अकेला उदास बैठा विक्रांत नेहा के चले जाने पर प्रसन्न न था।
सुधीर आने वाला था। आज उससे मिलकर काल खंड के दीवाली पर रिलीज करने की रूप रेखा तैयार करनी थी। सुधीर चाहता था कि काल खंड को ज्यादा से ज्यादा स्क्रीनों पर एक साथ रिलीज किया जाए। लेकिन विक्रांत डर रहा था। जनता का मूड जानना किसी के वश की बात नहीं थी।
“हैलो!” विक्रांत के फोन की घंटी बजी थी तो उसने फोन उठा लिया था। उसका अनुमान था कि सुधीर ही होगा। लेकिन जो आवाज उधर से आई थी वो तो .. “मैं कैली!” महिला की आवाज थी। “पहचाना नहीं?” उसने पूछा था।
“हाऊ कम!” विक्रांत ने हंस कर उत्तर दिया था। “मैं आपको कैसे भूल सकता हूँ।” विक्रांत ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था। “कैसी हैं आप?” उसने औपचारिकता वश हाल चाल पूछा था।
“ठीक थी!” कैली का स्वर खनक रहा था। “लेकिन तुम्हारी इस फिल्म काल खंड ने अशांत कर दिया है।” उसने शिकायत की थी।
विक्रांत डर गया था। उसे लगा था कि जरूर कैली ने कोई काल खंड का खोट पकड़ लिया था। वह तो जानता था कि कैली का फिल्म मेकिंग का कैलीबर महान था। कैली अपने ही विचारों की हिमायत करती थी। खरी खोटी सब कहती थी और सुनने का साहस भी उसमें था।
“व्यस्त नहीं हो तो चले आओ!” कैली निमंत्रण दे रही थी। “दीवाली तक का समय है हमारे पास!” उसने समय की ओर इशारा किया था। “परदेसी टिकट भेज देगा!” कहते हुए कैली ने फोन काट दिया था।
कमाल ही था कि कैली ने उसे खुशी और गम के बीचो बीच लटका कर छोड़ दिया था।
काल खंड पर वाद विवाद तो होगा – यह विक्रांत जानता था। उसे इसकी कोई परवाह भी नहीं थी। उसे एक ही फिक्र थी और वो थी – जनता की पसंद। इसके पक्ष में एक ही तर्क था उसके पास कि अब जनता जन संघ और आर एस एस को स्थान देने लगी थी। भारतीय जनता पार्टी ने अपने लिए स्पेस खोज ली थी और लोगों का मन भी जीता था।
“नमस्कार भाई जी!” सुधीर पहुंच गया था। “आज तो जश्न मनाने का मन है।” उसने हंस कर कहा था। “खूब डिमांड है काल खंड की। कम से कम पांच हजार स्क्रीन्स पर रिलीज होगी।” वह बताने लगा था। “मुन्ना ने आश्वासन दिया है कि ..”
“मैं लंदन जा रहा हूँ!” विक्रांत ने भी सुधीर को अचंभित कर दिया था। “कैली ने याद किया है!” उसने मुड़ कर सुधीर की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।
“डूबोगे क्या?” सुधीर का सीधा वार था।
“अरे नहीं नहीं!” विक्रांत खुल कर हंसा था। “वो वाली बात नहीं है।” उसने अस्वीकार में सर हिलाया था। “जीने की राह की मेकर यही तो है!” विक्रांत ने खुलासा किया था। “इतनी विद्वान महिला है सुधीर कि तुम मिलोगे तो अभिभूत हो जाओगे!” विक्रांत बताने लगा था। “कर्नल साहब की बेटी है और ये कर्नल साहब भारत में ..”
“फिर तो ठीक है।” सुधीर सध गया था। “लेकिन मैं अकेला यहां क्या करूंगा?”
“पहला काम – दत्त से कोई झगड़ा मत करना!” विक्रांत समझा रहा था। “वह हमारी मुसीबतों का पहला कारण है सुधीर!” विक्रांत चिंतित था। “तुम अभी जानोगे कि बॉलीवुड में उसका सिक्का खूब चलता है। और वो हर वो काम करता है जिसमें हिन्दू और हिन्दुस्तान हारे।”
“मैं ये तो जानता हूँ।” सुधीर ने हामी भरी थी। “लेकिन मैं ..”
“अभी नहीं!” विक्रांत ने बात काटी थी। “वक्त आने देते हैं, सुधीर!” हंसा था विक्रांत। “अभी तो रमेश दत्त का वक्त चल रहा है। और कल को जब ..”
“मैं दौड़ा दौड़ा कर मारूंगा इसे भाई जी!” सुधीर कह रहा था। “मैं यह भी जानता हूँ कि ये हिन्दू लड़कियों के साथ ..”
“सभी जानते हैं! पूरा हिन्दुस्तान जानता है। और लड़कियां भी जानती हैं! लेकिन सुधीर भाई मैं भी सब कुछ जानने के बावजूद भी बचता फिर रहा हूँ इस कासिम बेग से!”
“लेकिन क्यों?”
“हम हिन्दू अभी भी एक नहीं हैं, सुधीर भाई।” गंभीर था विक्रांत। “हमारे हिन्दू हमारा ही साथ नहीं देते, मित्र!” ठहर गया था विक्रांत। “देख लेना! जब काल खंड रिलीज होगी तो वही होगा जो दत्त कहेगा और वही बॉलीवुड करेगा ओर प्रेस भी वही कहेगा ..”
“क्या जनता कुछ भी नहीं कहेगी?” सुधीर बीच में बोल पड़ा था।
“लैट्स होप फॉर द बैस्ट!” विक्रांत ने दुआ जैसी मांगी थी।
लंदन जाने से पहले विक्रांत नेहा को बताना न भूला था।
“कैली ने याद किया है!” विक्रांत ने कारण बताया था।
“क्यों ..?” नेहा का प्रश्न था।
“कारण तो कुछ नहीं बताया लेकिन काल खंड ही मुद्दा बनेगा शायद!”
“बेच मत देना – बाबू!” नेहा ने सचेत किया था। “धन तो हम कमा लेंगे!” वह बोली थी।
“तुम्हारे पूछे बिना तो मैं पानी तक नहीं पीऊंगा!” हंस कर कहा था विक्रांत ने। “पहुंच कर फोन करता हूँ।” उसने वायदा किया था।
मिली सूचना ने नेहा को भी खुशी और गम के बीचो बीच लटका कर छोड़ दिया था।
जीने की राह की पूरी टीम विक्रांत को घेरे बैठी थी।
जीने की राह की सफलता के बाद अब सब लोग काल खंड की सफलता की कामनाएं कर रहे थे। उन सब को पूर्ण विश्वास था कि काल खंड एक काल जयी फिल्म साबित होगी।
“नेहा जी क्यों नहीं आईं?” आम प्रश्न था जिसका सामना करते करते विक्रांत थक गया था।
काल खंड में किए नेहा के नए किरदार की खूब चर्चा थी।
“मेरे हिसाब से सोए हिन्दुओं को जगाने का काम – एक पुण्य का काम है।” कैली ने अपनी राय देते हुए विक्रांत की ओर देखा था। “ये इतिहास की एक ऐसी अभिव्यक्ति है – जो सरल है, सटीक है, ग्राह्य है ओर सार गर्भित भी है। ये सीधा सा एक कैपसूल है जो गुलामी की बीमारी पर सीधा हमला करता है।”
“और कोरा मंडी के बारे क्या राय है?” परदेसी का प्रश्न था। “कहते तो हैं ग्लोबल फिल्म है!”
“कूड़ा है – कोरा मंडी!” कैली ने सीधा प्रहार किया था। “दिस मैन दत्त इज हाईली कन्फ्यूज्ड!” उन्होंने अपनी राय दी थी।
“विक्रांत!” कैली सीधे सीधे व्यापार की बात पर उतर आई थी। “बोलो! क्या मांगते हो?”
“पैसों के लिए नेहा ने मना कर दिया है।” विक्रांत का सपाट उत्तर था।
“फिर कैसे?”
“जैसे आप चाहें!”
एक चुप्पी लौट आई थी। कहीं परदेसी बहुत प्रसन्न हुआ लगा था। पहली बार उसने अपने एक भारतीय को देखा था जो पैसे का भूखा नहीं था।
“ठीक है! भारत में पांच हजार और भारत के बाहर दस हजार स्क्रीन्स पर फिल्म को रिलीज करते हैं!” कैली का प्रस्ताव आया था। “लैट्स डिसाइड ..”
“मुझे कोई एतराज नहीं है!” विक्रांत प्रसन्न था। उसे पता था कि रमेश दत्त का कांटा निकल गया था। भाई की टांग भी अब असर नहीं करेगी। “लेकिन नेहा से ..”
“मैं पूछ लूंगी नेहा से!” कैली ने हंस कर हामी भरी थी। “मैं वैसे भी उससे मिलना चाहती हूँ।” कैली कहती रही थी। “अगली फिल्म में फिर से तुम दोनों को कष्ट देने का मन है।” कैली ने घोषणा कर दी थी।
विक्रांत को लगा था जैसे ईश्वर उसे बिना मांगे वरदान दिए जा रहा था।
“मंडे को यू एस चलना है।” कैली ने बताया था। “अगली फिल्म में तुम्हारी राय लेनी है।” उसका आग्रह था।
बीच में तीन दिन का अवकाश था। विक्रांत का मन फूला न समा रहा था। शेखर का लगातार फोन आ रहा था। परदेसी ने भी तीन बार याद दिलाया था कि शेखर को वक्त चाहिए था। गलती किसी की नहीं थी। उसका मन भी था कि शेखर से मिले और अपने मन की एक एक बात उसे कह सुनाए! कुछ काम का दौर ऐसा चला था कि वह दोनों चाहकर भी मिल नहीं पाए थे।
“मेरा कोर्स पूरा होने के बाद ही शादी होगी!” शेखर ने अपनी पूरी कहानी सुनाने के बाद शर्त रख दी थी। “ज्यादा वक्त है भी नहीं!” उसका कहना था। “मैं .. मैं भाभी जी से – ओह नो! सॉरी! नेहा जी से .. माफी मांग लूंगा ..”
“पर मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगा पाजी!” विक्रांत खुशी से फूला न समा रहा था। “तेरी पढ़ाई क्या हुई साली आफत खड़ी हो गई! यार! तू ..!”
“भइया! शपथ ले लो मैं मर मर गया हूँ आप से मिलने के लिए! जीने की राह न जाने कित्ती बार देखी है ओर अब काल खंड ..”
“ये सब तो नकली बातें हैं!” विक्रांत कह रहा था। “अब तू असली बातों पर आ जा!”
“ओ भइया!” शेखर ने कौली भर ली थी विक्रांत की। “मैं .. मैं तो आपका ऋणी हूँ हर हर मायनों में! आप ही तो मेरे इष्ट हैं ..”
“बस भी कर यार!” विक्रांत ने स्नेह पूर्वक कहा था। “आज इत्ते दिनों के बाद ..”
नेहा का फोन था तो विक्रांत ने शेखर की ओर देखा था।
“करनी है – बात?” विक्रांत ने हौले से पूछा था।
“नहीं! अभी नहीं!” नाट गया था शेखर।
“हां बोलो स्वीट हार्ट!” विक्रांत ने गर्म जोशी के साथ कहा था।
“बाबू ..! बाबू ..!” हिचक रही थी नेहा। “वो .. बाबू – कुछ पैसे चाहिए थे?”
“अरे! मालिक को नौकर की परमीशन क्यों चाहिए?” विक्रांत खुश मूड में था। “मालकिन तो तुम्ही हो भाई। जित्ता चाहे ले लो।” विक्रांत कह रहा था।
“ओह बाबू ..! ओह .. माई .. माई ..” नेहा द्रवित थी। “समीर मुश्किल में है! इस खुड़ैल ने बर्बाद कर दिया है।”
“वो आबाद तो किसी को भी नहीं करता। बसाता नहीं है – उजाड़ता है!” विक्रांत ने कहा था। “इसका भी इलाज खोज लिया है मैंने, नेहा!” विक्रांत ने सूक्ष्म में बताया था।
“बाबू .. आई लव यू!” नेहा ने आंखों में भर आए खुशी के आंसुओं को कैद कर लिया था!