सत्यानाश कर बैठी – अपना !

क्रोध आ रहा था , राजन को।  वह आज आग-बबूला  हो रहा था। उसे रह-रह कर अपने  ऊपर क्षोभ हो आया था. “अपनी की बेबकूफी के लिए उस के पास कोई उत्तर न था. वह चाहता था कि कोई उत्तर खोज ले  ….कोई बहाना बनाए  ….जिस से कि  …

“गधे हो तुम, मंगलीक !” राजन का स्वर कांप रहा था. “कहाँ से बूढ़े हुए  ….कैसे   ….”

“साव ! हमने तो    …रात भर  ….”

“खाख छानी   ….रात भर  …! लेकिन  ….” राजन मंगलीक को घूर रहा था.

मंगलीक को मुहरा बनाना व्यर्थ था – राजन सोचे जा रहा था. वह बूढा , बफादार कभी भी झूठ न बोल पाएगा  …और  ….! तभी घंटी बजी थी. मंगलीक ही था.

“क्या है  …? अब क्या धरा है   ….?” राजन चीखा था.

“वो   ….वो   …., सावित्री मैम साव   ….” मंगलीक कठिनाई से कह पाया था.

“तो मैं क्या करू  …?” राजन ने हवा में हाथ फेंके थे.

“मिलने   …आईं हैं   …!” मंगलीक ने कांपते स्वर में उगला  था.

“क्या   ….., सावित्री   …..मिलने आई है   ….? मिलने दो  ….डरता  हूँ  , क्या   ….?’

“डर तो मुझे लग रहा है, राजन !” सावित्री अब राजन के सामने खड़ी थी. “ये   …..सब   ….क्या तमाशा है  …?” सावित्री ने सीधे-सीधे प्रश्न किया था.

“कोई तमाशा नहीं है. ” राजन ने हाथ झाड़े थे. “वो   …वो  ..,उल्लू का पट्ठा   …डॉक्टर पाल पाजी है !” राजन की समझ में अब सब समां गया था. “पुलिस को फोन कर दिया। मैंने लाख कहा – डॉक्टर ! इट्स जस्ट  ..दैट काइंड   …ऑफ़  …!” राजन रुक था. उस ने सावित्री के चेहरे को पढ़ा था. वह गंभीर थी.

“नदी में  क्यों  ….कूदे  …?” सावित्री का सीधा प्रश्न था. “कैसे कूदे  …? क्या था   …जो   …?”

“ओह, गॉड !” राजन ने सर पीटा था. “मैं क्यों कूदता नदी में  …?” वह चिल्ला पड़ा था. “पैर फिसल गया था  …और  ….”

“और  …..?” सावित्री ने राजन की आँखों में झाँका था. था , कोई चोर जिसे राजन छुपा रहा था  ….उस का नाम नहीं बता रहा था.

“और क्या  ….? पुलिस को फोन किया   ….पुलिस पहुँच गई  …! पुलिस पहुंची तो  ….मीडिया हाज़िर ! फिर क्या था    …सवाल के ऊपर सवाल  ….जबाब के ऊपर जबाब   ….! लिख दी कथा  …लिख मारा अनाम अध्याय  …गया फोटो   ….! उड़ गई कहानी – बिना पंख   …!! भई , वाह   …खूब ज़माना है  …खूब लोग हैं !”

“आप भी तो – खूब हैं, मिस्टर राजन !” सावित्री बोली थी. “कैसे कूदे   …क्यों कूदे  …? वहां  कैसे  पहुँचे  …और  ….” सावित्री राजन के सामने बैठी थी.

राजन जानता था कि सावित्री बिना सच्चाई जाने उठेगी नहीं। आज वह सतर्क था. इस से पहले का सावित्री का स्वरुप भिन्न था. आज तो उस के तेवर भी बदले हुए थे.

“सच-सच बताता हूँ, सावो !” राजन तनिक विनम्र हो आया था. “सच तो ये है कि ..जब तुम मुझे सड़क पर छोड़ कर चली गईं तो …मुझे लगा था  – मैं अनाथ हूँ  …मैं  …वही गाँव से पैदल चल कर आया राजन हूँ. मैंने  ….पहली बार  …बहुत दिनों के बाद   …पहली बार सड़क को अपने पैरों तले खड़ा पाया था. मैं अब हवा में न था   …ज़मीन पर था ! और  …और मैंने  ….न जाने क्यों अपने जूते उतारे और फ़ेंक दिए।  नंगे पैरों मैंने सड़क नापी  ….ज़मीन को महसूसा और  …नंगे पैर चल कर हुगली के किनारे पहुंचा।” राजन ने सावित्री को निहारा था. वह दत्तचित्त हो कर उसे सुन रही थी.

“मैंने सोचा था – तुम क्लब जाओगे  …और  ….”

“शराब पीने का मन ही न था  …और न पत्ते बांटने की ललक थी. ” राजन बयान कर रहा था. “सच,सावो ! पहली बार जीवन में मैंने इस विरक्ति  को झेला था. पहली बार मैंने महसूसा  था कि   …तुम्हारे सिवा   …मेरे जीवन मैं  …!” राजन रुका था. उस ने सावित्री से जैसे क्षमा याचना की थी.

“क्या-क्या लिखा है  ….अखबार में  …पढ़ा है  ….?” सावित्री ने प्रश्न पूछा था.

“पढ़ा है।  ” राजन ने स्वीकारा था. ” पढ़ा है   …!” उस ने स्वीकार में सर हिलाया था. “हमारे प्यार पर प्रश्नचिन्ह लगे है. ” राजन कह रहा था. “हमारे   ..ऊपर शक है  …कि  …कहीं हम  …जुदा तो नहीं हो गए   …? लोग सोच रहे हैं  कि   ..कहीं   ..सावित्री और राजन का प्रेम-प्रसंग  …..”

“आप क्या सोच रहे हैं  …?” सावित्री ने बात काटी थी.

राजन उठा था. राजन की जुबां पर ताला पड़ा था. राजन चाह कर भी आज    …पारुल को बीच में न लाना चाहता था. लेकिन सच्चाई तो वही थी. वह आज महसूस रहा था  कि वो   …दो पाटों के बीच खड़ा था. सावित्री और पारुल के बीचों-बीच खड़ा राजन  ….किसे ले और किसे छोड़े के धर्मसंकट से गुजर रहा था. वह समझ न पा रहा था कि   …सावित्री से क्या कहे  …क्या न कहे  …ताकि उस की जान बचे !

“बदनामी हुई है. बुरा लग रहा है. मैं  ….मांफी चाहूंगा   …., सावो    …कि  …”

“नहीं,राजन ! बात को छुपाओ मत. मैं समझती हूँ कि ..मेरा राजन यों अकारण तो नदी में कूदेगा नहीं। मैं जानती हूँ, राजन   …कि अगर तुमने शराब नहीं पी    …पत्ते नहीं बांटे   …और तुम नंगे पैर सड़क पर चले   …तो  …ज़रूर कोई संगीन कारण है ! ज़रूर कुछ है  …जो तुम्हें अब तोड़ने लगा है।  है तो   …कुछ ज़रूर   …!” सावित्री ने राजन को फिर से घूर था.

क्या करता , राजन ! सावित्री बहुत चतुर थी. सावित्री से वह अपने मनोभाव छुपा नहीं पाता था.

“सच बात तो ये है,सावो ! कि मैं पागल हो गया हूँ   …हाँ, पागल   …! पारुल के लिए मैं बाबला हो गया हूँ. उठते-बैठते , सोते-जागते  ….मुझे पारुल ही नज़र आती है  , पारुल मेरी नस-नस में समां गई है  …पारुल मेरे मन-प्राण पर छा गई है  ….पारुल  ….”

“वो एक विधवा औरत है   …!”

“मैं जानता हूँ.”

“वह स्टेट की मालकिन है  …., यानी महारानियों का-सा रुतबा है, और   ….!”

‘मुझे पता है !”

“उस की दो बहिने हैं  …और   …और  …”

“मैं सब जानता हूँ, सावो ! और मैं ये भी जानता हूँ कि   …शायद पारुल का मेरे जीवन में आना एक बड़ा हादसा है. मुझे लगता है  ….कभी-कभी कि  …कि  …जैसे   …मैं  …मेरा  ….” बहकने लगा था, राजन।

“कहो,कहो ! संकोच मत करो , राजन! तुम जानते हो कि मैं  ….सच  ….”

