की कसम उठाई थी…!
“कैसा रहा सब ..?” संभव ने पूछा था.
“सिर्फ एक पॉइंट है, पार्टनर !” राजन ने हँसते हुए कहा था. “सेंट लुइ अब फ़्रांस के अधीन है ! और हमे चाहिए कि हम स्वतंत्र रहे ! कोई दखल नहीं .. किसी का भी दखल नहीं ..!” राजन का सुझाव था.
“अभी अप्लाई कर देते हैं !” संभव ने स्वीकार किया था.
राजन ने मुड कर पास खड़ी पारुल को देखा था ….!
“ये, लो …! बेटियों के लिए सौगातें हैं !” पारुल बता रही थी. “और ये .. तुम्हारे लिए सौगात !” उसने हँसते हुए राजन को सौगात दी थी.
“क्या ..! अरे, रे ..! ये .. गोल्ड वाच ..?” राजन उछला था. “बाई गॉड .. ! वन प्वाइंट…. फाइव डॉलर .. !!” वह हैरान था. “इत्ती कीमती सौगात ..”
“तुम भी तो अनमोल हो .. पार्टनर….!” संभव ने मजाक किया था.
“पहन कर दिखाओ !” पारुल ने आग्रह किया था. “जंच गए .. न ..!!” पारुल ने प्रशंशा की थी.
और राजन फ्लाइट से कोचीन पहुंचा था. न जाने कितनी बार उसने गोल्ड वाच को चूमा था और पारुल का आभार व्यक्त किया था. और जब वह बेटियों से मिला था तो दंग रह गया था ! क्या सौन्दर्य था .. क्या रंग-रूप था .. ? अरे वाह .. ! वाह, रे…! विधाता .. ये क्या रचना की थी ? पारुल तो निरा कूड़ा थी – उसने भी चन्दन की तरह सोचा था.
“हेल्लो .. अंकल !” छोटी ने उसे छू कर कहा था. “माँ कब आएँगी ?” उसका प्रश्न था.
क्या उत्तर देता राजन ! वह तो मुग्ध था और उन दोनों राजकुमारियों को ही देख रहा था .. उनके बोल सुन रहा था .. खिलखिलाहटों में खो गया था .. और भूल ही गया था कि ‘प्यार घर आबे’ कोई प्रोजेक्ट भी थी ..!
टक्कर के साथ राजन की यह पहली टक्कर थी……!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !