“हंसना हंसाना सबसे बेजोड़ बात है।” छोटा फरीद रमेश दत्त को समझा रहा था। “रोते को हंसाना मेरे और हल्ला-गुल्ला के बाएं हाथ का खेल है।” वह अपनी शेखी बघार रहा था। “हम दोनों ही जाने जाते हैं हंसने हंसाने के लिए! मानिए आप दत्त साहब कि हमारे शो में लोग हंसते हंसते बेदम हो जाते हैं।” छोटे फरीद ने रमेश दत्त के गंभीर हो आए हुलिए को पढ़ा था। “ये तो आप मान कर चलें कि हमारा शो ..”
“ये सिनेमा है फरीद!” दत्त साहब ने गुरु गंभीर आवाज में कहा था। “इट टेक्स लॉट्स ऑफ मनी .. एंड ..”
हल्ला-गुल्ला ने बात को बिगड़ते महसूसा था। उसे लगा था कि रमेश दत्त का मन नहीं बन रहा था शायद।
“एक आइटम देख लें हमारा – जहां प्रेमी और पति किस तरह से पत्नी और प्रेमिका के लिए बारी बारी प्रस्ताव रखते हैं और ..” हल्ला-गुल्ला का सुझाव था। “आप तो महान फिल्मकार हैं दत्त साहब! एक चावल से ही पूरे पतीले का ..” हंस पड़ी थी हल्ला-गुल्ला।
रमेश दत्त का मन बन गया था।
कोरा मंडी द्वीप पर बेतहाशा भीड़ जमा थी। हल्ला-गुल्ला और छोटे फरीद के कारनामे मशहूर थे। कोरा मंडी के लिए उन्होंने प्रेम प्रसंग से लेकर हॉरर और सस्पेंस तक चौदह आइटम तैयार किए थे। रमेश दत्त ने भी महसूसा था कि हंसते हंसते रुलाने की कला और फिर विस्मय के वो पल पैदा कर देना, जहां दर्शक हैरान रह जाए, उन दोनों के पास थी।
कोरा मंडी एक साथ कई सोपान चढ़ गई थी और रमेश दत्त के विजन को प्रेस ने भी खूब सराहा था।
“पाकिस्तान के लोग बहुत खुश हैं।” रहमान पठान रमेश दत्त को सूचना दे रहा था। “लोग आपके गुण गाते हैं पाकिस्तान में!” उसने बताया था।
रमेश दत्त ने आंखें भर कर रहमान पठान को देखा था। गबरू जवान था – रहमान पठान। बड़ा ही हैंडसम और होनहार युवक था। एक्टिंग भी अच्छी करता था। लेकिन पाकिस्तान में तो स्कोप ही नहीं था वरना तो ..
“कुछ दिन की ही बात है बरखुर्दार!” रमेश दत्त प्रसन्न होकर कह रहे थे। “हिन्दुस्तान ओर पाकिस्तान सब हमारा तुम्हारा होगा!” रमेश दत्त ने कहीं दूर, बहुत दूर देखा था। “अब तो अल्लाह का रहम चाहिये बस!” उनका स्वर गंभीर था। “अल्लाह के रहम से हमारा ..”
रहमान पठान बहका बहका रमेश दत्त को समझने का प्रयत्न करता रहा था। वह अल्लाह के कौन से करम की बात कर रहे थे, वह समझ ही न पा रहा था। उसे तो एक रोल चाहिये था – कोरा मंडी में एक लीड रोल की दरकार थी उसे। और वो भी वह चाहता था कि अगर ..
“अगर आप जन्नत जहांगीर को भी साइन कर लें तो सोने में सुहागा जैसा रहेगा दत्त साहब।” हिम्मत बटोर कर रहमान पठान ने अपनी मांग दत्त साहब के सामने रख दी थी। “हम दोनों की कैमिस्ट्री मिलती है।” सूचना दी थी रहमान पठान ने। “मैं भी ..”
