पोपट लाल के साथ हुई मुलाकात विक्रांत के पास आ कर बैठ गई थी।

रोमांटिक हीरो बनने का स्वप्न बहुत ही मोहक था, बहुत ही उत्तम था और न जाने क्यों आज विक्रांत की रोमांटिक हीरो बनने की उत्सुकता उसे जमीन से उखाड़े दे रही थी।

“अरे ओ सांभा!” अचानक विक्रांत शोले फिल्म के संवाद सुनने लगा था और फिर वो – बसंती नाचना मत इन कुत्तों के सामने – धर्मेंद्र का कहा डायलॉग सुन रहा था!

दर्शकों को सीट पर बांध कर बिठाने का दम था – शोले में।

“रोमांटिक हीरो सैलीब्रिटी बन जाता है और लोग उसका अनुकरण करते हैं।” विक्रांत सोचे जा रहा था। “उसका स्टाइल, उसकी चाल-ढ़ाल और यहां तक कि उसका हेयर स्टाइल तक लोग नकल करते हैं। राजेश खन्ना बिकेम ए मिथ .. एंड ..”

वो बड़ा ही विचित्र दौर था जब एक से बढ़ कर एक फिल्म सामने आई थी और दर्शकों ने खूब साथ दिया था और सराहा भी था। क्या आज के परिप्रेक्ष्य में वह सब संभव था। कहीं पोपट लाल कोई चाल तो नहीं खेल रहा था? पागल बनाने में पोपट लाल ..

आज की फिल्में अगर आज से जुड़ेंगी नहीं तो उन्हें देखेगा कौन? अब लोगों की पसंद बदल चुकी थी। लोग पर्दे के पीछे के सारे सच जान गये थे। उन्हें सारे स्टंटों के बारे में पता चल गया था। अब तो पर्दे पर ऑडिएंस वही देखना चाहते थे जो कहीं तक संभव था – या कि घट चुका था! काश अगर काल खंड रिलीज हो जाती और ..

लेकिन पहला ही मौका था जब विक्रांत को नेहा से पहले श्रेया याद हो आई थी। श्रेया के गदराए अंग और फ्रैश फेस विक्रांत को बेहद लुभा गया था। अगर श्रेया के साथ रोमांटिक पेयर में वह चल पड़ा तो शायद ..

श्रेया एक खोज की तरह विक्रांत के सामने आ खड़ी हुई थी।

“सुधीर से पोपट लाल नाराज क्यों था?” अचानक ही विक्रांत का सोच पलटा था। “क्यों नहीं चाहता था कि सुधीर उसके साथ आए?” विक्रांत को अपने प्रश्नों के उत्तर न मिल रहे थे।

और पोपट लाल ने तो काल खंड की टीम पर भी तेजाब छिड़का था। शायद उसे भी यू पी के भइये और बिहार के बबुआ बुरे लगते थे। बंबई वाले बाहर वालों के आगमन पर अप्रसन्न रहते थे – न जाने क्यों? उसे भी तो कितनी मुश्किलों के बाद ही कहीं ..

सुधीर को भी पोपट लाल और विक्रांत की हुई मुलाकात में दाल में काला दिखाई दे रहा था। उसका कई बार मन हुआ था कि विक्रांत का हाथ पकड़ कर उसे पोपट लाल के यहां जाने से रोक ले। फिर कई बार मन आया था कि नेहा को फोन करे और बताए कि ..

“ये लो! इस बार दुबई से तुम्हारी पसंद का लेकर आया हूँ!” रमेश दत्त बिना विलंब के नेहा के पास जा पहुंचा था। “सच मानो नेहा! तुम्हारे बिना तो दुबई भी सूनी सूनी लगती है। मैं सोचता ही रहा जब तुम्हें लेकर मैं दुबई गया था ओर हम दोनों ..” रमेश दत्त ने मुसकुराते हुए नेहा की ओर देखा था।

नेहा चुप थी। नेहा को कोई संताप भीतर से सता रहा था। विक्रांत ने उसे मुड़ कर पुकारा तक न था और वह भी साहस न कर पाई थी कि अपने बाबू को आवाज देकर पास बुला लेती। और अब रमेश दत्त ..

