“तुमने भारत को देखा है तो भारत ने तुम्हें देखा है।” सर रॉजर्स बताते हैं। “आंख तो सबकी होती हैं, सोफी।” वह विहंस कर कहते हैं। “भारत में ..”
“कुछ अनूठा तो है।” सोफी बात काटती है। “मैं मानती हूँ कि भारत में कुछ अलग से है, हट कर है और हमारा जैसा होते हुए भी हमारा जैसा नहीं है।” सोफी एक दार्शनिक की तरह कहती है। “अच्छा लगा मुझे।” वह अंत में बताती है।
“कोई मित्र बना?” लैरी एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लेता है।
सोफी एक लंबे पल के लिए लैरी को देखती है। वह लैरी के चेहरे को ध्यान से पढ़ती है। लैरी एक मुग्ध मुसकान को चेहरे पर ओढे रहता है। सोफी उसका इरादा नहीं पढ़ पाई है, अत: तनिक खबरदार हो जाती है।
“नहीं।” सोफी एक सपाट सा उत्तर देती है। वह बड़ी ही चतंराई के साथ राहुल सिंह के साथ हुए अपने अंतरंग परिचय को छुपा जाती है। “वहां की हवा ही अलग है, लैरी।” वह कहती है।
“मैंने भी चख कर देखा है उस हवा को।” लैरी हंसता है। “बहुत मीठी बयार है वहां जो हर पल बहती रहती है। लेकिन ..”
“हर कोई गरीब है याकि गरीबी का नाटक करता है।” सोफी अपना मत बताती है। “और सच तो यह है डैडी कि ..”
“अमीर रहते हैं वहां।” सर रॉजर्स मजाक करते हैं। “हैं, गरीब भी हैं सोफी।” वह गंभीर हो कर बताते हैं। “अभी नहीं एक बार और जाओ वहां। पकड़ो उस समाज को तो पता चलेगा कि ये गरीबी है क्या बला?”
“और फिर उसी गरीबी के शरीर से तुम्हें जालिम की बू आएगी, जो तुम्हें जालिम तक ले जाएगी।” लैरी बात का समर्थन करता है।
सोफी चुप है। अचानक ही जालिम उसके सामने आ बैठता है। वह उसे छूना तक नहीं चाहती। वो तो राहुल सिंह से ही बतियाना चाहती है। वह तो चाहती है कि राहुल सिंह ही उसे कहीं जालिम के पास ले कर जाए और ..
“जालिम के बारे में बहुत कुछ हासिल हुआ है।” सर रॉजर्स बताते हैं। “माइक हैज डन वैल। तुम भी जालिम की फाइल पढ़ लेना।” कह कर सर रॉजर्स उठ जाते हैं।
“मैं भी चलता हूँ सोफी।” लैरी कहता है। “विश यू ऑल दि लक!” वह मुसकुराता है। “बाई द वे। स्काई लार्क का झंडा ऊंचा फहरा रहा है। अच्छी सफलता मिल रही है हमें।”
“वह कैसे?”
“पीर परदेशी को पकड़वा दिया न!” लैरी सूचना देता है।
“कौन सा पीर परदेशी?” सोफी चौंक कर पूछती है।
“लगता है आज कल पढ़ नहीं रही हो?” लैरी प्रश्न करता है। “कैसे हुआ कि पीर परदेशी ..?”
“मुझे तो केवल राहुल की याद है।” सोफी कह देना चाहती थी पर चुप थी।
“डॉलर चोर है! हमारी अर्थ व्यवस्था को लील जाना चाहता है। एक ऐसे घुन का कीड़ा है जो ..”
“माइक ने पकड़ा है क्या?”
“हां!” लैरी स्वीकार करता है। “कल इसका खुलासा करेंगे। कल ही तुम ..”
सोफी और कुछ नहीं सुनती। लैरी चला जाता है।
जालिम की फाइल को उसने बेमन खोला है। जालिम के कारनामों को वह पढ़ती है। वह पढ़ती है कि जालिम ने एक नया ईश्वर खोज लिया है जिसे उसके अनुयाई पूरे विश्व में स्थापित करेंगे और अन्य सभी धर्म डुबो दिए जाएंगे। यह नया ईश्वर गरीबों का ईश्वर है, अमीरों का नहीं। इस नए धर्म के अनुसार ब्याज, व्यापार, मुनाफाखोरी सभी अपराध हैं। इस ईश्वर का आदेश है कि मुनाफा खोरों को मिटा दो। खुदगर्जों को कत्ल कर दो। व्यापारीयों को ..
