“ये क्या कर डाला तुमने कासिम?” नबी की आवाज सर्द थी। वो कहीं गहरे में दरक गये थे। उन्हें कासिम पर रोष था। “क्या मिला तुम्हें इस छोकरे को मार कर ..?” उनका पहला ही प्रश्न था।
कासिम आज मुद्दतों के बाद मिल रहा था अपने गॉड फादर नबी सुलेमान से। यूं तो हर काम ही क्यों हर सांस भी उनके इशारों पर चलती थी पर रूबरू हो कर तो वो कभी किसी से मिलते ही नहीं थे। लेकिन आज उन्होंने कह कर कासिम को बुलवाया था और अब दोनों सादृश्य आमने सामने बैठे बतिया रहे थे। उनकी बातें दीवारें भी नहीं सुन सकती थीं। नबी सुलेमान सधे और संभले राजनेता थे। उनका नाम था तो उनका काम भी था।
उत्तर तो थे कासिम के पास पर वह देना नहीं चाहता था। वह नहीं चाहता था कि अपने गॉड फादर को उनकी ही तस्वीर दिखा दे ओर बता दे कि – जनाब ये सब आपके लिए हुआ है और आपके इशारों पर ही हुआ है। ये सब आपको चाहिये था तभी तो हुआ है।
“बाजार में लोग सिनेमा के पोस्टर फाड़ रहे हैं!” नबी साहब की दर्द भरी पुकार थी। “लोग जो पगला जाते थे अपने हीरो के दर्शन करने के लिए आज उन्हीं पर थूक रहे हैं!” वो बता रहे थे। “क्यों बना रहे हो ये बकवास फिल्में?”
“हिन्दू .. मेरा मतलब है नबी साहब कि .. हिन्दू ..”
“क्या है हिन्दू? कौन है हिन्दू?” गरजने लगे थे नबी सुलेमान। “पानी में रहकर मगर से बैर करोगे?” वह पूछ रहे थे। “हिन्दू ..”
“हिन्दू मेरा बाप था – नबी साहब!” कासिम बोल पड़ना चाहता था। वह आज अपने टीसते घावों को नबी साहब को उघाड़ कर दिखा देना चाहता था। “मेरी मॉं मुसलमान थी। लेकिन उसने फिल्मों में हिन्दू नाम मधु मति रख लिया था। उसे मधु मति से प्यार हो गया था। साथ साथ कई फिल्में भी कीं। शादी की। एक बेटा भी हुआ। लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि मधु मति नसीरन थी वह उसे छोड़ कर भाग गया!” कासिम ने बुत बने बैठे नबी साहब को कटौंहीं आंखों से देखा था। “हमारा क्या हाल हुआ – जानते हैं आप? दर दर का भिखारी बना था मैं और ..” कासिम क्रोध से कांपने लगा था। “बदला तो लूंगा हिन्दुओं से! ये कितने पवित्र हैं ओर ये कितने महान हैं – मैं भी तो देखूं!”
“आपने कहा था कि ..” कासिम संभल कर बोला था।
“हिन्दुओं को मार डालो?” तड़के थे नबी साहब। “कत्ल कर दो विक्रांत का और ..”
“मैंने तो कुछ नहीं किया – नबी साहब!” घबरा कर बोला था कासिम।
“तो ये प्रेस वाले पागल हैं – जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं, ये पुलिस की रिपोर्टें और ये सारे सबूत गवाह क्या पागल हैं सब?” नबी सुलेमान आपे से बाहर थे।
“इस्लाम ..?”
“हॉं हॉं! इस्लाम ..? लेकिन देख तो लो मेरे भाई कि सूरज निकल कहां से रहा है? चिड़िया दाना लेने चली गई हैं! सूरज भी उनकी छांव कर रहा है ओर एक आप हैं कि अंधकारों में भटक रहे हैं – अभी तक!”
“गलतियां हो गईं हुजूर!” कासिम विनम्र हो आया था।
“उस पोंटू को कहां छुपा रक्खा है?” नबी सुलेमान ने सीधा प्रश्न पूछा था। “तुम सोच रहे हो कि तुम प्रशासन के ऊपर से उतर जाओगे?”
“कोरा मंडी में बैठा है जनाब!” धीमे से कहा था कासिम ने। “वहां न कोई पुलिस पहुंचती है और न प्रशासन!” कासिम तनिक सा हंस गया था।
नबी सुलेमान को भी आश्चर्य हुआ था कि कोरा मंडी ऐसी क्या चीज थी जहां पुलिस और प्रशासन भी नहीं पहुंच सकता था?
“इजाजत दें तो कभी आप को?” शरारत थी कासिम की आंखों में।
“पर ये है क्या बला कोरा मंडी?”
“बला नहीं जनाब – बहिश्त है – बहिश्त!” कासिम ने निगाहें बदल कर बताया था। “देख लेंगे तो तबीयत हरी हो जाएगी!” कासिम मुसकुराया था। “आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि कोरा मंडी में रात भर जो रंग बरसता है – वह किसी बरसाने में कभी बरसा ही नहीं!”
“मतलब ..?” अब नबी साहब की निगाहें भी बदल गई थीं।
“मानते हैं कि सनातन से सीधी टक्कर में आती है कोरा मंडी!” कासिम ने खुलासा किया था। “एक से एक हूर – एक से एक बढ़ कर हुस्न और वहां की वो रंगीन शाम, शबाब और खुमारी का आनंद आपको बहिश्त की सैर करा देगा!”
“कब करा रहे हो इस बहिश्त की सैर?” नबी साहब पूछ रहे थे।
“जब आप कहें तब! पोंटू तो वहां है ही। सारा बंदोबस्त हो जाएगा!” कासिम ने हामी भरी थी।
नबी साहब के गिले शिकवे एक साथ ही कोरा मंडी के प्रसंग से गल गये थे। अब तो उन्हें दिन में ही तारे दिख रहे थे। उनका मन था कि जा डूबें कोरा मंडी की जन्नत में और भूल जाएं इस जहन्नुम जैसे जमाने को!
“मन तो था कि औरंगजेब पर फिल्म बनाऊंगा पर अब कोरा मंडी को लेकर ..”
“ठीक सोच रहे हो कासिम! औरंगजेब अब प्रासंगिक नहीं रहा!” उन्होंने कासिम को नई निगाहों से देखा था। “तुम भी लड़ो मत हिन्दुओं से!” उनकी परामर्श थी। “प्यार से ठगो इन्हें और इस्लाम का उद्देश्य प्राप्त करो। हिन्दू लड़कियां ..” कहते कहते नबी साहब के मुंह में पानी आ गया था।
“आप फिक्र न करें नबी साहब!” कासिम ने उन्हें आश्वस्त किया था। “आपकी खिदमत तो मैं ..”
“कोरा मंडी के बारे और कुछ बताओ?” नबी साहब ने बात पलट दी थी।
“ये अलग ही एक जन्नत है जनाब! और मैं तो चाहूंगा कि इसी तरह की जन्नत हम भी बनाएं जहां आदमी हार थक कर दो पल का सुकून पा ले! डूब डूब कर अपने मन माने समंदरों की सैर करे! जो मन आये खाये, गाए, बजाए और जब तक मन हो डूबा ही रहे!” रुका था कासिम। “सब कुछ मिलता है वहां! ड्रग्स, दारू, मीट ओर हर प्रकार की हूर! तबीयत खिल उठती है ..”
“पुलिस क्यों नहीं पकड़ती?”
“क्योंकि वो अलग प्रदेश है। किसी भी देश के नीचे नहीं आता!” बताने लगा था कासिम। “आप देखें न जनाब! हमने ये पुलिस, प्रशासन, कानून और न जाने क्या क्या मुसीबतें अपने लिए खोज ली हैं! हमें जो चाहिये वो तो मिलता नहीं ओर जो नहीं चाहिए उसे हमने गले से बांध लिया है! आप तो नेता हैं ओर सब कुछ आप के हाथ में है! आप चाहें तो ..” कासिम ने नबी साहब को एक नया रास्ता सुझाया था।
“इस छोकरी नेहा को मुझे दे दो न?” नबी साहब ने भी एक नया प्रस्ताव सामने रख दिया था। “मैं छुड़ा लूंगा इसे जेल से!” वह हंसे थे। “तुम बरी!” उनका वायदा था।
“तुझे कोई निकालता क्यों नहीं जेल से?” कल्प वृक्ष के तने से टेक लगाए बैठी नेहा के पास सरोज आ बैठी थी। “तुम जैसी .. अनमोल ..”
“मर गया वो सरोज!” नेहा ने बेमन उत्तर दिया था। “अगर वो जिंदा होता तो ..” नेहा की आंखें सजल हो आई थीं। “तू जा सरोज!” नेहा ने धीमे से कहा था। “मेरा मन आज खट्टा हो रहा है।” उसने बताया था।
सरोज के जाने के बाद ही विक्रांत उसके पास आ बैठा था। वह चाह भी रही थी कि ख्वाबों में ही सही विक्रांत का आना शुभ था और उसे बेहद अच्छा लगता था।
“तुम मुझे तभी बता देतीं नेहा तो मैं इस खुड़ैल का तभी गला चाक कर देता!” नेहा विक्रांत को कहते सुन रही थी। “मैं जेल काट लेता ..”
“कैसे बताती बाबू?” रोने लगी थी नेहा। “जैसे ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ था – बादल फटने लगे थे, बिजली कड़कने लगी थी और मेरे तो होश ही उड़ गये थे। मैं सारा गुण ज्ञान भूल पागल होने को थी बाबू!”
“मैं भी क्या करता नेहा? मुझे भी पता लगा और मैं पागल हो गया!” बताने लगा था विक्रांत। “उसके बाद तो मैं जीने का मन ही न बना पाया! मैं उस पल के बाद जीया ही नहीं नेहा – कसम ले लो!”
“ओ बाबू!” बिलखने लगी थी नेहा। “मेरा खून कर देते बाबू .. मुझे मार डालते बाबू! कम से कम मैं इस नरक में आने से तो बच जाती?”
“मैं तुम्हें मार ही तो नहीं सकता नेहा!” विक्रांत बता रहा था। “मेरी तो आत्मा तुम में बसती है – पगली!” वह तनिक मुसकुराया था।
“बाबू .. ओ मेरे बाबू! मेरा ये दुर्भाग्य ..?” सॉरी बाबू! आई एम सॉरी .. वैरी वैरी सॉरी!