कासिम बेग के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।

दुबई में होने वाली पैन इस्लामिक मीटिंग में उसे ग्यारह बजे भाग लेने जाना था। लेकिन उसे उसकी चिंता नहीं थी। चिंता थी तो शाम को छह बजे भाई से मिलने की थी। और भाई का एक ही प्रश्न आना था – पैसा!

कितना भागा था कासिम बेग लेकिन पूरी फिल्म इंडस्ट्री में किसी ने भी कोरा मंडी के नाम पर दो पैसे तक देने तक का वायदा नहीं किया था। सब को पता चल गया था कि कोरा मंडी अब वास्तव में ही कूड़ा मंडी थी ओर कभी भी पर्दे तक पहुंचने वाली नहीं थी। रमेश दत्त ने बे इंतिहा पैसा खर्च कर दिया था और अब ये प्रोजैक्ट ..

“काश! नेहा ने हां कह दी होती तो ..?” माथे का पसीना पोंछा था कासिम बेग ने। “वो भाई के हाथ पैर जोड़ लेता लेकिन .. नेहा ..”

कमरे की खुली खिड़की से एक स्वच्छ बयार का झोंका चला आया था।

“सी द न्यू वर्लड नेहा!” रमेश दत्त जब पहली बार नेहा को दुबई लेकर आया था तो उसे ये जगह जन्नत से कम न लगी थी। “तुम्हारा हुस्न और दुबई की जवानी कितना मेल खाते हैं?” रमेश दत्त ने एक रोमांटिक संवाद बोला था। वह अब नेहा का मन जीतने में लगा था। “मेरा तो मन है नेहा कि हम .. हम दोनों ..” रमेश दत्त ने आंखों से अजब गजब इशारे किए थे।

नेहा ने भी चकोरी की चकित दृष्टि से उस नए उपक्रम को देखा था जहां बलुहे विस्तार थे, बगीचे भी थे, बड़ी बड़ी इमारतें थीं और एक रोमांटिक प्लेस होने का हर सबब वहां था। लेकिन रमेश दत्त ही था जो उसे छलिया लगा था, बेईमान जान पड़ा था और जान पड़ा था कि वो ..

“अगला शूटिंग शिड्यूल यहीं रक्खेंगे नेहा!” रमेश दत्त बता रहा था।

“आ रहे हो न ..?” अनायास ही मौलाना फतेही का फोन बजा था और रमेश दत्त को याद आ गया था कि मीटिंग का वक्त होने वाला था।

“जी! जी हां! बस पहुंच रहा हूँ।” कासिम बेग ने तुरंत उठ कर चलने का उपक्रम किया था।

पैन इस्लामिक में भाग लेने आए हाजरीन को देख कर कासिम बेग के होश उड़ गए थे। उसे तो उम्मीद थी कि यूं ही की कोई बकवास होगी और लोग चंदा मांगेंगे। उसने भी सोच लिया था कि अपनी फटी जेबें दिखा कर वह जान छुड़ा लेगा और ..

“भाई तुम्हारी दिल्ली देख कर तो जी में जी आ गया, कासिम बेग!” मौलाना फतेही कह रहे थे। “दिल्ली अगर अपनी खाप का वर्लड सेंटर बने तो ..?” उनका सुझाव था।

कासिम बेग ने कोई ध्यान न दिया था। उसे तो अपनी चिंता थी। वह किसी तरह से यहां से भाग निकलना चाहता था।

“तुम अब ये फिल्मों का धंधा छोड़ो कासिम और पैन इस्लामिक का काम संभालो।” मौलाना फतेही आदेश दे रहे थे। “हम सब ने मिलकर तुम्हें चुना है। नामा तो पता नहीं तुमने कमाया या नहीं पर तुम्हारा नाम तो है।” वह हंसे थे। “और अब तुम्हारा नाम और काम हमें दोनों चाहिए!” उनका प्रस्ताव था।

कासिम बेग की समझ में कुछ भी न आ रहा था।

“बड़े मीयां!” रमेश दत्त की आवाज बैठने लगी थी। “मैं तो .. कर्जे में नाक तक डूबा हूँ।” उसने सच उगला था। “भाई का पैसा है और कोरा मंडी ..”

