“एक लंबी ढूंढ खखोर और जांच पड़ताल के बाद हमने आप दोनों को चुना है! मैं कैली हूँ। मैं फिल्म – द वे ऑफ लाइफ या कहें जीने की राह की प्रोड्यूसर हूँ।” कैली ने ठहर कर उन दोनों की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।

“अ-अ-आप इतनी अच्छी हिन्दी बोलती हैं?” नेहा को आश्चर्य हुआ था तो उसने पूछ लिया था।

“हॉं नेहा!” कैली ने स्वीकारा था। “चूंकि मेरा जन्म भारत में हुआ और मेरे पिता कर्नल गिलबर्ट ब्रिटिश आर्मी में थे। मैं सब कुछ भूली नेहा – पर भारत को ही नहीं भूली!” हंस पड़ी थी कैली। “हेन्स द वे ऑफ लाइफ माने कि जीने की राह!” उसने हाथ झाड़े थे।

विक्रांत कैली के कथन पर विमुग्ध हो गया था। उसे यहां लंदन में भी एक भारत भक्त मिल गया था तो उसकी रूह खिल गई थी।

“मैं सिर्फ इतना ही जानना चाहूंगी आप दोनों से कि क्या आप दोनों को कोई उज्र होगा इस जीने की राह फिल्म में काम करने से?”

“कहानी क्या है?” नेहा से रहा न गया था अतः: पूछा था। “मेरा मतलब है – उस .. उस .. अंग्रेजी फिल्मों के ऊलजलूल दृश्यों और कथानक से जहां मर्यादाओं का ..?”

“बी रेस्ट अश्योर्ड नेहा कि ये फिल्म तुम्हारी गंगा की तरह पवित्र होगी और जो जीवन दर्शन होगा – तुम्हारा और तुम्हारे पूर्वजों का होगा!” हंसी थी कैली। “बस इतना ही। ज्यादा हम अभी नहीं बताएंगे।”

नेहा ने मुड़ कर चुपचाप बैठे विक्रांत को घूरा था। वह गंभीर था। लेकिन जिस विचार की ओर कैली का इशारा था वो उसे मन प्राण से भा गया था। “काश! ये विचार हमारे फिल्म प्रोड्यूसरों ने भी पकड़े होते?” एक लंबी उच्छवास छोड़ी थी विक्रांत ने। “डाकू और गुंडों के अलावा हमें तो सुहाता ही कुछ नहीं है! कहते हैं हमारे दर्शक? और ये लोग – कल चांद पर हमसे पहले पहुंच गये थे और शायद स्वर्ग में भी हम से पहले पहुंचे मिलेंगे?” तनिक हंसा था विक्रांत। फिर उसने नेहा की आंखों में देखा था।

“हमें घाटा नहीं पड़ेगा नेहा!” उसने चुपके से नेहा को बताया था।

“फिल्म के डायरेक्टर हैं मिस्टर राबर्टस्!” कैली ने जाते जाते बताया था। “और पूर्ण रूप से व्यवस्थापक हैं मिस्टर परदेसी। ये लोग आप को सब कुछ बता देंगे और समझा देंगे!” कैली कहती रही थी। “मैं उम्मीद लेकर चल रही हूँ कि आप दोनों हम से सहमत हैं और हमारे साथ हैं!” उसने उठते हुए दोनों से हाथ मिलाए थे और चली गई थी।

चाय नाश्ता आ गया था। अब विक्रांत और नेहा अकेले थे। नेहा को अभी भी अनेकानेक शंकाएं खाए जा रही थीं। अब वह विक्रांत से झगड़ रही थी।

“म .. मैं .. न करूंगी कोई .. न्यूड सीन!” नेहा नाराज थी। “इन लोगों के यहां तो यही सब चलता है, बाबू!”

“धीरज धरने का क्या लोगी?” विक्रांत ने हंस कर पूछा था।

“एक पप्पी!” नेहा कहने को थी पर संभल गई थी। “अधीर होने का सबब है बाबू!” फिर उसने जोर देकर अपनी बात बताई थी। “मैं नंगी होना नहीं चाहती बाबू!” उसने प्रार्थना जैसी की थी।

“तुम्हें कौन नंगी कर सकता है नेहा?” विक्रांत का प्रश्न था। “मैं हूँ न ..?” उसने नेहा के दोनों हाथ लेकर चूम लिए थे।

तब एक देसी आदमी ने प्रवेश किया था। नेहा उसे देख कर भी चौंकी थी। कोई चौकीदार सरीखा आदमी था। लेकिन वह सीधा उन दोनों की ओर आया था और साथ आ बैठा था!

“मेरा नाम परदेसी है!” वह बताने लगा था। “हूँ तो मैं देसी – लेकिन मेरा नाम ..?” वह हंस रहा था। “आई एम एन एक्सपर्ट ऑन द वैदिक लाइफ एन्ड आई हैव एन ऑथोरिटी ऑन वेदाज!” वह बताने लगा था। “जीने की राह वो राह है जिसे हमारे पूर्वजों ने जिया था।” वह हंसा था। “मेरा नाम तो जान लिया अब काम भी सुनिए – आप दोनों का मैं गाईड एन्ड फिलॉसोफर हूँगा!” वह हंसा था और उसने दोनों से हाथ मिलाए थे।

“कहां के रहने वाले हैं?” विक्रांत ने पूछ ही लिया था।

“बिहार का!” परदेसी ने बताया था। “तुम्हारे गांव से तीन कोस पर मेरा गांव है!” उसने विक्रांत को नई निगाहों से घूरा था। “भदौरा – कभी सुना हो तो ..?”

“ये तो शेखर का गांव है?”

“हॉं! शेखर मेरा भतीजा है!” परदेसी ने स्वीकारा था।

एक नई रोशनी का आगमन हुआ था। लगा था वो दो बिहारी जन्म जन्मांतरों को जीने के बाद आज चांद पर आ मिले थे!

“मैंने ही आप दोनों का नाम सुझाया था।” परदेसी बताने लगा था। “मिस्टर रॉबर्टस् जो इस फिल्म के डायरेक्टर हैं – हिन्दुस्तानी सिनेमा के उपासक नहीं हैं। बहुत चिढ़ते हैं। लेकिन मैंने तुम दोनों की फिल्म ‘मॉं के आंसू’ देखी तो मुझे विश्वास हो गया कि तुम दोनों ये गाड़ी खींच ले जाओगे!” हंसा था परदेसी। “रॉबर्टस् से जरा संभल कर बात करना!” उसने चेतावनी दी थी और चला गया था।

“डरने की क्या बात है! काम ही तो नहीं देगा?” नेहा बिगड़ी थी। “हमें ..”

“धीरज धरने का क्या दोगी ..?” अबकी बार विक्रांत ने प्रश्न को उलटा कर के पूछा था।

“ठींगा!” नेहा को फिर से शरारत सूझी थी। “मैं न मानूंगी बाबू इनकी बात ..”

“फिर मेरी बात तो मान लेना?” विक्रांत हंसता ही रहा था।

तभी मिस्टर रॉबर्ट का आगमन हुआ था।

एक लंबा चौड़ा, सफेद और सजीला आदमी सीधा चलकर उन दोनों के पास आ बैठा था। छोटी बारीक दाढ़ी रक्खी हुई थी – रॉबर्ट ने। उसकी नीली गहरी आंखों में विक्रांत को कई समुंदर समाए लगे थे। नेहा भी उसे ध्यान से देखे जा रही थी!

“हमने साथ साथ काम करना है!” मिस्टर रॉबर्ट बोले थे। “मैं स्वागत करता हूँ आप दोनों का।” वह तनिक से हंसे थे। “साथ में ही बता दूँ कि आई एम ए हार्ड टास्क मास्टर!” उसने जैसे बम फोड़ा था। “आई कॉल स्पेड अ स्पेड!” उसने अब उन दोनों को देखा था। “नया थीम है। विचार भी बहुत बड़ा है। जब दुनिया गलत रास्ते अख्तियार कर नरक में जा पहुंची है – तो अब स्वर्ग की याद सता रही है। उन्हें हमने बताना है द वे ऑफ लाइफ या जीने की राह! पूर्ण भारतीय दर्शन और वैदिक जिंदगी पर आधारित है। लेकिन हम ये बात किसी और कान को नहीं बताएंगे! परम गुप्त रख कर हमने इस विचार को बड़ा करना है!” उसने रुक कर उन दोनों को देखा था।

“सर हम लोगों को ..?” विक्रांत ने सवाल पूछना चाहा था।

“सब कुछ मिलेगा .. मूंह मांगा मिलेगा – विक्रांत!” हंस हंस कर कह रहा था रॉबर्ट। “और अगर न मिले तो मुझसे कहना नेहा!” उसने जाते जाते कहा था और हंस कर चला गया था।

परदेसी फिर लौटा था। उसने हाथ में एक मोटी फाइल पकड़ी हुई थी।

“ये रहा आप लोगों का कॉन्ट्रैक्ट! हस्ताक्षर कीजिए और फिल्म आरम्भ होने तक मौज कीजिए!” वह जोरों से हंसा था। “एक माह का कैरेबियन टूर है दोनों के लिए!” उसने सूचना दी थी।

“क्यों ..? क्या हम घर नहीं जा सकते!” नेहा तड़की थी।

“नहीं मैडम! भारत तो अब फिल्म बनने के बाद ही लौटना होगा!” परदेसी ने स्पष्ट किया था।

नेहा ने विक्रांत को घूरा था। वह पूछना चाहती थी कि ये लोग होते कौन थे जो बिना उनकी रजामंदी के उन्हें वर्लड टूर पर भेज रहे थे?

“मेरे टच में रहिए विक्रांत। मैं समय समय पर सारी सूचनाएं देता रहूँगा!” कहकर परदेसी चला गया था।

अब वो दोनों अकेले थे। एकांत में थे और दो तरह से सोचने लगे थे।

नेहा को अचानक ही खुड़ैल का वे ऑफ लाइफ याद हो आया था। वो आजमगढ़ की हवेली, बाग बगीचे और उसका वो हरम – रजिया और मुमताज और कई दर्जनों बच्चे उसकी आंखों के सामने खड़े थे। “‘वॉट ए वे ऑफ लाइफ’ स्वयं से कह कर नेहा मन ही मन हंसी थी। फिर उसने चुपचाप बैठे विक्रांत को टहोका था और पूछा था क्या है ये द वे ऑफ लाइफ?

“बिहारी उदाहरण देता हूँ।” विक्रांत मुग्ध भाव से बोला था। “गंगा स्नान करने पहले पैदल पैदल जाया करते थे। दो मित्र थे जिनके पास अलग अलग खरिया था।”

“खरिया ..?” नेहा ने पूछा था।

“हॉं – खरिया मतलब कि खाने पीने का सामान। एक के पास थे सत्तू तो दूसरे के पास थे धान। अब धान वाले को पता था कि धान पकाने छकाने का झंझट कितना कठिन था जबकि सत्तू तो सीधे पानी में घोल कर पी लिये जाते थे। धान वाले ने चाल खेली और कहा – सत्तू मन भत्तू कब घोरे कब खाये! धान बिचारे ऐसे रांधे रूंधे चर लये! जब कई बार उसने इसी बात को दोहराया तो सत्तू वाला मित्र घबरा गया। उसने कहा – भाई मेरे सत्तू ले ले और धान दे दे। धान वाले को और क्या चाहिये था। उसने सत्तू ले लिए और धान थमा दिये। लेकिन जब सत्तू पी कर धान वाले का मन मस्त हो गया और सत्तू वाला धान पकाने की फिराक में मारा मारा डोला तब बात उसकी समझ में आई।”

“बात समझ में नहीं आई!” नहा ने मुड कर कहा था।

“अरे भाई! ये लोग अब हमें धान की पोटली पकड़ा कर हमारे सत्तू हम से छीन लेना चाहते हैं!” विक्रांत हंसा था। “ताकि ये सीधे स्वर्ग पहुंचें और हम इनकी तरह उस सड़ांध में डूब जाएं ..”

“ओह .. दैट!” अब नेहा जोरों से चीखी थी। “अब समझी!” उसने सर हिलाया था।

और .. और वही तो हुआ मेरे साथ बाबू! खुड़ैल ने चालाकी से मुझे अपनी पोटली पकड़ा दी और मेरा सर्वस्व लूट कर ले गया! मैं अपना घर फूंक कर इस नरक में चली आई और वो स्वर्ग भोग रहा है!

“कित्ती पागल निकली मैं, बाबू? मैंने अपना घर फूंक कर तमाशा देखा और तुम्हें अपने परम प्रिय बाबू को ..?”

सॉरी बाबू ..!

अब कर भी क्या सकती थी नेहा?

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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