“सच ही तो कह रहा हूँ, सावो !” राजन ने हिम्मत बटोरी थी. “और सच्चाई ये है, सावो   कि  …मैं  ….महसूसता हूँ कि  ..पारुल से पहले मेरा जैसे किसी स्त्री से परिचय ही नहीं था    …!” राजन ने जैसे बम फोड़ा था. “सच मानो, सावो ! औरत नाम की वस्तु से   …मेरा परिचय ही अब आ कर हुआ है ! मैंने  ….इस छोटे से सहवास में पारुल के माद्यम से    जो जाना है  …वो तो   …मेरे लिए अजूबा था  …एक आश्चर्य था   …!” राजन चुपचाप सावित्री को घूर रहा था.

सावित्री का मन बैठ गया था. उस की सारी साधना   …साहस  ….प्रेम  ..और  ..पवित्रता  ..उस पर लानत भेज रहे थे. उसे लग रहा था – जैसे उस ने व्यर्थ जिया – इस जीवन को  ! मात्र एक मर्द को वह   ….

“मात्र पारुल का एक स्पर्श  …मुझे बाबला बना देता है  ….! उस की खन-खन करती हंसी   ..मेरे भीतर उतरती चली जाती है ! और जब  ….” ठहरा था, राजन।

“कहो,कहो !” सावित्री ने उसे उत्साहित किया था.

“और जब  ….पारुल आलिंगनबद्ध होती है  ….और जब वह  ….प्रेम-प्रसंग छेड़ती है  ….और जब वह रूंठ जाती है  …मन जाती है  …लड़ जाती है  ….भिड़ जाती है  …तब मैं उस की इन अदाओं पर मर-मिटता हूँ।  मैं  ….उस का दास होता हूँ – उस के हाथों का खिलौना होता हूँ  ….और सम्पूर्ण रूप से उस का होता हूँ  ….- बेहोश   …पागल  ….और   ….”

“नदी में कूदने से   …इस का मतलब   ….?” सावित्री को लगा कि राजन उसे ठग रहा था.

“बताता हूँ. ” राजन तनिक मुस्कराया था. “हुगली के किनारे बैठा मैं   ..पारुल के बारे ही सोच रहा था. उस का चेहरा अचानक ही हुगली के जल में   उग आया ! हिलने लगा था   …वो चेहरा ! हंसने लगी थी, पारुल  ….! बोली, बैरागी लग रहे हो  …? मैंने कहा , तुम्हारी याद में बैरागी नहीं तो और क्या   ….?” राजन ने सावित्री की और देखा।

सावित्री गंभीर थी. सावित्री जड़ थी. सावित्री  ….का मौन  …जैसे पूरे चराचर को लेकर खड़ा हो गया था !

“फिर  ….?” सावित्री ने प्रश्न किया था.

“फिर  ….पारुल ने कहा , मैं आ तो गई   ..? मैं बोला , तो आओ ! मेरे आगोश में आओ   ….मेरे पास आओ  …मेरी पारुल   …! हुगली का जल  …निचान पर था और वापस समुद्र में बहने लगा था. जैसे ही मैं पारुल को अपनी बांहें पसार  ….आगोश में लेने के लिए बढ़ा   …फिसल गया ! औंधे मुंह पानी में जा गिरा था , मैं !”

“हो,हो,हो   …!” अचानक सावित्री जोरों से हंस पड़ी थी. “गिर गए , तुम  …!” वह रुक कर बोली थी. “फिसल गए  …तुम, राजन  ….?”

“हाँ,हाँ, सावित्री ! मैं   ..फिसल गया   …!!”

“ठीक फिसले   …अपनी औकात के अनुसार फिसले, तुम !! ” सावित्री ने निर्णय लिया था. “अब समझ में आया   ….” सावित्री ने एक लंबी उच्छवास छोड़ी थी. “दोष मेरा ही रहा , राजन !” गंभीर थी, सावित्री। “किस कदर   …सत्यानाश कर बैठी, अपना   …?” वह गंभीर थी. “स्वयं ही उजाड़ा   …अपना उपवन   ….! क्या दोष दूं, तुम्हें   ….!!”

“मैं  …मैं  .., सावो  ….!”

“तुम्हें पारुल मिल जाएगी   …!” सावित्री ने संयत स्वर में कहा था. “अब कोई नाटक मत करना , प्लीज़ !” सावित्री की प्रार्थना थी.

पहली बार राजन एक नई सावित्री को देख रहा था – अपलक  …!!

क्रमशः   ….

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading