धारावाहिक – 3

‘अरे, रे ।’ नेहा उछल पड़ी है । वह चक्की में अकेली है । भूरो दवाई लेने गई है । कामिनी कैन्टीन चली गई है । ‘ये तो …ये तो ..खुड़ैल – माने वही । हां, हां। वही हू- ब- हू रमेश दत्त ही है ।’ नेहा अनुमान लगाती है । ‘लेकिन सात तालों के भीतर यहां ? जेल में कैसे चला आया ? वह स्वयं से प्रश्न पूछती है ।

‘तुम्हारी फिकर है मुझे , नेहा ।’ रमेश दत्त बोल पड़ा है । ‘सोचना भी मत कभी कि मैं तुम्हें ….’ मुसकुराया है , रमेश दत्त । ‘तुम तो अनमोल खजाना हो ….’

‘ ‘मेरी जान’ कहना चाहता है , पर रुक गया है ।’ नेहा मन में कहती है । ‘उस की वही भीगी आंख फड़कने लगी है । अब …हां, हां अब वह आहिस्ता – आहिस्ता करेगा मुझे निर्वसन …और फिर कैंकड़े की तरह मेरे कोमल अंग- प्रत्यंगों को चाटेगा ….चूमेगा …नौच- खौंच करेगा ..और मुझ में चीखें भर देगा । ओह, गॉड । अब मैं क्या करूं ?’

‘अच्छा किया न , तुम्हें जेल भिजवा दिया ?’ रमेश दत्त हँसा है । ‘अब माहौल बैठ जायेगा । सब शांत होने पर बेल करा लेंगे । केस का क्या है ? चलेगा – बीसों साल ……’

‘लेकिन ….लेकिन …मैं तो …अब …’

‘क्यों …। कहां जायेगी, मेरी जान ?’ वह बोल ही पड़ा है। ‘तुम्हारे बिना तो फिल्म जगत जीयेगा ही नहीं । आज की डिमांड हो तुम , नेहा ।’ वह मुसकराया है । ‘क्या धरा था – विक्रांत में ? कितने ही कामना पुरुष लाइन लगा कर खड़े होंगे , तुम्हारे लिये ।’ रमेश दत्त उसे बताने लग रहा है । ‘यू आर दी बैंकेबल स्टार ऑफ द इंडस्ट्रीज़ ।’ घिसा – पिटा संवाद बोला है , उसने । मुझे फिर से भटकाना चाहता है ….रिझाना चाहता है …चाहता है कि मैं ….। ‘परी का रोल तुम्हें मिल रहा है । इस रोल के बाद जब तुम पर्दे पर आओगी तो ….मेरी जान …..’

‘बहुत बहका लिया , तुमने।’ नेहा गरजी है । ‘अब नहीं । नहीं मानूंगी …तुम्हारी बात । नहीं दूंगी तुम्हारा साथ । मैं उस नरक में अब नहीं लौटूंगी । यू …इडियट । हरामी ….कुत्ते ….। मैं ….मैं …यहीं …जेल में ही …जीवन बिताऊंगी …पर …’ कांपने लगी है, नेहा ।

रमेश दत्त चुपचाप खड़ा- खड़ा नेहा को घूर रहा है । नेहा को आज रमेश दत्त बेहद घिनाना लग रहा है। उस की सारी अश्लील हरकतें और उस का बिछाया मोह- जाल , नेहा को याद आ रहा है । उसे याद आ रहा है कि किस तरह इस रमेश दत्त ने नेहा नाम की एक भोली – भाली लड़की को चंगुल में फांस लिया था और फिर किस तरह उस से हर असंभव अपराध कराये थे ।

लालच …। सिर्फ पैसों का लालच …। सिर्फ एक ग्लैमर भरा जीवन ….जीने की चाह ने नेहा को ठगा और रमेश ने भी हर बार लालच के बकरे ही बांधे और …और उसे अपराधों के अथाह समुन्दर में डुबो दिया ।

‘उम्र कैद मिलेगी, मुझे ।’ नेहा ने तीर-से नुकीले शब्द रमेश दत्त में दे मारे हैं । ‘जाओ , तुम ।’ नेहा ने रमेश दत्त को खारिज किया है ।

‘कौन कहता है ?’ रमेश दत्त ने पूछा है ।

‘भूरो । यहीं मेरे साथ उम्र कैद काट रही है। उस ने भी अपने पति को …..’

चुप खड़ा है , रमेश दत्त । जा नहीं रहा है । हिल भी नहीं रहा है । नेहा कांपने लगी है । नेहा जानती है कि रमेश दत्त ही फिल्मों का असली हीरो है । बाबू तो झूठे किरदार करता था । ये तो असली स्टील का बना विलेन है ।

‘जो पुलिस में बयान दिया है – वही सच है ।’ रमेश दत्त बता रहा है । ‘उसी तरह …खूब ड्रामा …अभिनय …आंसू ….और आहों के साथ …कहते ही रहना है , नेहा ।’ वह बताता है ।

‘लेकिन …लेकिन भूरो कहती है … कि ….’

‘सच बोल दिया होगा , जज के सामने ? पगली है ।’ रमेश दत्त हंसा है । ‘तुमने तो कभी चींटी भी नहीं मारी , नेहा ?’ वह बता रहा है । ‘फिर …विक्रांत ……?’

और सच बोलने की मनाही कर रमेश दत्त जेल से बाहर निकल गया है।

क्रमशः ……..

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