सामने बनी बार पर बैठे विक्रांत और श्रेया शरबत पी रहे थे।

विक्रांत के सामने लगा श्रेया का सुंदर चित्र उसे पुकारता लग रहा था। लग रहा था कि श्रेया की आंखों में अजीब से आग्रह थे और वो विक्रांत को अलग से पुकार रहे थे। विक्रांत ने मुड़ कर श्रेया की उंगलियों को देखा था। लंबी लंबी उंगलियां मोहक थीं और पेंट किए नाखून विक्रांत को बहुत अच्छे लगे थे। श्रेया की गोरी गोरी बाहें उसे लुभाती लगी थीं। श्रेया का केश विन्यास अति उत्तम था और उसके चंचल नयनाभिराम में बेहोश बनाने की कला थी।

श्रेया ने एक संपूर्ण नजर में भर कर विक्रांत को नाप तोल लिया था।

“मैंने आपकी फिल्म जीने की राह देखी थी।” श्रेया ने ही संवाद शुरू किया था। वह कई पलों तक चुप रही थी। विक्रांत का चेहरा आरक्त हो आया था। “फिल्म इंप्रेस करती है।” श्रेया ने कहा था। “और खासकर .. आप का किरदार तो ..”

“माहेश्वरी की कहानी पढ़ ली है?” विक्रांत ने लीक से हट कर प्रश्न पूछा था।

“हां! पढ़ी है!” कहते कहते श्रेया ने पलकें झुका ली थीं। “बेहद रोमांटिक कहानी है।” उसने स्वीकार किया था। “मैं तो डर रही हूँ कि ..” श्रेया ने आग्रही निगाहों से विक्रांत को देखा था।

“डरने की क्या बात है!” विक्रांत तनिक श्रेया की ओर खिसक आया था। “मैं तो साथ ही हूंगा!” कहकर वह मुसकुरा गया था।

लंबे पलों तक दोनों चुप रहे थे। कहानी कहीं उन दोनों के बीच आ खड़ी हुई थी और अब उन्हें हाथ मिलाने के लिए मजबूर कर रही थी।

आगंतुकों की निगाहें सामने बार पर बैठे विक्रांत और श्रेया पर लगी थीं।

बार पर बैठे विक्रांत और श्रेया हंसों का एक प्रेमिल जोड़ा जैसा लग रहा था। उन्हें ये एहसास था कि उन्हें कोई नहीं देख रहा था। वह दोनों बुरी नजरों से बाहर थे और अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र थे। उनके चेहरे दीप्तिमान थे और एक भावावेश से भरे थे।

आगंतुकों को वो दो बतियाते प्रेमी अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। हर कोई गौर से, ध्यान से और बेसब्री से सुन लेना चाहता था कि वो क्या क्या संवाद बोल रहे थे। वो भी चाहते थे कि उस चलते प्रेम मिलन में वो भी किसी तरह शामिल हो जाएं और विक्रांत तथा श्रेया को प्रेम पात्रों की तरह हमेशा की तरह अपने पास सहेज कर रख लें।

“मेरी तो यह पहली ही फिल्म होगी!” श्रेया बहुत देर के बाद बोली थी।

विक्रांत की जैसे प्रेम समाधि टूटी हो – उसने श्रेया को नई निगाहों से देखा था।

“उसके बाद ..?” विक्रांत ने शरारत के मूड में प्रश्न किया था।

“क्या पता ..!” श्रेया ने अपनी गोरी गोरी बाहें विक्रांत की ओर तान दी थीं। “गॉड ऑनली नोज़ ..” कहते कहते श्रेया ने अंगड़ाई तोड़ी थी।

