“लेकिन शिखर इंदु को ईसाइयों से डर नहीं लगता है!” शिखा का स्वर गंभीर था। “ईसाइयों को तो मित्र मानती है।” शिखा की सूचना थी। “सोनिया ने वश में कर लिया है – बुढ़िया को!” तनिक हंस गई थी शिखा।
“फिर किससे डरती है?” शिखर ने पूछा था।
“आर एस एस से! संघियों से ..! हिन्दुओं से ..!” शिखा के स्वर चुटीले थे। उसने कहीं दूर देखा था। शिखा के चेहरे पर दुनिया भर के दुख दिखाई दिए थे शिखर को। “इंदु को लगता है कि संघी हैं जो अकालियों के साथ मिल कर पंजाब में आग लगा रहे हैं, असम को सुलगा रहे हैं और बंगाल में कुद्दर बो रहे हैं।” रुकी थी शिखा। उसने शिखर की आंखों को हंसते देखा था। “कहती है – ये हिन्दू धर्म निरपेक्ष राज्य के सपने को अवश्य तोड़ेंगे। कहती है – उनका हिन्दू राष्ट्र का सपना और अखंड भारत जैसी बेहूदा बातों ने लोगों को गुमराह किया है। उनकी पत्र-पत्रिकाएं जैसे कि पांचजन्य विष के बीज बो रही हैं जो एक न एक दिन तो ..”
“गलत क्या कहती है?” मुसकुराया था शिखर।
“तो क्या खालिस्तान बनेगा?” शिखा ने पूछा था।
“क्या तुम चाहती हो कि बने?”
“नहीं!”
“तो नहीं बनेगा!” खुलकर हंसा था शिखर। “डायमंड कट्स द डायमंड!” शिखर ने जुमला कहा था।
“संजय के लिए बहुत रोती है। इंदु को उम्मीद थी संजय से कि वो आर एस एस को उखाड़ फेंकेगा! लेकिन राजीव ..?” शिखा फिर से बताने लगी थी।
“और सोनिया ..?” प्रश्न पूछा था शिखर ने।
“दुश्मन है!” तनिक हंस गई थी शिखा। “भाई है तो गट्स वाली लड़की। भिड़ तो गई है राजीव से। शी इज वैरी स्मार्ट!” सूचना दी थी शिखा ने। “मुझे तो बहुत सम्मान देती है।”
“सही है!” खुश था शिखर।
इंटैलीजेंस इनपुट थी – इट्स नाउ और नैवर – एक संकेत था! अगर स्वर्ण मंदिर को खाली न कराया तो खालिस्तान बना धरा था। पाकिस्तान और अमेरिका दोनों का सहयोग और सहारा था। बांग्लादेश का बदला उतारना चाहता था पाकिस्तान और अमेरिका।
“क्या करूं?” इंदु के होश उड़े हुए थे।
“सेना बुला कर झंझट खत्म करो न!” मैंने इंदु को सहारा दिया था। “तुम्हारे ये चमचे सब उन से मिले हुए हैं इंदु!”
“सिक्खों का पवित्र स्थान है! और उनकी मान्यताएं हैं ..?”
“देश से आगे कुछ नहीं होता!” मैंने जोर देकर कहा था।
देश में इतिहास रचा गया था। सेना ने अपना काम बखूबी निभाया था और भिडरावाले को उठा फेंका था। खुशी ओर गम दोनों साथ साथ मनाए थे पंजाब ने!
“आप ..?” शिखा को आया देख आर के धवन चौंक पड़ा था। “आप कैसे? आप तो ..?”
“लो जी लो! तुम्ही ने तो बुलाया था?” आंखें मटकाते हुए शिखा बोली थी।
“अरे हां हां! आप तो वही समाज सेविका हैं ..” हंसा था धवन। “बस शूटिंग होने वाली ही है!” उसने बताया था। “आप कुछ पूछना चाहें तो पूछ लें!” धवन बड़ी ही आजिजी से बोला था।
ओर उस दिन – 31 अक्तूबर 1984 के दिन, दिन दहाड़े सिक्ख सिपाहियों ने जो इंदिरा गांधी के बंगले पर पहरेदार थे देश की प्रधान मंत्री श्री मति इंदिरा गांधी को गोलियों से भून डाला था।
“तुम्हें तो गोली नहीं लगी थी?” शिखर पूछ रहा था।
“नहीं!” शिखा ने बताया था। “धवन को भी नहीं लगी।” शिखा हंस गई थी। “सोनिया तो .. होश बेहोश हो गई थी .. और ..”
नए बीज मंत्र ने पुराने बीज मंत्र को समाप्त कर दिया था। इस्लाम एक बार फिर निराश हुआ था। कोई था – जो उनके मंसूबों को पहचानता था और हर बार उनकी अगाई काट जाता था।
1 नवंबर 1984 को ही राजीव गांधी देश के प्रधान मंत्री बन गए थे।
लेकिन दिल्ली और देश में जो सिक्खों के प्रति दंगे भड़के थे उन्होंने जमीन और आसमान को हिला दिया था। गरीबों की मां को मारा था सिक्खों ने और अब गरीब सड़कों पर थे। अब वो प्रतिकार चुका रहे थे और राजीव बेसुध थे। हजारों हजार सिक्खों की जानें गई थीं।
“ये सब आर एस एस का करा धरा है!” राजीव के कानों तक बातें पहुंच गई थीं। “संघी हैं जो कांग्रेस को चलने नहीं दे रहे हैं।”
राजीव ने भी जैसे बात गांठ बांध ली थी। संजय और इंदिरा की लाशों का भय राजीव गांधी को भी खबरदार कर गया था और सोनिया गांधी अब राजीव गांधी की परछाईं बन गई थी और हर पल साथ रहने लगी थी।
“अचंभा है!” शिखा की आवाज में हैरानी थी। “राजीव जिसके मुंह में जबान नहीं थी एक के बाद एक घोषणा करता ही चला जा रहा है। मिस्टर क्लीन की बनाई छवि, इक्कीसवीं सदी में जाने का जयघोष और सैम के सुपर कम्पयूटर?” निराश थी शिखा। “कैसे रोकेंगे इसे शिखर?” वह पूछ रही थी। “फॉरन पॉलिसी को लेकर तो ..”
“मैं देखता हूँ!” शिखर संभला था। “उम्मीद से कुछ ज्यादा ही हो रहा है।” शिखर ने दूर देखा था। “ये पंचायती राज की चली चाल और लोगों से सीधा संपर्क साधना तो हमारा ही खेल खेल देना है!” शिखर चिंता में था।
“कहीं सोनिया ने तो ..?” शिखा कहते कहते रुक गई थी।
“हां! अब अमेरिका आना चाहता है!” शिखर ने बात साफ की थी। “रूस का साथ छोड़ कर भारत अब वैस्ट के साथ आएगा!”
“नहीं आएगा!” शिखा ने बात काटी थी। “इनपुट है मेरे पास .. कि ..”
“फिर तो काम बनेगा!” प्रसन्न होते हुए शिखर बोला था।
राजीव गांधी की सोच नई थी। राजीव गांधी के मित्र और यारे-प्यारे सभी सरकार में शामिल हो गए थे। सब ने अपने अपने स्तर पर करिश्मा करने में लगे थे। वी पी सिंह चाहते थे कि डिफेंस के होते सौदों में कुछ कटौतियां करने और देश के लिए कुछ लाभ कमा लें!
“देखो भाई!” वी पी सिंह अपने मंजे स्टाइल में बोले थे। “हमारा देश धनी नहीं है! हमें कुछ कंशेशन तो चाहिए!” उनका आग्रह था। “रक्षा सौदों का बजट ..”
“श्रीमान जी!” विदेशी बिचौलिया बोल पड़ा था। “पहले ही हम साठ करोड़ दे चुके हैं!” उसने सूचना दी थी। “आप चाहें तो ..” उसने हाथ जोड़ कर कहा था।
जैसे कि बिजली का करंट लगा हो ऐसी प्रतिक्रिया हुई थी वी पी सिंह पर! मिस्टर क्लीन की छवि मिस्टर भ्रष्ट की छवि में बदल गई थी और अब डिफेंस मिनिस्टर श्री वी पी सिंह ने राजीव गांधी का पर्दाफाश कर दिया था।
पूरे देश ने सुना था – गली गली में शोर है – राजीव गांधी चोर है!
इसके बाद से तो जैसे देश की सत्ता की बागडोर शिखर के हाथों में थी। एक के बाद एक घटना, आयोजन और प्रयोजन होता ही चला गया था।
“धवन 10 जनपथ पर पहुंच गया है!” शिखा ने सूचना दी थी। “शायद अब ..?”
“शायद नहीं इट्स फॉर श्योर, शिखा!” हंस गया था शिखर। “मैं अब मानूंगा नहीं!” उसने अपने इरादे व्यक्त किए थे।
और चुनावों के दौरान ही राजीव गांधी की मृत्यु हो गई थी।
“बन गई ये तो पी एम!” शिखा ने चौंकते हुए कहा था। “कोढ़ में खाज ..”
“नहीं बनेगी!” शिखर हंसा था। नरसिम्हा राव बनेगा।” उसने सूचना दी थी। “और अब होगा द बैटल रॉयल एंड द गेम ऑफ पावर!” शिखर कहता रहा था।
अडवानी जी की रथ यात्राओं में पूरे स्वयं सेवक संघ ने जानें लड़ा दी थीं।
शिखर और शिखा को मरने तक की फुर्सत नहीं थी। बिहार में रथ यात्रा रोकी गई थी और यू पी में गोलियां चली थीं लेकिन ..
“पूरे हिन्दुस्तान का हिन्दू अब एक हो गया है मैडम!” सोनिया को सूचना मिली थी। “बाबरी मस्जिद भी गिरेगी!”
सच भी था। न जाने कैसे शिखर का इच्छित सपना साकार हो गया था।
बाबरी मस्जिद का गिरना युगांतर जैसा था। अब हिन्दुओं का राज होगा ये सर्व विदित हो गया था।
“हमारे नेता भी मिल गए हैं संघियों के साथ।” सोनिया को सूचनाएं मिल रही थीं।
“आज मनाते हैं आजादी का पर्व, शिखा!” शिखर खुश था। “अब हमारी साधना पूरी होगी।” उसने कहा था। “हेगडेवार जी के बच्चे अब बड़े हो गए हैं। अब अटल और अडवानी संभाल लेंगे देश की बागडोर – मुझे कोई शक नहीं है शिखा।”
जश्न मन रहा था आजादी का! अरमानों का मेला लगा था! संघ के कार्य-करताओं के लिए ये पर्व महत्वपूर्ण था। शिखर ओर शिखा के लिए अब उनकी गौरव यात्रा का आरम्भ होना था।
“जाएंगे कहां आप लोग?” अडवानी जी ने हाथ जोड़ कर विनम्रता पूर्वक पूछा था।
“काशी!” शिखा ने उत्तर दिया था।
“अयोध्या के बाद काशी ही तो है।” अटल जी ने याद दिलाया था।
एक जोर के अट्टहास के साथ हर कोई हंस रहा था।
“उस के बाद मथुरा?” एक और जयघोष हुआ था!
भारत आज स्वतंत्र हो गया था।