मोती आया था। फिल्म बना रहा था। मोती के बारे सोच तनिक हंस गये थे दत्त साहब! मोती एक नम्बर का शठ था। बहुत चालू था। अपना काम निकालने में माहिर था। घर से गरीब था लेकिन अब तो मोती के मजे थे! रजिया को साथ लेकर फिल्म बना गया था। और फिर रजिया ने भी इसे नहीं छोड़ा। जब इन्होंने निकाह पढ़ाया था तो मोती ..

“अब तो अपनी जमात में शामिल है मोती!” विहंस गये थे, रमेश दत्त।

“प्रणाम गुरु जी!” मोती ने चरण स्पर्श किये थे। “फिल्म बनाने से पहले आशीर्वाद लेने आया हूँ! आप मेरे गुरु हैं – इसलिए ..”

“बना क्या रहा है?”

“‘आग’ बना रहा हूँ। पंडित रवि की कहानी है, गीत गोविंद ने लिखे हैं और ..”

“फिर तो आग में जलकर भस्म हो जाएगा!” रमेश दत्त बोल पड़े थे। “अबे! पंडितों को फिल्म की कहानियां कहां लिखनी आती हैं?”

“नहीं गुरु! बहिन भाई की कहानी है। याद है न वो मदर इंडिया सीन – जब आग लग जाती है और सुनील दत्त नरगिस को निकालता है ..?”

“अबे उल्लू! वो जमाने तो कब के लद गये! कहानी मकबूल से लिखवा, गीत के लिए मैं मेहँदी को कह देता हूँ और संगीत ले ले – शेरा-बघेरा का!” सुझाव था दत्त साहब का।

“आप फिर विक्रांत और नेहा से साइन करा देना?” शर्त लगा दी थी, मोती ने।

दत्त साहब का जायका ही बदल गया था।

“विक्रांत को एक्टिंग आती कहां है बे?” तनिक नाराज होकर दत्त साहब बोले थे। “उस गांव के गंवार की तरह उछल कूद को तू एक्टिंग बोलता है?”

“गुरु जी! क्या आपने ‘मॉं के आंसू’ का ट्रेलर नहीं देखा?” मोती पूछ बैठा था। “धांसू मूवी बनी है गुरु!” मोती हंस रहा था। “खुदा कसम नोटों के गारे ..”

दिमाग चढ़ गया था दत्त साहब का!

“देख मोती!” बड़ी देर के बाद व्यवस्थित होकर दत्त साहब बोले थे। “बहिन भाई के रोल के लिए विभा और आलोक को ले ले! मॉर्डन प्लॉट है। दोनों घर पर भी खूब लड़ते हैं। अब वो ‘भइया मोरे राखी के बंधन’ .. वाला जमाना तो है नहीं! दर्शक पागल हो जाएंगे जब ये दोनों ..”

“लेकिन गुरु फिर पैसे की किल्लत ..?” रुआंसे स्वर में बोला था मोती।

दत्त साहब ने बिना विलंब के मोंटू को फोन मिला लिया था!

“मोंटू, अपना मोती है। फिल्म ‘आग’ बना रहा है। इसे पैसे दे देना! हॉं हॉं! खाते कमाते पटा देगा पैसे!” दत्त साहब ने मोंटू को आदेश देकर मोती को घूरा था। “और बोल ..?” वह हंस गये थे!

मोती के जाते ही दत्त साहब ने तारा को फोन मिलाया था!

“तुम्हारे ही बेटी बेटे हैं!” वो अचानक तारा की आवाजें सुन रहे थे। “दिलाओ न इन्हें काम ..?” तारा का आग्रह था।

“फिल्मों में ही ..?” रमेश दत्त ने तारा से प्रश्न किया था।

“क्यों ..?” तारा चहकी थी। “मूसे के जाये – भिट्टे ही खोदेंगे!” तारा ने जुमला कहा था। “सबके बेटे बेटी फिल्मों में ही तो काम कर रहे हैं! फिर हमें कौन बंदिश है?”

तारा फोन पर थी!

“हॉं! दिला दिया तुम्हारे बच्चों को काम! लीड रोल में हैं दोनों! मोती फिल्म बना रहा है और ..” दत्त साहब कहते ही रहे थे।

और फिर वा जिंदगी के हरियाली वाले दिन अचानक ही उग आये थे! जब उन्होंने तारा को डस्टबिन में से खोज लिया था और हिरोइन का रोल देकर ‘वो दिन’ फिल्म बना डाली थी तो तारा रातों रात सितारा बन गई थी! क्या जलवा था – तारा का और कैसा बेजोड़ हुस्न था उसका! पागल हो गये थे वो! तारा का आशिक बनने का पहला मौका था – उनका। सुध बुध भूल कर वो तारा के हो गये थे!

“मैं मॉं बनने वाली हूँ, रमेश!” तारा ने जब कहा था तो वो बेहोश होने लगे थे। “हमारी शादी अब शीघ्र हो जानी चाहिये!” तारा की शर्त थी।

अब आ कर उनका इश्क का नशा उतरा था!

और तारा के भी होश उड़ गये थे जब रमेश दत्त ने उसे निकाह पढ़ने के लिए राजी करना चाहा था!

“मुसलमान हो तुम ..?” तारा ने कांपते स्वर में पूछा था।

“क्यों ..?” अब दत्त साहब गरजे थे। “ये हिन्दू मुसलमान होना एक हिमाकत है, तारा!” उन्होंने बताया था। “मान लो कि ये एक रिवाज है! हिन्दू तो वैसे भी ..” बहुत जोरों से हंसे थे दत्त साहब।

तारा को फसा लिया था उन्होंने!

लेकिन नेहा का अभी तक कहीं अता पता न था। मोती उनसे झूठ न बोलेगा ये दत्त साहब जानते थे। ‘मॉं के आंसू’ बन चुकी है – यह आज स्पष्ट हो गया था। विक्रांत और नेहा साथ साथ हैं, ये भी सच था। विक्रांत का गांव जाना एक अफवाह थी – वो मान लेते हैं! लेकिन अभी तक मुसाफिर की ओर से कोई संदेश नहीं था?

“नेहा डार्लिंग! अब मेरी जिंदगी का अंत और आधार तुम्हीं हो!” दत्त साहब स्वयं को सुना कर संवाद कह रहे थे। “हराम है – बिन तुम्हारे जीना!” उन्होंने शपथ जैसी ली थी। “तुम जैसी हसीन, तुम जैसा नायाब नगमा और तुम जैसी हूर जन्नत में भी शायद ही मिले?” वह प्रसन्न हो कर कह रहे थे। “हम आजमगढ़ में ही बसेंगे नेहा!” दत्त साहब का दिमाग चल पड़ा था। “उस अपने नसीम वाले बगीचे के बीचों बीच महल बनाएंगे ओर उसका नाम रखेंगे जहां आरा महल!” वह हंसे थे।

“क्यों ..?” अचानक नेहा के बोल भी उन्होंने सुने थे।

“इसलिए कि निकाह के बाद तुम्हारा नाम जहां आरा होगा डियर!” बताने लगे थे दत्त साहब। “और हम होंगे नवाब कासिम बेग और तुम होगी बेगम जहां आरा! यही आजमगढ़ में बसेंगे और अपनी सल्तनत कायम करेंगे!”

“दिन दहाड़े ख्वाब देख रहे हैं – नवाब कासिम बेग ..?” नेहा जोरों से हंस पड़ी थी। “लद गये वो जमाने नवाब साहब जब खलील मीयां फाख्ता उड़ाया करते थे! अब तो देश में हिन्दुओं का राज है!”

“बराए नाम समझो बेगम!” हंसते हुए बोले थे दत्त साहब। “बुरा हो इन अंग्रेजों का खाक में मिलें ये बदमाश!” उन्होंने गालियां बकी थीं। “न जाने कहां से आ कर मुगलिया सल्तनत को बरबाद कर दिया?” टीस आये थे दत्त साहब। “वरना तो हिन्दू बचे कितने थे? और हिन्दुओं ने तो मुगलों की गुलामी मान ही ली थी। अगर ये बद नीयत न आते तो ..”

“अब मुमकिन नहीं है नवाब साहब!” नेहा ने चुनौती दी थी।

“है! खूब है!” दत्त साहब गरजे थे। “कितनी आसानी से आज भी हिन्दू मुसलमान बन जाते हैं! कुछ तो दो-चार शादी करने के लालच में ही धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। और कुछ तुम जैसे हार्ड कोर पहाड़ के नीचे आते हैं तो मान जाते हैं!”

“भूलिए मत कि हिन्दू परम्परा वादी हैं नवाब साहब!”

“अरे छोड़ो बेगम!” दत्त साहब बताने लगे थे। “अब सब मास खाने लगे हैं, शराब पीने लगे हैं, अइयाशी करते हैं और कितने बचे हैं जो ..?”

“सिविल वॉर हो सकती है” नेहा ने उन्हें चेताया था।

“हो जाये! हिन्दुओं को लड़ना आता कहां है?” दत्त साहब ने बात को विराम दे दिया था।

गौरी और रोमी का रोल करते करते वो दोनों न जाने कैसे पति पत्नी का सा ही आचरण करने लगे थे। नेहा ने तो मन प्राण से विक्रांत को वर ही लिया था। और विक्रांत भी नेहा को अब अपनी सर्व प्रिय धरोहर मान बैठा था!

“अब नहीं खुड़ैल को हाथ रखने दूंगी!” नेहा ने मन ही मन एक शपथ ली थी। “अब तो मेरा सर्वस्व विक्रांत ही है!” उसका दृढ़ निश्चय था।

लेकिन खुड़ैल एक खेला खाया आदमी था – मैं यह भूल गई थी, बाबू!

उसे हर रास्ता याद था। वह जिंदगी के हर दाव पेंच जानता था। वह औरत की हर कमजोरी का फायदा उठाना अपना फर्ज मानता था। और वह जानता था कि हमारी जिंदगियों में घुसने के लिए वह कौन सा चोर रास्ता लेगा और फिर ..

ओर फिर उसने देखते देखते तुम्हें विलेन बना दिया था बाबू ओर खुद कहानी का हीरो बन बैठा था!

उसने रोज रोज – हर रोज मुझे तुम्हारी कमियां गिनाई थीं और अपनी खूबियों का मुझे गुलाम बनाया था! हर रोज मुझे समझाया था कि हिन्दू पागल होते हैं। दो चार तो क्या हिन्दुओं को तो एक औरत रखने तक की तमीज नहीं होती – वह मुझे समझाता था और कहता था नेहा तुम देख लेना ये विक्रांत पागल हो कर रहेगा! इसकी कहानी खत्म है। ये अब कुछ नहीं कर पाएगा ..

“तुम्हीं खत्म कर दो इसकी कहानी!” उसने मुझे समझाया था। “पैर में लगा कांटा है – ये उम्र भर चुभेगा बेगम।” उसने मुझे चेतावनी दी थी।

और मैं पागल कुछ इस तरह बौरा गई थी बाबू कि मैंने इसके इशारे पर अपनी जिंदगी फूंक ली!

सॉरी बाबू! हो गया मुझसे ये गुनाह! रो रही थी नेहा ..

क्रमशः

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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