“आज मैं तुमसे दो टूक बात करने आया हूँ नेहा!” रमेश दत्त की आवाज बुलंद थी। “मैं तो यही कहूंगा कि कोरा मंडी ..”

“नहीं!” नेहा ने तुरंत कहा था। “मैं .. मैं ..”

“देखो नेहा! भाई से लड़ कर, उसके पैर पकड़ कर और लाख खुशामद करके मैंने धन जुटाया है!” रमेश दत्त गिड़गिड़ाने लगा था। “इस उम्मीद के साथ कि मैं तुम्हें मना लूंगा!” उसने नेहा की आंखों में झांका था।

नेहा को अहसास हुआ था कि रमेश दत्त झूठ बोल रहा था।

“कॉन्ट्रेक्ट बना कर लाया हूँ!” रमेश दत्त ने जेब से कागज निकाले थे। “कोरा मंडी के बाद फौरन हम रंगीला शूट करेंगे ओर ईद पर दोनों फिल्में साथ साथ रिलीज कर देंगे!” रमेश दत्त ने अपनी स्कीम बताई थी।

समीर ही नहीं पूर्वी और बाबा की भी बाछें खिल गई थीं। उन सब को रमेश दत्त एक महान उपकारी मनुष्य के रूप में जंचता था। वो जानते थे कि उनके परिवार की नाव रमेश दत्त अवश्य किनारे लगा देगा!

“मैंने फिल्मों में काम नहीं करना!” नेहा का स्वर कठोर था।

“लेकिन .. वो .. वो विक्रांत तो नई हीरोइन के साथ पोपट लाल की फिल्म – माहेश्वरी में आ रहा है।” रमेश दत्त ने अब पत्ते फेंके थे। “ये देखो! श्रेया है ये। नई लड़की है। इसके साथ आ रहे हैं श्रीमान – एज ए रोमांटिक हीरो! और तुम ..?”

बहुत लंबे पलों तक नेहा उस श्रेया के फोटो को आग्नेय नेत्रों से देखती रही थी। अब वह छटपटा रही थी। एक विषैली नागिन की तरह अब नेहा हर किसी को डस लेना चाहती थी। वह चाहती थी कि पूरे चराचर को ही निगल जाए और .. और ..

रमेश दत्त ने बड़ी ही चालाकी से अपने अभीष्ट को पा लिया था।

गुलिस्तां आज एक नई रौनक लेकर गुलजार था।

आगंतुकों में बहुत सारे अजनबी थे। कोई लखनऊ से आया था, कोई बरेली से तो कई लोग सहारनपुर, देवबंद और दिल्ली से पधारे थे। कासिम बेग ने उन सब को कोरा मंडी के फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स बता कर पूरी बंबई में खबर फैला दी थी कि अब कोरा मंडी का निर्माण युद्ध स्तर पर होगा और फिल्म को रिलीज करने के लिए विदेश मंत्री मकबूल लखनऊ में हाजिर होंगे।

आगंतुकों को गुलिस्तां में एक अजूबे की तरह डोलता जोहारी अजब गजब लगा था।

“मैंने जोहारी को भाई से एक अहसान की तरह मांगा है।” रमेश दत्त बताने लग रहा था। “अब से जोहारी मेरे पास ही रहेगा!” उसने ऐलान कर दिया था। “ये आदमी बड़े ही काम की चीज है!” रमेश दत्त ने आंखें नचाते हुए कहा था।

रमेश दत्त का दिमाग अब बड़ी तेजी से योजनाएं बना रहा था।

“तुम एकदम पागल है, बनवारी!” पोपट लाल ने डांट पिलाई थी। “छू छू कर ही तुम श्रेया के फोटो को मैला कर देगा!” उसने डांटा था बनवारी को। “भले आदमी! ये एक विश्व सुंदरी का फोटो है। इतनी तमीज तो रक्खो मेरे यार कि ..”

“आप ने ही तो कहा था कि इसे इहां टांग दो!”

“हां हां! मैंने ही कहा था। चल टांग दे। उधर लगा दे! इधर विक्रांत बैठेगा तो सीधा फोटो उसे दिखेगा और श्रेया ..” न जाने किस सोच में पड़ गया था पोपट लाल। क्यों कि श्रेया के सामने तो कुछ देखने को लगा ही न था। “चल जाने दे बनवारी!” कहते हुए पोपट लाल ने विचार को वहीं छोड़ दिया था।

पोपट लाल इस पार्टी को एक अजीबोगरीब पार्टी का नाम दे देना चाहता था।

जो लोग आने थे – वो विशिष्ट लोग थे। जो होना था वो भी बेजोड़ था। अत: पोपट लाल कोई भी कोर कसर छोड़ने के मूड में न था। वह चाहता था कि किसी भी तरह से श्रेया को विक्रांत पसंद कर ले और श्रेया ..

नेहा की आंखों की नींद उड़ा दी थी श्रेया ने!

उसका माथा ठनका था। उसका मन आहत हुआ था। उसने कई बार सोचा था कि बाबू को फोन करे और पूछे कि क्या श्रेया वाली बात सच थी? क्या ये सही था कि वो अब रोमांटिक हीरो बनने जा रहा था और ..

“सुधीर जी!” नेहा ने सच्चाई जानने के लिए रास्ता खोजा था। “कहां हैं तुम्हारे भाई जान?” नेहा ने पूछ लिया था।

सुधीर कई पलों तक चुप रहा था। उसका मन तो आया था कि नेहा को सब कुछ बता देता। लेकिन वो विक्रांत के साथ बेवफाई न करना चाहता था।

“कहीं चले गए हैं!” सुधीर ने सीधे सीधे कहा था।

नेहा ने फोन पटक दिया था। वह जानती थी कि सुधीर से कुछ हासिल होने वाला नहीं था। फिर मन हुआ था कि उठे और ..

पहला अवसर ही था कि जब नेहा का उसके साये ने भी साथ नहीं दिया था।

श्रेया से मिलने के लिए विक्रांत ने आज पहली बार मन से तैयारियां की थीं।

ग्रे सूट पर गुलाबी फूल लगा था। सेंट की खुशबू में गर्क विक्रांत महक उठा था। बालों को आज उसने अलग एंगल पर सैट किया था। कोई भी देहातीपन वह चाहता नहीं था। जूतों की चमक और लाल टाई अपने आप में बेजोड़ थे। कई बार उसने अपने आप को सीसे के सामने खड़ा कर मुआइना किया था और उसे जंच गया था कि श्रेया उसे देख कर दंग रह जाएगी।

और फिर श्रेया के साथ होने वाली बात चीत के बारे में भी विक्रांत ने सोच विचार किया था। उसे पहले नेहा के साथ जीए प्रसंग याद हो आए थे। लेकिन आज वो कोई नया ही प्रसंग लेना चाहता था। वह चाहता था जैसे श्रेया के ब्यूटी पेजेंट को लेकर ही बात करे और उसे एहसास कराए कि वो भी उसके हुस्न के पुजारियों में से एक था।

“सच कहता है पोपट लाल!” विक्रांत ने स्वयं से कहा था। “प्रेम भावना से श्रेष्ठ और कोई भावना नहीं है, और जब दो प्रेमी मिलते हैं, बतियाते हैं और मीठी मीठी बातें करते हैं तो अमृत वर्षा होने लगती है। और यही पल होते हैं जब सिनेमा हॉल के एकांत में बैठे दर्शक भी उन प्रेमिल पलों में डूब डूब कर नहाने लगते हैं! सिनेमा की यही सबसे बड़ी श्रेष्ठता है!” विक्रांत ने एक निष्कर्ष निकाला था। “पोपट लाल विफल नहीं होगा!” मान लिया था विक्रांत ने।

एक नए अभियान को आरम्भ करने के लिए विक्रांत मन प्राण से समर्पित था!

लेकिन नेहा अभी भी अंधकारों में अपने बाबू को खोज रही थी।

मेजर कृपाल वर्मा

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