बॉलीवुड के फिल्मी अखाड़े में अचानक ही दो पहलवान आमने सामने आ खड़े हुए थे।

अब दो विचारधाराओं की तरह दोनों आपस में टकरा रहे थे। एक पूरब तो दूसरा पश्चिम। कौन बुरा था और कौन भला था – किसी को पता नहीं था। हॉं! इतना सब को पता था कि कोरा मंडी – प्रख्यात फिल्म मेकर रमेश दत्त के दिमाग की अद्भुत उपज थी। वो आज के दर्शकों को उनके निजी आवश्यकताओं से अवगत कराना चाहते थे और चाहते थे कि कोरा मंडी एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित हो जाए जो देश में ही नहीं विदेश में भी अजर और अमर हो जाए।

लेकिन काल खंड – विशेष तौर पर युवाओं के लिए अफीम का काम करेगी और देश भक्ति के जुनून में पागल हुए देश के युवक और युवतियां बलिदान की परम्परा को फिर से बड़ा करेंगे और देश भक्ति की घुट्टी पूरे देश को पिला कर एक नया इतिहास रचेंगे।

प्रख्यात फिल्मकार रमेश दत्त के मुकाबले में जीने की राह के प्रखर कलाकार विक्रांत आ रहे थे।

“बच्चा है विक्रांत तो!” फिल्मी कहानीकार विष्णु नागर अपनी राय फिल्मिस्तान के संपादक रॉनी कॉम को दे रहे थे। “जहां तक रमेश दत्त का प्रश्न है वो तो बड़े ही मैच्यौर और महान निर्माता और निर्देशक हैं।”

“लेकिन मैं तो हमेशा ही युवकों के पक्ष में होता हूँ, नागर साहब।” रॉनी कॉम हंसे थे। “मैं विक्रांत की कद्र करता हूँ।” वो कह रहे थे। “ही इज ए डायनामिक यंग मैन। देखना आप एक दिन ये लड़का तहलका मचा देगा – फिल्म जगत में।”

“आप तो परम पारखी हैं कॉम साहब!” विष्णु नागर ने हार मान ली थी। “चाहता तो मैं भी हूँ कि विक्रांत ..! भगवान करे कि ..” हाथ जोड़े थे नागर साहब ने और अपने परमात्मा को याद किया था।

बम्बई के युवक और युवतियां अनायास ही विक्रांत के साथ आ खड़े हुए थे।

“ये रमेश दत्त युवा पीढ़ी को निरवीर्य बना कर छोड़ेगा।” समाज सेविका शालू सरेआम बता रही थी। “ये जो है वह ये फिल्मों में दिखाता नहीं है।” उनका आरोप था। “ऐसे लोगों का हमें बहिष्कार करना चाहिये। ही इज एंटी सोशियल एंड एंटी इंडिया।” उनका इजहार था। “मेरा वश चले तो .. मैं ..”

विक्रांत को समाज तो सहयोग दे रहा था लेकिन रमेश दत्त का गैंग उसे कानी आंख से देख रहा था।

“पोपट लाल जी नमस्कार।” नेहा और विक्रांत चुपचाप फिल्म निर्माता और अपने पुराने परिचित पोपट लाल के बंगले पर पहुंचे थे। “पहचाना ..?” विक्रांत ने प्रश्न किया था।

“अरे रे! ओ हो .. नेहा जी .. आप?” उछल पड़ा था पोपट लाल। “मेरी ये किस्मत कि .. आप के दर्शन ..?”

“चाय तो पिलाओगे?” विक्रांत ने बात काटी थी।

“नहीं ..!” कुनके थे पोपट लाल। “खाना भी खिलाऊंगा जी ..”

“और फिल्म भी बनाऊंगा जी?” नेहा ने हंस कर पूछा था।

“नहीं!” फिर से पोपट लाल कुनके थे। “फिल्म बिलकुल नहीं बनाऊंगा।” वो कह रहे थे। “पहली बार ही बाल बाल बचा हूँ।” बता रहे थे पोपट लाल। “इस बार तो रमेश दत्त ने मुझे मार ही डालना है।” वह घबराए हुए थे। “मुनादी हो चुकी है बम्बई में! कोई भी कलाकार और कोई भी फिल्म निर्माता ..?” पोपट लाल ने सारा का सारा मवाद उगल दिया था।

विक्रांत और नेहा बेहद उदास हो गये थे।

“भले लोग हैं आप दोनों!” पोपट लाल कह रहे थे। “झाड़ू मारो इस काल खंड को। कर लो कोई भी और काम। मैं भी तो मूफली का होल सेल व्यापार आरम्भ कर रहा हूँ।” वह हंस रहे थे।

ये सच भी था कि हिन्दू निर्माता और निर्देशक काम छोड़ छोड़ कर भाग रहे थे। उनके सामने फिल्में बनाने की शर्तें थीं – हीरो कोई भी खान पठान होगा ओर हिरोइन होगी हिन्दू लड़की। पैसा मुंह मांगा मिलेगा लेकिन कहानी हमारी होगी। और उस कहानी में इस्लाम का परचम पूरे हिन्दुस्तान पर फहराता दिखाई देता था। बड़ी ही चालाकी से, बड़ी ही चतुराई से ये लोग देश द्रोह के पत्ते बांट रहे थे। और हिन्दू कातर आंखों से सब कुछ लुटते देख रहे थे।

“दम घुट रहा है नेहा।” विक्रांत कह रहा था। “न जाने ये देश नपुंसक कब हुआ?” उसने आश्चर्य से नेहा को पूछा था। “वो बलिदानी, वो वीर, वो विचारक और विद्वान सब कहां चले गये?” विक्रांत की आवाज में विक्षोभ था।

नेहा को विक्रांत की बेबसी बुरी लगी थी। उसका मन तो हुआ था कि दौड़े और खुड़ैल को गर्दन से पकड़ ले और पूछे – यू ईडीयट! जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो? खाते हो भारत का और गाते हो पाकिस्तान का? बेशर्म आदमी ..

“लोग तो कह रहे हैं दत्त साहब कि कोरा मंडी में आप कोरी बकवास बेचेंगे?” रामू ने तीखा प्रश्न पूछा था। रामू से लोग डरते थे। रामू हमेशा ही अटपटे प्रश्न पूछता था। रामू नंगा कर देता था किसी भी मान महंत को। “वेश्याओं के अलावा आप का मन कुछ और दिखाना चाहता ही नहीं।”

सन्नाटा छा गया था। सब चुप थे। रमेश दत्त का चेहरा भी काला पड़ गया था। वह रामू को खूब जानता था। इसी रामू ने तो उन्हें बुलंदियों पर पहुंचाया था – उन ऊंचाइयों पर जहां लोग पूरी उम्र लगा कर भी नहीं पहुंचते। लेकिन आज रामू ..

“इस बार भी मैं आपको निराश नहीं करूंगा रामू जी!” रमेश दत्त बड़े ही विनम्र भाव से बोले थे। “आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि कोरा मंडी विश्व के लिए सबसे बड़ा शांति संदेश होगी।” रमेश दत्त ने जमा सभी पत्रकारों को एक साथ देखा था। “हॉं! यूं तो कोरा मंडी एक इंटरनेशनल इवेंट होगी जहां दुनिया के चोटी के कलाकार अपना अपना करतब दिखाएंगे!” रुके थे दत्त साहब। “ये देखिये – रॉनी फॉक्स का इजहार – कहती हैं मेरा सौभाग्य आप ने याद किया दत्त साहब! और अगर मैं आप को बता दूं कि ..” हंसे थे दत्त साहब। “लेकिन बताऊंगा नहीं। अभी नहीं – मैं आपको पर्दे पर ही दिखाऊंगा संसार की उन हस्तियों को जिनके बारे आपने केवल सुना है।”