अचानक ही रमेश दत्त की निगाहों के सामने नेहा आ खड़ी हुई थी।
“बहुत बहुत मीठी है – नेहा!” रमेश दत्त ने मन में कहा था। “नेहा का मुकाबला जन्नत जहांगीर कभी कर ही नहीं पाएगी – पठान भाई!” वह तनिक मुसकुराए थे। “मेरी नेहा का मुकाबला तो शायद ही कोई हीरोइन कर पाए!”
“एक बार आप मिल लें जन्नत से!” पठान ने विनम्र आग्रह किया था।
“जरूरत पड़ी तो देख लेंगे।” रमेश दत्त रहमान पठान को नाराज नहीं करना चाहते थे।
हल्ला-गुल्ला और छोटे फरीद ने रमेश दत्त को निराश नहीं किया था।
और जो संगीत डागर घराने के शास्त्री जी ने पेश किया था उसने तो कमाल ही कर दिया था। रमेश दत्त को लगा था कि कोरा मंडी सफल होगी और लोगों की जेबें खाली कर देगी। उनका ये विचार अंगूर की बेल की तरह बढ़ रहा था और अब उन्हें अंत में मीठे फल लगते दिखाई दे रहे थे।
खास कर जो हॉरर और सस्पेंस के दो प्रसंग थे, बहुत ही बढ़िया बने थे। रमेश दत्त ने निर्णय कर लिया था कि उन दोनों सीक्वेंस को पब्लिसिटी के लिए प्रकाशित करेंगे ताकि कोरा मंडी अभी से लोगों के दिमाग में बैठ जाए और जब फिल्म रिलीज हो तो दर्शकों की कतारें ..
रमेश दत्त को अपने बुलंद होते सितारों के दर्शन दिन में ही हो गये थे।
लेकिन बंबई लौटे थे तो दत्त साहब के तोते उड़ गये थे।
पाकिस्तानी कलाकारों को कोरा मंडी में काम देने पर बंबई में बवाल मचा था। आते ही रमेश दत्त के पीछे मीडिया पड़ गया था। तीखे प्रश्न थे, आरोप प्रत्यारोप थे और एक देश के प्रति जवाबदेही भी थी जिसके दत्त साहब ने उत्तर देने थे। वो क्या कारण थे जो पाकिस्तान के कलाकारों को बॉलीवुड में बुलाया जा रहा था? क्या हिन्दुस्तानी कलाकार उनसे कमतर थे? क्या अभाव था बॉलीवुड में जो ..
क्या जवाब दें दत्त साहब समझ ही न पा रहे थे।
और तभी बंबई में जन्नत जहांगीर के साथ रहमान पठान का आगमन हुआ था। दोनों कलाकारों के चित्र पत्र-पत्रिकाओं में छपे थे। जन्नत जहांगीर चर्चा में थीं। हर किसी ने मान लिया था कि अब नेहा के स्थान पर जन्नत जहांगीर ही होंगी और के साहूकार की जगह पर होंगे रहमान पठान।
“नेहा को आप ने कोरा मंडी से क्यों ड्रॉप किया दत्त साहब?” सीधा प्रश्न सामने था।
“किसने कहा?” दत्त साहब ने तड़कते हुए पूछा था।
“कहां है नेहा?” फिर से प्रश्न आया था।
अब क्या बताते दत्त साहब – उनकी समझ में ही न आ रहा था।
“आई एम जूलिया रॉबर्ट्स!” एक बेहद ग्लेमरस महिला ने दत्त साहब को अपना परिचय दिया था। “आई एम फ्रॉम फ्रांस!” वह बताने लगी थी। “मैंने हॉलीवुड की क्रेजी फिल्म में अभिनय किया है।” वह हिन्दी में बोलने लगी थी। “आप ने शायद देखी हो क्रेजी जिसने ..”
