सी बी आई ऑफिस के बरांडे में टूटी कुर्सी पर इंतजार में बैठे रमेश दत्त आज बुरी तरह से आंदोलित थे।

बुरे बुरे स्वप्न आ आकर उन्हें सता रहे थे। पूरा विगत बार बार उनकी आंखों के सामने आकर ठहर जाता था। वह जानते तो थे कि मामला विक्रांत की हुई मौत का ही था। लेकिन बार बार वह सच को झूठ बता कर बच निकलना चाहते थे। वह चाहते थे कि इन अधिकारियों को जिन्हें वो मुद्दतों से जानते थे – आज कोई ऐसा चकमा दें .. जो ..

बदन पसीने पसीने हुआ जा रहा था। एक डर था जो उनकी नस नस में व्याप्त हुआ जा रहा था। माथे पर पसीने की बूंदें धरी थीं। गला एक दम खुश्क हो गया था। उन्हें भारी प्यास लगी थी लेकिन .. लेकिन ..

“प-प-पानी मिलेगा!” रमेश दत्त यूं ही पुकार बैठे थे। उनका हलक सूख गया था।

“अरे! कोई है?” किसी ने उच्च स्वर में पुकारा था। “पानी पिला इसे ..!”

रमेश दत्त को आज अपने छोटे पन का एहसास हुआ था!

पानी आया था। रमेश दत्त ने पिया भी था। लेकिन महसूसा भी था कि ये पानी नहीं कोई टॉनिक था और इसका स्वाद भी अजीब था। लेकिन वो पी गये थे। न जाने वक्त क्या क्या सिखाएगा आज – रमेश दत्त सोचे जा रहे थे।

“नेहा ने सब कुछ उगल दिया है!” बड़े ही सौम्य स्वर में पुनीत कौशिक ने रमेश दत्त को सूचना दी थी। “बैटर यू ऑलसो टेल अस दि ट्रुथ!” उनका विनम्र आग्रह था। “अपनी जान तो बचाओ भाई!” तनिक से हंसे थे – पुनीत कौशल।

“देखिये साहब!” हकलाते हुए बोले थे रमेश दत्त। “म .. म .. मैं इन सब बातों से बहुत दूर रहता हूँ!” उन्होंने जाने माने पुनीत कौशिक के चेहरे को पढ़ा था। आज वो डर गये थे। पुनीत कौशिक की निगाहें सर्च लाइट जैसी थीं। वो न थीं – जिन्हें रमेश दत्त पहचानते थे। “म .. म .. मैं तो फिल्म बनाता हूँ और ..”

“और मूर्ख बनाता हूँ सारी दुनिया को – यह भी कह दो न?” तीरथ ने दत्त साहब को घुड़का था। “तुम जैसे लोगों ने ..” आज बहुत सख्त था – तीरथ।

दत्त साहब को अचानक अपनी बहिन की शादी के लिए मदद मांगता तीरथ याद हो आया था। वो गिड़गिड़ाता और मदद मांगता तीरथ – ये न था!

“इस पोंटू के साथ क्या रिश्ता है आपका?” फिर से पुनीत कौशिक ने पूछा था।

“कौन पोंटू ..?” दत्त साहब चौंके थे। “मैं किसी पोंटू को नहीं जानता जनाब!”

“समीर को तो जानते हो?” फिर से तीरथ ने प्रश्न पूछा था। “वो – नेहा का भाई समीर!”

“वो! हॉं हॉं! वो तो फिल्म प्रोड्यूसर है!” तीरथ की आवाज सुनकर ही डर गये थे दत्त साहब।

“लेकिन वो तो जानता है इस पोंटू को?” अब पुनीत कौशिक बोले हैं। “फिर तो आप भी ..?” उनका प्रश्न है।

चुप हो गये हैं दत्त साहब। वो अब खामोश हैं। वो अब बोलना ही नहीं चाहते! पसीना चुचा रहा है। सांस फूल गई है। हाथ पैर भी कांपने लगे हैं। न जाने आज ..

“भाई से कौन भाईचारा है?” फिर से तीरथ ने ही पूछा है।

“कौन भाई ..?” हिम्मत के साथ बोले हैं दत्त साहब। वह अब तीरथ का मुकाबला करना चाहते हैं।

“बनो मत कासिम बेग!” तीरथ रोष में है। “अगर मैं अपनी पर आ गया तो – वो भाई .. तुम्हारा जमाई .. जो दुबई में दुबका बैठा है ..”

“अरे रे साहब!” अब रमेश दत्त ने बात पुनीत कौशिक की ओर मोड़ दी है। “साहब वो तो फिल्म फाइनेनसर है! यदा कदा पैसे मांग लेता हूँ मैं ..”

जैसे पुनीत कौशिक ने रमेश दत्त को सुना ही न हो – ऐसा लगा है। अब खामोशी है। सब शांत है। लेकिन रमेश दत्त मरने मरने को है!

“इसे तो जानते हो?” फिर से तीरथ की आवाज चटकी है।

सामने आ खड़ी हुई नौनिहाल को देख दत्त साहब उछल पड़े हैं! उनका खून तक सूख गया लगता है। लेकिन नौनिहाल उन्हें देख देख कर हंस रही है। शायद उसने आज ऊंट को भी पहाड़ के नीचे आते देख लिया है! वरना तो ये दत्त साहब – बड़े ऊंचे दर्जे के खुदा सलाम हैं! इनके पास तो आंख उठा कर देखने तक का वक्त नहीं होता!

“ये तो तभी नजर आते हैं – जब इन्हें कोई माल नजर आ जाता है!” नौनिहाल स्वयं से कह रही है। “तब तो इनकी निगाहें सुंदर जिस्म पर चिपक जाती हैं! फिर तो उसे फिल्म बनाने का न्योता दे देते हैं और फिर तो ..”

“बेशर्म!” नौनिहाल बोल पड़ी है। “तेरे मूंह पर थूकने का मन है मेरा!” वह कह रही है। “सच में साहब – इसी ने मारा है – उसकू!”

“न – न – नहीं साहब! ज-ना-ब ये तो ..” रमेश दत्त कांप रहे हैं!

“तुम जाओ नौनिहाल!” तीरथ ने आदेश दिया है।

लेकिन नौनिहाल न हिली है न डुली है। व्यथित शेरनी की तरह वह दत्त साहब को आग्नेय नेत्रों से घूर रही है। अब झपटेगी कि जब झपटेगी की मुद्रा में नौनिहाल मन बना रही है कि रमेश दत्त से अपना प्रतिशोध कैसे चुकाये?

“तेरी मैंने कैद करानी है, हरामी!” नौनिहाल की दांती भिच आई है। “खुद कुकर्म करके – उस बेचारी बेगुनाह नेहा को जेल में बंद करा दिया? तेरे पापों का घड़ा अब भर गया है कासिम बेग! अब आया है तू चौड़े में। लोगों को पता चल गया है कि तू हिन्दू नहीं .. ब्राह्मण नहीं .. तू तो कसाई है!”

“चल चल! बाहर जा!” तीरथ ने उसे घुड़क दिया है।

नौनिहाल जा रही है। रमेश दत्त उसे जाते देख रहे हैं। अचानक न जाने कहॉं से आज एक औरत के प्रति हिकारत रमेश दत्त के मन में भरने लगी है। मतलब के लिये तो औरत लिपटती है और जब काम निकल जाता है तो दूध की धुली बन जाती है!

“देखिये दत्त साहब!” पुनीत कौशिक का स्वर शांत है। “ऊपर से दबाव है। हम कुछ नहीं कर पाएंगे! बैटर यू प्लान यॉर डिफैंस!” राय दी है पुनीत कौशिक ने।

“पूरा मीडिया, सारा प्रेस और सारा संसार नाम ले लेकर चीख रहा है, चिल्ला रहा है!” तीरथ कहने लगा है। “राम से और गाम से कौन पार पाता है?” उसने रमेश दत्त को देखा है।

“आप चाहें तो ..?” रमेश दत्त का स्वर कातर हो आया है।

“हम क्यों चाहेंगे?” उत्तर तीरथ ने ही दिया है।

“नेहा ने क्या क्या बताया है?” रमेश दत्त ने हिम्मत जुटा कर प्रश्न पूछा है।

“तुम्हें थोड़ा बताएंगे?” तीरथ ने उसे फिर से घुड़का है।

हचमचाई मन: स्थिति पर काबू पा रमेश दत्त आहिस्ता आहिस्ता उठे हैं और बाहर खुली हवा में आ कर खड़े हो गये हैं! ड्राइवर ने उन्हें आया देख गाड़ी लगा दी है। वह बहुत ही धीरे धीरे चल कर आये हैं ओर गाड़ी में बैठ गये हैं। गाड़ी चल पड़ी है!

“नेहा ..!” आह रिता कर रमेश दत्त ने नेहा का नाम लिया है। “नेहा ने किये वायदे क्यों भुला दिये?” वह अब स्वयं से पूछ रहे हैं। “साथ जीयेंगे साथ मरेंगे और अब न हम बिछड़ेंगे हम!” नेहा ने ही तो कहा था। “बाबू को अब बरबाद मैं ही करूंगी रमेश जी!” उसने ही तो कहा था। “इसका ये घमंड .. इसका ये गुरूर और ये मुझे ये दर्पण दिखाता चरित्र ..”

“डोंट लुक बैक नाउ नेहा!” उसने तो नेहा को हिम्मत ही बधाई थी। तो क्या नेहा अब बदल गई? तो क्या नेहा अब विक्रांत की है, उस मरी लाश की है, उस विक्रांत की है जो? लेकिन क्यों? अब पलटी नेहा कौन है जो ..?

रमेश दत्त को लग रहा है जैसे वो आज एक अंत हीन यात्रा पर जा रहा है!

“छोड़ दिया तेरे यार को!” सोनू धोबन ने नेहा का ध्यान तोड़ा है। “कहते हैं बेकसूर है। तो फिर तू क्यों पड़ी है यहां?” सोनू हंस रही है।

“तू क्यों पड़ी है यहां?” नेहा ने भी रोष पूर्ण आवाज में पूछा है। नेहा को सोनू अच्छी नहीं लगती है।

“मन्ने तो कतल किये हैं!” सोनू ने हंस कर बताया है। “अब तू बता बन्नो?” पूछ रही है सोनू।

नेहा चुप है। उसने सोनू को नहीं देखा है। वह अपने आप में लौट आई है।

“कैसा कबाड़ा हुआ जिंदगी का?” नेहा उदास है। “वो .. वो .. दिन! बाबू के साथ जिए वो सुनहरी पल – चले कहां गये? क्यों मिट गया वो उजाला? कैसे घिर आई अंधेरी रात? क्यों होता है ऐसा कि कभी तो हमें जो अटल सत्य जान पड़ता है वही एक बेहूदा बात साबित हो जाती है! बाबू का पवित्र प्यार जिसे कासिम बेग ने झूठा करार दे दिया था अब कासिम बेग के सर पर चढ़ कर बोल रहा है! क्या है ये जिंदगी की धूप छांव? क्या है ये जो ..?”

“सच में तो मैं ही सच हूँ नेहा! मैं ही तुम्हारा सच्चा प्रेमी हूँ! कासिम बेग तो सौदाई है! फरेबी है वो रमेश दत्त! मैंने तुम्हें प्यार दिया और मैंने ही तुम्हारे लिए आहूति दी जबकि ये कासिम बेग अभी भी गोटें खेल रहा है!”

“क्या हम फिर से मिलेंगे बाबू?” नेहा का मन प्राण भावुक हो आया है।

“हम तो कभी मरेंगे ही नहीं नेहा! ये शरीर छोड़कर तुमने मुझमें ही आकर मिलना है!”

“ओ बाबू! मैं भी तुम्हें भूल नहीं सकती! सच मानो बाबू – मैंने तुम जैसा सच्चा इंसान आज तक नहीं देखा!”

“रोओ मत नेहा! विछोह बुरा नहीं होता पगली! यह तो हमारे प्यार की परीक्षा है! और जब हम इस विछोह के बाद मिलेंगे ..”

“मिलेंगे .. बाबू हम?” नेहा ने गहक कर पूछा है।

“क्यों नहीं नेहा?” हंसा है विक्रांत।

“क्या तुम मुझे माफ कर दोगे बाबू?”

“किस लिए नेहा? तुमने किया ही क्या है! तुम तो निरी निर्दोष हो प्रिये!”

“ओ बाबू! ओ मेरे अच्छे – प्यारे प्यारे बाबू! नेहा के आंसू थम नहीं रहे हैं! “आई एम वैरी वैरी सॉरी बाबू ..

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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