“फोन मिलाओ भाई को!” आदेश आया था और जब रमेश दत्त ने फोन मिला कर मौलाना फतेही को दिया था तो उसके हाथ कांप रहे थे। “कितना पैसा है कासिम बेग के नाम?” सीधा सवाल था मौलाना साहब का। “शाम को आकर अपना आना पाई ले जाना।” उन्होंने स्पष्ट कहा था।

अब रमेश दत्त हैरान था।

“जितना पैसा चाहो लो!” फिर से उन्होंने रमेश दत्त को जगाया था। “हमें तुम्हारी सेवाएं चाहिए कासिम बेग!” उनका ऐलान था। “अगर हम अभी न चेते तो हिन्दुस्तान हमारे हाथ से निकल जाएगा!” उनका शक था। “अभी हथौड़ा मारना होगा – लोहा गरम है!”

सारे जमा लोग मौलाना फतेही को फटी फटी आंखों से देखते रहे थे।

सारे इस्लामिक संगठन अब एक जुट होकर हिन्दुस्तान में अपना फतवा जारी करना चाहते थे। उनके हिसाब से अब हिन्दुस्तान का इस्लामिकरण होना आवश्यक था। अगर हिन्दुस्तान उनके हाथ लग जाता था तो फिर दुनिया में उनका डंका बजना आसान था।

“हम कल के बारे में सोच रहे हैं हाजरीन!” मौलाना फतेही बताने लगे थे। “अभी तक तो हमारे तेल और तलवार कामयाब रहे हैं लेकिन अब ये तेल और तलवार ..” उन्होंने जमा लोगों को नई नजरों से देखा था।

“मेरा ये फरमान नहीं – मशविरा है दोस्तों कि आप लोग अपना ज्यादा से ज्यादा धन हिन्दुस्तान में लगाएं!” मौलवी साहब कहने लगे थे। “यूरोप और अमेरिका वाले ठग हैं! मौका आते ही ये लोग ..” मौलवी साहब ने जमा लोगों पर होती प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “मैं सच कहता हूँ कि हिन्दुस्तान में लगाया पैसा हमेशा हमेशा हमारे काम आएगा!” वह तनिक मुसकुरा रहे थे। “और जब हम हिन्दुस्तान के मालिक बनेंगे तो ..”

अजान सी खुशी की एक लहर जमा लोगों के आस पास बहने लगी थी। एक नया संसार उनके सामने आ खड़ा हुआ था। हर किसी धनवान व्यक्ति के पास अनायास ही भारत विजय का एक सपना स्वतः ही चला आया था।

“दक्खिन में और बंगाल में हमें कठिनाई नहीं होगी कासिम!” मौलवी साहब ने अब बात पलटी थी। “कठिनाई हमें है तो नॉर्थ इंडिया में है।” उन्होंने कासिम बेग के चमकते चेहरे को देखा था। “और ये काम तुम करोगे कासिम बेग!” वह बताने लगे थे। “आजमगढ़ और लखनऊ के इलाके में जो जो तुम्हारा अपना है उसी के साथ काम आरंभ कर दो। पहले लखनऊ में बेस तैयार करो ओर फिर तो दिल्ली ..” तनिक मुसकुराए थे मौलवी साहब। “यही एक रास्ता है – जो आसान है!”

बहुत लंबे पलों तक चुप्पी छाई रही थी। कोई नहीं बोला था। अखंड शांति उन सब के बीच डोलती रही थी। मौलवी साहब ने जिस सुगम रास्ते का जिक्र किया था वह तो हद दर्जे का दुर्गम था। शायद उन्हें मालूम न था कि ..

“यहां के लोग बहुत लड़ाके हैं बड़े मीयां!” चांद पुरी बोल पड़े थे। “मैं तो जानता हूँ कि ..”

