“किलर्स! इस मिशन काे तुम अपने हाथ में लाे लैरी।” सर राॅजर्स लैरी काे समझा रहे थे। “ये स्काई लार्क का मुख्य मुद्दा है।” उन्हाेंने खुलासा किया था। “इसमें औरत इन्वाॅल्व है।” सर राॅजर्स ने सूचना दी थी।
लैरी तनिक उखड़ आया था। उसे बात समझ न आई थी शायद।
“औरत .. मीन्स ..?” लैरी का प्रश्न था।
“औरत का अर्थ है लैरी कि ये स्वर्ग का द्वार भी है और नरक का रास्ता भी।” सर राॅजर्स ने एक दार्शनिक की तरह कहा था। “मैंने ताे जंग की है औरत शब्द के साथ और शिकस्त खाई है।” सर राॅजर्स कहीं बहुत दूर देख रहे थे। “और अगर परमेश्वर ने चाहा ताे जालिम भी हारेगा – जरूर हारेगा।” सर राॅजर्स का अनुमान था।
“मुझे क्या करना हाेगा सर?” लैरी ने सीधा सवाल पूछा था।
“तुम दिल्ली चले जाऒ।” सर राॅजर्स का आदेश था। “अरब्स और दुनिया भर के रसिक दिल्ली पहुॅंचते हैं। जालिम भी वहां जाता है – यह खबर है हमारे पास।”
“लेकिन सर! मैं .. मैं .. ताे ..”
“अमेरिकन एम्बेसी तुम्हारी मदद करेगी। टैड काे कह कर मैं सब तय कर दूंगा। तुम जाे चाहाेगे वही मदद तुम्हें मिलेगी।” मुसकुराए थे सर राॅजर्स। “मुझे याद है लैरी जब हम वियतनाम में जंग लड़ रहे थे तब भारत में हमारे वाॅर रिलीफ कैंप लगे थे। जाे मांगाे वही मिलता था लैरी।” जाेराें से हंसे थे सर राॅजर्स। “वाॅट ए फन यार।” उन्हाेंने मुग्ध भाव से कहा था। “जन्नत थे ये वाॅर रिलीफ कैंप। हारे थके, घायल और उदास सैनिकाें के लिए।”
“सर, मैं कुछ समझा नहीं।”
“सैनिक हाेते ताे समझ जाते।” सर राॅजर्स ने व्यंग किया था। “खैर! एम्बेसी में जा कर तुम अपनी डिमांड बता देना, बस।”
“वाे लाेग ..?” लैरी अब प्रसन्न था। वह समझ ही न पा रहा था कि सर राॅजर्स चाहते क्या थे?
“दलाल दे देंगे तुम्हें। और ये दलाल हर मुसीबत का हल जानते हैं। और लैरी ये भी हाे सकता है कि इनके हाथ जालिम की भी दुम हाे।” मुसकुराए थे सर राॅजर्स। “बड़े ही चालाक हाेते हैं ये दलाल। इनसे जीतने के लिए एक ही हथियार काम करता है – पैसा।”
“पैसा ..?” लैरी अब चिंतित था।
“मुंह मांगा दे देना। अब अमेरिका हमारी मदद पर तैनात है भाई।” हंस कर कहा था सर राॅजर्स ने।
लेकिन लेरी अभी तक सकते में था। उसने अभी तक भारत जा कर नहीं देखा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि दलाल चीज क्या थे? फिर भी मिशन किलर अगर उसके गले में लटका था ताे उसे जूझना ताे पड़ेगा ही – वह जानता था। सर राॅजर्स काे वह किसी सूरत में भी ना न कह सकता था।
दिल्ली, हैदराबाद और भारत काे लेकर लैरी उत्सुक था कि इनके बारे में वह ज्यादा से ज्यादा जाने। उसने खाेज आरंभ की थी। उसे ताज महल, कुतुब मीनार और पुराना किला के अलावा गाेल कुण्डा और निजाम हैदराबाद की सात साै बेगमाें के बारे पता चला था ताे उसकी जिज्ञासा और भी बढ़ गई थी। उसने पाया था कि भारत के इतिहास के हर पन्ने पर मुगलाें का ही नाम लिखा था।
अरबाें का भारत में औरताें की तलाश में आना जाना भी सच बात थी। उसे इसके सबूत भी मिल गए थे। कई किस्से और कहानियां उसे पढ़ने काे मिली थीं और अरब्स कैसे अइयाशी करते थे ये खुलासा भी हुआ था। लड़कियाें के मां बाप गरीब थे और शायद वाे अपनी लड़कियां बेचने पर मजबूर थे – लैरी ने यह भी पता लगा लिया था।
विवश और गरीब औरताें की खरीद फराेख्त करता साैदागर बना जालिम अचानक ही लैरी काे दिखाई दे गया था।
सर राॅजर्स की पहेली – औरत – का अर्थ उसे अचानक समझ आ गया था।
देश विदेशों के अखबारों के मुख पृष्ठों पर छपे बतासो और कालिया के फोटो एक अजीब आकर्षण थे। फोटो स्वयं में ही किसी गहरी घटना के पात्र लगते थे। बतासो की बटन जैसी आंखों मे न जाने कितने रहस्य समाये थे – लोग देख कर दंग रह जाते थे। और कालिया का हाल हुलिया तो और भी डरावना था।
“जालिम के दो जासूस” हर अखबार ने एक ही हैडिंग लिखा था। “जेल तोड़ कर भाग गए।” एक ही संदेश था जो साफ-साफ लिखा था।
लोग आंखें गढ़ाए अखबार में लिखे मजबून को बांच रहे थे और बार-बार बतासो और कालिया की छपी तस्वीरों को गौर से देख रहे थे। जासूस होना वैसे भी कुछ अलग से होना होता है और ये तो दोनों नामचीन जासूस थे और जालिम के थे। और जालिम ..?
“दोनों ने जालिम के बारे कोई सूचना या सुराग नहीं दिया था।” अखबार में लिखा था। “दोनों पागल बने हुए हर रोज अपना नया नाम और पता बताते रहे थे। अब किसी को अनुमान तक नहीं कि ये कहां से आए थे, कहां रहते थे और क्या करते थे।” अखबारों ने बताया था।
लोग चटकारे ले-ले कर अखबार पढ़ रहे थे। और अब जालिम के बारे में सोच समझ रहे थे।
कौन है ये जालिम? आम प्रश्न था जिसका हर कोई उत्तर जानना चाहता था।
हवा में अजीब सी गर्माहट भर आई थी। मात्र जालिम के नाम ने जमाने में भय भर दिया था। लोगों के पास अपुष्ट सूचनाएं थीं – जालिम के बारे। लेकिन अब तो जालिम जड़ पकड़ने लगा था। और जालिम को जानने की जिज्ञासा का जन्म हुआ था। जितने मुंह उतनी बातें चल पड़ी थीं।
“पता नहीं चल रहा है कि ये दोनों जेल तोड़ कर भागे कैसे?” अखबार में लिखा था। “लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक कोई सुराग नहीं कि ये जेल के अभेद्य पहरों के पार उड़ कैसे गए? पूछ-ताछ चल रही है। जेल के कुछ संदिग्ध कर्मचारियों के ऊपर शक है। बिना किसी स्रोत और सहारे के ये दोनों इस तरह जेल तोड़कर भाग ही नहीं सकते – यह बात तो तय है।” लिखा था सभी अखबारों में।
“अब जालिम का जमाना आएगा।” अफवाहें उड़ने लगी थीं। “प्रशासन रोटी किस बात की तोड़ता है – जो दो कैदी – ये दो जासूस सरेआम जेल तोड़ कर भाग गए। जालिम जरूर ही कोई ऊंची शय है जो अमेरिका से भी ऊपर है।” चर्चाएं चल पड़ी थीं।
बतासो और कालिया एक दूसरे के चेहरों को देख रहे थे। अखबारों में छपे उन के फोटो उन्हें रिझा रहे थे। इतने आकर्षक थे उनके चित्र कि वो दोनों भी उन पर मुग्ध थे। उनका नाम कहीं नहीं लिखा था। केवल फोटो थे जो न जाने क्या-क्या बोल रहे थे।
“इ का प्रपंच है री?” कालिया ने धीमे से बतासो को पूछा था।
“हम को का पता!” बतासो ने रूठते हुए कहा था। “तेरी ही करामात है कोई।” उसने कालिया को टहोका था। “भगा लाया है और अब ..” उलाहना दिया था बतासो ने। “अब कैद कराएगा।” बतासो नाराज थी। “है तो कोई बुरा बवाल।” बतासो की आंखें गीली हो आई थीं।
“डरती है।” कालिया ने जौमदार आवाज में कहा था। “हमने किसी के साथ कौन बुरा किया है?” वह पूछ रहा था। “किसी का क्या बिगाड़ा है हमने?” कालिया ने हिम्मत बंधाई थी बतासो की।
सर रॉजर्स भी पास पड़े अखबारों को बारी-बारी देख रहे थे, पढ़ रहे थे और कुछ सोच रहे थे। बरनी ने अच्छा खेल रच दिया था – वह मुसकुराए थे। जालिम तक इस खेल की गूंज भी पहुंचेगी – ये निश्चित है, उनका अनुमान था। जालिम को बतासो और कालिया के समर कोट से भागने का उत्तर मिल जाएगा। देर आए दुरुस्त आए – कह कर सर रॉजर्स मुसकुराए थे।
“यू हैव डन एक्सीलेंट जॉब।” सर रॉजर्स ने बरनी की पीठ थपथपाई थी। “मुझे तुमसे यही उम्मीद थी बरनी।” वह कहते रहे थे। “तुमने ठीक पकड़ा है इस जालिम को।” उनका कहना था।
अपनी बेजोड़ चली चाल पर बरनी बेहद प्रसन्न था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड