स्काई लार्क को ले कर सर रॉजर्स का नाम एक बार फिर उठ खड़ा हुआ था। और सर रॉजर्स भी एक बार फिर जैसे नींद त्याग कर उठे थे और अब युद्ध के लिए तैयार थे – तत्पर थे।
न जाने कैसे फिर से एक बार उनका मन अमेरिका के लिए लड़ने का बन गया था। एक नई चुनौती को उन्होंने ओट लिया था। आतंकवाद जैसे शत्रु से लड़ने के लिए अब उनका मन बन गया था।
जनमत भी सर रॉजर्स के साथ था। उन्हें सरकार से अनुमति मिलने का एक ही कारण था – उनका पिछला ट्रैक रिकॉर्ड। वियतनाम की लड़ाई के अपने हीरो को लोग अभी तक नहीं भूले थे। और कुछ नया कर दिखाने की उनकी सामर्थ्य पर किसी को कोई शक नहीं था।
“बिना आपके यह काम संभव नहीं था सर।” लैरी कह रहा था। “माइक भी कम घाग नहीं हैं। अगर स्काई लार्क में आपका नाम नहीं होता तो ..”
“हमें माइक को भी मिला लेना चाहिए।” मूडी ने सुझाव सामने रक्खा था। “किन्हीं मायनों में माइक का जवाब नहीं है। मैंने उसके साथ तीन मिशन किए थे .. और ..”
“हां-हां! माइक को भी ले लेंगे।” सर रॉजर्स ने सहज स्वीकारा था। “हमारे काम में उस जैसे अनुभवी व्यक्ति का स्थान है।”
सोफी की भवें तनिक तन आई थीं। न जाने क्यों उसे माइक निरा गधा ही लगता था। न जाने क्यों माइक ने अनभोर में ही सोफी के मर्म को आहत कर दिया था। वह आज भी नहीं जानती थी कि माइक ने उसे विभाग से क्यों निकाला था?
“डैडी! कुछ लोग ..!”
“नहीं सोफी! अदावट निकालना बुरी बात है। माइक वाली गलती हम क्यों करें?” सर रॉजर्स ने बात समाप्त कर दी थी।
न जाने क्यों पूरी टीम विभाग से निकल सोफी के साथ आ कर प्रसन्न थी। एक नयापन था स्काई लार्क संस्था में जो उन्हें सोफी की ही देन लगा था। सोफी पूरी संस्था का मन प्राण जैसी लगती थी।
“फॉक्स! मैं कुछ उसूलों का कायल हूँ।” सहसा सर रॉजर्स अपनी रण नीति बताने लगे थे। “उसूलों का अर्थ ..”
“पहले जालिम के उसूल जानना जरूरी है डैडी।” सोफी बीच में बोली थी।
“उसके उसूल तो मुझे जुबानी याद हैं।” सर रॉजर्स मुसकुराए थे। “यह आदमी कबीले के कानून में ही विश्वास रखता है। जबकि कबीले का कानून उसकी विश्व विजय की आकांक्षा के साथ मेल नहीं खाता!” सर रॉजर्स ने अपनी टीम को निगाहों में भर कर देखा था। “उसका कानून उसकी महत्वाकांक्षा से छोटा पड़ जाता है। और देख लेना यह जालिम यहीं मार खाएगा।” सर रॉजर्स ने एक मर्म की बात बताई थी। “कबीले के कानून एक छोटे समुदाय तक ही सीमित रहते हैं। लेकिन ..”
“लेकिन हैं क्या ये कानून सर?” मूडी बीच में पूछ बैठा था।
“यही कि जो आपका अनुयाई नहीं बनता उसका गला चाक कर दो।” हंसे थे सर रॉजर्स। “यही कि औरतों को पैर की जूती मान लो। यही कि अनगिनत बच्चे पैदा करते जाओ और अनगिनत औरतें रख लो। यही कि पड़ौसी का घर बार जला दो और उसकी जमीन जायदाद हड़प लो। उसकी स्त्री सुंदर हो तो उसको रखैल बना लो। यही कि चोरी चकोरी जैसे टुच्चे अपराधों की सजा आदमी के हाथ पैर काट कर दो।”
“अपराध रोकने का अच्छा तरीका है सर।” लैरी बोला था । “न जाने क्यों मैं भी इस कानून को ..”