आगंतुकों के बीच अब एक मीठी मीठी बयार बह निकली थी।

मधुर संगीत लहरी अचानक हवा पर लहराने लगी थी। रंगबिरंगी रोशनी हर किसी के पास आ आकर बतियाने लगी थी। माहौल भाव और भावनाओं से लबालब भरा लगा था। सब के अलग अलग सोच थे, अनुमान थे और इच्छाएं आकांक्षाएं थीं। विक्रांत ओर श्रेया अभी तक उन सभी के मनभावन बने हुए थे।

“कुछ खाने के लिए नहीं लिया?” विक्रांत ने श्रेया से पूछा था।

“मैं .. मैं .. बस ..” श्रेया ने लजाते हुए कहा था।

“जीने के लिए खाती हूँ!” विक्रांत ने श्रेया का संवाद पूरा किया था। “खाने के लिए नहीं जीती!” और वह हंस पड़ा था।

श्रेया ने भी संवाद को समझ कर खूब किलकारियां भरी थीं।

झरनों की तरह खिलकती उन दोनों की हंसी ने आगंतुकों को भी अभिभूत कर दिया था। सभी को पैसे वसूल हुए लगे थे। सब हंस रहे थे – मोद मना रहे थे!

उन दोनों के लिए डिनर टेबिल आगंतुकों के बीचों-बीच लगी थी।

और अब वो दोनों बार से उठे थे और अपनी डाइनिंग टेबिल की ओर चले आ रहे थे। दोनों साथ साथ चलते, नाप नाप कर कदम रखते और एक दूसरे को सहारा देते लेते आगे चले आ रहे थे। अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठे आगंतुक उन के हर लिए कदम को नाप रहे थे और उनके हर हाव-भाव को भूखी भूखी निगाहों से देख रहे थे।

रति-अनंग का जोड़ा था जैसे और आज किसी खास प्रयोजन वश यहां संसार में चला आया था – ऐसा प्रतीत हो रहा था।

दोनों एक मोहक भव्यता के साथ अपनी डाइनिंग टेबिल पर आ बैठे थे।

मधुर संगीत के स्वर खनक उठे थे। वेटरों की आवाजाही से भूख लगने के अनुमान आगंतुकों के सामने आ खड़े हुए थे।

लेकिन आज की तो भूख ही अलग थी।

उन दोनों के लिए जो खाना परोसा गया था उसे देख कर वो दोनों ही दंग रह गए थे।

पोपट लाल ने एक चतुर खिलाड़ी की तरह उन दोनों की पसंदों को दो की बजाए एक में अंकित कर ऐसे आइटम प्रस्तुत किए थे जो दोनों को ही प्रिय थे। दोनों चकित निगाहों से परोसे हुए भोजन को देखते ही रह गए थे।

“नॉनवेज नहीं लेतीं?” इस बार पहला प्रश्न विक्रांत ने किया था।

कहीं यह जानकर कि श्रेया वेज थी, विक्रांत बेहद प्रसन्न हो उठा था।

“नहीं!” बड़े ही विनम्र भाव से श्रेया ने उत्तर दिया था। “मां नॉनवेज कुक ही नहीं करतीं।” श्रेया ने शिकायत दर्ज की थी। “बड़ी ही अछोपा हैं। मजाल है कि .. कोई मक्खी तक किचन में घुस जाए!” श्रेया तनिक मुसकुराई थी। “आप भी ..” उसने अपने चंचल नयनाभिराम से प्रश्न पूछ लिया था।

“हां!” विक्रांत ने भी सगर्व स्वीकार किया था। “मेरी मां ..” उसने ठहर कर लंबे पलों तक श्रेया को देखा था। “मिलोगी .. तो ही ..” विक्रांत ने भी बाकी वाक्य को निगाहों से व्यक्त किया था।

एक सुखद सामंजस्य उन दोनों के बीच आ बैठा था। अचानक उन दोनों को लगा था कि कहीं उन दोनों की कुंडलियां मेल खाती थीं और अगर भविष्य में कोई हेल मेल कायम हुआ तो कठिनाई नहीं आएगी!

डिनर के बाद अब वो दोनों लौट कर बार पर आ गए थे। अब कॉफी का दौर चलना था ओर आज एक निर्णय हो जाना था जिसमें पोपट लाल ने महेश्वरी फिल्म की घोषणा कर देनी थी।

श्रेया बिलकुल विक्रांत के सामने बैठी थी और एक मधुर संगीत लहरी उन दोनों के आसपास डोल रही थी। बड़े विमुग्ध भाव से विक्रांत ने आंखें उठा कर उस दैदीप्यमान समागम को देखा था। और तभी .. तभी उसे एक आग के गोले के बीचों-बीच खड़े जोहारी के दर्शन हुए थे। हां हां! वो निश्चित रूप से जोहारी ही था – वही रमेश दत्त का नया जर खरीद किलर!

विक्रांत का जैसे तीसरा नेत्र खुल गया था और उसने सुना था – इन्हें लेकर मत आना! और तभी उसे पोपट लाल भी दिखाई दिया था। और फिर .. सुधीर का सूजा हुआ चेहरा भी विक्रांत के सामने आ खड़ा हुआ था।

“शेर चाल में फंस गया है!” विक्रांत के कानों ने साफ साफ सुना था।

जोहारी जैसे ही तनिक आगे बढ़ा था रमेश दत्त भी उसके पीछे से उजागर हुआ था। उसका चेहरा खिला हुआ था। उसके इरादे नेक नहीं थे। वह पार्टी में शामिल भी नहीं था।

मौत! साक्षात मौत को अपनी ओर आते देख लिया था विक्रांत ने।

“मेरी इज्जत भी इसी ने लूटी थी बाबू!” विक्रांत ने नेहा का विलाप सुना था। “मुझे इसी बेईमान ने नंगा किया .. इसी ने मुझे ठगा और इसी ने मुझे यह नरक दिया।” नेहा बिलख रही थी। “बाबू! यही है वो पापी जिसने हमारे पवित्र प्रेम को नरक बनाया! यही हमारा अपराधी है बाबू! ये हमारा गुनहगार है ..” रोते रोते नेहा का बेहाल हुआ जा रहा था। “अब ये तुम्हें मार डालेगा .. बाबू!” नेहा के करुण स्वर थे। “भागो .. भागो बाबू ..!”

“नहीं नेहा!” हाथों में लगा कॉफी का मग विक्रांत ने अलग रख दिया था तो श्रेया चौंकी थी। “आज वक्त आ गया है नेहा कि मैं तुम्हारा कर्ज उतार दूं। मैं भागूंगा नहीं – मैं लड़ूंगा!” विक्रांत ने अपना इरादा बता दिया था। “मैं आज तुम्हारे इस गुनहगार का अंत ला दूंगा नेहा!” विक्रांत की मुट्ठियां भिच आई थीं।

जोहारी चल कर विक्रांत की पहुंच में आ गया था। लेकिन विक्रांत को अभी रमेश दत्त का इंतजार था। वह चाहता था कि वह सीधा ही रमेश दत्त को गर्दन से पकड़ेगा और तोड़ देगा! जोहारी के पीछे चलते रमेश दत्त को कोई भय न था। वह तो जानता था कि जोहारी ने आज ..

जब विक्रांत हमला करने के लिए उछला था तो श्रेया डर कर भाग गई थी।

रमेश दत्त पर होते हमले को देख आगंतुक हैरान थे। हरामी – विक्रांत की हुंकार सुन कर लोग दंग रह गए थे। सभा में एक सनसनी फैल गई थी। और अचानक ही बत्ती गुल हो गई थी। लोगों में भगदड़ मच गई थी। कहां क्या हो रहा था – किसी को कुछ पता न था।

अंधेरे में होती उठा पटक की अज्ञात आवाजें बहुत देर तक आती रही थीं।

उसके बाद ही सब शांत हो गया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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