नीमो की ढाणी में पहुंचने पर हर किसी ने बतासो और कालिया का भव्य स्वागत किया था।
अमेरिका से लौट कर आए थे वो, इस बात का शोर था। अमेरिका नीमो की ढाणी के लोगों के लिए तो एक अजूबा ही था। लोग सुनते थे अमेरिका के किस्से लेकिन उन पर विश्वास नहीं कर पाते थे। अब कालिया और बतासो लौटे थे तो हर कोई उनकी कुशल क्षेम से ज्यादा अमेरिका के बारे में ही जानना चाहता था।
और तो और उनके दुलारे राजू गाजू भी अपनी भोली-भोली आंखों से उन्हें अनेक प्रश्न पूछे थे। कहां रहे इत्ते दिन – उनका पहला प्रश्न था। जिंदगी कैसे गुजरी वह भी जानना चाहते थे।
“वो .. वो दोनों नहीं लौटे?” मां सा का प्रश्न अलग था। कालिया और बतासो का स्वागत करने के फौरन बाद उन्होंने पूछ लिया था।
कालिया और बतासो चुप थे। वो दोनों कोई उत्तर देना न चाहते थे। उनकी समझ में ही न आ रहा था कि मां सा से क्या कहें?
“भूल गए मां सा को?” मां सा ने उलाहना दिया था। उनका कंठ रुंध गया था। “कौन पूछता है हम बूढ़ों को!” उनकी आवाज रुलाई में टूट रही थी। “मैं अकेली ही मरूंगी, मुझे पता है।”
“हम जो आ गए हैं मां सा!” बतासो ने उन्हें धीर बंधाया था। “हम आपके नहीं हैं क्या?” कालिया भी पूछ रहा था। “बखत पड़ने पर वो भी लौट आएंगे।” बतासो ने वायदा किया था।
मां सा की सजल आंखों में सजे सपने जमीन पर उतर आए थे।
राहुल और सोफी की शादी और उनके बच्चे मां सा को सहसा दिख रहे थे। बच्चों को गोद खिलाती मां सा और उनकी किलकारियां सुनती नीमो की ढाणी गुलजार हो उठी थी। वैधव्य का शूल तनिक सा ढीला हुआ था, बहारें लौटी थीं और उनका मन बदल गया था।
“कैसा सुख संसार है री उनका अमेरिका में?” मां सा ने खुश होते हुए बतासो से पूछा था।
“नीमो की ढाणी जैसा सुख तो मां सा कहीं नहीं है।” बतासो बताने लगी थी। “कुछ नहीं धरा अमरीका में।” उसने स्पष्ट कहा था। “दुख ही दुख है वहां।” उसने मुंह बनाया था। “दुनिया भर की भागमभाग, ये तेरा ये मेरा, मैं मरा कि तू लुटा – सच कहती हूं मां सा यहां जैसा सुख तो स्वर्ग में भी नहीं मिलेगा।” मां सा ने आंखें भर कर बतासो को देखा था। वह प्रसन्न थीं। वह मान रही थीं कि बतासो उन्हें खुश करने के लिए वो सब कह रही थी।
राजू गाजू दोनों ऊंटों की रूहानी बदल गई थी। दोनों मस्त थे, स्वस्थ थे और खूब जानदार थे। उन की आंखें प्रश्न पूछ रही थीं – है कोई मुहीम? चलो न कहीं, हम तो तैयार हैं।
लेकिन बतासो और कालिया को तो अभी और तैयारियां करनी थीं।
सबसे बड़ी तैयारी तो उन्हें अपने मनों को मनाने की करनी थी। उन्हें अब फिर से एक निर्णय लेना था कि वो समर कोट जाएं कि टाल कर दें? समर कोट जाने में जान का खतरा तो था ही। वो दोनों जानते थे कि जालिम कितना जालिम था। उसकी आंख से कुछ न छिपता था। और अब उन्हें तो सब कुछ छुपा कर एक नया विश्वास पैदा करना था। काम बहुत कठिन था – वो जानते थे।
“जान भी जा सकती है बतासो!” कालिया ने उसे सचेत किया था। “अगर हम चाहें तो ..?”
“धोखा तो नहीं देंगे!” बतासो धीमे से बोली थी। प्रण पतिज्ञा पूरी करेंगे।”
“ठीक सोच रही हो।” कालिया ने भी सहमति जताई थी। “मरना जीना तो लगा ही रहता है बतासो।” कालिया अपने मनोभाव बता रहा था। “मेरा मानना तो यही है बतासो! मरता कौन है? राणा सांगा कहां मरे? महाराणा प्रताप को मौत कब आई? दुनिया आज भी उनका गुण गान करती नहीं थकती। मरते तो धोखेबाज हैं, बेईमान हैं, दगाबाज हैं। हम तो जुल्म के खिलाफ लड़ने वाले सिपाही हैं। मर भी गए तो क्या?”
“तू ठीक कहता है।” बतासो भी कालिया से सहमत थी। “चलते हैं समर कोट। होगा सो देखा जाएगा।” बतासो ने कमर कस ली थी। “वहां चल कर नौटंकी ही तो करनी है।” बतासो हंसी थी। “मैं तो मना लूंगी तरन्नुम को पन तू देख ले कालिया। तेरी जुबान अटक गई तो .. दोनों मरेंगे।”
“फिकर मत कर रानी। ऐसा छज्जू धरूंगा साले जालिम पर जो अपनी सुध भूल जाएगा।” कालिया भी जोरों से हंसा था। “ऐसा गम गायला तो आता जाता रहता है।”
बतासो और कालिया दो शहीदों जैसे थे जिन्हें अब न जान की परवाह थी और न जालिम की। समर कोट जाना अब उनके लिए एक शोभा यात्रा जैसी थी।
लंबा सफर था समर कोट का, उन्हें याद था। रात दिन लगा कर उन दोनों ने सफर की तैयारियां की थीं। राजू गाजू बहुत खुश थे। उन्हें भी आभास हो रहा था कि एक लंबा सफर उनके सामने था। उन्हें ये भी याद था कि कालिया करिश्मा करता था, मुसीबतें मोल लेता था पन कभी पीछे न हटता था।
लक्ष्य सामने हो तो सामर्थ्य भी स्वयं चली आती है – कालिया, बतासो और राजू गाजू इस बात पर सभी सहमत थे।
“सर फरमान मारा गया।” माइक सूचना ले कर आया था। “बाथरूम में बम मारा है। सब तहसनहस हाे गया। फरमान का शारीर भी कत्तर-कत्तर हाे कर बिखर गया। हमलावर बम फेंक कर भागा था ताे नजर में आ गया था।” माइक बताता रहा था।
“पकड़ा गया?” सर राॅजर्स ने पूछा था।
“नहीं! वह ताे नहीं पकड़ा गया लेकिन उसे ‘अपना वतन’ पार्टी के दफ्तर में घुसते हुए देख लिया।”
“फिर क्या हुआ?” सर राॅजर्स ने तुरंत पूछा था।
“उजबैक!” माइक ने सूचना दी थी। “यानी कि जालिम का तीसरा बेटा।” माइक तनिक सा मुसकुराया था। “अपना वतन पार्टी का सर्वेसर्वा बना गाेल्डी के नाम से नेतागीरी करता है।”
“वैल डन माइक।” सर राॅजर्स प्रसन्न हाे गए थे। “एक और ..”
“हां सर! अब मेरे नक्शे पर पांच परमेश्वर आ बैठे हैं और मुझे अभी छह की और तलाश है। मिलेंगे – जरूर मिलेंगे।”
माइक का इशारा जालिम के ग्यारह बेटे बेअियाें की ऒर था। अभी तक कुल पांच उजागर हुए थे। और अभी छह और उजागर हाेने थे।
सर राॅजर्स की निगाहाें के सामने पूरे संसार का मानचित्र फैल कर खुल गया था। उन्हें अहसास हुआ था कि जालिम के साथ इस बार अमेरिका फिर से विश्व युद्ध लड़ेगा और ये तीसरा विश्व युद्ध अनूठे हथियाराें से लड़ा जाएगा। अमेरिका के पास जाे महाविनाशक हथियार थे उन्हें ताे काेई टारगेट ही नजर न आएगा। अभी तक ताे उन्हें ये भी पता नहीं था कि आखिर समर काेट नक्शे पर कहां था?
“अपना वतन पार्टी कितनी प्रभावशाली है, पता किया?” सर राॅजर्स ने कुछ साेच कर पूछा था।
“कहा ये जा रहा है सर कि ये पार्टी ब्रिटेन काे लेकर बैठ जाएगी।” माइक का उत्तर आया था।
“क्याें? कैसे हाे सकता हे माइक।” उछल पड़े थे सर राॅजर्स। “ब्रिटेन विश्व की महा शक्ति रहा हे माइक। तुम जानते नहीं कि ..”
“सर, वक्त बदल गया है। हवा उल्टी बह चली है। ब्रिटेन में अब शर्णार्थियाें का बाेलबाला है। इस बार उन्हीं की पार्टी जीती है आर अब सत्ता में है। यूथ पावर भी इन्हीं लाेगाें के साथ में है। गाेराें के बच्चे ताे किसी गिनती में हैं नहीं और ये स्वयं बूढ़े हाे चुके हैं। अब हाे ताे क्या हाे?”
“युद्ध हाे। जम कर लड़ें।” गर्जे थे सर राॅजर्स। “मैं ताे कहता हूं माइक कि उखाड़ फेंकें इन शर्णार्थियाें काे। भगा दें देश के बाहर।”
“सर, साेच कर देखिये। देश की अर्थ व्यवस्था डूब जाएगी। काम काैन करेगा?” माइक पूछ रहा था।
सर राॅजर्स जैसे सदमे में आ गए थे और चुप हाे गए थे।
कहीं दूर प्रशांत महासागर में ब्रिटेन की नाव काे डूबते देखते रहे थे सर राॅजर्स। फिर उन्हें अहसास हुआ था कि ये दिन – एक दिन अमेरिका के ऊपर भी आ सकता था। यहां भी ताे शर्णार्थियाें का जमावड़ा था।
“आई विल टैल टैड।” सर राॅजर्स की मुट्ठियां कस आई थीं। “पास ए बिल।” वह बड़बड़ाने लगे थे। “थ्राे ऑल ऑफ दैम आऊट।”
माइक भी अपने साेच से उबरा था ताे बाेला था।
“सर, आज की दुनिया में बिन लादेन और जालिम पैदा हाेते चले जा रहे हैं। लाेग जाग गए हैं। अब काेई भी न गरीब रहना चाहता है, न गुलाम।”
“लेकिन सब मालिक भी कैसे बन सकते हैं माइक?” गर्जे थे सर राॅजर्स।
“मेरे खयाल से सर अब मैरिट का जमाना आएगा।” माइक का सुझाव आया था। “जिस की लाठी भैंस उसी की।” हंसा था माइक। “धन और धरती अब बंट कर रहेगी।” उसने सर राॅजर्स की आंखाें में देखा था। “बुरा न मानें सर। समय का यही तकाजा़ है।” माइक ने सब सच-सच बयान किया था।
सर राॅजर्स की चुप्पी ने माइक काे भी चुप कर दिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड