राहुल सिंह के साथ घूमती फिरती सोफी को आज भारत बहुत ही जाना पहचाना लग रहा था। कितनी सहजता से राहुल सिंह उसकी हर जिज्ञासा का जवाब देता था – कमाल ही था।

“इस तरह के जिरह बख्तरों को पहन कर और घोड़े पर सवार हो कर ये तुम्हारे राणा जी कैसे लड़ पाते होंगे टाइगर?” सोफी ने सवाल किया था। वह महाराणा प्रताप के म्यूजियम में धरे जिरह बख्तर का मुआइना कर रही थी। “इनका कथित घोड़ा चेतक न जाने कैसा रहा होगा?” उसकी आंखों में निरा आश्चर्य भरा था।

“राजपूतों की लड़ाइयों की कथाएं और राजपुतानियों के जौहर इस राजस्थान की जान हैं, आत्माएं हैं जो आज भी जिंदा हैं, बोलती हैं और बतियाती हैं। जो लिखा है वह तो बहुत कम है, सोफी। और जो घटा है वह तो ..!”

“काश! इनकी फिल्में बन गई होतीं!” सोफी अफसोस जाहिर करती है। “अमेरिका में तो ऐसे सारे सबूत सुरक्षित हैं। लेकिन यहां तो आधे से ज्यादा गैस वर्क है।”

“मसलन कि ..?” राहुल सिंह पूछता है।

“मसलन कि वो तुम्हारी बाज बहादुर और रानी रूपमति की प्रेम कथा। माण्डव के महलों को देख कर और इतिहास को पलट कर और समझ कर ..!”

“तो तुम कहोगी कि राणा और पद्मावती का प्यार भी कल्पित है?”

“सब कल्पित सा तो लगता ही है।” सोफी राहुल सिंह की आंखों में झांकती है। “यों जीते जी चिताओं में जल जाना, जलती आग में कूद पड़ना मुझे जंचता नहीं है टाइगर।”

राहुल सिंह कई पलों तक सोफी को देखता ही रहता है। वह उसे समझने का प्रयत्न करता रहा था। सोफी की आंखों में प्रेम का प्रवेश शायद पूरी तरह नहीं समाया था। सोफी को अभी तक शायद प्रेम के प्रभाव का परिचय नहीं मिला था।

“राजपूतों की लड़ाइयां और राजपुतानियों के जौहर, उनके लोहे के जिस्म और काठ की बनी आत्माएं मैं तुम्हें प्रत्यक्ष में दिखा दूं तो?” राहुल सिंह ने प्रश्न किया था।

“दिखाओ न!” सोफी मुसकुराई थी।

“चलो! पहले तुम्हें राणा जी और पद्मावती से परिचय कराते हैं।” राहुल सिंह ने पैंतरा बदला था। “अब देखो! उसने सोफी का ध्यान आकर्षित किया था। “राणा जी माने कि मैं और पद्मावती माने कि तुम – स्वयं सोफी!” वह हंसा था। “ठीक बोला ..?” उसने पलट कर पूछा था।

“गप्पी ..!” सोफी चीखी थी। “यू ..!” उसने ढेर सारा रेत अंजुरी में उठा कर राहुल सिंह पर छिड़क दिया था। “गप्पी .. ठीक बोला न?”

“गाइड गप्पी तो होता ही है!” राहुल सिंह चहका था। “ठीक बोला न?” उसने पूछा था।

उन दोनों के बीच बला की एक सहजता आ कर ठहर गई थी। पद्मावती के संबोधन से अभिभूत हुई सोफी अपने स्वयं को टटोलती रही थी। राहुल सिंह को उसने मुड़ कर देखा था। फिर उसने अंदाजा लगाया था कि क्या वास्तव में ही वह दोनों राणा और पद्मावती के किरदार निभा सकते थे?

“पद्मावती पान नहीं खाती थी।” राहुल सिंह कह रहा था। “लेकिन तुम पान खा कर देखो!” उसने हाथ में पकड़ी दो पान की गिलोरियों में से एक सोफी को दी थी। “लो चखो!” उसने आग्रह किया था। “यह भी एक इतिहास है। पान खाना कब शुरू हुआ, कहां शुरू हुआ और कहां से आया तथा क्यों आया, सोचो!”

“तुम्हीं सोचो!” सोफी ने रूठते हुए कहा था। “सोचना तो काम तुम्हारा है!” सोफी ने पान खाते हुए कहा था।”

अब राहुल सिंह पान खाती सोफी को गौर से निहार रहा था। उसका पान खाने का स्टाइल और उसे चबाने का तरीका बिलकुल अनाड़ियों जैसा था। तब राहुल सिंह ने उसे समझाया था कि पान को किस तरह गाल में दबा कर धीरे-धीरे खाया जाता है और आहिस्ता-आहिस्ता चबाया जाता है।

“बिलकुल पान की बेगम लग रही हो।” राहुल हंसा था। “बाई गॉड सोफी ..!”

पान की बेगम का संबोधन सोफी को अच्छा नहीं लगा था। वह तमतमा कर बोली थी।

“लुच्चे ..!” सोफी जोरों से चीखी थी और राहुल सिंह के पीछे उसे पीटने दौड़ी थी। दो चार मुक्कियां लगा कर उसने कहा था – लफंगे हो! उसने मुड़ कर फिर राहुल सिंह की आंखों में घूरा था। ठीक बोला न – उसने हंसते हुए राहुल सिंह से पूछा था।

“ठीक बोला ..!” राहुल सिंह ने स्वीकारा था।

उनके बीच का फासला और भी कम हुआ था। वह दोनों और भी अंतरंग बने थे। उन दोनों के मन बार-बार मिले थे।

“तुम भी तो राजपूत हो?” सोफी ने पूछा था।

“हां! राठौर हूँ!” राहुल सिंह ने बताया था।

“तुम्हारा इतिहास ..?”

“है! जानना चाहोगी ..?” राहुल सिंह ने पूछा था। “चलो! नीमो की ढाणी चलते हैं। तुम्हें अपने इतिहास का परिचय ..”

“नीमो की ढाणी – माने ..?”

“माने मेरा गांव। मेरा परिचय!” राहुल रुका था।

“तब तो अवश्य चलेंगे। देखते हैं जनाब का हुलिया – उन्हीं के आइने में।” सोफी हंसी थी। “ठीक बोला?” उसने राहुल सिंह को कंधा मार कर पूछा था।

“ठीक बोला!” राहुल सिंह ने भी उसका हाथ दबा दिया था।

नीमो की ढाणी तक का रास्ता उन्होंने पैदल ही तय किया था। रेत के छोटे-छोटे पहाड़ों को वह लांघते रहे थे, रेत पर आहिस्ता-आहिस्ता चलते रहे थे और फिर पूरा दिन लगा कर नीमो की ढाणी पहुंचे थे। सोफी का शरीर रेत और पसीने में सना बुरी तरह से चर-चर कर रहा था। नहाने के लिए उसे कुल एक बाल्टी पानी ही मिला था। फिर भी सोफी खुश थी। उसे लगा था – न जाने क्यों यह उसकी अपनी यात्रा थी जिसे उसे करना ही चाहिये था।

“कहीं वह पद्मावती ही तो नहीं थी?” सोफी ने एक पल के लिए सोचा था। “और राहुल ..?”

नीमो की ढाणी एक छोटा सा ठिकाना था। कुल मिला कर 12 घर थे। चारों ओर रेत ही रेत था। पानी ऊंट की कमर पर लद कर बारह किलोमिटर दूर से आता था। आख, बबूल और छोंकरा के पेड़ दूर-दूर दिखाई देते थे। बाकी सब तो उजाड़ ही था।

“क्यों न हम गांव देखें?” सोफी ने मांग की थी। “मैं जानना चाहूंगी टाइगर कि यहां लोग रहते ही क्यों हैं? क्या है यहां रहने के लिए .. जो ..”

“चलो! तुम्हें गांव के दर्शन कराता हूँ।” राहुल सिंह मान गया था। “तुम्हें आया देख लोग खुश होंगे।”

“लेकिन क्यों?”

“अरे भाई! एक अमरीकन औरत और यहां – नीमो की ढाणी में और वो भी मेरे साथ!” वह हंसा था।

नीमो की ढाणी के लोग वास्तव में ही सोफी के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े थे।

“ये बताशो है।” राहुल सिंह परिचय करा रहा था। “इसका मर्द कालिया है। ऊंटों का व्यापारी है। माल इधर का उधर करता है।” राहुल सिंह बता रहा था। “सौदागर है।”

“ये क्या पहना है बताशो?” सोफी पूछ रही थी।

“बुर्का है!” बताशो ने बताया था। “पहनोगी ..?” उसने पूछा था। “लो, पहन कर देखना!” यह इतना आराम देता है कि ..” बताशो ने सोफी की ओर आंख मारी थी।

फिर राहुल सिंह ने सोफी का परिचय कालिया से भी कराया था जो रात को ही अपनी ऊंटों की कॉनवॉई लेकर पहुंचा था।

“ऊंट की सवारी कराओगे?” परिचय के बाद सोफी ने कालिया से पूछा था।

“क्यों नहीं जी!” कालिया हंस गया था। “आज ही शाम को चलते हैं। क्यों राहुल जी ..?”

“हां-हां! आज ही चलेंगे!” राहुल भी मान गया था। सोफी को ऊंट की सवारी अटपटी लगी थी। उसे तो ऊंट भी एक अजीब अजूबा लगा था। रेगिस्तान का जहाज माने जाना वाला ऊंट उसे ज्यादा भला न लगा था।

“बहुत खुंदकी होता है ऊंट!” कालिया सोफी को बता रहा था। “अगर किसी से बैर साध ले तो भगवान ही बचाए उसे।”

“मतलब यह बहुत खतरनाक है?” सोफी ने सहमते हुए पूछा था।

“जालिम है जालिम!” राहुल बता रहा था। “जालिम ..”

“जालिम ..?” सोफी चौंकी थी। “तुम जालिम को ..?” उसने राहुल सिंह को पूछा था।

“जालिम मीन्स वॉट?” राहुल सिंह ने उल्टा उसे प्रश्न पूछा था।

“तुम्हीं बताओ!” सोफी अब सहज थी। “ठीक बोला?” उसने हंसने का प्रयत्न किया था। फिर उसने बताशो की तरह आंख दबा कर पूछा था। “जालिम तो तुम भी हो मेरी जान? ठीक बोला?”

राहुल सिंह हंस गया था। उसे सोफी की एक्टिंग अच्छी लगी थी।

“यू आर ए परफैक्ट एक्टर, सोफी!” राहुल सिंह ने कहा था।

“एंड यू आर ए परफैक्ट क्लाऊन!” सोफी का उत्तर था।

राहुल जो था वह था नहीं और जो कुछ वह कह रहा था, कर रहा था उसका अर्थ भी कुछ और ही था। सोफी को राहुल पर पहली बार शक हुआ था।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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