धारावाहिक – 30
सच में ही बाबू । मुक्त प्रदेश पर शैतानों का हमला हो गया था ।
मैंने देखा था कि उन के सरोवर पर दौड़ते ऊंट उस के पानी में डूब न रहे थे । मैं तो बहुत डर गई थी जब उन के चलाये अग्नि बाण हमारे आस-पास गिरे थे । लेकिन आश्चर्य तो ये था, बाबू कि न तो ये बाण हमें जला रहे थे …और न ही आस-पास को आग लगा रहे थे । न जाने क्या था कि मुक्त प्रदेश जल कर ही न दे रहा था ? अब नंगी तलवारें लिये शैतान हम सब के सर काट रहे थे । लेकिन किसी का भी सर धड़ से अलग न हो रहा था । यहॉं तक कि खजूर के पेड़ों को भी उन के जंगी खड़ग काट नहीं पा रहे थे । खून की नदियों के स्थान पर उन के पसीने के परनाले बह चले थे । बेदम और बे-हाेश होते शैतान अब स्वयं ही परास्त होने लगे थे, बाबू!
“शहजादा हुजूर!” शैतानों का सरगना फरीद के पैरों आ पड़ा था। “आप चलिए! इन को साथ लेकर चलिए! उसने मेरी ओर इशारा किया था। “खलीफा आपका राज्याभिषेक करेंगे। अब आप पूरी कायनात के खलीफा बनेंगे! अल्लाह का फरमान है कि आप ..”
“ये झूठ बोल रहा है!” मैंने उसकी बात काटी थी।
“नहीं मुहतरमा! हमें झूठ बोलना मना है। हम अल्लाह के फरिश्ते हैं सदा सच बोलते हैं!” वह कहता रहा था। “आप आलम आरा बनेंगी!” वह बता रहा था। “आपके लिए आलीशान शीश महल बन चुका है!” शैतान ने सूचना दी थी।
फरीद ने उस शैतान की फरियाद मान ली थी।
मैंने भी ताे उसी तरह खुड़ैल की दी सीख स्वीकार कर ली थी, बाबू!
“हमारे साथ रहोगी तो राज करोगी नेहा!” खुड़ैल ने कहा था। “ये मिस्टर आदर्शवादी तो सब को डुबो देगा!” ऐलान था उसका। “अरे, भाई ईमान खाकर कौन जी सकता है?” वह पूछ रहा था। “भूख है – तो खाओ!” यही सबसे बड़ा आदर्श है आज का। जिओ मर्द की तरह .. एक इंसान की तरह .. देवताओं की तरह नहीं! देवताओं को किसने देखा है भाई?” वह पूछ रहा था। “नेहा, तुम तो जानती हो कि मैं ..” हंस रहा था, खुड़ैल।
“नई लाए हो न – एक ..?” मैंने भी पूछ लिया था।
“हॉं!” उसने स्वीकारा था। “अच्छी है!” वह बताने लगा था। “बहुत नेक सा प्राण है, नेहा!” उसने प्रशंसा की थी। “मन मोह लिया है मेरा!” बहुत प्रसन्न था खुड़ैल।
“क्या दिया है, उसे?” मैंने पूछा था।
“सपने ही बेचे हैं, अभी तक तो!” हंस पड़ा था वह। “आगे तो उसकी किस्मत है!” हाथ झाड़ दिये थे खुड़ैल ने।
यही तो थी जिंदगी उनके लिए जो देश विदेश से उड़-उड़ कर बम्बई चले आते थे और आशियानों की तलाश में भटकने लगते थे। जो भी डाल मिलती उसी पर पंजे टिका देते और भाग्य भगवान के भरोसे ढूंढते रहते मंजिल को! कोई कब डूबा – किसे खबर होती? किसी को क्या मिला – कोई नहीं जानता था। लेकिन हॉं, कुछ लकी लोगों को – कुछ मिल जाता था तो उसकी चर्चा जब अखबारों में, पत्रिकाओं में और टी वी पर होती चार चांद लग जाते!
खबरों में आने का मोह, पत्र-पत्रिकाओं में छपने का लालच और चर्चा में बने रहने का व्यामोह ही तो मार डालता है – मनुष्य को!
किसी-किसी के लिए तो सपने देखते-देखते ही शाम हो जाती है!
“जैसे कि मेरा सूरज डूब गया बाबू!” नेहा विक्रांत से बतियाने लगती है। “कैसा निष्पाप सा संयोग था, हमारा?” उसे याद आता है। “तुम जैसे कलाकार पैदा ही कितने होते हैं? और मेरा दुर्भाग्य देखो कि मैंने किनारे लगी किश्ती को स्वयं ही डुबो दिया?” नेहा एक निराशा को पीने लगती है। “मैंने तो .. स्वयं ही मिली डाली को काटा और कूद पड़ी कुएं में!” अफसोस के आंसू नेहा की ऑंखों से चुचाने लगते है!
“देखो कैली को नेहा!” फिर से वह रमेश दत्त की आवाजें सुनने लगी थी। “इंग्लैंड की पढ़ी-लिखी है लेकिन इतनी प्रैक्टीकल कि कहो तो सारे कपड़े उतार कर खड़ी हो जाए कैमरे के सामने!” हंसा था, रमेश दत्त। “वो जो कहानी थी न ‘मनोरमा’ उसे ले कर अब आजमाएंगे किस्मत!” बताने लगा था वह। “गजब के न्यूड सीन हैं और कैली ..?” खुड़ैल ने मुझे ऑंखों में घूरा था। “कैसा मलाई-मक्खन बदन है, तुम मिलोगी तो हैरान रह जाओगी नेहा!”
मुझे याद है बाबू कि यह खुड़ैल मुझे मनोरमा फिल्म के लिए मना रहा था। कह रहा था – “नेहा, आदमी नंगा ही तो पैदा होता है और नंगा ही मरता है! ये कपड़े तो महज फॉर्मेलिटी हैं, माई डियर!” वह मुझे नाप रहा था। “एक बार .. सिर्फ एक बार हिम्मत कर ली तुमने तो मान लो कि बेड़ा पार!” वह मुझे समझा रहा था। “लोग तुम्हारे जिस्म को देखेंगे तो पागल हो जाएंगे। फिल्म सालों साल उतरेगी नहीं हॉलों से और लोग तुम्हें एक लीजेंड के नाम से याद करेंगे नेहा ..”
लेकिन मैंने लात मार दी थी मनोरमा को! याद है बाबू – जब तुमने ‘बिजली’ रिजैक्ट की थी? वह भी तो नंग-धड़ंगों का काम था? मैं भी तुम्हारी तरह तब आदर्श स्थापित करना चाहती थी परदे पर ताकि लोग मुझसे प्रेरणा लें .. और ..
“लेकिन खुड़ैल ने खींच ही लिया मुझे इस दल-दल में .. बाबू!” नहा गंभीर थी। “डुबो के ही माना मुझे बेईमान!” आवाज टूटने लगी थी नेहा की। “हमारा प्यार उसे ..?”
हो गई गलती बाबू .. जारो कतार हो कर रोने लगी थी नेहा!
क्रमशः ..
मेजर कृपाल वर्मा