“ये गलत है लैरी।” सर रॉजर्स ने कहा था। “अपराध अपने आप में कुछ भी नहीं है। हम सब रोज इस तरह के अपराध करते हैं। कितनी सजा देते हैं हम अपने आप को?” उन्होंने लैरी से प्रश्न किया था। “ये कानून नहीं है लैरी, कबाड़ा है। कानून की दृष्टि के लिए मैं भारत का कायल हूँ।” सर रॉजर्स रुके थे।
भारत का नाम आते ही सोफी का चेहरा खिल उठा था।
“एक क्षमाशील दृष्टि का कानून के साथ समाहित होना नितांत आवश्यक है, लैरी।” सर रॉजर्स कह रहे थे। “भारत में जाकर देखो। तुम पाओगे कि न्याय प्रणाली हर व्यक्ति को उसके बचाव का पूरा-पूरा मौका देती है। और यह एक प्रकार से हर आदमी का अधिकार भी है।” सर रॉजर्स प्रसन्न थे। “कबीले के ये कानून लेकर हमारा ये जालिम जा कहां रहा है?” वह हंस पड़े थे। “किसी वहम का शिकार हुआ है ये आदमी।”
“ये मरेगा कैसे सर?” मूड़ी ने अटपटा प्रश्न पूछा था।
“इसे मारेंगे नहीं मूडी।” सर रॉजर्स ने उत्तर दिया था।
“इसे परास्त कौन करेगा सर?” विलियम से रहा नहीं गया था तो पूछा था।
“एक औरत!” सर रॉजर्स मुसकुराए थे। “ये मेरी भविष्य वाणी है विलियम्स।”
एक साथ सबकी निगाहें सोफी पर आ कर ठहर गई थीं।
सोफी का चेहरा न जाने क्यों आरक्त हो गया था। न जाने क्यों उसे लगा था कि किसी उसके भीतर बैठे आदमी ने उसे बधाइयां दी हैं।
“मैं भारत कब जा रही हूँ?” सोफी अचानक प्रश्न पूछ बैठी थी।
“थर्ड ऑफ मार्च!” उत्तर मूडी ने दिया था।
सर रॉजर्स की त्यौरियां तन गई थीं। वह तनिक अप्रसन्न हुए थे। वह कुछ बुरा सा मान गए थे। उन्होंने मूडी को कटौंही निगाहों में भर कर तौला था।
“बदल देता हूँ इसका नाम सर?” लैरी सर रॉजर्स को खुश करने की गरज से बोला था।
“सॉरी बॉस! आई एम वैरी-वैरी सॉरी!” मूडी माफी मांग रहा था। “सोफी को कवर मैं ही करूंगा – भारत में। मैं नौकरी छोड़ कर आया हूँ। मैं ..”
सोफी हंस गई थी। मूडी बिलकुल बच्चा लगा था उसे।
“पूरे प्रॉपेगेंडा का काम तुम्हीं संभालो लैरी।” सर रॉजर्स के आदेश थे। “इतना बदनाम कर दो इस जालिम को कि जब ये पकड़ा जाए तो लोग इसपर थूकें। जालिम का हुक्म, जालिम का जुल्म, जालिम की की निर्मम हत्याएं, जालिम की प्रेमिकाएं और उन सब पर किए जालिम के ..” वो ठहर गए थे।
“सब कुछ संभाल लूंगा सर।” लैरी ने स्वीकार किया था। “सब कुछ समझ गया। अब कोई चूक नहीं होगी।”
सर रॉजर्स को अपनी कामयाबी पर कोई शक न था।
“फिर से लड़ोगे ..?” एकाकी हुए सर रॉजर्स ने जैसे कई युगों के बाद अपनी पत्नी की आवाज सुनी थी। उन्होंने उस आवाज को पहचानने में जरा भी गलती न की थी। जैसे वह इस आवाज को हर दिन ही सुनते रहते थे – ऐसा जान पड़ा था।
“हां!” सर रॉजर्स ने एक संक्षिप्त उत्तर दिया था।
“लेकिन मेरी बेटी की जिंदगी क्यों दांव पर लगा रहे हो?” एक प्रश्न था जो नुकीले तीर सा उनके सीने में सीधा ही जा छिदा था।
“तुम्हारी बेटी ..?” वो बोले थे। “बहुत दिन के बाद याद आई तुम्हें?”
“उसे चैन से जीने दो! प्लीज डोन्ट स्पॉइल हर ..”
“वह बालिग है। मैं होता कौन हूँ जो ..?”
“मैं हूँ न?”
“अकेली हो क्या?” सर रॉजर्स ने टीस कर पूछा था। “तड़प रही हो क्या? अपने लिए जीता आदमी तुम्हारी तरह जीते जी मर जाता है। लेकिन मेरा जैसा आदमी एक उद्देश्य को लेकर लड़ता हुआ भी मर-मर कर अमर होता रहता है। न मैं मरूंगा – न सोफी! लेकिन तुम जी भी न सकोगी।” बात समाप्त कर सर रॉजर्स ने कनैक्शन ही काट दिया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड