by Major Krapal Verma | Sep 29, 2025 | स्वामी अनेकानंद
आनंद आज गुरु से नाखुश था। पेड़ों और पौधों के लाख मनाने पर भी उसने किसी से बात न की थी। उसे मां बहुत याद आ रही थी। छोटे भाई का चेहरा बार-बार सामने आता और पूछता – कैसे हो भाई साहब? और मां की याचक आंखें ..? आनंद ने आलीशान बंगले को आंखें भर-भर कर देखा था। और न जाने...
by Major Krapal Verma | Sep 26, 2025 | स्वामी अनेकानंद
“कहां ..?” आनंद ने भी पूछ ही लिया था। “बाटा चौक।” राम लाल ने प्रसन्न हो कर बताया था। “एक तरह से बियाबान ही था पर मेरी सूझबूझ ने कहा था – ये तुम्हारी मक्का मदीना है। यहीं बैठ जाओ। खोल दो अपना होटल।” “खोल दिया होटल?”...
by Major Krapal Verma | Sep 24, 2025 | स्वामी अनेकानंद
“आइए मेरे बाबू जी! आइए मेरे कदरदान .. मेहरबान ..” मैं एक अधेड़ उम्र का बच्चा चौराहे पर मजमा लगा रहा होता था। राम लाल बताने लगा था। उसे आज भी अपनी आंखों के सामने अंधकार घिरता लग रहा था। “वो मैं था आनंद बाबू। मैं राम लाल गुरु जी के जाने के बाद अनाथ हुआ...
by Major Krapal Verma | Sep 23, 2025 | स्वामी अनेकानंद
आनंद अलसुबह जग कर बगीचे में टहलता-टहलता फूलों से शिकायत कर रहा था कि वो अपनी मुस्कुराहटें उसके साथ नहीं बांटते थे। “आइए आनंद बाबू।” अचानक राम लाल ने उसे पुकारा था। आनंद चौंका था। उसने निगाहें पसार कर देखा था। राम लाल लॉन में बैठा था। उसके लिए भी खाली...
by Major Krapal Verma | Sep 22, 2025 | स्वामी अनेकानंद
गहरी नींद लेकर आनंद अलसुबह ही जग गया था। उसने महसूसा था कि इतनी गहरी नींद वो शायद ही आज तक सोया हो। क्यों था ऐसा? अचानक उसे उत्तर मिला था – एक चाय वाला। उसकी कोठी। उसकी आमदनी। भीतर का डर – भूखों मरने का भय और पूरी उम्र बेकार बनकर सड़कों पर घूमने की जहालत...