“सात अवार्ड जीते हैं!” हंसते हुए कहा था दत्त साहब ने। “आइये आइये!” दत्त को मीडिया से जान छुड़ाने का माकूल मौका मिल गया था। “माफ कीजिए! आप के प्रश्नों के उत्तर उधार रहे!” हंस पड़े थे दत्त साहब। “अब ये भी तो कलाकार हैं!” वह बताने लगे थे। “अरे भाई! कलाकार किसी एक देश या एक कौम का नहीं होता। वह तो सबका साझा होता है। कलाकार को अगर हम देश परदेश या जाति पांत की बेड़ियां पहना देंगे तो वो तो बेचारा मर ही जाएगा।” दत्त साहब को अब होश लौट आया था तो उन्होंने कलाकारों के महत्व को समझाया था। “पाकिस्तान और हिन्दुस्तान अलग हैं कहां?” वह हंसे थे और चले गये थे।
जूलिया रॉबर्ट्स के साथ रमेश दत्त एक गहन विषय को लेकर बातें कर रहे थे। जूलिया रॉबर्ट्स के हिन्दी फिल्मों में एक्टिंग करने के प्रस्ताव पर चकित थे रमेश दत्त। उन्हें लगा था कि वो जो उर्दू को लेकर उड़ानें भरना चाहते थे, वो शायद बहुत बौना विचार था। और जो जूलिया रॉबर्ट्स बता रही थी – वह तो बड़ा ही विस्मयकारी था।
“जीने की राह फिल्म देख कर मैंने महसूस किया दत्त साहब कि सनातन में बहुत दम है।” जूलिया रॉबर्ट्स बताने लगी थी। “दुनिया को अगर हमने प्राणदान देना है तो हमें सनातन की शरण लेनी होगी।” जूलिया रॉबर्ट्स ने अपनी राय सामने रक्खी थी।
पहली बार ही था जब रमेश दत्त ने सनातन की बात को ध्यान से सुना था और उसपर गौर भी किया था। ये रिपोर्ट पश्चिम से चलकर आई थी और शायद पूरा पश्चिम ही बोल रहा था – वसुधैव कुटम्बकम!
“आप क्रेजी से खुश क्यों नहीं हैं?” रमेश दत्त ने उलटा प्रश्न पूछा था।
“इसलिए दत्त साहब कि क्रेजी में हम जग जीतने की बात करते हैं और हम जगत को जीत भी लेते हैं। लेकिन मन को जीतने की कला हमें नहीं आती।” हंस पड़ी थी जूलिया। “और ये हमारा मन, अजेय तो नहीं कहूंगी पर हां कठिन जरूर है – काबू आना! लेकिन सनातन के पास इसके उत्तर हैं!”
“वो कैसे?” दत्त साहब पूछ बैठे थे।
“हॉलीवुड के पास अब कुछ नया करने के लिए नहीं रहा दत्त साहब!” जूलिया बता रही थी। “लेकिन बॉलीवुड के पास जो अथाह कथा सागर है वो शायद कभी नहीं चुकेगा और उसका सोर्स है सनातन!” मुसकुरा रही थी जूलिया।
पहली बार लगा था रमेश दत्त को कि जो दारुल इस्लाम और गजवाए हिंद की दो दोधारी तलवारें उन्होंने थाम रक्खीं थीं, वो तो मिथ्या थीं। उनका मन हुआ था कि वो उन्हें फौरन ही अपने दिमाग से निकालें और सड़क पर फेंक चलाएं! लेकिन ..
“अब नहीं!” टीस आये थे रमेश दत्त। “अब नहीं!” वो स्वयं को सुना कर कह रहे थे। “अब तो कासिम अल्लाह की रजा का गुलाम है। अब लौटने का वक्त नहीं बचा मेरे मौला! और .. और अब मुकाम है भी कितना दूर?”
“सूरज तो पूरब से ही निकलता है दत्त साहब!” जूलिया ने उनका सोच तोड़ा था। “और अब ये सनातन का सूरज ही संसार को मिटने से बचा ले – शायद ..”
जूलिया हंस रही थी और दत्त साहब उसका साथ दे रहे थे।