“कैसी हैं हमारी शहजादी साहिबा?” नवाब छतारी का फोन था।
उछल पड़ी थी नेहा। उसने मूक निगाहों से विक्रांत को मदद के लिए पुकारा था। उसे नवाब छतारी आदमी नहीं – कोई अलग ही आय-बलाय लगता था।
“फोन पर तो तुम्हें खा नहीं सकता!” विक्रांत हंसा था। “कर लो न बात!”
“चार चुनिंदा मित्रों को लेकर हम बंगाल की खाड़ी में जश्न मनाएंगे!” सूचना दे रहे थे नवाब छतारी। “आप दोनों उन चार में से दो हैं!” अब हंसे थे नवाब छतारी। “मेरी बड़ी तमन्ना है कि आप दोनों आएं और चार चांद लगाएं! ना मत कह देना मुहतरमा .. वरना तो हम मर जाएंगे!” चुहल की थी नवाब छतारी ने।
आंखों ही आंखों में नेहा ने विक्रांत से सहमति ले ली थी।
“आप बुलाएं और हम न आएं? इतनी गुस्ताखी तो हमसे हो नहीं सकती लेकिन नवाब साहब ..”
“इतवार है जाने मन! छुट्टी का दिन है। हम इत्ते गधे तो नहीं हैं, शहजादी साहिबा? भाई नवाब हैं! इत्ता भेजा तो अल्लाह ने दिया ही है .. कि ..”
“पागल है, साला!” धीमे से कहा था विक्रांत ने और हंस गया था।
ठीक दिये समय पर गाड़ी पहुंची थी। फिर हैलीकॉप्टर ने उड़ान भरी थी और एक छोटे अंतराल में ही लॉन्च पर आ उतरा था। रंग बिरंगी पोशाक में सजे नवाब छतारी ने लपक कर उन दोनों का स्वागत किया था।
“जहे नसीब आप आये .. बहारें ..” नवाब छतारी अपने उर्दू लहजे में बोलने लगे थे।
“जनाब बहारें नहीं बौछारें कहिए!” विक्रांत ने भी रंग लेने की गरज से कहा था। “हम समुंदर के बीचों बीच हैं और ..” उसने हाथ फैलाकर जैसे अथाह जल राशि को सलाम किया था।
डैक पर पड़ी तीन आराम कुर्सियों पर वो तीनों बैठ गये थे!
खातिरदारी शुरु होने के साथ साथ नवाब साहब ने निगाहें भर भर कर नेहा को देखा था। मन ही मन उन्होंने नेहा के हुस्न को सराहा था और फिर लगे थे उसकी प्रशंसा करने।
“‘मॉं के आंसू’ में किये किरदार में खुश कर दिया तुमने नेहा!” नवाब साहब कहने लगे थे। “क्या कलेजा चीर कर डायलॉग दिए हैं! भाई हम तो ..”
तभी फिर से हैलीकॉप्टर का आगमन हुआ था!
“लो जी! हमारे सरपरस्त .. सलामी साहेबान पधार रहे हैं!” नवाब साहब ने सूचना दी थी। “आप लोग इनसे मिल कर ..” वह उठ कर अपने मेहमान का स्वागत करने चले गये थे।
“न जाने ये कौन होगा?” नेहा के मुंह से निकला था।
“होगा .. कोई भी!” विक्रांत ने एक बेपरवाह अंदाज में कह दिया था।
और फिर वो दोनों देख रहे थे कि हैलीकॉप्टर से नीचे उतरने वाला और कोई नहीं – रमेश दत्त ही था! नवाब छतारी ने बड़े ही अदब के साथ रमेश दत्त का स्वागत किया था और अब वो दोनों उन दोनों की ओर चले आ रहे थे!
नेहा और विक्रांत के चेहरे एक लमहे के लिए बिगड़ गये थे। पूरे दिन का उत्साह जाता रहा था। पास बैठी उमंग समुंदर में जा डूबी थी।
“मिलिए – ये हैं हमारे सरपरस्त कासिम बेग साहब!” नवाब छतारी ने ऐलान जैसा दिया था। “बम्बई के सबसे बड़े बादशाह हैं!” उसने बम का गोला जैसा फोड़ा था।
“शेर की बोली बोलता – रंगा सियार!” विक्रांत ने मन ही मन कहा था। यह जान कर कि रमेश दत्त का असली नाम कासिम बेग था और वो मुसलमान था – विक्रांत एक ज्वालामुखी की तरह धधक उठा था।
रमेश दत्त को आया देख नेहा चुप थी – एक बंद तूफान की तरह।
“आप लोग बैठिए!” नवाब छतारी ने आग्रह किया था। “मैं माफी चाहूंगा!” उसने बहाना किया था और बाथरूम में जा घुसा था।
अब वो तीनों तीन कुर्सियों पर आमने सामने बैठे थे! गहन खामोशी उन तीनों के बीच बैठी थी। अब तीनों अपने अपने तीर और निशाने चुन रहे थे। युद्ध तो होना ही था। तभी नवाब छतारी बाथरूम से निकला था। उसने एक नजर रमेश दत्त को देखा था और कहा था – मुजरिम हाजिर हैं मेरे आका, मैं चला! फिर मुसाफिर खड़े हैलीकॉप्टर में चढ़ा था और चला गया था!
“तुम्हें खोजते खोजते पागल हो गया हूँ नेहा!” रमेश दत्त ने पसीना पोंछा था। कहीं वो विक्रांत से खौफ खा रहा था। “जानती हो क्यों?” उसने पूछा था। “इसलिए कि .. भाई का आदेश हैं कि औरंगजेब पर फिल्म बनाओ – मुगले आजम जैसी और नेहा को साइन करो! मनी इज नो बार!” अब उसने नेहा की आंखों में देखा था। “साहबज़ादे सलीम ने तो साइन कर दिए हैं! अब केवल तुम्हारा फैसला ..”
“मैं काम नहीं करूंगी!” नेहा ने दो टूक कहा था।
“क्यों भाई?” भड़का था रमेश दत्त। “अरे, मुगलों का तो मुकाबला ही कहीं नहीं! आज तो मुगलई नान से लेकर मुगलई चिकन तक बिकता है!” हंसा था रमेश दत्त।
“बिकाऊ तो है – पर टिकाऊ नहीं हैं!” विक्रांत ने बात काटी थी। “ये सब झूठ के पैरों पर खड़ा है और इसमें अइयाशी का तड़का लगा कर नशेड़ियों को परोसा जाता है .. ताकि ..” हंस रहा था विक्रांत।
“क्या बक रहे हो? इतिहास पढ़ा है ..” गरजे थे रमेश दत्त।
“जी हॉं! मैंने इतिहास में पी एच डी किया है और फिल्मों में आने से पहले मैं कैम्ब्रिज में विजिटिंग प्रॉफेसर था! फिल्मों में इसलिए आया कि हिन्दुओं के प्रति होते दुश्प्रचार को रोकूं ..”
“बतकही बातें हैं ये फिल्मों में नहीं चलती जनाब। दर्शकों को तो मीट चाहिए, तुम्हारा जैसा खाली लिफाफा नहीं!” अब जोरों से हंसे थे रमेश दत्त। “नेहा तुम एक बार हॉं कह दो! मैं दावे के साथ कहता हूँ कि ..”
“मैं फिल्मों से सन्यास ले रही हूँ!” नेहा ने बड़े ही ठंडे मिजाज से कहा था।
“झूठ बोल रही हो!” रमेश दत्त बिगड़े थे।
“झूठ तो तुम भी बोल रहे हो!” विक्रांत बीच में कूद पड़ा था। “मन गढंत कहानी है ये। नेहा को फसाने की चाल है तुम्हारी! औरंगजेब तो एक एक बदनाम बादशाह है! उसी ने ही तो डुबोई थी मुगलों की नैया! जघन्य अपराध किये थे और ..”
“मेरा रास्ता मत काटो विक्रांत!” उंगली दिखा कर दत्त साहब ने विक्रांत को धमकाया था।
“तुम मौतें बांटते हो – मैं जानता हूँ। मुझे बरबाद कर दोगे – मैं मानता हूँ। लेकिन मिस्टर कासिम बेग मैं फिल्मों में जीते मुसलमानों के इस दुहरी चरित्र को उजागर करके रहूँगा। मैं लोगों को बताऊंगा कि किस तरह कासिम बेग रमेश दत्त बनकर न जाने कितनी बेगुनाह महिलाओं को ..”
“मैं चाहूँ तो विक्रांत ..?” आग बबूला हो उठा था रमेश दत्त।
“और अगर मैं चाहूँ तो कासिम बेग?” विक्रांत ने लपक कर रमेश दत्त को गर्दन से पकड़ लिया था। “तुम्हारी मरी लाश को समुंदर में फेंक दूँ ताकि मछलियां खा लें तुम्हें और ..”
“छोड़ो!” नेहा जोरों से चिल्लाई थी। “छोड़ो बाबू!” वह रुआंसी हो आई थी। विक्रांत ने अभी भी पकड़ को ढीला न किया था और रमेश दत्त की गिल्ला सी आंखें बाहर निकल आईं थीं। “छोड़ो इसे – नहीं तो मर जाएगा बाबू!” रोने लगी थी नेहा। “तुम्हें मेरी कसम बाबू छोड़ दो इसे!” विलाप करने लगी थी नेहा।
हैलीकॉप्टर खाली लौटा था। रमेश दत्त दौड़ कर उसमें सवार हुआ था और भाग गया था।
“याद है न बाबू! जब हम दोनों डेक पर अकेले रह गये थे तो हम किस तरह बांहें पसार पसार कर मिले थे और कसमें खाते रहे थे कि हम अब दोनों एक जान एक प्राण होकर जीएंगे .. और अगर बुरा वक्त आया तो साथ साथ ही मरेंगे! पर साथ साथ मरे कहां?” नेहा की आंखें सजल थीं। “लेकिन .. लेकिन .. बाबू! मैंने तुम्हें ही मार दिया .. लेकिन खुद न मरी बेशर्म!”
सॉरी बाबू! बिलख बिलख कर रो रही थी नेहा!
मेजर कृपाल वर्मा