कविता
मरेगे नहीं – मारेंगे । डरेंगे नहीं – डरायेंगे ।।
मानते हैं – हमने शीश कटाये थे ,
उन्हों ने हम पर खूब जुल्म ढाये थे ,
ठीक है , तोड़े थे – उन्हों ने हमारे मन्दिर ,
याद आया – इन्हों ने हमारे ग्रन्थ जलाये थे ,
लेकिन अब नहीं –
लड़ेंगे हम -डरेंगे नहीं । मारेंगे हम -मरेंगे नहीं ।।
अब शीश काटेंगे हम -कटायेंगे नहीं –
मरेंग नहीं …………
कृपाल