गतांक से आगे :-

भाग -६७

“ये तुम्हारा …चन्दन महल …..चंद मिनटों में फूँक दूँगी ……!” चन्दन बोस कविता के डी सिंह की आती आवाजें सुन रहा था . वह बुरी तरह से डरा हुआ था . कविता का फोन आने के बाद से तो उस की हालत ही खराब थी . “यूं ..न छोडूंगी , तुम्हें !” कविता हंस रही थी . उस के साथ आजू-बाजू खड़े बलि और खली उसे घूर रहे थे . “बाप का माल …बेटों का नहीं होगा …तो किस का होगा ….जी …?” खली पूछ रहा था !

चन्दन बोंस के पसीने छूट गए थे. “कहीं पारुल को – कुछ न हो गया हो ..?” उसका शक सामने आया था. “पारुल जैसे- कमनीय प्रेम प्रसंग को चन्दन किसी भी कीमत पर छोड़ना न चाहता था.” न जाने किन संस्कारों के तहत उसे .. ये संयोग और स्वर्ग मिला था ? वह चाहता था कि .. जल्द से जल्द पारुल के पास पहुंचे और ..

“जग भूला .. सब भूला .. पर तुम्हें न… भूला ….!” राजन स्वयं से बतिया रहा था. “न….! न ..!! तुम्हे चाह कर भी न भूल पाया .. पारुल .. योर ग्रेस .. महारानी जी .. और मेरी महबूबा !” उसकी आवाज में पश्याताप था. “कोशिश तो की थी .. पैसा .. व्यापार .. और भर पेट अइयाशी में डूब कर तुम्हे भुला दूँ …! लेकिन ..” उसने आसमान की ओर देखा था. सब साफ़ था. बादलों का एक कतरा तक न था. “कैसे हुआ ..?” राजन ने स्वयं से प्रश्न पूछा था.

राजन की उम्मीदों के विपरीत .. काम कोटि में विचित्र शाला वैभव नहीं – पराभव की ओर चल पड़ी थी. जुआरिओं के लिए शायद वेगस से ज्यादा उम्दा स्थान था ! लेकिन जुआरिओं को जीत-हार के बाद और भी बहुत कुछ चाहिए था – और वो सब वेगस में उपलब्ध था ! उसे यहाँ लाया भी नहीं जा सकता था …..!!

“तू भी चल बम्बई !” राजन के मन ने उसे राय दी थी. “बम्बई को लूट ले ! वेगस की टक्कर में बम्बई आएगा !” उसका अनुमान था.

और न जाने कैसे बम्बई जाने का मन बन गया था, राजन का……!

“तुमने एक ही टक्कर में बम्बई को ठग लिया, मेरी जान !” रूचि लब्बो को बाँहों में भर सराह रही थी. “मिलो इससे ! मेरी फ्रेंड – शील !” रूचि ने परिचय कराया था. “केडिया ग्रुप के मालिकों की इकलौती है – यार !” उसने प्रशंशा की थी. “दोस्त होगी तुम्हारी !” वह हंस पड़ी थी.

पार्टी जोरों पर थी. सभी कॉलेज के युवक और युवतियां जोड़े बना-बना कर नाच रहे थे .. गा रहे थे. बलि के पीछे उसकी मित्र मंडली जुडी थी. खली से आग्रह किया जा रहा था कि वो फिर से ‘टक्कर’ गीत को गाये. लेकिन खली मान नहीं रहा था. वह तो अपनी शब्बो को तलाश रहा था. वह चाहता था कि शब्बो के साथ एकांत में दो बातें हो जाएँ !

“क्यों पीछा कर रहे हो ?” शब्बो ने शिकायत की थी.

“इसलिए यार कि .. काम की बात करनी थी.” खली ने आहिस्ता से कहा था. “फिल्म वालों का ऑफर आ रहा है ! कहती हो तो ..?”

“नहीं, यार ! अभी से क्या ..? ग्रेजुएशन तो कर ही लें !” शब्बो ने बात टाल दी थी.

“भाभी जी ..!” भोग ने पारुल के सामने आते ही मुह खोला था. वह जान गया था कि पारुल को ‘भाभी जी’ का संबोधन अच्छा लगता था.

“चन्दन घर पर नहीं है …!” पारुल ने सपाट आवाज में उत्तर दिया था. “मद्रास गए हैं .. न जाने कब लौटेंगे ..?”

“मेरा .. मतलब .. मै इसलिए आया था कि .. मै ..”

“फिर आइये !” पारुल ने कहा था और चली गई थी.

भोग को जिंदगी में आज पहला जूता लगा था …….!

“मेडम ! साहब बम्बई पहुँच रहे हैं !!” फोन गप्पा का था. “सात बजे का समय है.” उसने बताया था. “लेने आप जायेंगी या – फिर मै ..?”

“मै जाउंगी !” पारुल ने कहा था और फोन काट दिया था.

अच्छा लगा था पारुल को ! चन्दन लौट रहा था. वह डर गई थी. न जाने क्यों आजकल वह चन्दन को एक कोमल फूल की तरह अपने अजस्र प्रेम की छाँह में लेकर ही चलना चाहती थी. न जाने क्यों आजकल वो हर पल .. हर क्षण चन्दन के साथ ही गुजारना चाहती थी. चन्दन उसकी साँसों में इस तरह बस गया था- जैसे शरीर में प्राण !

“वेलकम टू बम्बई !” पारुल ने मुस्कान के साथ चन्दन का स्वागत किया था. “मै …..मै… बिन तुम्हारे .. डरने लगती हूँ – चन्दन !”

“और मै – बिन तुम्हारे उदास हो जाता हूँ !” चन्दन हंसा था.

