आजमगढ़ आते ही रमेश दत्त ने मुसाफिर को बुला भेजा था!
आज न जाने कैसे वह अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। उसे तो अब हर हाल में नेहा की दरकार थी। नेहा को भूल जाना किसी तरह भी मुमकिन न हो पा रहा था। उसके हाव भाव और बोल चाल से ही मुमताज और नूर जहॉं ने अंदाजा लगा लिया था कि कासिम कहीं से घाव खा कर लौटा था। और फिर उन्हें भी समझते देर न लगी थी कि सारा सबब नेहा को लेकर ही था!
“पिंजड़ा तोड़ ..?” नूर जहां ने कासिम के सामने आते ही तीर छोड़ा था। “भाग गई बुलबुल?” उसने पूछ ही लिया था।
कासिम आग बबूला हो उठा था। उसका मन तो हुआ था कि नूर जहां के गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दे। लेकिन उसे डर था कि बच्चे ..
“जा बैठी दूसरी डाल पर ..?” इस बार मुमताज का प्रश्न था। “बेवकूफ तो हम ही निकलीं जो इस इस दलदल में आ फँसीं!” मुमताज ने उलाहना दिया था। “नेहा न हाथ देगी!” वह हंसी थी। “देख लेना सइंया तुम्हें ये सीधा कर देगी!” चेतावनी थी मुमताज की।
कासिम कई पलों तक अपनी इन दानों बेगमों को देखता ही रहा था!
“तुम भी उड़ जाओ ..?” कासिम कुढ़ कर बोला था। “भाग जाओ अपने अपने पीहर!” उसने ताना मारा था। “देखते हैं ..”
“इस रेवड़ को साथ लेकर कहां जाएं?” नूर जहां ने बच्चों की फौज को कोसा था।
“अब तो तुम्हारी छाती पर ही मूंग दलेंगे सइंया!” मुमताज ने चुहल की थी। “भागो तुम – हम नहीं टलेंगे! हा हा हा ..!” हंसी थी मुमताज। “लद गये वो जमाने ..”
तभी मुसाफिर आन पहुंचा था!
मुसाफिर ने होती जंग से ही ताड़ लिया था कि कोई संगीन मामला था। उसकी समझ में सीधा समा गया था कि आज कासिम के साथ उसकी भी झड़प होगी!
“तुम जैसे नमक हराम आदमी की मुझे जरूरत नहीं है, मुसाफिर!” कासिम ने सीधा संवाद बोला था। “मैं तुम्हें बेदखल कर रहा हूँ!” उसने ऐलान किया था। “तुम ..”
“कौन सा पहाड़ टूटा है?” मुसाफिर ने सामने आ कर पूछा था।
“नेहा कहां है ..?” कासिम ने भी सीधा सवाल किया था।
गाज गिरी थी मुसाफिर के सर पर। वह तो नेहा को बहुत हल्के में ले रहा था। वह कासिम को खूब जानता था। उसकी जिंदगी में औरतें आनी और जानी थीं – यह मुसाफिर कब से जानता था! लेकिन ये नेहा ..
“यू नो आई लव नेहा!” कासिम का स्वर गुरु गंभीर था। “यू नो आई कांट लिव विदाउट हर?” उसने अब मुसाफिर को आंखों में घूरा था।
ये क्या कह रहा था कासिम आज – मुसाफिर की समझ में न आ रहा था। वह तो जानता था कि कासिम के यहां ‘लव’ एक लॉलीपॉप है जिसे वो नई नई लड़कियों को बांटता रहता है और उन्हें बिगाड़ उजाड़ कर भगाता रहता है! इस्तेमाल भी कर लेता है कभी कभी और फिर तो ..
“हुआ क्या है ..?” मुसाफिर ने गंभीरता से पूछा था।
“आताल खोदो पाताल खोदो – मुझे नेहा ला दो!” कासिम ने हुक्म दागा था। “वरना तो ..”
“सारे किये एहसान भूल जाओगे?” मुसाफिर ने भी प्रश्न किया था। “वरना तो भूल ही जाओगे कि मुसाफिर ने जान पर खेलकर तुम्हें न जाने कितनी कितनी मुसीबतों से उबारा है और न जाने किन किन से तुम्हारे लिए एहसान खरीदे हैं?”
“आखिरी बार मुसाफिर!” कासिम ने भीख जैसी मांगी थी। “फॉर गॉड सेक!”
और मुसाफिर ने कासिम की मांग मान ली थी।
चिराग जल उठे थे कासिम की आंखों के सामने! उजागर हो आई थी नेहा – और उसने झपट कर आगोश में ले लिया था – अपनी जाने तमन्ना को!
“अब नहीं जीऊंगा बिन तुम्हारे, नेहा!” वह सुबकने लगा था। “सहा नहीं जाता तुम्हारा वियोग! अकेले अकेले तो दुनिया में आग लगाने का मन करता है! और तुम्हारे साथ् आ जाने पर मेरी बाछें खिल जाती हैं!”
“झूठ बोलते हो!” नेहा कह रही थी। “फरेबी हो! धोखेबाज हो तुम कासिम, मैं जानती हूँ कि तुम ..”
“वो कासिम तुम्हारा नहीं है नेहा!” वह बताने लगा था। “तुम्हारा कासिम तो तुम्हारा गुलाम है .. तुम्हारी अदाकारी का गुलाम .. तुम्हारे हुस्न का गुलाम .. तुम्हारे ..”
कासिम की बाँहों में नेहा का मोम सा शरीर पिघलने लगा था!
“किसने भेजे हैं गुलदस्ते?” नेहा ने सामने दो गुलदस्ते लिए खड़े वेटर को घुड़क कर पूछा था।
“नवाब छतारी ने भेजे हैं मेम साहब!” वेटर बता रहा था। “शाम को पार्टी है! आप दोनों को बुलाया है!” वेटर बता रहा था। “बड़े दिलदार हैं! जब भी यहां आते हैं बस पार्टियां .. महफिलें मुशायरे और सैर सपाटे!” वह हंसा था। “पानी की तरह बहता है – पैसा! आप लोग एक बार मिलेंगे तो उनके मुरीद हो जाएंगे!” कहकर वेटर लौट गया था।
“सनकी होगा!” विक्रांत ने नेहा के आते ही कहा था।
“चल पड़ेंगे शाम को! हमारा क्या लगता है?” नेहा का सुझाव था। “ये लोग बड़े काम के होते हैं बाबू!” वह बताती रही थी।
‘मां के आंसू’ की शूटिंग में आज उन दोनों ने खूब आंसू बहाए थे। बहुत भावुक दृश्य थे। मां को मारने दौड़ पड़े रोमी को रोकने भागती गौरी गिर पड़ती है तो रोमी रुक जाता है। और फिर गौरी सुबकने लगती है। मनाती है रोमी को रो रो कर और अंत में पहाड़ पिघलता है – तो रोमी थी रो पड़ता है और मां उन दोनों को रोते देख कर प्रसन्न होती है ..
एक हैक्टिक शिड्यूल के बाद दोनों थकान से चकनाचूर हुए होटल लौटे थे तो वेटर ने उन्हें पार्टी में आने की याद दिलाई थी!
नेहा का मन खिल उठा था। उसकी थकान जाती रही थी। लेकिन विक्रांत अनमना सा पार्टी में जाने के लिए तैयार हुआ था। नेहा अपने हुस्न पर भस्म करने वाली धार धरना न भूली थी। नवाब छतारी हो सकता था ..
“आइये नेहा जी!” नवाब छतारी ने उन का उठ कर स्वागत किया था। “अब आप दोनों का ही इंतजार था!” उसने हंस कर कहा था।
हॉल की सजावट बेजोड़ थी। आगंतुकों से खचाखच भरे उस हॉल में एक विशेष प्रकार की हलचल भरी थी। लोग आपस में बतिया रहे थे, गपिया रहे थे और खुली शेंपेन को गिलास भर भर कर पी रहे थे! उम्दा स्नेक्स सर्व हो रहे थे। नेहा का मन फूल की नाई खिल उठा था।
“नेहा आपा!” नवाब छतारी उन दोनों के पास आ बैठे थे। “हमने तुम्हारी मूवी ‘नवाबजादे’ पेरिस में देखी थी।” वह बताने लगे थे। “ऐ लोगों ..! तुम्हारी आवाज कितनी असरदार थी – मैं बता नहीं सकता!” उन्होंने खुलकर तारीफ की थी नेहा की। “और उसके बाद मैंने उस मूवी को कितनी बार देखा – मुझे गिनती तक याद नहीं है!” अब उसने नेहा को आंखों में भर कर देखा था। “सलीम साहब से तो हम वाकिफ हैं!” वह बताने लगा था।
“नवाब .. छतारी ..?” विक्रांत ने बीच में टोका था। शायद उसे कोई शक था।
“अरे, खिबला! नवाब छतारी तो मान लो कि हमारा ढेंक है!” वो हंस पड़े थे। “हमारा नाम है – असौदुल्ला उल रहमान – अल जमाली!” वह बताने लगे थे। “और बरखुदार! हम बताते हैं कि छतारी से हम हर बार सांसद का चुनाव लड़ते हैं और जीतते हैं!” वह हंस रहे थे। “और हम हर चुनी हुई सरकार में शामिल होते हैं! दिल्ली में हमारे छतारी हाऊस में कभी आप आएंगे तो ..”
“हम आएंगे अवश्य आपके पास!” नेहा ने प्रफुल्लित होते हुए कहा था।
“जरूर आइये नेहा आपा! मैं आपकी मुलाकात अरब अमीरात के प्रिंस जुनैद से कराऊंगा। वो हमेश वहीं रुकते हैं मेरे पास!” नवाब छतारी बताता रहा था।
न जाने कितना वक्त गारत हुआ था! पता ही न चला था कि भोर आ पहुँची थी!
“काम का आदमी लगता है!” नेहा ने सोने से पहले कहा था।
“बेकार कौन होता है?” चिढ़कर विक्रांत बोला था। “फिर हमें पॉलिटिक्स से क्या लेना देना?”
“क्यों ..?” नेहा का प्रश्न था। “हम इस देश में नहीं रहते?” वह पूछ रही थी।
“उस देश में रहते हैं हम नेहा जहां आज भी सांप बसते हैं .. जहां बेईमानों के जखीरे हैं .. जहां आज भी देश द्रोही हमारी आंखों के सामने हम से हमारा देश छीनने के लिए साजिशें रच रहे हैं और ..!”
“बस भी करो बाबू!” मैंने तंग आकर कहा था। “सोते हैं!” मेरा सुझाव था।
और बाबू .. मैं सोती ही रह गई! सब कुछ लुट गया! खुड़ैल भी एक देश द्रोही है आज मानती हूँ, बाबू! लेकिन .. लेकिन अब तो चिड़िया खेत चुग गईं! मुझे जन्नत दिखाते दिखाते खुड़ैल ने जेल में लाकर बिठा दिया!
गलती मुझसे ही हुई बाबू! मैंने ही तुम्हें ..
सॉरी बाबू!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा