आज चिंता के महासागर में डूबा बैठा था रमेश दत्त।
विक्रांत जो विष बीज बो गया था अब वो उग आये थे और पुष्पित पल्लवित होने लगे थे। पूरी युवा पीढ़ी ने रमेश दत्त के खिलाफ झंडे डंडे उठा लिए थे। उसके नाम की खूब बदनामी हो रही थी। हर कोई उसे ही जिम्मेदार मान रहा था – विक्रांत की मौत का और बता रहा था कि नेहा को भी इसी ने ब्लैक मेल किया था।
“आप ही नहीं, गुरु जी आप का विशाल भी डूब गया!” मोंटू बता रहा था। “जब से लोगों को इसका असली नाम – फरहान पता चला है लोगों ने इसे जूते मारना शुरू कर दिया है! देखा नहीं – लिबर्टी सिनेमा हॉल के पाेस्टर फाड़ डाले हैं और सिनेमा हॉल में हुई है जम के तोड़-फोड़!” रुक कर मोंटू ने रमेश दत्त के चेहरे को पढ़ा था।
“तो फिर ..?” रमेश दत्त ने हिचकी ली थी। “तो फिर तो ..” वह बोल नहीं पा रहा था। रमेश दत्त अब अपलक मोंटू को ही देख रहा था।
“डूबेगा आपका ये बॉलीवुड!” मोंटू ने खुलासा किया था। “पानी सर से ऊपर गया!”
“लेकिन .. लेकिन कैसे मोंटू?” रमेश दत्त तड़पने लगा था। “तुम्हीं सोचो यार ..?”
“क्या सोचूं?” मोंटू तड़का था। “क्या फिल्म बनाने लगे हैं ये लोग! अरे, उनके देवी देवताओं का मखौल क्यों उड़ाते हैं ये लोग? ये साली कौन कौमेडी हुई?” मोंटू पूछ रहा था। “जानी वॉकर भाई जान भी तो कौमेडियन थे! मजाल है कोई ऊंच नीच हो जाए!”
एक लम्हे में ही रमेश दत्त को एहसास हुआ था कि वास्तव में ही भटक गये थे वो लोग। गलत अर्थ लगा बैठे – सिनेमा का। गलत अनुमान लगा लिया – लोगों का!
“शान की भी तो पिटी है वो फिल्म – जाने बहार!” मोंटू फिर से बताने लगा था। “क्या साली कहानी ली है?” मोंटू गुस्से में था। “जैसी करनी वैसी भरनी! लोगों को दोष देना तो फिजूल है गुरु!” उसने बात का तोड़ कर दिया था।
मोंटू चला गया था। अचानक ही रमेश दत्त का हाथ जेब में अंदर गया था तो उसने पाया था कि जो चॉकलेट का पैकेट वो नेहा के लिए लेकर गया था वो तो वापस लौट आया था!
“ओ गॉश!” रमेश दत्त ने आह भरी थी। “मति मारी गई है – मेरी!” उसने अपने आप को कोसा था। “मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि नेहा ..”
“नेहा नाराज थी!” रमेश दत्त का अंतर बोला था। “नेहा बदल गई है!” वह महसूसने लगा था। “उसने कासिम बेग के नाम से पुकारा था तुम्हें, याद है?” अचानक उसे भान हुआ था। “और .. और नेहा ने छूने तक नहीं दिया अपने आप को!” उसे याद हो आया था। “और .. और अगर नेहा ने सबके नाम ले दिये तो ..?” बेदम होने लगा था रमेश दत्त।
“अब कैसे जी पाओगे बिना नेहा के – कासिम बेग ..?” उसने लम्बी उच्छवास छोड़ते हुए स्वयं से पूछा था। “कैसे .. कैसे सहोगे नेहा के विछोह को?”
अचानक ही रमेश दत्त को याद हो आया था कि मीडिया ने उसके खिलाफ लिख लिख कर उसे इस पूरी घटना क्रम में एक विलेन बना दिया था! हर उंगली अब उसी की ओर उठने लगी थी। कह रहे थे लोग – रमेश दत्त ही हत्या की जड़ है! यही नई नई लड़कियों को फंसाता है और फिर उन्हें ब्लैक मेल करता है!
“क्या करे? कैसे इनका मुंह बंद किया जाये? मोटा माल दिया था – मुक्त जी को!” उसे याद आया था। “साला पचा गया!” रमेश दत्त को अब रोष चढ़ने लगा था। “ये साला मीडिया भी कित्ता बेईमान है कि ..” मीडिया को कोसता रहा था रमेश दत्त। “किशोर को बता देता हूँ! अगर दो चार भी अंदर हो गये तो चैन आ जाएगा!” उसने योजना तैयार की थी। किशोर काम का आदमी था। खाकर हलाल जरूर करता था।
“सौम-भौम ..” अचानक ही रमेश दत्त को दो नाम याद हो आये थे। ये दोनों विक्रांत के गाढ़े यार थे। दोनों ही बिहारी थे। नेता भी थे और नेता भी ऐसे कि बात का बतंगड़ सैकिंडों में बना दें! उनकी जबान के सामने तो घोड़े भी नहीं दौड़ पाते। अब ये दोनों रमेश दत्त को सूपों में भर भर कर उड़ा रहे थे! “इनका इलाज ..?” रमेश दत्त अपने आप से पूछ रहा था।
“नवाब साहब को बता दो!” एक उत्तर उसके सामने आया था। “जब साले पार्टी से बरखास्त होंगे – तब समझ आयेगा इन्हें!” तनिक खुश हुआ था रमेश दत्त। वह जानता था कि उसके परम मित्र नवाब साहब बहुत काम के आदमी हैं! “अरे, सेवा भी तो कित्ती की है?” तनिक खुश होकर रमेश दत्त को याद आया था। “जब कहा तब, जो मांगा सो हाजिर किया है – भाई!” उसने अपनी पीठ थपथपाई थी।
और तभी रमेश दत्त ने फोन मिला कर नवाब साहब को लाइन पर ले लिया था।
“कैसे हैं हुजूर ..?” रमेश दत्त ने हंसते हुए पूछा था। “मुद्दत हुई कोई हुक्म ही नहीं आया आपका ..?” उसने मधुर कंठ से एक भोली सी शिकायत की थी।
“फिर बात करते हैं!” नवाब साहब का उत्तर था और फोन कट गया था।
“किस्मत ही खोटी है कासिम!” रमेश दत्त ने अपने आप को ही कोसा था और फोन पटक दिया था!
“ले अखबार!” सोनू धोबन ने जोरों से अखबार को नेहा के ऊपर फेंक चलाया था। “तेरे यार के साथ तेरा थी फोटो छपा है!” उसने कंसुरी आवाज में कहा था और चली गई थी।
नेहा ने अखबार को समेटा था और जाती सोनू धोबन को कोसा था।
“ओह .. नो!” अचानक नेहा की चीख निकल गई थी। उसी का फोटो था और वो भी खुड़ैल के साथ .. माने कि उसके आगोश में वही फोटो तो था – पहला पहला ही फोटो जब खुड़ैल ने उसे पटा लिया था और ..! “पर ये फोटो आया कहां से?” नेहा स्वयं से पूछ रही थी। “इतना पुराना फोटो .. और इतना अंतरंग फोटो किसे मिला, किसने छापा, कैसे छापा और क्यों छापा?” पागल होने को थी नेहा।
फोटो में नेहा का चेहरा साफ साफ दिखाई दे रहा था और रमेश दत्त तो पूरा का पूरा – साबुत उसके ऊपर सवार था .. और ..
“नहीं नहीं!” नेहा बिगड़ी थी। नेहा ने आंखें बंद कर ली थीं। वह नहीं चाहती थी कि उस फोटो को देखे। “नहीं ..!” नेहा बिलख रही थी। “सब ने .. पूरी जेल ने देखा होगा?” वो सोचे जा रही थी। “हे राम!” आहत थी नेहा। “और क्या क्या चुकाओगे मुझ अभागिन से?” उसने परमेश्वर से ही पूछा था।
जब जवानी ने दस्तक दी थी तो नेहा ने उसका स्वागत किया था!
अल्हड़ मदमस्त शरीर में जैसे नई नई कोपलें फूटने लगी थीं – नेहा ने महसूस किया था। लगता था – वह हवा में उड़ रही है! वह परी लोक जा रही है! प्रेम गीत गा रही है और कोई है जो .. हॉं हॉं कोई है जो उसके संग संग आ रहा है .. गा रहा है, उसे रिझा रहा है और उसे मना रहा है! लेकिन वह जो बार बार रूठ जाती है। उसका हाथ छुड़ाकर भाग जाती है और उसे जीभ दिखा कर नैन मटका कर उसे खूब तड़पाती है!
“तभी पकड़ा था – इस खुड़ैल ने!” नेहा को याद हो आता है। “मैं .. मैं तो अनाड़ी थी। इसकी बेटी अलंकृता के साथ की ही तो थी! और ये बड़े बड़े बच्चों का बाप था बेशर्म जो मुझ पर डोरे डालने लगा था!”
बातें करते करते ही इसकी जबान अश्लील होने लगती थी। ये जान मान कर मुझे गंदे संदे संदर्भ बताने लगता था। बताने लगता था कि किसका किसके साथ अफेयर चल रहा था और यह कि इसमें कोई बुराई भलाई नहीं है। यह तो एक शुगल है .. एक उमंग तरंग है जिसे खेला खाया जा सकता है!
“बर्डस डू इट!” तब अपना पैट गीत गाने लगता था ये खुड़ैल। “बीज डू इट!” कहते कहते यह मुझे बाँहों में ले लेता था। “लेट्स डू इट!” फिर ये मुझे गिद्ध की तरह अपनी चोंच में पूरी तरह पकड़ लेता था। और फिर .. फिर .. आहिस्ता आहिस्ता ये मुझे निर्वसन करने लगता था और फिर लाख कोशिशों के बाद भी ये मुझे छोड़ता नहीं था!
और एक मेरा मन था कि बावला बन जाता था। बहक जाता था। और इसके साथ सहमत हो जाता था!
“ये विरासत हमें खर्चने के लिए मिली है नेहा!” खुड़ैल बताने लगता था। “लुटाते हैं – मिल कर अपने अपने खजाने!” फिर खुल कर हंसता था खुड़ैल ओर मेरा सब कुछ लूट लेता था!
मेरा सब कुछ लूटता रहा था ये खुड़ैल जब तक कि मैं गर्भवती न हो गई थी बाबू! ओर फिर तो ..
“नहीं बाबू! ये सब हमारे प्रेम होने से पहले हुआ! मैंने तुम्हें दगा नहीं दी बाबू! मैंने तो इसे दुत्कारा था .. मैंने तो तुम्हारी बांहों में अपना त्राण खोज लिया था! मैंने तो तुममें अपना स्वर्ग पा लिया था .. लेकिन .. ये खुड़ैल ..?”
“मुझे हासिल करने के लिए इस खुड़ैल ने तुमसे वैर साध लिया था बाबू!” नेहा ने टीसते हुए कहा था। “तुम्हें ये मिटा देना चाहता था ओर उसके लिए इसने मुझे चुना। चालाकी से इसने मुझे तुम्हारे विरुद्ध किया और फिर मुझे सब्ज बाग दिखा कर चालाकी से इशारा किया कि मैं ..”
“और .. और तुमने भी तो मेरा हाथ छोड़ दिया था बाबू?” अचानक रो पड़ी थी नेहा। “सच कहती हूँ बाबू अगर तुम मेरा हाथ न छोड़ते तो मैं इस खुड़ैल को कच्चा खा जाती! लेकिन ..”
“मैं तो पागल हो गया था नेहा!” विक्रांत की ही आवाज थी। “मैं तो .. मैं तो .. संभल ही कहां पाया?” विक्रांत ने साफ साफ कहा था।
“और हम दोनों बर्बाद हो गये .. दोनों ही नरक में आ पड़े .. और ..”
“फिकर मत करो नेहा!” विक्रांत का वही सजीला स्वर था। “मैं मरा नहीं हूँ नेहा! मैं मरा कब था? और अब तो मेरे और भी अवतार पैदा हो गये हैं! देखना तुम नेहा कि मैं इस बॉलीवुड को ही उड़ा दूंगा! देखती नहीं हो इस उठते तूफान को ..?”
“ओह बाबू! आज नेहा प्रसन्न थी। “ओह मेरे अच्छे बाबू!” वह बिखरने लगी थी।
गलती तो मुझसे ही हुई बाबू!
सॉरी बाबू!
मेजर कृपाल वर्मा