“नॉनसेंस!” सोफी गुर्राती है। “वॉट विल हैप्पन टू दि वर्ल्ड इकोनॉमी?” वह सोचने लगती है।
अचानक ही सोफी जालिम की फाइल को फेंक चलाती है। और अचानक ही राहुल सिंह भी आकर उसके पास बैठ जाता है।
एक कमाल जैसा हो जाता है। अब तक जो जालिम उसकी सांसों में बसने लगा था, अब उसे एक दम वाहियात लगने लगता है। राहुल सिंह का सौम्य चेहरा, बातचीत, उसकी आंखें, मोहित करती उसकी सहज मुसकान और मूर्छित करती उसकी धारदार आवाज सोफी सुनती है तो उसका मन ही नहीं भरता। “अजीब है ये मन भी।” वह सोचती है। “आज राहुल के पास से लौट कर ही नहीं आता। डूब जाएगा उसका मिशन?” वह घबराती है। “डैडी ने तो उसके कहने पर ही सब कुछ किया है।” वह सोचने लगती है। “अगर डैडी को पता चला कि राहुल ..?”
“क्या करूं इस राहुल का?” सोफी स्वयं से प्रश्न करती है। “कैसे भुलाऊं इसे?” वह स्वयं से पूछती है। “रॉबर्ट इतना असरदार नहीं था। लेकिन ये राहुल, ये टाइगर ..? न जाने क्यों मैं डूबती ही जा रही हूँ ..!” वह महसूस करती है।
“कैसी रही तुम्हारी ट्रिप?” अचानक ही माइक उसके कैबिन में आ जाता है।
सोफी बहुत असहज हो आती है। उसे आज भी माइक अच्छा नहीं लगता है। उसे लगता है जैसे माइक उसका प्रतिद्वंद्वी हो। वह महसूसती है – जैसे माइक उससे कोई खबर चुराने आया हो। वह सचेत हो कर राहुल सिंह को अपने दिमाग के गहरे कूंए में धर लेती है ताकि अनभोर में कुछ गलत न कह जाए।
“जस्ट नॉर्मल!” सोफी कहती है। “वास्तव में भारत एक खोज करने लायक देश है।”
“क्या जालिम का सुराग कहीं से मिलेगा?” माइक पूछता है। “फाइल पढ़ी है?” वह जानना चाहता है। “मैंने खासकर तुम्हारे लिए कुछ सूचनाएं जुटाई हैं।” वह बताने लगता है। “जालिम का डॉक्टर चीनी है।”
“क्या ..?” सोफी उछल सी पड़ती है। “चीनी और जालिम का डॉक्टर?” वह पलट कर प्रश्न को दोहराती है। “क्यों .. लेकिन कैसे?”
“जालिम हमसे और हमारी दवाइयों से भी दूर रहना चाहता है। उसे डर है कि कहीं किसी दवा के जरिए हम उसकी जान न ले लें।” वह हंसता है।
“और ये चीनी डॉक्टर?”
“अलग से ही इलाज करता है। जालिम का जिस्म फौलाद जैसा बताते हैं। उसे औरतों का बेहद शौक है। बच्चे भी बहुत हैं उसके। और ..”
“अमानुष ही है क्या?” सोफी पूछती है।
“हां! है तो निरा अमानुष ही। पर इसका प्रभाव विष की तरह फैलता ही जा रहा है, सोफी! एक क्रेज बनता जा रहा है जालिम!” माइक सोफी की आंखों में घूरता है। “हमें इसे ..!” वह रुक जाता है।
“मैं ये जानती हूँ!” सोफी बात समझ लेती है।
माइक चला जाता है। लेकिन आश्चर्य ये है कि राहुल सिंह तुरंत ही उसके पास आ कर बैठ गया है। वह राहुल सिंह से भी जालिम का प्रसंग छेड़ती है। लेकिन वह है कि जालिम को फूंक मार कर उड़ा देता है। “हम आतंक वातंक से नहीं डरते सोफी” वह कहता रहता है। “कितने जालिम आए और कितने जालिम गए!” वह हाथ नचा कर कहता है। “मुझे बताओ न मैं देखूंगा इस साले को।” वह सोफी के सामने तन कर खड़ा हो जाता है। “तुम क्यों लड़ती हो? मुझे लड़ने दो न!” वह मुसकुराता है।
पहला ही पुरुष है राहुल सिंह जो जालिम से लड़ने के लिए तैयार है। अन्य सभी तो चाहते हैं कि उससे एक औरत लड़े। अच्छी एक मुसीबत है – ये राहुल सिंह भी। सोफी सोचती रहती है।
“तुम बुलाओगी तो हम सर के बल चले आएंगे।” राहुल सिंह की आवाजें आती हैं।
“तुम क्यों नहीं बुलाते?” सोफी उत्तर में कहती है। “मैं अब आई!” वह स्वयं से कहती है और हंस जाती है।
सोफी का भारत जाने का प्रोग्राम अचानक ही बन जाता है।
मूडी परेशान है। न जाने क्यों उसका नाम कवरिंग की लिस्ट से काट दिया गया है।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड