न जाने कब कब की दुश्मनी निकाल गया था मुसाफिर!

क्या जरूरत पड़ी थी इसे ‘कासिम बेग’ कह कर परिचय कराने की? ये तो खूब जानता है कि रमेश दत्त आज की तारीख में बंबई की एक हस्ती है! फिर मुझे असली नाम से यूं विक्रांत के सामने उजागर करने में क्या कोई चाल नहीं थी? यूं तो हर दूसरा आदमी और औरतें भी हिन्दू नाम रख कर धंधा कर रहे हैं। किसी को कोई तकलीफ नहीं है। लेकिन कुछ लोग – विक्रांत जैसे लोग हैं जिन्हें चिढ़ है .. कि ..

हिन्दुओं के इस देश में मुसलमानों के लिए हिन्दू नाम रख कर फिल्मों में कमाना बहुत आसान था।

धोखे की टट्टी खूब काम करती है। शिकार को आसानी से फसाया जा सकता है – हिन्दू नाम रख कर। एक बार फंसने के बाद तो सब आसान हो जाता है। लेकिन इस शैतान मुसाफिर ने सारा गुड़ गोबर कर दिया।

“शैतान पालने का शौक आप का बहुत पुराना है दत्त साहब!” पोपट लाल ने तो एक दिन उनके मुंह पर ही कह दिया था।

और ये पोपट लाल? कितना चालाक है कि ‘मॉं के आंसू’ बना भी गया और पता भी न लगने दिया।

“शैतान खोपड़ी है तुम्हारी भी, पोपट लाल!” दत्त साहब ने तुरंत ही पोपट लाल को फोन मिला लिया था। “खूब हाथ मारा है ‘मॉं के आंसू’ बना कर?” वह पूछ रहे थे।

“मॉं कसम दत्त साहब! मैंने नहीं बनाई ‘मॉं के आंसू’!” साफ नाट गया था – पोपट लाल। “श्रीनाथ ने रोकड़ा मांगा था सो मैंने दे दिया!” उसका उत्तर था। “मैंने मरना है क्या .. आप से ..” कहता ही रहा था पोपट लाल।

पोपट लाल झूठ बोल रहा था – दत्त साहब जानते थे और मुसाफिर की नियत भी खोटी थी – वह समझ गये थे। अब इन प्रश्नों के उत्तर लेने वह पोंटू के पास चल पड़े थे। फोन पर बात करना पोंटू से महंगा पड़ सकता था इसलिए वो हमेशा उसके पास चले आते थे और पोंटू – भला आदमी उनकी खूब इज्जत करता था और ..

“आज कैसे दर्शन दिए आपने?” आंखों में आश्चर्य भरे पोंटू दत्त साहब को देखता ही रहा था। “मुझे कहा होता तो ..?”

“मन था – आज!” दत्त साहब ने बैठते हुए कहा था। “तेरे ये ठाठ पोंटू?” उनसे रहा न गया था तो बोल पड़े थे।

“आपकी कृपा है! सब आप का ही किया दिया है, दत्त साहब!” पोंटू विनम्र था। “वरना पोंटू .. एक ऑफिस का चपरासी ..?” वह हंसा था। “ये खेल ही बड़ा निराला है दत्त साहब! माल की खुशबू नोट कमाती है और नोटों की खुशबू कमाल कमाती है!” उसने मुड़कर दत्त साहब को देखा था। “कष्ट क्या है?” उसने सीधे सीधे पूछा था।

“विक्रांत!” दत्त साहब ने भी सीधा ही उत्तर दिया था। “पता लगाना है कि इसे किस किस ने काम दे रक्खा है और फिर एनश्योर करना है कि ..”

“देश निकाला?” पोंटू हंसा था। “जुर्म क्या है?”

“नेहा!” दत्त साहब तनिक सहज होकर बोले थे। “मुझे नेहा चाहिए जबकि विक्रांत ..”

“माने आप को नाग से उसकी नाग मणि चुरा लेनी है?”

“ठीक समझे!” दत्त साहब खुश थे। “और ये काम ..”

“सौरभ कर देगा!” तुरंत बोला था पोंटू। “खुदा कसम दत्त साहब मैंने इतना चंट और चालाक लौंडा आज तक नहीं देखा! सारे फिल्म वालों के घरों में घुस घुस कर माल दे आता है, सबकी खबर ले आता है। नेहा दीदी के नाम पर ही ..”

अपलक दत्त साहब पोंटू को देखते ही रहे थे। आज उन्हें भी विश्वास हो गया था कि अब नेहा उनका बुना जाल काट कर कभी न जा सकेगी।

और मद्रास से लौटते ही नेहा और विक्रांत को पता चल गया था कि उनके खिलाफ दत्त साहब ने जंग खड़ी कर दी थी। जब प्रोड्यूसरों के फोन धड़ाधड़ बजे थे और विक्रांत को उन्होंने काम देने से मना किया था तो नेहा ने भी फोन पर ही अपने प्रोड्यूसरों को बता दिया था कि वो अब काम न कर पाएगी क्योंकि उसने फिल्मों से सन्यास ले लिया है!

चर्चा का विषय था बंबई में! बहुत सारे नए कलाकारों ने रमेश दत्त की खिलाफत कि थी। बहुत सारे लोग फिल्मों में होते इस भाई भतीजे वाद से नाराज थे। लोगों का मानना था कि अच्छे कलाकारों को न नाम मिल रहा है और न काम। सब कुछ पुराने घरानों के लोग ही लूट खा रहे थे।

“शोर मचा है दत्त साहब कि आप का बॉलीवुड परिवार वाद पर खड़ा है? कलाकारों की कोई कीमत नहीं। अपने ही बच्चों को काम दे रहे हैं ..”

“तो क्या करें?” दत्त साहब ने सीधे सीधे कहा था। “अपने बच्चों को काम न देकर क्या सूअर के बच्चों को काम दें?” उनका प्रश्न था।

खूब बवंडर मचा था फिल्म जगत में। लेकिन दत्त साहब का कोई बाल बांका न कर पाया था।

पूर्वी विश्वास के पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। जब से समीर के फिल्म डायरेक्टर बनने की सूचना उसे मिली थी उसकी खुशी के पारावार न थे। समीर उसका नालायक बेटा अब दत्त साहब की तरह फिल्मों का डायरेक्टर बनेगा – यह उनकी जिंदगी में आया एक तूफान था। बाबा भी प्रसन्न थे।

“मॉं! दीदी को समझाओ कि मेरी फिल्म रंगीला में हिरोइन का रोल ले लें। दत्त साहब ने मूंह करके कहा है!”

“क्यों री! तुझे क्या तकलीफ है?” पूर्वी विश्वास ने नेहा से पूछा था।

“मैंने फिल्मों से सन्यास ले लिया है!” नेहा ने सीधा उत्तर दिया था।

“अपने भाई की फिल्म में काम कर ले! बाहर का काम मत ले!” पूर्वी विश्वास ने समझाया था।

“नहीं! मैं अब काम करूंगी ही नहीं!” नेहा ने साफ कहा था।

“और दीदी! मैं कहे देता हूँ कि विक्रांत भाई को बंबई में कोई काम देने वाला नहीं है! अगर आप सोचती हैं कि ..”

“कह दिया न – मैं काम नहीं करूंगी!” नेहा नाराज थी।

पूर्वी विश्वास को आज नेहा बहुत बुरी लगी थी। उसने नेहा की शिकायत मास्टर जी से भी की थी। लेकिन मास्टर साहब तो नेहा को जानते थे इसलिए चुप ही बने रहे थे। लेकिन पूर्वी विश्वास अपने बेटे समीर के सपने को यों टूटता देख – टूट आईं थीं!

और नेहा भी विक्रांत के साथ फार्म हाउस के विकट एकांत में जा बैठी अपनी मॉं की व्यथा से बेखबर न थी। उसे भी एहसास हुआ था कि मॉं समीर के सपनों को ज्यादा महत्व देती थी। नेहा तो बेटी थी .. पराई थी .. लेकिन समीर तो उनके वंश का कुल दीपक था।

“जग बैरी हो गया है बाबू!” याद है न मैंने तुम्हें बताया था। “मॉं भी चाहती है कि मैं समीर की फिल्म रंगीला में काम करूं! लेकिन वो ये नहीं जानतीं कि ये सब खुड़ैल की चाल है!”

“उसे चाल चलने दो और हम काम पर चलते हैं!” हंस कर विक्रांत ने कहा था। “तुम देख लेना नेहा कि हमारी ये फिल्म ‘कॉलेज़ के गुंडे’ सुपर हिट होगी।” विक्रांत बता रहा था।

“कैसे?” नेहा ने स्वाभाविक प्रश्न पूछा था।

“इसलिए कि देश भक्ति की इस तरह की कोई फिल्म आज तक नहीं बनी है!” विक्रांत बताने लगा था। “ब्रिटिश राज की खिलाफत में आए नौजवान और नव युवतियां कॉलेज़ छोड़ छोड़ कर .. घर बार छोड़ छोड़ कर एक जुनून के साथ सत्ता के अखाड़े में आ खड़े होते हैं – निहत्थे! उनका संघर्ष ..”

“लेकिन ये खुड़ैल ..?” मैं डरी हुई थी। खुड़ैल ने समीर को बहका लिया था। और मुझे डर था कि वो ..

“डरो मत नेहा!” तुम बोले थे। “ये है क्या? गुंडा, चालबाज, दलाल और बस! और मैं तुमसे वायदा करता हूँ के मैं इसे बंबई से भगा कर रहूँगा! मैं .. मैं बंबई .. माने कि बॉलीवुड को एक क्लीन इमेज दूंगा, एक ऐसी इमेज जो देश में ही नहीं विदेशों में भी सम्मानित हो! आज लोग इसे ..”

“लोगों से ही तो डर लगता है बाबू!” मैं रोने लगी थी। “सब खुड़ैल के साथ हैं! उसका वो दुबई वाला भाई और वो ..? खतरनाक लोग हैं बाबू!”

“एक बिहारी – सौ पर भारी!” तुमने कहा था और हंसे थे। “हम लड़ाके हैं नेहा! हम हार नहीं मानते!” तुमने अपने इरादे बताए थे, बाबू!

लेकिन बाबू हारे तुम नहीं, हार तो मैं गई! मैंने ही तुम्हारा साथ छोड़ा .. मैंने ही दगा खेली .. मैं ही खुड़ैल की हो गई – एक खुंदक में! हिन्दुओं के साथ मेरे मन की उस खुंदक ने ही हमें बर्बाद कर दिया बाबू!

सॉरी बाबू! वैरी वैरी सॉरी ..

रो रही थी नेहा!

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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