सोफी का मन बहुत अशांत था।

लैरी कल ब्रेकफास्ट पर आ रहा था। लैरी ने सब कुछ तय कर लिया था। लेकिन एक वह थी कि अभी तक कुछ भी तय न कर पाई थी। और एक रॉबर्ट था जो पैर में चुभते कांटे की तरह उसे लगातार काट रहा था। रॉबर्ट के साथ जिया विगत अब सोफी को साल रहा था – सता रहा था। क्यों की उसने वह नादानी और क्यों लगाया इस रॉबर्ट को मुंह। वो पछता रही थी।

और एक था रॉबर्ट – जो बिन बुलाए मेहमान की तरह उससे चिपका था।

राइडिंग से वापस आ अब रॉबर्ट बाथरूम में घुसा था। वह नहा रहा था। वह कोई गीत गा रहा था। वह बहुत प्रसन्न था। डैडी भी बहुत प्रसन्न थे। अन्य दिनों से अलग आज एक अनूठी प्रसन्नता उनके आस पास डोल रही थी। आज अलग था सब कुछ लेकिन सोफी कुछ न जानती थी। और जो उसके दिमाग में बयार बह रही थी उसे भी कोई नहीं जानता था – लैरी के सिवा।

लंच तैयार था। स्पैश्यल बना था – यह आती खुशबू बता रही थी। लेकिन सोफी का मन था कि कुछ खाने को राजी ही न हो रहा था। उसकी तो भूख प्यास सब मर चुकी थी। उसका गला सूखा जा रहा था। उसे तो रह-रह कर लैरी का प्रस्ताव ही याद आ रहा था। लैरी कल – माने कि कल ही तो ब्रेकफास्ट पर आ रहा था। कल ही तो स्काई लार्क के ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर होने थे। कल ही तो उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा अध्याय आरंभ होना था। और एक वो थी कि .. अभी तक ..

“साहब इंतजार कर रहे हैं सोफी।” आम तौर पर आता संदेश था।

सोफी जानती थी कि बिना उसके साथ आए डैडी लंच नहीं लेंगे।

“आती हूँ।” सोफी ने सहज भाव से कह दिया था।

अन्यमनस्क वह खाने की मेज पर आ बैठी थी। उसका मन तो बिगड़ा हुआ था। पर वह संयत थी। उसने चुन-चुन कर मुसीबतों की तरह निवालों को गले के नीचे धकेला था। स्पैश्यल बने उस खाने का आनंद रॉबर्ट जम कर ले रहा था। चुपुर-चुपुर ऊंगलियां चाटता वह सोफी को यमदूत जैसा लगा था। शायद उसी की वजह से साेफी को अपना जीवन बेकार और बेस्वाद लग रहा था। सब कुछ बेमजा हो उठा था।

“ये लो।” रॉबर्ट खाने के बाद उसके कमरे में घुस आया था। “हमारे वर्ल्ड टूर के पेपर्स हैं। टिकिटें हैं, बुकिंग है और वीजा ..” रॉबर्ट ने कागजों का एक छोटा पुलिंदा सोफी को थमा दिया था। वह अब एक मुक्त हंसी हंसे जा रहा था।

रॉबर्ट की ये हंसी न जाने कैसे एक चिंगारी बन गई थी। और अब बारूद ने इस चिंगारी को पकड़ लिया था। अब तो विस्फोट होना अनिवार्य ही था। रॉबर्ट को तो ध्यान ही न था कि सोफी के मन में कब से एक ज्वालामुखी धधक रहा था और कब से वह फुकी जा रही थी और कब से वह ..

“रॉबर्ट!” सोफी ने तीखी आवाज में कहा था। “मैन, वाई डोन्ट यू अंडरस्टेंड?” सोफी ने रॉबर्ट की आंखों में घूरा था। “वाई – फॉर गॉड्स सेक वाई यू वांट टू फोर्स मी फॉर ..?” सोफी का क्रोध से गला रुंध गया था। उसका दिमाग सुलगती भट्टी की तरह जल भुन रहा था। “मैं जिसे करना नहीं चाहती .. कहना नहीं चाहती .. सोचना तक नहीं चाहती, फिर तुम क्यों चाहते हो कि मैं?”

“मैं और तुम सोफी ..”

“माई ब्लडी फुट! क्या है ये मैं और तुम? ये सब है क्या?”

“सोफी .. वो .. हमारा प्यार?”

“शिट! वो सब बकवास था। बेवकूफी थी।” सोफी का स्वर बहुत ऊंचा था। वह मान रही थी कि सर रॉजर्स सब कुछ कान लगा कर सुन रहे थे। वह सब कुछ जानते थे। और वह भी रॉबर्ट की इस योजना के एक हिस्से थे। “नाओ रॉबर्ट प्लीज फॉर हैवन्स सेक ..” उसने फिर से रॉबर्ट को आंखों में घूरा था। “कॉल इट एंड ऑफ द गेम।” सोफी ने हाथ में लगे तमाम कागज फाड़ डाले थे। “मैं .. मैं ..” वह चुप हो गई थी।

बिल्ली के सामने बैठे कबूतर की तरह रॉबर्ट कांप रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह अपनी मौत के सामने आ बैठा था।

सर रॉजर्स को एक बारगी सोफी की मां का चेहरा याद हो आया था। “मैंने निर्णय ले लिया है रॉजर्स!” वह सुन रहे थे। वही क्रोध, वही तेहा और उतनी ही सशक्त आवाज थी सोफी की! सोफी अपनी मां से कहीं से भी अलग न थी। वह जान गए थे कि सोफी किसी भी कीमत पर रॉबर्ट के साथ शादी न करेगी। और शायद सोफी रॉबर्ट के साथ कोई भी और कैसा भी संबंध रक्खेगी नहीं।

साेफी अब अपने बचपन की दहलीज पार कर गई थी – सर राॅजर्स साेच रहे थे। साेफी अब बड़ी हाे गई थी – उन्हाेंने मान लिया था।

राॅबर्ट जा रहा था। सर राॅजर्स उसे जाता देख रहे थे। उसने अपनी कार में अपना एक-एक सामान उठा-उठा कर रख लिया था। शायद अब वह कभी न लाैटे – सर राॅजर्स ने साेचा था। साेफी भी उसे जाते देख रही थी। उसने राॅबर्ट के जाने पर काेई प्रतिक्रिया न दी थी। “कबाब काे छाेड़ कर हड्डी जा रही थी शायद।” साेफी काे ऐसा लगा था, ताे वह मुसकुरा दी थी।

शाम घिर आई थी ताे साेफी अपनी समस्या काे शाम के गले बांध कहीं भाग जाना चाहती थी। अंधेरा ताे हाे गया था, ताे भी साेफी इस में डूब न पाई थी। बाप बेटी के बीच अभी तक काेई चर्चा न चली थी। सर राॅजर्स साेफी के लिए निर्णय में काेई दखल न देना चाहते थे।

“कल लैरी ब्रेकफास्ट पर आ रहा है।” साेफी ने हिम्मत जुटा कर अचानक ही डाइनिंग टेबुल पर संवाद छेड़ दिया था।

“लैरी – हू?” सर राॅजर्स चाैंके थे। उन्हाेंने पलट कर साेफी काे गाैर से देखा था।

“आपका ही एक परम भक्त है। जब आप वियतनाम से लाैटे थे तब उसने ही आपका वह भव्य स्वागत समाराेह ..”

“ऒ हां! याद आया ..! दैट यंग मैन लैरी? यस-यस। मुझे याद है उसका चेहरा माेहरा। लेकिन वाे ताे ..? वाे ताे तुम्हारे ही विभाग में ताे ..?”

“हां। और वाे भी जानता है डैडी कि आप और रिक्स – डायरैक्टर ऑफ राॅ, बडी थे वियतनाम वाॅर में।”

“ऒ यस। ही वाॅज माई बडी।” सर राॅजर्स स्वीकारते हैं। “हम दाेनाें आज भी अपनी पुरानी शरारताें पर हंस लेते हैं।” सर राॅजर्स हंसते हैं। “सच मानाे साेफी दिस गाय इज ए जाेकर। एंड ए बिग ब्लडी फ्राॅड। उल्लू ताे इस तरह बनाता था सब काे ..”

“लैरी कह रहा था कि आप दाेनाें अभी भी पर्व और उत्सवाें पर राष्ट्रपति से मिलने साथ-साथ जाते हैं।”

“हां! राष्ट्रपति भी ताे हमारे बडी थे। कुछ भी कहाे साेफी ये आदमी भी कम दिलचस्प नहीं है। एक दीवानगी है इसमें – देश के लिए शहीद हाेने की दीवानगी। मैं इसीलिए इस आदमी की बहुत कद्र करता हूॅं।”

“और मिस्टर रिक्स ..?” साेफी बीच में पूछ लेती है।

“ऒह दैट जाेकर!” हंसते हैं सर राॅजर्स। “आई टैल यू साेफी दिस ईडियट रिक्स ..” वह साेफी काे आंखाें में घूरते हैं। “हम वाॅर कैंप में थे – तीनाें एक साथ! राष्ट्रपति जी तब भी बाथ रूम में बंद हाे देश भक्ति में लीन हाे जाते थे। अब रिक्स परेशान। एक दिन इसने जलता क्रेकर चुप से बाथरूम में फेंक दिया। जाेर का धमाका हुआ ताे श्रीमान जी का सर दीवार में जा बजा। धूंआधार हुए बाथरूम से एक मरे अजगर की तरह जब बाहर आया ये ताे हम सब दांत फाड़-फाड़ कर हंस रहे थे। रिक्स कमरा छाेड़ कर भाग गया था ..”

“और फिर” साेफी पूछती है।

“फिर, जब तीन दिन के बाद यह सामने आया ताे ..” वाे ठहरते हैं। “ही पंच्ड हिज नाेज।” कह कर वाे जाेराें से हंसता है। “लेकिन आज भी रिक्स की वह बहुत कद्र करता है।”

“लैरी भी ताे आपकी बहुत कद्र करता है।” साेफी अचानक बात की दिशा माेड़ देती है।

“लेकिन क्याें? मकसद ..?”

“वही बताएगा”

“तुम क्याें नहीं?” सर राॅजर्स हंसते हैं। उनका मन अब बहुत प्रसन्न है। वह साेफी काे हर हाल में खुश देखना चाहते हैं। “कहीं .. वह ..?” सर राॅजर्स एक प्रश्न पूछ ही लेते हैं।

“नहीं! वैसा कुछ नहीं है। वह ताे ..” साेफी बात साफ करती है।

“अरे हां-हां। वह ताे अब बड़े-बड़े बच्चाें का बाप हाेगा? अरे वाे ताे सन 81 की बात है।” सर राॅजर्स चहक कर कहते हैं। “ये वक्त भी क्या शह है भाई। बिन पूछे बीतता ही रहता है। सब काे बूढ़ा कर देता है। परास्त कर देता है। कल की ही ताे बात लगती है साेफी ..”

“हां, कल की ही बात है।” साेफी भी हंसती है। “कल सुबह ब्रेकफास्ट पर वह आ रहा है।”

“ताे तैयारियां कराे भाई। क्या कुछ मीनू रहेगा तुम ही बता देना।” वह साेफी काे आंखाें में देखते हैं। “ट्रीट हिम वैल साेफी।” आदेश दे वह उठ जाते हैं।

अनेकानेक आशा दीप साेफी की आंखाें में जल उठते हैं।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा (रिटायर्ड)

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