“हिन्दू कहां लड़ता है – मेरे भाई!” हंस पड़े थे मौलाना साहब। “जहां तक मेरे पास आंकड़े हैं – तो मैं कहना चाहता हूँ कि अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति ने हमारा काम बहुत आसान कर दिया है। हिन्दू युवक न हिन्दू है, न मुसलमान है ओर अगर थोड़ा बहुत कुछ है तो ईसाई है। फिर उसे गांधी की अहिंसा का पाठ पढ़ाया जा चुका है और हिन्दू मुस्लिम भाई भाई उसे खूब भाता है। धर्म निरपेक्ष की नीति ने जड़ें पकड़ ली हैं ओर हिन्दू किसी भी कीमत पर लड़ना नहीं चाहता। और हमारा गुड लक ये है कि आर एस एस भी लाठी दिखाती भर है प्रहार नहीं करती!”

एक जोरों का कहकहा उठा था और हॉल में भर गया था। भूखे नंगे और कायर अपाहज भारत का जो खाका मौलाना साहब ने खींचा था सब को पसंद आ गया था।

“लेकिन बड़े मीयां ..”

“मुझे मत बताओ कि वहां क्या है!” मौलवी साहब अलग अंदाज में बोले थे। “मैंने तो वहां जा जा कर देखा है कि हिन्दुस्तान की एक एक इंच जमीन पर हमारे पुरखों ने अपने खून से हस्ताक्षर किए हुए हैं। वो चतुर लोग थे जो अपना नाम लिख गए हैं ताकि हमें पढ़ने में मुगालता न हो कि ये देश हमारा है!” मौलवी साहब की आंख में गजब की चमक थी। “और .. और जो हमारी सामाजिक संस्थाएं भारत में पनप गई हैं उनका तो दुनिया में कोई जोड़ नहीं है दोस्तों! देश तो हमारा है। अगर हम रुकते हैं नहीं उठते हैं तो अल्लाह हमें कभी माफ नहीं करेगा।”

एक नई सुगबुगाहट जमा लोगों के बीच भर आई थी। एक उम्मीद उन सब के पास आकर खड़ी हो गई थी। उन्हें विश्वास हो गया था कि हिन्दुस्तान में गजवाए हिंद और दारुल इस्लाम संभव था। बहुत कुछ बड़ा काम था – जो हो चुका था और अब भी होता ही जा रहा था।

“बड़े मीयां आज भारत में प्रचंड बहुमत की सरकार है!” शौकत ने खड़े होकर सच्चाई का बयान किया था। “हिन्दुत्व की लहर ..”

“अरे मेरे भाई! मुझे भी पता है कि भारत सरकार सब का साथ ओर सबका विकास का नारा दे रही है और उनके लिए पाखाने और पेशाब घर बनवा रही है जो उन्हें कभी वोट ही नहीं देते! हाहाहा!” जोरों से हंसे थे मौलाना साहब। “हिन्दुओं को तो शासक क्या होता है ये बात ही भूल गई है।” मौलाना साहब बताते रहे थे।

“बड़े मीयां! अगर लड़ाई हुई तो ..?” कासिम बेग ने हिम्मत जुटा के प्रश्न पूछा था।

“तो लड़ेंगे दोस्त!” तुरंत ही बोले थे मौलाना। “पूरा बंदोबस्त रक्खो लड़ाई का। हम पीछे बैठे हैं तुम्हारे!” उन्होंने आंखें उठा कर पूरी जमात को देखा था। “ओर फिर हिन्दू तो धर्म युद्ध करता है दोस्तों! कभी एकजुट होकर नहीं लड़ता ओर देश में आज भी जय चंदों की भरमार है! हिन्दुओं को पेशा नहीं पैसा चाहिए! ओर पैसा हमारे पास है!” तनिक ठहरे थे मौलाना। “खरीद लो मेरे भाई। मुंह मांगा दो – हम देंगे तुम्हें!” मौलाना साहब ने सौदा तय कर दिया था।

उस हॉल में, उन पलों में और उन जमा हाजरीन के बीच एक नए हिन्दुस्तान का नक्शा बना था और पास हो गया था।

कासिम बेग भी भाई का गम तो भूल गया था लेकिन नेहा को नहीं भूला था।

मेजर कृपाल वर्मा

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