घर आकर भोग ने उधम मचा दिया था. जो सामने आया उसी को गालियां दीं – और जो सामने नहीं आया उसे भी कोसा ! उसने अपने आप को ‘गधा’ कहा और अपने आसपास को बेहूदा बताया. भोग के भीतर एक ज्वालामुखी धधक उठा था – इर्ष्या का ज्वालामुखी ! और उसे ये ईर्ष्या थी- चन्दन के प्रति .. अपने बाल-सखा चन्दन से वह इर्ष्या कर बैठा था ..!

चन्दन महल में पारुल .. महारानी ऑफ़ काम-कोटि के साथ सहवास में रहता चन्दन उसे पच नहीं पा रहा था. वह क्यों न जुटा पाया – वैसा कुछ, भोग स्वयं से बार-बार पूछ रहा था. कितना धन नहीं कमाया था – उसने ? पूरे विश्व में भागा-डोला था. लेकिन मुर्ख रहा ! निरा .. खोता….!!

“भोग आया था ..!” पारुल ने पहली सूचना दी थी, चन्दन को.

“जरुर आया होगा …!” चन्दन मुस्कुराया था. “उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मै यहाँ .. तुम्हारे साथ रहता हूँ.”

“क्यों ..?”

“इसलिए कि मै उसकी निगाहों में कोरा मूर्ख था .. जो उसे नक़ल करता था .. पास कराता था .. और वह कौड़ियों में मुझे खरीद लेता था. “फेक पर्सनालिटी !” चन्दन बोंस ने तोड़ किया था. “पागल न हो जाये तभी है …!” चन्दन हंस पड़ा था.

“मै डर जाती हूँ, चन्दन !” पारुल चन्दन के सीने से चिपकी थी. “मै .. मै .. डर जाती हूँ कि कहीं कोई मुझसे मेरा ‘चन्दन’ छीन ले जाये …!”

“हाल मेरा भी बुरा है, योर हाइनेस !” चन्दन ने पारुल को आगोश में ले लिया था. “हम यों दो – अकेले .. निहत्थे.. बैरी हो गए. अपनों के आगे ऐश जो कर रहे हैं !” चन्दन चुप था. उसने पारुल के बदन से आती सुगंध का पान किया था. एक आनंद को समेटा था. “कुछ .. कुछ .. मेरा मतलब .. कुछ कर लें ..?” उसने आहिस्ता से पूछा था.

“क्या ..?” पारुल की आवाज धीमी थी .. मधुर थी .. प्रिय थी.

“कोई सम्बन्ध बना लें .. योर हाइनेस ..?” चन्दन ने पूछा था.

“क्या सम्बन्ध .. कैसा सम्बन्ध ..? क्या नाम देंगे .. उस सम्बन्ध को हम …?”

“प्रेम-प्रतिज्ञा !” चन्दन ने तुरंत जवाब दिया था. “हमारी ये प्रेम-प्रतिज्ञा होगी .. कि हम दोनों .. जीवन भर .. आजन्म .. इस जन्म में ..?” भावुक था चन्दन ….!

पारुल को प्रस्ताव भा गया था. वह भी चाहती थी कि वो दोनों अवश्य ही कोई न कोई सम्बन्ध बना लें ताकि कभी जरुरत पड़े तो जवाब दे सकें ! उसे अचानक संभव की याद आई थी .. लेकिन चुतराई से उसने संभव को भुला देना ही श्रेष्ठ समझा था. एक म्यान में दो तलवारें रह कैसे सकती थीं ..?

“मेरा मन है कि रिंग सेरेमनी कर डालें …!” चन्दन कह रहा था “यहीं चन्दन महल में .. एक नितांत छोटी सी पार्टी करें .. और इंगेजमेंट की घोषणा कर दें !” चन्दन ने पारुल को आगोश में भरा था. “सात आदमी बुलाते हैं !” वह हंसा था. “छह आपके और एक मेरा …!” उसने उँगलियों पर गिना था.

“नाम ..?” पारुल ने शरारत भांप कर पूछा था.

“भोग….!” चन्दन ने तुरंत नाम की घोषणा की थी और हंस पड़ा था.

“भाभी .. जी …..!!” पारुल ने भोग की नक़ल की थी और हंस पड़ी थी. “ये भी कोई बात हुई ..? पराई चीज़ के लिए .. पागल हो जाओ …!!” पारुल का उलाहना था.

दोनों आदतन चन्दन महल से बाहर निकल पीछे की ओर टहलने निकल गए थे. शाम ने उनका स्वागत किया था. समुद्र ने चन्दन बोंस को देख शिकायत की थी – भूल गए मित्र …? वह बोला था. ‘रात-रात भर पड़े रहते थे …?’ वह बता रहा था. अचानक ही चन्दन को केतकी याद हो आई थी. यहीं .. इसी बीच पर वो दोनों पड़े-पड़े सपने देखते थे .. और ..

“शादी ..?” पारुल ने चुप्पी तोड़ी थी. “मै चाहती हूँ कि शादी भी बना ही लें !” उसने बात की पुष्टि की थी.

“शादी में तो पूरे संसार को बुलाएँगे …..!” चन्दन बोंस ने जोश के साथ कहा था. “पूरी दुनिया को दिखायेंगे कि हम दो प्रेमी .. हम दो ..”

“शादी लन्दन में करेंगे !” पारुल ने घोषणा की थी.

“मंजूर है …!!” चन्दन लिपट गया था, पारुल से. “मेरे मन की बात कह दी तुमने, पारुल !” वह ख़ुशी से उछला था.

प्रक्रति और पुरुष – सागर तट पर हवा को साक्षी मान शपथ ले रहे थे कि अब वो आजन्म साथ-साथ रहेंगे ..!!

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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