by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
पटरी पर निष्क्रिय बैठा आनंद आज ऊंघ न रहा था। “जरूर-जरूर राम लाल ने झुग्गी में अकेली बर्फी के साथ बुरा काम किया होगा?” आनंद कयास लड़ा रहा था। “ये आदमी सीधा नहीं है।” उसने मन में सोचा था। “बर्फी ..?” “आनंद बाबू!” कल्लू ने...
by Major Krapal Verma | Oct 4, 2025 | स्वामी अनेकानंद
“लो! तिकड़म भिड़ा कर मनी ऑडर किया है।” कल्लू ने मनी ऑडर की रसीद राम लाल को थमाई है। “पोस्ट मास्टर जानकार है वरना शाम हो जाती।” वह पसीना पोंछ रहा है। “और वो भी दो।” राम लाल ने कल्लू को घूरा है। “वो – पते की पर्ची!”...
by Major Krapal Verma | Oct 1, 2025 | स्वामी अनेकानंद
फुरसत में आते ही वह झूठे गिलास धोने लगी थी। मैं उसे टकटकी लगा कर देख रहा था। उसे भी भान था कि मेरा ध्यान उसी पर लगा था। लेकिन वो बेखबर बनने का नाटक कर रही थी। मैंने पाया था कि वह सुंदर थी .. बहुत ही सुंदर थी। यह मेरे जीवन का पहला अवसर था जब मैंने किसी औरत के बारे...
by Major Krapal Verma | Sep 29, 2025 | स्वामी अनेकानंद
आनंद आज गुरु से नाखुश था। पेड़ों और पौधों के लाख मनाने पर भी उसने किसी से बात न की थी। उसे मां बहुत याद आ रही थी। छोटे भाई का चेहरा बार-बार सामने आता और पूछता – कैसे हो भाई साहब? और मां की याचक आंखें ..? आनंद ने आलीशान बंगले को आंखें भर-भर कर देखा था। और न जाने...
by Major Krapal Verma | Sep 26, 2025 | स्वामी अनेकानंद
“कहां ..?” आनंद ने भी पूछ ही लिया था। “बाटा चौक।” राम लाल ने प्रसन्न हो कर बताया था। “एक तरह से बियाबान ही था पर मेरी सूझबूझ ने कहा था – ये तुम्हारी मक्का मदीना है। यहीं बैठ जाओ। खोल दो अपना होटल।” “खोल दिया होटल?”...