by Major Krapal Verma | Oct 10, 2025 | स्वामी अनेकानंद
अंग्रेजी अखबार से सर मारना था या कि दीवारों में सर दे-दे कर मारना था – आनंद के लिए बराबर ही था। छोटा-छोटा तो जब पढ़ता वह तब मोटा-मोटा पढ़ा जाता। फिर भी वह हर कोशिश कर रहा था। कुछ अक्षर उसने जबरदस्ती उखाड़ लिए थे और उन्हें जोर-जोर से बोल कर देख रहा था। उसे कहीं...
by Major Krapal Verma | Oct 9, 2025 | स्वामी अनेकानंद
अंग्रेजी से मगज मारते-मारते आनंद पागल हो गया था तभी कल्लू उसे लेने पहुंच गया था। “आओ भइया।” कल्लू हंस रहा था। “कैसा पढ़ा ..?” कल्लू ने उसे हुलम कर पूछा था। “ये ससुरी अंग्रेजी भी क्या अनोखी कला है।” उसने हवा में हाथ फेंके थे।...
by Major Krapal Verma | Oct 9, 2025 | स्वामी अनेकानंद
कल्लू ने आनंद को फ्रांसिस के हवाले किया था और चला आया था। चकित भ्रमित सा आनंद कई पलों तक खड़ा-खड़ा उस मुन्ना कोचिंग सेंटर को देखता रहा था। वहां सब कुछ था। उस घूमती फिरती चहल पहल में आनंद ने महसूसा था कि वहां वही लोग थे जो अंग्रेजी पढ़ने आए थे और वो लोग थे जो उन्हें...
by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
राम लाल की आंखों में विजय गर्व सा कुछ तैर आया था। “बर्फी चुप थी। बर्फी हिली भी नहीं थी। पर मैं मान गया था कि वो मेरे आने के इंतजार में थी। तब मैंने अपने उस पर धरे हाथ से उसे अपनी ओर समेटा था और उसने भी करवट बदल कर मुझे मौका मोहिया कराया था।” “फिर...
by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
मात्र अंग्रेजी सीखने का विचार ही आनंद के शरीर को कीड़ों की तरह काटता बकोटता रहा था। उसे रह-रह कर याद आता रहा था कि किस तरह वह अंग्रेजी का घोर और कट्टर विरोधी था। और किस तरह वह इसे गुलामी की जंजीर बताता था। उसका मानना था कि जब तक हम अंग्रेजी बोलते रहेंगे – गुलाम...