धारावाहिक – 17
‘बहुत -बहुत बधाइयां । मुबारकबाद । जहेनसीब – जो नेहा को इतना काम और नाम मिला है।’ रमेश दत्त मुझे प्रसन्न करने की कोशिश कर रहा था । ‘ये देखो । कितना शानदार फोटो है ?’ उस ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था । ‘साहबज़ादे सलीम हैं , ये ।’ वह बताने लगा था। ‘ये हैं जो ‘नवाबज़ादे’ में लीड रोल में तुम्हारे साथ आ रहे हैं ।’ उस ने अब मेरी ऑंखों को पढ़ा था ।
मैं चुप थी । मैं अपने शकों से ही सवाल पूछ रही थी । मैं मान बैठी थी कि रमेश दत्त ने अब मुझे एक फूटी कौड़ी भी नहीं देनी है । लेकिन …..
‘लंदन बेस्ड हैं । ‘ रमेश दत्त बोलने लगा था । ‘धनी बाप के बेटे हैं । मल्टीमिलियोनर है , परिवार । सिर्फ शोक के लिये ही फिल्में करता है ।’ रमेश दत्त ने फिर से मुझे निहारा था पर मैं चुप थी ।
‘क्यों , पसंद नहीं आया …?’ रमेश दत्त ने मुझे पूछा था ।
‘दिलीप कुमार तो कहीं से नहीं लग रहा है ।’ मैंने मुंह बिचकाते हुए कहा था ।
‘अरे, नहीं मैडम ।’ उछल पड़ा था, रमेश दत्त ।’इस की डिमांड हॉलीवुड में इतनी है कि तुम हैरान रह जाओगी । ही इज ए हॉट केक इन हॉलीवुड ।’ रमेश दत्त बताने लगा था । ‘कितनी कठिनाई से माना है हिन्दी फिल्म में काम करने को – मैं ही जानता हॅू ।’ रमेश दत्त मेरे पास खिसक आया था । ‘हिन्दी आती ही नहीं , इसे ।’
‘फिर क्यों आ रहा है , हिन्दी फिल्मों में ?’ में नाराज थी । मैंने रमेश दत्त को कठोर निगाहों से घूरा था ।
‘आ नहीं रहा , उसे तो लाया जा रहा है ।’ रमेश दत्त बताने लगा था। ‘हम ला रहे हैं , उसे । हमने उसे मनाया है …और बताया है कि …हिन्दी फिल्में भारत का ही नहीं …पूरे विश्व का ……’
‘मैं काम नहीं करूंगी ।’ मैंने साफ-साफ कहा था । ‘मैं तो ….मैं तो …मरना चाहती हूँ ।’
‘कमोन, नेहा ।’ रमेश का स्वर लरज आया था । ‘एक बार मिलोगी न ….साहबज़ादे सलीम से ….तो …’
‘मैं क्यों मिलूंगी …?’ मैं साफ नाट गई थी । ‘पहले पेमेन्ट चाहिये ।’ मैं अपनी जिद पर उतर आई थी ।
अचानक ही एक चुप्पी आ बैठी थी , ऑफिस में । रमेश दत्त का सारा जोश ठंडा पड़ गया था । अब वह इधर-उधर की बगलें झाँक रहा था । शायद उसे उम्मीद ही न थी कि मैं इस तरह से जिद कर बैठूंगी ।
‘ठीक है।’ वह अंत में बोला था । ‘मैं अभी तीर-‘फटा करता हूँ ।’ उस ने फोन मिलाना आरंभ किया था । ‘करता हूँ , भाई से बात ।’ वह बड़बड़ा रहा था । ‘पैसा इतनी बड़ी बात नहीं है , नेहा ….कि …’
कठिनाई से कई बार फोन मिलाने के बाद ही नम्बर मिला था ।
‘भाई , मैं कासिम ।’ रमेश दत्त बोला था । ‘भाई , वो ….वो ….नेहा , ‘नवाबज़ादे’ की हिरोइन ……..’
‘हां, हां । क्या हो गया , उसे ?’ आवाज भाई की थी ।
‘उसे पेमेन्ट चाहिये । घर पर एमरजेन्सी है ।’ रमेश दत्त बताने लगा था ।
‘पागल है , तू ….?’ उधर से उत्तर आया था । ‘नोट पेड़ों पर लगते हैं , क्या ? सूत न पौनी …कोरिया से लठा-लठी ….? यार , कुछ तो सोचा कर …..’ उस ने फोन काट दिया था ।
जैसे आसमान से टूट कर गाज गिरी हो – ऐसा लगा था ।
मेरा भी चेहरा उतर गया था । मैं भी डूबने लगी थी । आखिरी उम्मीद के चिराग को भी बुझता देख – मुझे मौत ही नजर आने लगी थी । मामला गंभीर बनता ही जा रहा था । इस बीच प्रभा का तीन बार फोन आ चुका था । उस का कहना था कि मैं घाेर संकट में आने वाली थी ….अगर ….
‘अब क्या करूँ…?’ सीधा प्रश्न दिमाग से आया था । मैंने भी सीधा रमेश दत्त को ही घूरा था । मेरा इरादा था कि मैं उसे ……
‘साले टटपूंजिये हैं ।’ रमेश दत्त ने गालियां देना आरंभ किया था । ‘फिल्म बनायेंगे …..स्टार कास्ट टॉप की लेंगे ….। माई फुट …।’ वह भाई को कोसने लग रहा था । ‘मैं भी देखता हूँ …कि ….’
‘मैं चलती हूँ।’ हारी – थकी आवाज में मैंने कहा था और उठ खड़ी हुई थी ।
‘क्यों …? बैठो , नेहा ।’ रमेश दत्त ने मुड़ कर मुझे देखा था । ‘मैं तो जिंदा हूँ , न …?’ उस ने मुझे देख कर कहा था। ‘अरे, मुकीम । दो टिकट दिल्ली की कराे । कल के लिये ।’ उस ने फोन काट दिया था । ‘चलते हैं – आजम गढ़ ।’ वह कह रहा था । ‘होगा बंदोबस्त पैसे का ….।’ वह जैसे एलान कर रहा था । ‘तुम देखना , नेहा कि ….’
और मैं फिर से सकते में आ गई थी ।
रमेश दत्त पर मुझे शक होता ही जा रहा था । मुझे ताे अब ये कोरा बहरूपिया ही लग रहा था । मुझे लग रहा था कि ये मेरी नाव डुबो कर ही मानेगा ।
‘डूबते हैं – साथ-साथ ।’ मैंने हिम्मत कर अपने आप से कहा था । ‘ अब इसे छोड़ना नहीं है । ‘ मैंने निर्णय ले लिया था ।
‘तैयार रहना , कल सुबह-सुबह निकलेंगे ।’ रमेश दत्त ने मुझे समझाया था । ‘घर से ही ले लूंगा ।’ उस का वायदा था ।
‘चाहे जहन्नुम में ले चल ….नरक में चल ….चल जहॉं तू चाहता है ।’ मैं बड़बड़ा रही थी , बाबू । ‘मैं तुझे छोड़ूंगी नहीं , रमेश दत्त । मरूंगी भी तो ….तुम्हें साथ ले कर …।’ मैंने निर्णय कर लिया था ।
और क्या करती , बाबू ? मौत से आगे औरत के पास और होता भी क्या है – यह तुम्हीं ने कहा था । याद है न जब हम शिमला शूट पर गये थे और तुमने जिद की थी कि मैं तुम्हारे साथ स्टंट करूँ- डूब मरने का ….साथ-साथ डूब मरने का जिस में जोखिम था कि कहीं हम दोनों ही डूब न मरें ?
काश, बाबू । हम दोनों तब डूब मरते तो ……आज मेरी ये फजीहत न होती ….?
आई एम सॉरी, बाबू ……।
रोती रही थी, नेहा ।
क्रमशः ………..