तालियां बज उठी थीं। रमेश दत्त अचानक ही प्रासंगिक हो उठे थे।

“कोरा मंडी एक कॉन्सैप्ट है – गांधी और टैगोर का कॉन्सैप्ट – जहां मानवता का सम्मान है, आजादी है ओर इजाजत है कि हर कोई अपनी इच्छाओं का सम्मान करे और अमृत पान करे निर्भय और निर्द्वंद्व। दो पल के लिए ही सही वो जी लेगा स्पेस की वो जिंदगी जहां कोई नवाब दबाव उसपर न होगा।” लोग सांस साधे सुन रहे थे – रमेश दत्त को।

“बहका तो नहीं रहे हो पंडित जी?” करन ने बीच में टोका था।

“लक्ष्य द्वीप में – पुष्प गंधा द्वीप हमने खरीद लिया है। कीमत नहीं बताऊंगा करन जी।” हंसे थे दत्त साहब। “कोरा मंडी का निर्माण होगा – पुष्प गंधा पर। और ..” चुप हो गये थे दत्त साहब।

जमा लोग अनुमान ही लगाते रह गये थे और दत्त साहब न जाने कब उठ कर चले गये थे।

“देखा!” सुधीर विक्रांत को रमेश दत्त के इंटरव्यू के बारे बता रहा था। “पंडित जी ..?” उसने चुटीली आवाज में कहा था। “लोग इसे पंडित मानते हैं। कोई नहीं जानता कि ये कासिम है, मुसलमान है और देश द्रोही है।” निराश था सुधीर। “न जाने क्या होगा इस देश का भाई जी?”

“अब तो मेरा भारत महान ही बनेगा सुधीर!” विक्रांत ने ऐलान जैसा किया था। “मैं न रहूं .. तुम भी न रहो लेकिन भारत अब उठेगा और अवश्य उठेगा। ये मेरे अंतरमन की आवाज है सुधीर।” विक्रांत ने सुधीर को आंखों में देखा था। “कुछ दाल दलिया हुआ?” उसने अंत में पूछ लिया था।

“हुआ तो बहुत कुछ है!” सुधीर प्रसन्न था। “मैंने गौतम को मना लिया है। कौशल्या भी तैयार है। चंदन ने संगीत देने के लिए कह दिया है। गीत लिखने के लिए मैंने एक पटना के पीलू को कह दिया है।” सुधीर बताता रहा था। “देश भक्ति के गीत वही एक है जो लिख पाएगा। यहां बम्बई में तो लोग देश भक्ति को न जाने कब से भूल गये।” हंस रहा था सुधीर।

“मैं पुनीत जी से पट कथा लिखवाने की सोच रहा हूँ।” विक्रांत ने अपनी राय बताई थी। “विद्वान हैं और उन्हें इतिहास तो कंठस्थ है।”

“हमें इतिहास की बगलों से झांकना होगा विक्रांत भाई!” सुधीर बता रहा था। “पुनीत जी जो इतिहास जानते हैं वो तो सब गलत है।”

“सुधीर की बात सच है!” नेहा बोल पड़ी थी। “इतिहास को भी ठेके पर लिखा है लोगों ने।” हंस रही थी नेहा। “देअर इज नो रिसर्च बाबू!”

विक्रांत ने नेहा को नई निगाहों से देखा था। वह प्रसन्न था कि नेहा उसके साथ मन प्राण से जुड़ी थी।

“लिखवाओ इतिहास नेहा!” विक्रांत ने प्रसन्नता व्यक्त की थी। “रिसर्च एंड राइट।” विक्रांत का आदेश था। “वायदा करो नेहा कि ..”

“वायदा रहा!” नेहा ने सहर्ष स्वीकारा था।

मैंने तो वायदा पूरा कर दिया था बाबू लेकिन हुआ तो भाग्य का बदा ही? तुम्हारी राधा प्यासी ही रह गई बाबू!

सॉरी बाबू! रो पड़ी थी नेहा ..

मेजर कृपाल वर्मा

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